कानून आरोपियों के घरों को ढहाने की इजाजत नहीं देता: सुप्रीम कोर्ट
“बुलडोजर जस्टिस" एक विवादित और संवेदनशील मुद्दा है जिसका संबंध सरकारी कार्रवाई से होता है, जिसमें आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को नष्ट या ध्वस्त किया जाता है। यह शब्द आमतौर पर उन मामलों में इस्तेमाल होता है जहां सरकारें या स्थानीय प्रशासन किसी व्यक्ति की संपत्ति को अवैध गतिविधियों के आरोपों के आधार पर ध्वस्त कर देती हैं
एमनेस्टी इंटरनेशनल की फरवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2022 से जून 2023 के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और यूपी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद 128 संपत्तियों को बुलडोजर से ध्वस्त किया गया
“बुलडोजर जस्टिस का पक्ष और विपक्ष
समर्थन: कुछ लोग इसे कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के एक तरीके के रूप में देखते हैं, खासकर जब यह अवैध निर्माण या गतिविधियों के खिलाफ होता है। उनका तर्क होता है कि यह कार्रवाई त्वरित परिणाम देती है और अवैध गतिविधियों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
विरोध: आलोचक इसे अनुचित और अत्यधिक मानते हैं। उनका कहना है कि इस तरह की कार्रवाई से व्यक्तियों के अधिकारों और न्याय की प्रक्रिया का उल्लंघन होता है। वे इसे न्याय के सिद्धांतों और मानवीय अधिकारों के खिलाफ मानते हैं।
प्रभाव -
संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन: बिना उचित कानूनी प्रक्रिया और अदालत के आदेश के संपत्तियों का ध्वस्त करना व्यक्तिगत अधिकारों और संविधानिक सुरक्षा का उल्लंघन होता है ।
आश्रय के अधिकार का उल्लंघन : भारत में आश्रय के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन के अधिकार के व्यापक दायरे के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक को पर्याप्त आवास उपलब्ध हो, जिसे गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये आवश्यक माना जाता है।
चमेली सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1995): न्यायमूर्ति रामास्वामी ने कहा कि आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 और निवास का अधिकार [अनुच्छेद 19(1)(e)] के अंर्तगत एक मौलिक अधिकार है।
सामाजिक असमानता: जब संपत्तियों को ध्वस्त किया जाता है, तो यह अक्सर गरीब या कमजोर वर्ग के लोगों को अधिक प्रभावित करता है। इससे सामाजिक असमानता और आर्थिक विषमताएँ और बढ़ सकती हैं।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: संपत्ति का ध्वस्त होना मानसिक और भावनात्मक तनाव का कारण हो सकता है । इससे प्रभावित लोगों के जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें अवसाद और चिंता शामिल हो सकती है।
विश्वास की कमी: इस तरह की कार्रवाइयों से नागरिकों का सरकार और न्याय प्रणाली पर विश्वास कम हो सकता है, जिससे समाज में प्रशासनिक तंत्र के प्रति शंका और अविश्वास बढ़ सकता है।
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