Q1: कांस्य-युगीन सभ्यता के कला और स्थापत्य के विभिन्न पहलुओं का परीक्षण कीजिये|
Examine the various aspects of art and architecture of the Bronze Age civilization.
दृष्टिकोण -
- उत्तर की शुरुआत हड़प्पा सभ्यता के सभ्यता के सामान्य परिचय से कीजिये|
- इसके पश्चात मुख्य भाग में नगर नियोजन, मूर्तिकला एवं चित्रकला का सोदाहरण विश्लेषण कीजिये|
- अंत में इस सभ्यता के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए उत्तर का समापन कीजिये|
उत्तर -
हड़प्पा अथवा सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है | यह 2600 से 1900 ई.पू. के मध्य अपनी परिपक्व अवस्था में थी| हड़प्पा सभ्यता मुख्यतः उत्तर पूर्वी अफगानिस्तान, पश्चिमोत्तर पाकिस्तान से लेकर भारत के उत्तरी क्षेत्र में विस्तृत थी| यह प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता की समकालीन सभ्यता थी| हड़प्पा सभ्यता से सम्बन्धित पुरातात्विक स्थलों का सर्वाधिक संकेद्रण घग्घर/ हाकरा नदी घाटी में पाया गया है| हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त पुरातात्विक स्रोतों से तत्कालीन कला एवं स्थापत्य के बारे में जानकारी मिलती है|
हड़प्पा युगीन वास्तु-कला
- हड़प्पा सभ्यता की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर योजना थी| इस सभ्यता के अधिकाँश नगरों का नियोजन समरूप था| नगर प्रायः सड़कों के जाल से युक्त थे|
- प्रायः नगरों में पूर्व तथा पश्चिम की बसावट में अंतर दिखता है| जहाँ पश्चिमी भाग में दुर्ग अथवा गढ़ी संरचनाएं दिखती हैं वहीँ पूर्वी भाग सामान्य आवासीय क्षेत्र प्रतीत होता है|संभव है कि पश्चिमी भाग प्रशासनिक अथवा सार्वजानिक क्षेत्र रहा होगा| संभवतः पश्चिमी -भाग में शासक वर्ग के लोग रहते थे| आज भी प्रशासनिक केंद्र तथा प्रशासकों के आवासीय स्थल प्रायः विशिष्ट क्षेत्रों में होते हैं|
- हड़प्पा सभ्यता के नगरों की एक प्रमुख विशेषता इनकी जल निकास प्रणाली थी| प्रत्येक घर से आने वाली नाली सड़क किनारे बनी हुई नालियों में खुलती थी| सभी नालियां पत्थरों से ढकी रहती थीं| नालियों में कहीं-कहीं मेनहोल भी बनाये जाते थे| नालियों का निर्माण पक्की इंटों से किया जाता था| यह वर्तमान नगरीय जल प्रबन्धन की विशेषता बनी हुई है।
- यहाँ की सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं| जिससे नगर अनेक आयताकार खण्डों में विभक्त हो जाता था| आज भी नगरीकरण का यह एक लोकप्रिय प्रारूप है| नगरीकरण के इस प्रारूप का महत्त्व सौन्दर्य के साथ सुरक्षा तथा प्रशासन के साथ संवाद के दृष्टिकोण से है| सड़कों के दोनों ओर मकान बने होते थे| इन मकानों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर नहीं बल्कि घर के पिछवाड़े की ओर खुलते थे | इन भवनों का प्रारूप बहुत सीमा तक आधुनिक भवनों की तरह ही था| मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, राखीगढ़ी, लोथल, धौलावीरा, सुरकोटडा तथा कालीबंगा आदि सैन्धव सभ्यता के प्रमुख नगरीय केंद्र थे| इन नगरों का नियोजन सैन्धव सभ्यता के विकसित नगरीय सभ्यता होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है।
सैन्धव-कालीन मूर्तिकला
- हड़प्पाई शहरों से पत्थर, धातु तथा मिटटी की मूर्तियों के साक्ष्य मिलते हैं हालांकि समकालीन सभ्यताओं की तुलना में पत्थरों एवं धातुओं की मूर्तियों के साक्ष्य कम मिलते हैं|
- पत्थर की मूर्तियों के अधिकाँश साक्ष्य मोहनजोदड़ो से मिलते हैं और कुछ मूर्तियाँ हड़प्पा से प्राप्त हुई हैं हालांकि पत्थर की मूर्तियाँ संख्यात्मक रूप से कम हैं| नृत्यरत युवक का धड़(हड़प्पा), मोहनजोदड़ो से दाढ़ी युक्त एक पुरुष की मूर्ति आदि कुछ प्रमुख मूर्तियाँ हैं|
