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SHIKHAR Day 5 Model Answer - Hindi

Updated : 9th Jun 2023
SHIKHAR Day 5 Model Answer - Hindi

 

Q1: "क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता का विरोध नहीं है, बल्कि दोनों एक रचनात्मक साझेदारी में सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। भारत के संदर्भ में इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (8 अंक)

"Regionalism is not opposed to national integration; rather both can co-exist in a creative partnership. Critically analyse this statement in the context of India. (8 Marks)

दृष्टिकोण 

  • भूमिका में क्षेत्रवाद को परिभाषित कीजिये|
  • भारतीय संदर्भ में क्षेत्रवाद के सकारात्मक महत्व की चर्चा कीजिए|
  • क्षेत्रवाद से उत्पन्न खतरों की उदाहरण सहित चर्चा कीजिए|
  • निष्कर्ष में क्षेत्रवाद के खतरों को कम करने के उपायों की चर्चा करते हुए उत्तर का समापन कीजिये|

उत्तर-  

                साधारण शब्दों में क्षेत्रवाद अपने क्षेत्र के पृथक अस्तित्व के लिए जन्मी भावना है| क्षेत्रवाद अपने क्षेत्र के प्रति उच्च भावना तथा निम्न भावना से जन्म सकता है। उच्च भावना से आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक कारणों से क्षेत्रवाद का जन्म हो सकता है। क्षेत्रवाद से तात्पर्य किसी दिये गए क्षेत्र के समाज के लोगों में अन्य समाजों के प्रति पूर्वगृह आधारित नकारात्मक दृष्टिकोण से है। इसके परिणामस्वरूप संवादहीनता एवं सामाजिक दूरी पनपती है| यद्यपि क्षेत्रवाद का उपयोग नकारात्मक संदर्भों में किया जाता है परंतु कभी कभी कुछ विचारक इसे सकारात्मक व नकारात्मक क्षेत्रवाद में भी विभक्त करते हैं|

 

भारत में भी क्षेत्रवाद सकारात्मक व नकारात्मक अर्थों में विद्यमान है|

 

भारत में सकारात्मक अर्थों में क्षेत्रवाद-  

  • सकारात्मक क्षेत्रवाद से तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों का स्वयं की संस्कृति एवं भाषा के संवर्द्धन एवं संरक्षण की प्रवृति से है|
  • कभी कभी इसे उपराष्ट्रवाद की संज्ञा भी दी जाती है। 
  • सकारात्मक पहलुओं के संदर्भ में इसमें नृजातीय, भाषा, धर्म इत्यादि पहचान को सुदृढ़ करने की तीव्र इच्छा अंतर्निहित होती है|
  • उदाहरण के लिए बिहार, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल तथा मध्य प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों तक विस्तृत भूतपूर्व झारखंड आंदोलन ने स्वयं को सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक हितों की रक्षा और प्रोत्साहन के लिए एक एकीकृत समूह के रूप में संगठित किया। अंतत: आंदोलन -सरकार को राज्यों का पुनर्गठन करने हेतु विवश करने में सफल रहा|

 

नकारात्मक क्षेत्रवाद

वहीं नकारात्मक क्षेत्रवाद से तात्पर्य पूर्वागृह आधारित सामाजिक दूरी एवं द्वैष  से है जिसके अंतर्गत एक क्षेत्र विशेष के लोग अन्य के प्रति असहिष्णुता का भाव रखते हों|

यह क्षेत्रवाद निम्न 6 कारणों से प्रकट हो सकता है;

  • आर्थिक उच्च भावना से जन्मा क्षेत्रवाद - खालिस्तान;
  • आर्थिक निम्न भावना से जन्मा क्षेत्रवाद - तेलंगाना, उत्तराखंड, झारखंड;
  • राजनैतिक उच्च भावना से जन्मा क्षेत्रवाद - मराठवाड़, गौरखालैंड;
  • राजनैतिक हीन भावना से जन्म क्षेत्रवाद - जम्मू कश्मीर;
  • सामाजिक उच्च भावना से जन्मा क्षेत्रवाद - तमिल नाडु में हिंदी विरोधी दृष्टिकोण;
  • सामाजिक स्तर पर हीन भावना से जन्मा क्षेत्रवाद - पूर्वोत्तर राज्यों में;

 किसी भी समाज के लिए यद्यपि सकारात्मक क्षेत्रवाद जिसमें विविधता की स्वीकार्यता हो, लाभदायक होता हैनकारात्मक क्षेत्रवाद सदैव आर्थिक सामाजिक प्रगति में बाधक होते हैं।

                                 क्षेत्रवाद के नकारात्मक एवं राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्व के रूप में रूप में प्रभाव कम करने हेतु राष्ट्रीय पहचान के साथ साथ क्षेत्रीय पहचान को पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए। राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रीय एकता के नाम पर क्षेत्रीय पहचान से दूरी बनाने हेतु प्रेरित करने की बजाय क्षेत्रीय पहचान के अखिल भारतीय संस्कारण पर महत्व दिया जाना चाहिए। एक क्षेत्र की पहचान को अन्य क्षेत्रों में भी महत्व मिलने पर परस्परिक समन्वय में वृद्धि होगी|

  

Q2: वैश्वीकरण को परिभाषित कीजिये । साथ ही भारतीय समाज पर इसके प्रभावों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (12 अंक)

