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बोडोलैंड की 8 पारंपरिक वस्तुओं को भौगोलिक संकेत (GI) टैग

Updated : 8th Oct 2024
बोडोलैंड की 8 पारंपरिक वस्तुओं को भौगोलिक संकेत (GI) टैग

बोडोलैंड की 8 पारंपरिक वस्तुओं को भौगोलिक संकेत (GI) टैग

असम के बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र की 8 पारंपरिक वस्तुओं को हाल ही में भौगोलिक संकेत (GI) टैग दिया गया है। यह टैग इन उत्पादों की अनूठी प्रकृति और समृद्ध इतिहास को दर्शाता है, और इससे बोडोलैंड के पारंपरिक उत्पादों की पहचान और लोकप्रियता को बढ़ावा मिलेगा।

GI टैग प्राप्त उत्पादों की सूची:

चावल से बनी बीयर की तीन किस्में:

  1. बोडो जौ ग्वारन: इसमें लगभग 16.11% अल्कोहल की मात्रा होती है।
  2. मैबरा जौ बिडवी: इसे स्वागत पेय के रूप में उपयोग किया जाता है।
  3. बोडो जौ गिशी: इसे भगवान शिव से उत्पन्न पेय/औषधि के रूप में माना जाता है।

चार खाद्य उत्पाद:

  1. बोडो नेपहम: यह किण्वित मछली का व्यंजन है।
  2. बोडो ओंडला: लहसुन, अदरक और नमक से बने चावल का पाउडर।
  3. बोडो ग्वखा: स्थानीय नाम 'ग्वका ग्वखी', जो ब्विसागु उत्सव के दौरान तैयार किया जाता है।
  4. बोडो नार्ज़ी: जूट के पत्तों से बना एक अर्ध-किण्वित भोजन।

पारंपरिक बोडो वस्त्र:

  • बोडो अरोनाई: यह एक छोटा सुंदर कपड़ा है।

महत्व:

  • असम राज्य में अब तक 33 उत्पादों को GI टैग प्रदान किया गया था, और इन 8 नए उत्पादों के साथ कुल संख्या 41 हो गई है।

बोडोलैंड:

  • बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) असम राज्य के अंतर्गत एक स्वायत्त क्षेत्र है, जिसमें कोकराझार, चिरांग, बक्सा, तामुलपुर, और उदलगुरी जिले शामिल हैं। कोकराझार इस क्षेत्र का प्रशासनिक मुख्यालय है।

बोडो जनजाति और संस्कृति:

  • नामकरण: बोडोलैंड का नामकरण बोडो जनजाति के आधार पर किया गया है, जो इस क्षेत्र का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है।
  • संस्कृति: बोडो समुदाय की अनूठी परंपराएं उनके नृत्य, संगीत, त्योहारों, और पहनावे में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती हैं। उनके डिज़ाइनों में प्राकृतिक तत्वों जैसे पेड़, फूल, पहाड़, और पक्षियों का समावेश होता है, जो इस समुदाय के परिवेश को दर्शाते हैं।

भौगोलिक संकेत (GI) टैग:

  • इतिहास: वर्ष 2003 में भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण अधिनियम, 1999) के अधिनियमन के बाद, दार्जिलिंग चाय को वर्ष 2004 में GI टैग दिया गया था।
  • महत्व: GI टैग का उद्देश्य विशिष्ट उत्पादों की पहचान और संरक्षण करना है, जिससे स्थानीय उत्पादों की वैश्विक पहचान बढ़ती है और स्थानीय कारीगरों को आर्थिक लाभ होता है।