- धातु की मूर्तियों के निर्माण में द्रव मोम विधि (लॉस्ट वैक्स) का उपयोग किया जाता था| धातु की मूर्तियों में कांसे की नर्तकी (मोहनजोदड़ो) की मूर्ति सर्वाधिक रूप से प्रसिद्ध है|इसके अतिरिक्त धातु से निर्मित बैल व अन्य पशुओं की मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं
सौन्दर्य एवं संतुलित शारीरिक अनुपात इन मूर्तियों की महत्वपूर्ण विशेषता है| दुसरे शब्दों में ये मूर्तियाँ यथार्थवादी कला का प्रतिनिधित्व करती हैं| इसके साथ ही इन मूर्तियों की लागत अधिक रही होगी अतः ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ये मूर्तियाँ कला के क्षेत्र में समाज के उच्च वर्गों के दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करती हैं|
- हड़प्पा के विभिन्न शहरों से मिट्टी की मूर्तियाँ भी बहुतायत में प्राप्त हुई हैं| इनमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मूर्तियाँ अधिक हैं| पशुओं में कूबड़ वाले बैल की मूर्तियाँ सर्वाधिक संख्या प्राप्त हुई हैं| इसके अतिरिक्त विभिन्न पशु-पक्षियों, खिलौने व हास्यबोध से सम्बन्धित मूर्तियों के साक्ष्य मिलते हैं| इन मूर्तियों में पत्थर व धातु की मूर्तियों तरह कलात्मक सौन्दर्य नहीं है लेकिन समकालीन समाज के आम जनों के धार्मिक विश्वास एवं मनोरंजन के साधन को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं| मूर्तिकला की यह परम्परा किसी न किसी रूप में आज भी हमारे जीवन में विद्यमान है|
हड़प्पा युगीन चित्रकला
- चित्रों को उकेरने में लाल रंग एवं काले रंग का अधिक उपयोग किया गया है हड़प्पाई चित्रों के अधिकांशतः प्रमाण बर्तनों से प्राप्त होते हैं| बर्तनों पर सर्वाधिक रूप से पेड़-पौधों का चित्रण किया गया जैसे पीपल, नीम आदि|
- लोथल से प्राप्त चालाक लोमड़ी का चित्र, हड़प्पा से प्राप्त एक मछुआरे का चित्र आदि कुछ प्रमुख चित्र हैं। अर्थात चित्रों में प्रकृति के विभिन्न तत्वों को महत्त्व दिया गया है| बर्तनों पर चित्रों की परम्परा आगे भी जारी रही है|
उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट होता है कि हड़प्पा सभ्यता, कला एवं स्थापत्य के सन्दर्भ में पर्याप्त रूप से विकसित अवस्था में थी| हड़प्पा युगीन कला एवं स्थापत्य के विभिन्न पहलू वर्तमान कला एवं स्थापत्य को निवेश प्रदान करते हैं अर्थात वर्तमान के नगरीकरण में भी इन विशेषताओं को देखा जा सकता है अतः हड़प्पा युगीन सांस्कृतिक पहलू किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान है।
Q2: प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये। साथ ही, इसके परिणामों की व्याख्या कीजिए।
दृष्टिकोण:
- प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए उत्तर का प्रारंभ कीजिये।
- मुख्य भाग के पहले हिस्से में, प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये।
- अंतिम भाग में, प्लासी के युद्ध के घटनाक्रम को संक्षिप्तता से दर्शाते हुए इसके परिणामों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:-
भारत में ब्रिटिश राजनीतिक सता का आरंभ 1757 के प्लासी युद्ध से माना जाता है जब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया था| कर्नाटक युद्धों में फ्रांसीसियों को हराने से उत्साहित अंग्रेजों ने अपने अनुभवों का बेहतर इस्तेमाल इस युद्ध में किया। बंगाल तब भारत का सबसे धनी तथा उपजाऊ प्रांत था। साथ ही, इससे कंपनी तथा उसके कर्मचारियों के लाभदायक हित भी जुड़े हुए थें| कंपनी 1717 में मुग़ल सम्राट के द्वारा मिले शाही फरमान का प्रयोग कर अवैध व्यापार कर रही थी जिससे बंगाल के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँच रहा था| इसी पृष्ठभूमि में सिराजुद्दौला ने 1756 में कासिमबाजार तथा कलकता को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा अंग्रेजों को फुल्टा नामक द्वीप पर शरण लेनी पड़ी| तत्पश्चात मद्रास से आये वाटसन तथा क्लाईव के नेतृत्व में नौसैनिक सहायता के द्वारा अंग्रेजों ने वापस सिराजुद्दौला को चुनौती दी तथा कलकता को वापस जीत लिया| हालाँकि दोनों पक्षों के मध्य जल्द ही प्लासी में 23 जून,1757 को एक और निर्णायक युद्ध हुआ|
