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SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 12 Model Answer Hindi

Updated : 21st Aug 2022
SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 12 Model Answer Hindi

Q1. भारतीय नागरिक सेवाओ की विशेषताओ का उल्लेख करते हुए लोक तंत्र मे नागरिक सेवाओ की भूमिका को स्पष्ट कीजिए?

Mentioning the characteristics of Indian civil services, explain the role of civil services in the democracy.

दृष्टिकोणः

·       भारतीय लोकतंत्र में सिविल सेवाओं के महत्व के साथ उत्तर का परिचय दें।

·       भारतीय सिविल सेवा की विशेषताओं और चुनौतियों का वर्णन करें।

·       उत्तर को आगे की राह के साथ समाप्त करें।

उत्तर:

            भारतीय शासन प्रणाली लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर आधारित होने के कारण लोकतंत्र का हर स्तंभ बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और सभी के कार्य लोकतन्त्र को बनाए रखने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । इस दिशा में लोक सेवकों की भूमिका काफी संवेदनशील होती है, क्योंकि वे जनता और सरकार के बीच की कड़ी के रूप में काम करते हैं।  सिविल सेवक किसी राजनैतिक व्यवस्था में रीढ़ की तरह होते हैं, जो सरकारी नीतियों और कानूनों के कार्यान्वयन, नीति-निर्माण, प्रशासनिक काम-काज और राजनेताओं के सलाहकार के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा वे अपने तमाम भूमिकाओं के ज़रिए विधायी कार्य, अर्द्ध न्यायिक कार्य, कर और वित्तीय लाभों का वितरण, रिकॉर्ड रखरखाव और जनसंपर्क स्थापित करने जैसे दूसरे महत्वपूर्ण काम भी करते हैं।

भारतीय नागरिक सेवा की विशेषताएं:

·       अनेक पश्चिमी देशों से भिन्न भारत में नागरिक सेवा को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। हालाँकि नागरिक सेवकों की नियुक्ति की कोई एक प्रक्रिया निर्धारित नहीं है और न ही नियुक्ति प्रक्रिया को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है।

·       संविधान में हालाँकि नागरिक सेवकों की नियुक्ति और कार्यप्रणाली को प्रसादपर्यंत के सिद्धांत पर आधारित किया है किन्तु साथ ही अनु.311 के माध्यम से उन्हें संवैधानिक संरक्षण भी दिया गया है।

·       भारत की विविधताओं को देखते हुए प्रान्तों को भी प्रान्त स्तरीय नागरिक सेवकों की नियुक्ति का अधिकार है किन्तु साथ ही अखिल भारतीय सेवाओं(अनु.312) का उपबंध करके प्रशासनिक एकीकरण की भी व्यवस्था की गई है।

·       भारत में व्यापक उत्तरदायित्व सिद्धांत को स्वीकार किया गया है। अर्थात जहाँ एक मंत्री संसद(लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी होता है वहीँ एक नागरिक सेवक मंत्री के प्रति जवाबदेह होता है। हालाँकि एक निष्पक्ष नागरिक सेवा न केवल तात्कालिक सरकार के प्रति उत्तरदायी है अपितु यह देश के संविधान के प्रति भी उत्तरदायी होती है और वे संविधान के प्रति वफ़ादारी की शपथ भी लेते हैं।

·       एक नागरिक सेवक के लिए कुछ अर्हताएं निर्धारित की जाती हैं ताकि उसके अनुभव और ज्ञान का सेवा के अनुकूल परीक्षण किया जा सके।

·       भारत में नागरिक सेवा प्रणाली को अमेरिका की स्पॉइल व्यवस्था के विपरीत निष्पक्ष और स्थायी बनाया गया है ताकि नागरिक सेवकों का राजनीतिकरण न हो सके।

·       नागरिक सेवा की प्रकृति एकीकृत, निरंतर और विशिष्ट होती है जो "दीर्घकालिक सामाजिक लाभ" को आधार बनाकर अपने कार्यों का संचालन करते हैं। (जबकि राजनीतिक कार्यपालिका अल्पकालिक लाभ को आधार बनाकर कार्य करती है) ।

·       भारतीय संविधान एक नागरिक सेवक से नैतिकता की अपेक्षा करता है।

नागरिक सेवा के लाभ:

·       सरकार द्वारा निर्मित कानून एवं नीतियों तथा योजनाओं को लागू करने में।

·       एक ओर जहाँ मंत्रिपरिषद को सहयोग करता है वहीँ दूसरी ओर मंत्रिपरिषद के द्वारा लिए गए निर्णयों को व्यवहारिकता प्रदान करता है।भारत में नागरिक सेवा सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास का आधार स्तम्भ है अर्थात प्रशासनिक क्रियाविधियों में आए परिवर्तन से ही सामाजिक परिवर्तन प्रेरित होता है।

·       नागरिक सेवाएँ कल्याणकारी सेवाओं को मूर्त रूप प्रदान करती हैं।

·       ये शासन की समता, क्षमता और विभेदीकरण को तर्कसंगत बनाते हुए सरकार को विकास फंद(trap) से सुरक्षित करती हैं साथ ही विकास को उत्प्रेरित करने में सहयोग करती हैं।

नागरिक सेवा के समक्ष चुनौतियाँ:

·       भारत में नागरिक सेवकों में व्यवसायिकता का अभाव पाया जाता है जिससे उनका प्रदर्शन और क्षमता निम्नस्तरीय बनी रहती है।

