Back to Blogs

हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने बाल विवाह निषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2024

Updated : 5th Sep 2024
हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने बाल विवाह निषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2024

हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने बाल विवाह निषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2024

  • हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने बाल विवाह निषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2024 पारित कर दिया है।

  •  विधेयक में महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव किया गया है।

  • विधेयक में "बच्चे" की परिभाषा 21 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के रूप में की गई है। 

 

विवाह की न्यूनतम आयु को 21 वर्ष करने से लाभ 

भारत में लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को 21 वर्ष करने की मांग कई महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक, और स्वास्थ्य संबंधी कारकों पर आधारित है। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य महिलाओं के सशक्तिकरण, स्वास्थ्य, और बाल विवाह जैसी समस्याओं का समाधान करना है।

  1. शिक्षा: शादी की उम्र बढ़ाने से लड़कियों को अपनी पढ़ाई पूरी करने का ज्यादा समय मिलेगा। इससे वे बेहतर करियर बना सकेंगी।

  2. सशक्तिकरण: देर से शादी होने पर लड़कियां नई चीजें सीख सकती हैं, खुद को आत्मनिर्भर बना सकती हैं, और अपने भविष्य के बारे में बेहतर निर्णय ले सकती हैं।

  3. मातृ स्वास्थ्य: कम उम्र में शादी और गर्भधारण से मां और बच्चे की सेहत को खतरा होता है। शादी की उम्र बढ़ाने से लड़कियों को शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होने का समय मिलेगा, जिससे मां और बच्चे दोनों की सेहत अच्छी रहेगी।

  4. बच्चों की देखभाल: जब महिलाएं आर्थिक और मानसिक रूप से तैयार होंगी, तो वे अपने बच्चों की बेहतर देखभाल कर सकेंगी।

  5. बाल विवाह रोकना: भारत के कई हिस्सों में अब भी बाल विवाह होता है, जिससे लड़कियों की शिक्षा रुक जाती है और वे घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं का सामना करती हैं। शादी की उम्र बढ़ाने से बाल विवाह कम होगा।

  6. आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी: शादी देर से होने पर महिलाएं कामकाजी जीवन में बेहतर तरीके से भाग ले सकेंगी, जिससे वे आर्थिक रूप से मजबूत होंगी और देश के विकास में योगदान देंगी।

इसलिए, शादी की उम्र 21 साल करने से लड़कियों को पढ़ाई, सेहत और आर्थिक रूप से सशक्त बनने का बेहतर मौका मिलेगा।

 

विवाह की न्यूनतम आयु को 21 वर्ष करने के कुछ संभावित नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • सामाजिक और सांस्कृतिक दिक्कतें: ग्रामीण और पारंपरिक समुदायों में विवाह की आयु बढ़ाना उनके सांस्कृतिक मानदंडों के खिलाफ हो सकता है। यह सामाजिक प्रतिरोध को जन्म दे सकता है और लोगों को कानून का पालन करने से हतोत्साहित कर सकता है।

  • प्रजनन दर पर प्रभाव: विवाह की आयु बढ़ाने से प्रजनन दर प्रभावित हो सकती है। महिलाओं के देर से विवाह करने पर उनकी पहली संतान होने की उम्र भी बढ़ जाती है, जिससे प्रजनन आयु में कमी आ सकती है।

  • लिव-इन रिलेशनशिप और गैरकानूनी विवाह: आयु बढ़ाने के बाद भी कुछ जोड़े कानूनी रूप से विवाह से पहले लिव-इन संबंधों में रह सकते हैं, जो सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं हो सकता है और कानूनी रूप से जटिल हो सकता है।

  • महिला अधिकारों पर प्रभाव: विवाह की आयु बढ़ाने से महिलाओं की स्वायत्तता को प्रभावित किया जा सकता है। कुछ का मानना हो सकता है कि इससे महिलाओं की जीवन में निर्णय लेने की स्वतंत्रता कम हो रही है, जबकि इसका मकसद उनके स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देना होता है।

हालाँकि, विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य और शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा देना है, परंतु इसके संभावित सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है।