प्लासी के युद्ध के कारण -
- अंग्रेजों की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा;
- 1717 के फरमान(आदेश) के दुरूपयोग को लेकर विवाद- फर्रुख्सियार के द्वारा दिए गए दस्तक के अधिकार से बंगाल के राजस्व को हानि पहुँचना तथा इसका दुरूपयोग कर कंपनी के कर्मचारियों द्वारा निजी व्यापार पर भी कर न चुकाना जिससे नवाब का क्रोधित होना|
- सिराजुद्दौला की संप्रभुता को चुनौती - द्वितीय कर्नाटक युद्ध से उत्साहित होकर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला की सता को चुनौती दी जैसे- भारतीय वस्तुओं पर कलकता में कर लगाना, नवाब के मना करने के बावजूद कलकता की किलेबंदी करना, नवाब के विरोधियों को संरक्षण इत्यादि| इसे सिराज ने अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप लिया|
- सिराजुद्दौला की प्रतिक्रिया- सिराजुद्दौला ने जून,1756 में कासिमबाजार एवं कलकता पर नियंत्रण स्थापित किया तथा ब्रिटिश अधिकारियों को फुल्टा द्वीप में शरण लेनी पड़ी| सिराजुद्दौला ने कलकता की जिम्मेदारी मानिकचंद नामक अधिकारी को सौंपी जिसके द्वारा विश्वासघात किया गया|
- काल-कोठरी(ब्लैक-होल) की घटना - हौलबेल ने इस घटना का जिक्र किया| हालाँकि ऐतिहासिक तौर पर यह प्रमाणित नहीं हो पाया है फिर भी इसने सिराजुद्दौला से प्रतिशोध के लिए अंग्रेजों को एकजुट किया|
- कलकता पर अंग्रेजों का नियंत्रण- जनवरी 1757 में क्लाईव के नेतृत्व में कलकता पर अंग्रेजों का पुनः नियंत्रण स्थापित हुआ| सिराजुद्दौला ने तात्कालिक तौर पर अंग्रेजों की संप्रभुता को स्वीकार किया| हालाँकि मज़बूरी में नवाब ने अंग्रेजों की सारी मांगें मान ली थी पर अंग्रेज उसकी जगह अपने किसी विश्वासपात्र को गद्दी पर बैठाना चाहते थें|
- क्लाईव के द्वारा षड़यंत्र - क्लाईव ने नवाब को हटाने की योजना बनाई| इस षड़यंत्र में मुख्य सेनापति मीरजाफर के साथ-साथ कई अन्य अधिकारी व बड़े व्यापारी भी शामिल थें| योजना के अनुसार ही प्लासी नामक स्थान पर दोनों की सेना में टकराव हुआ तथा कुछ ही घंटों में अंग्रेजों की जीत हो गई।
प्लासी के युद्ध के परिणाम
- राजनीतिक परिणाम
- पूर्व(बंगाल, उड़ीसा) में राजनीतिक शक्ति के रूप में अंग्रेजों का उदय|
- बंगाल के नवाब की राजनीतिक स्थिति का कमजोर होना जिससे बंगाल के राजनीतिक प्रशासन पर अंग्रेजों का प्रभाव जैसे - नवाब के अधिकारियों की नियुक्ति में हस्तक्षेप आदि|
- अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा बढ़ी तथा इसका असर अन्य भारतीय क्षेत्रों में राजनीतिक दखल के रूप में देखने को मिला|
- आर्थिक परिणाम
- अंग्रेजों को एक बड़ी राशि मुआवजे के रूप में।
- 24 परगना की जमींदारी तथा उपहार के रूप में भी एक अच्छी-खासी रकम अंग्रेजों ने ली| बंगाल के समृद्ध संसाधनों तक पहुँच का लाभ अंग्रेजों ने तृतीय कर्नाटक युद्ध तथा उत्तर भारत में अभी अपने क्षेत्र विस्तार में किया।
- कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार पर भी मुक्त व्यापार की सुविधा दी गई
- अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रांसीसी तथा डच कंपनियों को कमजोर बनाकर बंगाल के व्यापार तथा वाणिज्य पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया| प्लासी के लड़ाई के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक वाणिज्यिक निकाय ना होकर सैन्य कंपनी के रूप में भी खुद को स्थापित कर लिया| अब इसके पास एक बहुत बड़ा भूभाग था जिसे एक प्रशिक्षित सेना के माध्यम से ही सुरक्षित रखा जा सकता था| इसके फलस्वरूप कंपनी सैन्य-सुदृढ़ीकरण की ओर बढ़ती चली गई तथा भारत के विभिन्न भागों में इसका राजनीतिक दखल एवं प्रभुत्व बढ़ता चला गया|