15 सितंबर समसामयिकी
गंगा बेसिन में उष्णकटिबंधीय तूफानों की तीव्रता में वृद्धि का अनुमान
ब्रिटेन के न्यूकैसल विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक शोध में कहा गया है कि वर्ष 2050 के दशक तक, गंगा के तटीय क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय तूफानों की तीव्रता करीब 20 प्रतिशत बढ़ जाएगी।
यह शोध हाल ही में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया।
शोध की मुख्य बातें:
भारत के पूर्वी तट के साथ, बांग्लादेश में निचले क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है।
गंगा और मेकांग नदियों के निचले डेल्टा क्षेत्रों में तूफानों की तीव्रता में वृद्धि किन्तु तूफानों की संख्या में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आने का अनुमान है।
2010 की शुरुआत तक इन दोनों ही नदी बेसिनों में आने वाले उष्णकटिबंधीय तूफानों की आवृत्ति बढ़ गई थी।
अगले 27 वर्षो में इनकी आवृत्ति औसतन 50 प्रतिशत से अधिक घट जाएगी, जबकि 2050 तक गंगा बेसिन में आने वाले तूफान पहले से करीब 19.2 प्रतिशत ज्यादा शक्तिशाली होंगे।
इन शक्तिशाली तूफानों की वजह से लोगों को तेज हवाओं, भारी बारिश और अन्य महत्वपूर्ण प्रभावों का सामना करना पड़ेगा, जिनमें बाढ़ भी शामिल है।
गंगा और मेकांग बेसिन एशिया की दो महत्वपूर्ण नदी प्रणालियों का हिस्सा हैं, जो इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अन्य तथ्य:
गंगा बेसिन भारत, तिब्बत (चीन), नेपाल और बांग्लादेश में करीब 10,86,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है।
मेकांग नदी हिमालय के पठार से निकलती है तथा म्यांमार, लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और दक्षिणी वियतनाम से होते हुए दक्षिण चीन सागर से मिल जाती है।
स्किल इंडिया डिजिटल' प्लेटफॉर्म लॉन्च
केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 13 सितंबर, 2023 को डिजिटल प्लेटफॉर्म 'स्किल इंडिया डिजिटल' (SID) लॉन्च किया।
‘स्किल इंडिया डिजिटल’ का उद्देश्य भारत के कौशल, शिक्षा, रोजगार और उद्यमिता परिदृश्य को रूपांतरित करना है।
यह शिक्षार्थियों को प्रासंगिक कौशल हासिल करने, उद्योग के रुझानों के प्रति अपडेट रहने और भारत के कार्यबल विकास में प्रभावी ढंग से योगदान करने में सक्षम बनाएगा।
‘स्किल इंडिया डिजिटल’ भारत में कौशल विकास के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) है।
यह एक अत्याधुनिक मंच है, जो सभी कौशल पहलों को एक साथ लाता है।
चर्चा में रेड फायर चींटी
रेड फायर चींटी दुनिया की सबसे आक्रामक चींटी प्रजातियों में से एक है। जो हाल ही में यूरोप में पहली बार पाई गई है।
अन्य तथ्य:
हालांकि, यह दक्षिण अमेरिका की मूल प्रजाति है, किंतु अब यह संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, कैरेबियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया में भी पाई जाती है।
ये रासायनिक स्राव और स्ट्रिड्यूलेशन के माध्यम से संचार स्थापित करती हैं।
नोट- स्ट्रिड्यूलेशन शरीर के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से रगड़ने से उत्पन्न ध्वनि को कहते हैं।
आक्रामक प्रजातियां पादप और जानवरों की विलुप्ति का कारण बनती हैं, खाद्य सुरक्षा के समक्ष खतरा उत्पन्न करती हैं और पर्यावरणीय आपदाओं को बढ़ावा देती हैं।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (एम. विश्वेश्वरैया (1861-1982)
एम. विश्वेश्वरैया की जयंती ( 15 सितंबर) को हर साल इंजीनियर्स दिवस के रूप मनाया जाता है।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के बारे में :
उनका जन्म वर्ष 1861 में कर्नाटक में हुआ, उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से कला स्नातक (BA) की पढ़ाई की और फिर पुणे में विज्ञान कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की तथा देश के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरों में से एक बन गए।
वह भारत के एक अग्रणी इंजीनियर थे जिनकी प्रतिभा जल संसाधनों के दोहन और देश भर में बाँधों के निर्माण और समेकन में परिलक्षित होती थी।