Define globalization. Also critically examine its effects on Indian society. (12 Marks)

दृष्टिकोण

  • भूमिका में वैश्वीकरण को परिभाषित कीजिये|
  • वैश्वीकरण के भारतीय समाज पर प्रभावों की विस्तार से आलोचनात्मक चर्चा कीजिये|
  • संक्षिप्त निष्कर्ष के साथ उत्तर का समापन कीजिये|

उत्तर-

             वैश्वीकरण से तात्पर्य विश्व का एकीकृत होते हुए आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों में समांगीकृत होने से है । जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय सीमाओं से परे जाते हुए पूरा विश्व एक ग्लोबल वीलेज़ की तरह विकसित हो जाता है । वैश्वीकरण के चरम अवस्था के अंतर्गत संपूर्ण विश्व का जुड़ाव इस प्रकार हो जाता है कि विश्व के किसी एक भाग में घटित कोई घटना संपूर्ण विश्व को प्रभावित करती है । 

आज वैश्वीकरण के प्रभाव से कोई अछूता नहीं है। इसका प्रभाव सभी देशों पर किसी न किसी रूप में अवश्य दिखाई पड़ता है। भारतीय लोगों के जीवन, संस्कृति, रूची, फैशन, प्राथमिकता इत्यादि पर भी वैश्वीकरण का प्रभाव पड़ा है। एक तरफ इनसे आर्थिक विकास को गति और प्रौद्योगिकी का विस्तार कर लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में मदद की है वहीं दूसरी ओर स्थानीय संस्कृति और परंपरा में सेंध लगाकर विदेशी संस्कृतियों को थोपने का भी प्रयास किया गया है|

वैश्वीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव:

  • परमाणु परिवार का उभार : वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप परम्परागत संयुक्त भारतीय का ह्रास हो रहा है और परमाणु परिवार का उभार ।
  • जाति व्यवस्था में परिवर्तन : वैश्वीकरण ने परंपरागत जाति व्यवस्था को कमजोर किया है । वही साथ ही जातियों के उभार में नए प्रकार से प्रेरक के रूप में कार्य कर रहा है ।
  • महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन : वैश्वीकरण ने भारतीय समाज में महिलाओं की परंपरागत भूमिका में परिवर्तन किया है । अब महिलाएं महज घर की चहारदीवारी के भीतर रहने को बाध्य नहीं है , बल्कि समाज में पुरुषों की बराबरी से अपना महत्व सिद्ध कर रही है ।
  • भारतीय ग्रामीण व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव : ग्रामीण समाज पर भी वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगत ।
  • वस्त्र: महिलाओं के लिए पारंपरिक भारतीय कपड़े साड़ी, सूट इत्यादि हैं और पुरुषों के लिए पारंपरिक कपड़े धोती, कुर्ता हैं। हिंदू विवाहित महिलाओं ने लाल बिंदी और सिंधुर को भी सजाया, लेकिन अब, यह एक बाध्यता नहीं है।भारतीय लड़कियों के बीच जींस, टी-शर्ट, मिनी स्कर्ट पहनना आम हो गया है।
  • भारतीय प्रदर्शन कला: भारत के संगीत में धार्मिक, लोक और शास्त्रीय संगीत की किस्में शामिल हैं। भारतीय नृत्य के भी विविध लोक और शास्त्रीय रूप हैं। भरतनाट्यम, कथक, कथकली, मोहिनीट्टम, कुचीपुडी, ओडिसी भारत में लोकप्रिय नृत्य रूप हैं। संक्षेप में कलारिपयट्टू या कालारी को दुनिया की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट माना जाता है।  लेकिन हाल ही में, पश्चिमी संगीत भी हमारे देश में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। पश्चिमी संगीत के साथ भारतीय संगीत को फ्यूज करना संगीतकारों के बीच प्रोत्साहित किया जाता है। अधिक भारतीय नृत्य कार्यक्रम विश्व स्तर पर आयोजित किए जाते हैं। भरतनाट्यम सीखने वालों की संख्या बढ़ रही है। भारतीय युवाओं के बीच जैज़, हिप हॉप, साल्सा, बैले जैसे पश्चिमी नृत्य रूप आम हो गए हैं।
  • वृद्धावस्था भेद्यता : परमाणु परिवारों के उदय ने सामाजिक सुरक्षा को कम कर दिया है जो संयुक्त परिवार प्रदान करता है। इसने बुढ़ापे में व्यक्तियों की अधिक आर्थिक, स्वास्थ्य और भावनात्मक भेद्यता को जन्म दिया है।
  • व्यापक मीडिया: दुनिया भर से समाचार, संगीत, फिल्में, वीडियो तक अधिक पहुंच है। विदेशी मीडिया घरों ने भारत में अपनी उपस्थिति में वृद्धि की है। भारत हॉलीवुड फिल्मों के वैश्विक लॉन्च का हिस्सा है। यह हमारे समाज पर एक मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव है|

             हम यह नहीं कह सकते कि वैश्वीकरण का प्रभाव पूरी तरह से सकारात्मक या पूरी तरह से नकारात्मक रहा है। ऊपर वर्णित प्रत्येक प्रभाव को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, यह चिंता का मुद्दा तब बन जाता है, जब भारतीय संस्कृति पर वैश्वीकरण का  नकारात्मक प्रभाव देखा जाता है।