·       अप्रभावी प्रोत्साहन प्रणाली: यह कर्मठ, मेधावी और ईमानदार सिविल सेवकों को हतोत्साहित करती है।

·       कठोर और नियमबद्धता नागरिक सेवकों को व्यक्तिगत निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करती है जिससे वे अपनी कुशलता के अनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाते।

·       व्हिसल ब्लोइंग करने वाले अधिकारीयों एवं कर्मचारियों तथा नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा का अभाव है जो प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेहिता को बाधित करती है।

·       राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण नागरिक सेवकों का मनमाना स्थानांतरण एवं निलंबन एक अलग चुनौती को जन्म देता है।

      अत्याधुनिक भ्रष्टाचार से निपटने के लिए भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को मजबूत करने की जरूरत है, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के साथ साथ सिविल सेवकों को सत्यनिष्ठा और संविधान के आदर्शों को बनाए रखने की जरूरत है। मानव संसाधन से संबंधित मुद्दों की चुनौती से निपटने के लिए सिविल सेवा में मिशन कर्मयोगी को अक्षरशः क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।

 


Q2. उत्तर प्रदेश राज्य में पंचायती राज व्यवस्था के विकास पर चर्चा कीजिये।

Discuss the evolution of Panchayati Raj Institution in the state of Uttar Pradesh.

दृष्टिकोणः

·       स्थानीय स्तर पर पंचायती राज संस्थान के महत्त्व का परिचय दीजिए । 

·       आंकड़ों के साथ उत्तर प्रदेश राज्य में पंचायती राज के विकास के बारे में वर्णन कीजिए। ।  

·       उचित निष्कर्ष के साथ उत्तर को समाप्त कीजिए 

उत्तरः

     73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया । जिसमे ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखण्ड स्तर की पंचायत, तथा जिला स्तर की पंचायत है । स्थानीय स्तर (ग्रामीण तथा शहरी) शासन को सुचारु रूप से संचालित करने तथा लोगो की सहभागिता को बढ़ाने के लिए जिस व्यवस्था का गठन किया गया उसे पंचायती राज व्यवस्था के नाम से जाना जाता है । 

1.     पंचायती राज की प्रणाली हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली का आधारभूत तत्त्व है। उत्तर प्रदेश में, संशोधन अधिनियम पारित होने के पश्चात् पिछले 23 वर्षों में पंचायती राज प्रणाली का लगातार विकास हुआ है। 

2.     उत्तर प्रदेश में पंचायती राज संस्थानों के विकास का अध्ययन इस प्रकार किया जा सकता है: 

  1. उत्तर प्रदेश ने पंचायती राज को स्वतंत्रता के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1947 के अधिनियमन के साथ ही अपना लिया था।
  2.  बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के बाद, पंचायतों की एक त्रिस्तरीय प्रणाली की स्थापना उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायतों और जिलापंचायतों अधिनियम, 1961 के अधिनियमन के माध्यम से की गई थी। 
  3. संविधान के प्रावधानों (73वें संशोधन) अधिनियम, 1992 के अनुरूप लाने के लिये, राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश पंचायत कानून(संशोधन) अधिनियम, 1994 के साथ उपरोक्त दोनों अधिनियमों को संशोधित किया।
  4. उत्तर प्रदेश में पंचायती राज संस्थानों के तीन स्तरों का नामकरण; जिला स्तर पर जिला पंचायत, मध्यवर्ती (ब्लॉक) स्तर पर क्षेत्रपंचायत, ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत के रूप में किया गया है।
  5. प्रशासनिक सुधार और विकेंद्रीकरण आयोग (बजाज अयोग) राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1994 में नियुक्त किया गया था, जिसने पंचायतों को कार्यों के हस्तांतरण के बारे में कई सिफारिशें दी थीं।
  6. दसवें वित्त आयोग (टी.एफ.सी.) और राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी.) की सिफारिशों के साथ 1997-98 के बाद से, ग्राम पंचायत के वित्तीय संसाधनों को संवर्धित (बढ़ाना) किया गया है।
  7. चौथे राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी.) के अनुसार, शुद्ध राजस्व का 15% स्थानीय सरकारों के साथ साझा किया जाता है, जिसमें से 40% 15:10:75 (जिला पंचायत: क्षेत्र पंचायत: ग्राम पंचायत) के अनुपात में पंचायतों को आवंटित किया जाता है। 1999 में आठ विभागों के ग्राम स्तर के पदाधिकारियों को पंचायतों में स्थायी रूप से स्थानांतरित करने के लिये कदम उठाए गए थे। परिणामस्वरूप, ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी, आदि जैसे कर्मियों को ग्राम पंचायत के नियंत्रण में लाया गया।

2015 में, राज्य सरकार ने पाँचवे राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी.) का गठन किया है, जिसे सरकार को रिपोर्ट सौंपना शेष है। अप्रैल-मई 2021 में, पाँचवीं बार उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए, जो एक उल्लेखनीय सफलता थी। यह 3,050 जिला पंचायत वार्डो, 75,000 से अधिक क्षेत्र पंचायत वार्डों और 7 लाख से अधिक ग्राम पंचायत वार्डों सहित लगभग 8 लाख पदों के लिये केवल 13 लाख उम्मीदवारों के बीच एक विशाल चुनाव था। यह ग्रामीण क्षेत्रों में ज़मीनी लोकतंत्र में लोगों के हितों को दर्शाता है।