उन्होंने वर्ष 1909 में मैसूर राज्य के मुख्य अभियंता और 1912 में मैसूर रियासत के दीवान के रूप में कार्य किया, इस पद पर वे सात वर्षों तक रहे।
वर्ष 1915 में जनता की भलाई में उनके योगदान के लिये किंग जॉर्ज पंचम द्वारा उन्हें ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के नाइट कमांडर के रूप में नाइट की उपाधि दी गई थी।
वर्ष 1962 में बंगलूरू, कर्नाटक में उनका निधन हो गया।
उनके द्वारा लिखित पुस्तकें:
रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया' और प्लान्ड इकॉनमी फॉर इंडिया।
प्रमुख योगदान:
वह मैसूर में कृष्णा राजा सागर बाँध के निर्माण के लिये मुख्य कार्यकारी अभियंता (Engineer) थे।
वर्ष 1903 में पुणे में खड़कवासला जलाशय में स्वचालित वियर फ्लडगेट (Automatic Weir Floodgates) की एक प्रणाली को डिज़ाइन और पेटेंट कराने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
वर्ष 1908 में हैदराबाद में आई विनाशकारी बाढ़ (मुसी नदी) के बाद उन्होंने भविष्य में शहर को बाढ़ से बचाने के लिये एक जल निकासी व्यवस्था तैयार की।
उन्होंने 1895 में सुक्कुर नगर पालिका के लिये वाटरवर्क्स का डिज़ाइन और संचालन किया था।
उन्हें बाँधों में अवरोधक प्रणाली (Block System) के विकास का भी श्रेय दिया जाता है जो बाँधों में पानी के व्यर्थ प्रवाह को रोकता है।
उन्होंने मैसूर साबुन कारखाना, मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स (भद्रावती), श्री जयचामाराजेंद्र (Jayachamarajendra) पॉलिटेक्निक संस्थान, बैंगलोर (बंगलूरू) कृषि विश्वविद्यालय और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना की ज़िम्मेदारी भी निभाई।
तेंदुओं का स्टरलाइज़ेशन
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में तेंदुओं की आबादी के स्थायी प्रबंधन के लिये तेंदुओं का स्टरलाइज़ेशन/नसबंदी करने का निर्णय लिया है।
गुजरात के वन विभाग ने विशेषकर गिर राष्ट्रीय उद्यान और उसके आसपास तेंदुओं की नसबंदी का भी प्रस्ताव रखा है।
तेंदुओं का स्टरलाइज़ेशन आवश्यकता क्यों:
केवल वर्ष 2019-20 में ही महाराष्ट्र में तेंदुओं के हमले के कारण 58 लोगों की मौत हुई, यह वर्ष 2010-18 में 97 मौतों में से आधे से अधिक है।
महाराष्ट्र ने बढ़ते तेंदुए-मानव संघर्ष, बढ़ती तेंदुए की आबादी और तेंदुए और मानव समुदायों दोनों की रक्षा करने के लिये तेंदुओं की नसबंदी करने का निर्णय लिया है।
प्रस्तावित नसबंदी कार्यक्रम का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण कानूनों और विनियमों का अनुपालन करते हुए इन चुनौतियों का समाधान करना है।
चिंताएँ:
तेंदुओं की नसबंदी के बारे में चिंताओं में इसकी प्रभावशीलता के बारे में संदेह, व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता, पशु चिकित्सा कौशल विकास, तेंदुओं पर संभावित तनाव, पारंपरिक तरीकों के साथ चुनौतियाँ और वैकल्पिक गर्भनिरोधक विकल्प शामिल हैं।
संघर्षों को संबोधित करने और संरक्षण प्रयासों के लिये सामुदायिक समर्थन प्राप्त करने पर भी ज़ोर दिया गया है।
हिम तेंदुए से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:
वैज्ञानिक नाम: पैंथेरा अनकिया (Panthera pardus)
तेंदुआ बड़ी बिल्लियों की प्रजातियों (पैंथेरा वर्ग के बाघ, शेर, जगुआर, तेंदुआ और हिम तेंदुए) में सबसे छोटा है तथा इसे विभिन्न प्रकार के आवासों में अनुकूलन करने की क्षमता के लिये जाना जाता है।
तेंदुआ एक रात्रिचर जानवर है, जो रात में शिकार करता है।
मेलेनिज़्म (Melanism) तेंदुओं में एक सामान्य घटना है, जिसमें जानवर की पूरी त्वचा काले रंग की होती है, जिसमें उसके धब्बे भी शामिल हैं।
मेलानिस्टिक तेंदुए को अक्सर ब्लैक पैंथर कहा जाता है और भ्रमवश इसे एक अलग प्रजाति मान लिया जाता है।
आवास:
यह उप-सहारा अफ्रीका, पश्चिमी और मध्य एशिया के छोटे हिस्सों, भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर दक्षिण-पूर्व एवं पूर्वी एशिया तक विस्तृत क्षेत्र में पाया जाता है।
भारतीय तेंदुआ (Panthera pardus fusca) भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से पाया जाने वाला तेंदुआ है।
