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हरित क्रांति और उत्तर प्रदेश

Updated : 4th Jul 2023
हरित क्रांति और उत्तर प्रदेश

हरित क्रांति और उत्तर प्रदेश

  • कृषि उत्पादकता में तीव्र वृद्धि अतः आवश्यकतानुसार उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से 1966-67 में हरी क्रांति की शुरुआत हुई I देश में हरिक्रांति प्रारंभ करने का श्रेय नॉर्मन ई. बोरलॉग तथा एमएस स्वामीनाथन को दिया जाता है I
  • हरिक्रांति रासायनिक उर्वरकों,कीटनाशकों,तथा कृषि यंत्रों की मदद से कृषि उपज बढ़ाने का अभियान था ,तथा इसमें काफी हद तक सफलता भी प्राप्त हुई,परंतु इसका अधिक लाभ गेहूँ,चावल ,मक्का,आलू जैसे कुछ फसलों की ही हुआ I

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति :

  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हरित क्रांति से जहां विशेष लाभ मिला, वहीं पूर्वांचल का अधिकांश भाग इसके लाभ से वंचित रह गया I
  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े किसान आवश्यकतानुसार आधुनिक कृषि संयत्रों,रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग करने में सक्षम थे,जबकि पूर्वांचल में छोटी जोत के किसानों की संख्या अधिक है I जिससे छोटी जोत के किसान हरित क्रांति के लाभ से वंचित रह गये, इस कारण उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय असमानता बढ़ी I पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जहां तीव्र आर्थिक विकास हुआ,वहीं पूर्वाञ्चल और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र इसमें पिछड़ गये I

पूर्वी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति :

  • हरित क्रांति के विस्तार की उप योजना (राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से पोषित ) वर्ष 2010-11 से पूर्वी उत्तर प्रदेश में संचालित किया जा रहा है I
  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य चावल एवं गेहूँ के उत्पादकता में बढ़ोतरी,मृदा स्वास्थ्य में सुधार,सिचाई क्षमता में बढ़ोतरी करना,कृषि यंत्रीकरण तथा खेती की लागत को काम करने हेतु उन्नत कृषि पद्धति को बढ़ावा दिया जाना है I

 

हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव:

  • फसल उत्पादन में वृद्धि: इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1978-79 में 131 मिलियन टन अनाज का उत्पादन हुआ और भारत विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पादक देश के रूप में स्थापित हो गया।
    • हरित क्रांति के दौरान गेहूं और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों के तहत फसल क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई।
  • खाद्यान्न आयात में कमी: भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया और केंद्रीय पूल में पर्याप्त भंडार था, यहांँ तक कि भारत खाद्यान्न निर्यात करने की स्थिति में आ गया था |
    • खाद्यान्न की प्रति व्यक्ति शुद्ध उपलब्धता में भी वृद्धि हुई है।
  • किसानों को लाभ: हरित क्रांति की शुरुआत से किसानों की आय के स्तर में बढ़ोतरी हुई।
    • कृषि उत्पादकता में सुधार हेतु किसानों द्वारा अपनी अधिशेष आय का पुनः निवेश किया गया।.
    • 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले बड़े किसानों को इस क्रांति से विशेष रूप से विभिन्न आदानों जैसे-HYV बीज, उर्वरक, मशीन आदि में बड़ी मात्रा में निवेश करने से लाभ प्राप्त हुआ। इसने पूंजीवादी कृषि (Capitalist Farming) को भी बढ़ावा दिया।
  • औद्योगिक विकास: हरित क्रांति ने बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा दिया जिससे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर, कंबाइन, डीज़ल इंजन, इलेक्ट्रिक मोटर, पंपिंग सेट इत्यादि विभिन्न प्रकार की मशीनों की माँग उत्पन्न हुई।
    • इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशी आदि की मांग में भी काफी वृद्धि हुई है।
  • कृषि आधारित उद्योगों के रूप में पहचाने जाने वाले विभिन्न उद्योगों में कई कृषि उत्पादों का उपयोग कच्चे माल के रूप में भी किया जाता था।
  • ग्रामीण रोज़गार: बहुफसली और उर्वरकों के उपयोग के कारण श्रम बल की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • हरित क्रांति से न केवल कृषि श्रमिकों हेतु बल्कि औद्योगिक श्रमिकों के लिये भी कारखानों और पनबिजली स्टेशनों से संबंधित सुविधाओं का निर्माण होने से रोज़गार के विभिन्न अवसर निर्मित हुए।

 

हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव:

  • गैर-खाद्य अनाज शामिल नहीं: हालांकि गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का सहित सभी खाद्यान्न का उत्पादन क्रांति स्तर पर हुआ परंतु अन्य फसलों जैसे- मोटे अनाज, दलहन और तिलहन को हरित क्रांति के दायरे से बाहर रखा गया था।
  • कपास, जूट, चाय और गन्ना जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति से लगभग अछूती रहीं।
  • अधिक उपज देने वाली किस्में (HYVP) का सीमित कवरेज: अधिक उपज देने वाला किस्में केवल पाँच फसलों: गेहूं, चावल, ज़्वार, बाजरा और मक्का तक ही सीमित था।
  • इसका सबसे अधिक प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखा गया जबकि पूर्वी क्षेत्र इससे अछूता रहा है।
  • रसायनों का अत्यधिक उपयोग: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप उन्नत सिंचाई परियोजनाओं और फसल किस्मों हेतु कीटनाशकों और सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उपयोग हुआ।
  • पानी की अधिक खपत: हरित क्रांति में शामिल की गई फसलें जलप्रधान फसलें थीं।
  • मृदा और फसल उत्पादन पर प्रभाव: फसल उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु बार-बार एक ही फसल चक्र को अपनाने से मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है।