बंजारा विरासत संग्रहालय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के वाशिम में पोहरदेवी में बंजारा विरासत संग्रहालय का उद्घाटन किया, जिसमें बंजारा समुदाय की समृद्ध विरासत का जश्न मनाया गया।
वाशिम पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने संत सेवालाल महाराज और संत रामराव महाराज की स्मारकों पर पुष्पांजलि भी अर्पित की।
बंजारा विरासत संग्रहालय के विषय में
नंगारा संग्रहालय, जो महाराष्ट्र के वाशिम जिले के पोहरदेवी में स्थित है, बंजारा समाज की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को प्रदर्शित करने के लिए एक उत्कृष्ट स्थल है।
यह संग्रहालय 16 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें पारंपरिक तथा आधुनिक वास्तुकला का संगम किया गया है।
संग्रहालय पाँच मंजिला है और इसमें 13 गैलरी हैं, जिनमें बंजारा समाज के इतिहास, परंपराओं, और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया गया है।
संग्रहालय की विशेषताएँ
फ्लाइंग थिएटर और मूविंग प्लेटफार्म जैसी अत्याधुनिक तकनीकें उपयोग की गई हैं
160 फीट बाय 30 फीट का LED स्क्रीन लगी हुई है।
150 फीट ऊंचा सेवाध्वज और संत सेवालाल महाराज की अश्वारूढ़ मूर्ति, जो इस स्थल की ऐतिहासिक महत्ता को बढ़ाते हैं।
संग्रहालय में बंजारा समाज की जानकारी और उनके इतिहास को सात विभिन्न भाषाओं में समझाया जाता है, ताकि विभिन्न भाषा-भाषी दर्शक इसे समझ सकें।
हर दिन शाम 7 बजे यहाँ लाइट और साउंड शो का आयोजन किया जाएगा, जिसमें लेजर का भी उपयोग किया जाएगा।
संत सेवालाल महाराज के विषय में
संत सेवालाल महाराज बंजारा समुदाय के एक महान समाज सुधारक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे। उनका जन्म 15 फरवरी, 1739 को कर्नाटक के शिवमोगा जिले के सुरगोंदनकोप्पा में हुआ था। बंजारा समुदाय उन्हें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक गुरु के रूप में मानता है, और उनकी शिक्षाओं ने इस समुदाय में समाज सुधार और आध्यात्मिक जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समाज सुधारक: उन्होंने बंजारा समुदाय में प्रचलित अंधविश्वास और गलत धारणाओं का खंडन किया। अपने ज्ञान और कौशल से उन्होंने लोगों को स्वस्थ और नैतिक जीवन की दिशा में प्रेरित किया। वे विशेष रूप से वनवासी और खानाबदोश जनजातियों की सहायता करते थे।
आध्यात्मिक मार्गदर्शक: संत सेवालाल महाराज की शिक्षाएँ आध्यात्मिकता और नैतिकता पर आधारित थीं। वे जीवन में संयम और शुद्धता का पालन करने की शिक्षा देते थे।
आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा: वे आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में निपुण थे और इन्हीं के माध्यम से वे लोगों को स्वस्थ जीवन की ओर प्रेरित करते थे।
यात्राएँ: उन्होंने अपनी लदेडिया मंडली के साथ पूरे भारत की यात्रा की, जहां वे विभिन्न समुदायों और जनजातियों को समाज सुधार और आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश देते थे।
बंजारा समुदाय मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी राज्यों जैसे तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में फैला हुआ है।
यह समुदाय अपनी अनूठी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। वे गोर बोली (लम्बाडी) भाषा बोलते हैं, जिसकी कोई लिखित लिपि नहीं है।
बंजारा समुदाय पहले खानाबदोश जीवन शैली में जीवन यापन करता था, लेकिन अब वे स्थायी रूप से देश के विभिन्न हिस्सों में बसे हैं।
बंजारा समुदाय में तीज त्योहार (श्रावणम) का विशेष महत्व है, जहां युवा बंजारा महिलाएँ अच्छे दूल्हे के लिए प्रार्थना करती हैं।
महाराष्ट्र के वाशिम जिले के पोहरादेवी को बंजारा समुदाय के लिए "बंजारा काशी" कहा जाता है, क्योंकि यह संत सेवालाल महाराज का समाधि स्थल है। यहाँ बंजारा समुदाय के लोग बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं और अपनी आस्था को प्रकट करते हैं।
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