भारत में आबादी:
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘भारत में तेंदुओं की स्थिति 2018’ (Status of leopards in India 2018) के अनुसार, भारत में तेंदुओं की आबादी में वर्ष 2014 के आकलन के बाद 60% की वृद्धि हुई है।
वर्ष 2014 में तेंदुओं की अनुमानित आबादी लगभग 8,000 थी जो वर्ष 2018 में बढ़कर 12,852 हो गई थी।
तेंदुओं की सर्वाधिक आबादी मध्य प्रदेश (3,421) में है, इसके बाद कर्नाटक (1,783) और महाराष्ट्र (1,9090) इस संदर्भ में क्रमशः दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं।
संरक्षण स्थिति:
IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)
लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट-I (Appendix-I)
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: की अनुसूची-I (Schedule-I)
दक्षिण कोरिया और क्वाड
दक्षिण कोरिया ने क्वाड समूह में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है और अब विस्तार का निर्णय उसी पर निर्भर है।
क्वाड के बारे में:
वर्तमान में क्वाड भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का एक समूह है जो देशों के लोकतांत्रिक मूल्यों की समान अवधारणा पर आधारित है।
इसका उद्देश्य "स्वतंत्र, खुला और समृद्ध" इंडो-पैसिफिक क्षेत्र सुनिश्चित करना तथा इसका समर्थन करना है।
द्विपक्षीय मोर्चे पर भारत और दक्षिण कोरिया व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) (वर्ष 2010 से लागू) के विस्तार पर वार्ता कर रहे हैं।
ऑपरेशन पोलो की 75वीं वर्षगांठ
13 सितंबर, 2023 को ऑपरेशन पोलो की 75 वीं वर्षगाँठ मनाई गई है ।
यह एक सैन्य कार्रवाई थी, जो वर्ष 1948 में भारतीय सेना द्वारा शुरू की गई थी, इसके माध्यम से हैदराबाद रियासत को भारत संघ में सफलतापूर्वक एकीकृत किया गया था।
इस सैन्य कार्रवाई को भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 'पुलिस कार्रवाई' बताया था।
हैदराबाद रियासत के भारत में एकीकरण का इतिहास:
हैदराबाद भारत के सबसे बड़े मूल निवासी/रियासतों में से एक था। यह निजाम द्वारा शासित था जिन्होंने ब्रिटिश संप्रभु की सर्वोच्चता को स्वीकार किया था।
जूनागढ़ के नवाब और कश्मीर के शासक की तरह हैदराबाद के निज़ाम भारत को आज़ादी यानी 15 अगस्त, 1947 से पूर्व भारत में शामिल नहीं हुए थे।
उन्हें पाकिस्तान और मुस्लिम मूल के नेताओं द्वारा एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में अपना अस्तित्त्व बनाये रखने और एकीकरण का विरोध करने के लिये अपने सशस्त्र बलों में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित किया गया था।
इस सैन्य सुधार के दौरान, हैदराबाद राज्य में आंतरिक अराजकता का उदय हुआ, जिसके कारण 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना को ‘ऑपरेशन पोलो’ (हैदराबाद को भारत संघ में मिलाने के लिये सैन्य अभियान) के तहत हैदराबाद भेजा गया था, क्योंकि हैदराबाद में कानून-व्यवस्था की स्थिति ने दक्षिण भारत की शांति के लिये खतरा पैदा कर दिया।
सैनिकों को रज़ाकारों (एकीकरण का विरोध करने वाले निजी मिलिशिया) के हल्के-फुल्के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और 13-18 सितंबर के मध्य सेना ने राज्य पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया।
ऑपरेशन के कारण बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें 27,000-40,000 लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया था, जिसमें 200,000 या उससे अधिक के विद्वान थे।
एकीकरण के बाद निज़ाम को वही दर्जा प्रदान किया गया था, जो भारत के साथ विलय करने वाले अन्य राजाओं को प्राप्त था ।
पकिस्तान द्वारा इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र में की गई शिकायतों को भी अस्वीकार कर दिया गया और पाकिस्तान के ज़ोरदार विरोध तथा अन्य देशों की कड़ी आलोचना के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस मामले में आगे हस्तक्षेप नहीं किया, अंततः हैदराबाद का भारत में विलय हो गया।
2021 Simplified Education Pvt. Ltd. All Rights Reserved