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SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 17 Model Answer Hindi

Updated : 26th Aug 2022
SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 17 Model Answer Hindi

Q.1 स्वतंत्रता पश्चात भारत में पूर्वोतर क्षेत्र का एकीकरण अपने साथ विशिष्ट चुनौतियों को समाहित किये हुआ था। कथन का विश्लेषण कीजिये।

 The integration of the North-East region in India after independence brought with it specific challenges. Analyze the statement.

दृष्टिकोण-

      ·        नवस्वतंत्र भारत में पूर्वोतर क्षेत्र की पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए उत्तर का प्रारंभ कीजिये।

·        अगले भाग में, पूर्वोतर क्षेत्र के एकीकरण के समक्ष आने वाली चुनौतियों को दर्शाईये।

·        अंतिम भाग में, इन चुनौतियों से पार पाते हुए उत्तर-पूर्वी भारत के पुनर्गठन का विवरण दीजिये।

 उत्तर- 

                 19वीं सदी में राजनीतिक दृष्टिकोण से पूर्वोतर क्षेत्र में 3 प्रकार की व्यवस्था विद्यमान थी - असम को प्रान्त का दर्जा या बंगाल प्रांत के भाग के रूप में प्रशासन; असम के पर्वतीय क्षेत्रों पर केन्द्रीय सरकार का नियंत्रण; मणिपुर,त्रिपुरा इत्यादि रियासतों में अंग्रेजों के नियंत्रण के अधीन कुछ स्वायत्तता। स्वतंत्रता के समय मणिपुर तथा त्रिपुरा को छोड़कर संपूर्ण पूर्वोतर क्षेत्र असम में शामिल था। सांस्कृतिक एवं जनजातीय विविधता असम के मैदानी भागों को छोड़कर सभी पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापक तौर पर विद्यमान थी। पहाड़ी क्षेत्रों के जनजातीय लोगों की सांस्कृतिक एवं सामाजिक पहचान मैदानी भाग में रहने वाले असमिया तथा बंगाली भाषी लोगों से काफी अलग थी।  साथ ही, पूर्वोतर क्षेत्र के संदर्भ में निम्नलिखित विशिष्ट चुनौतियाँ विद्यमान थी-

      ·        भौगोलिक तथा नृजातीय विविधता -  भारत की मुख्य भूमि से पूर्वोत्तर क्षेत्र का अलगाव तथा नृजातीयता, भाषा, सामाजिक संगठन तथा आर्थिक विकास के स्तरों पर व्यापक विविधता।

·        पारंपरिक समाजों की बहुलता जिसने एकल राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण के कार्य को कठिन बनाया।

·        शेष भारत से सांस्कृतिक अलगाव - जनजातियों के विशिष्ट पहचान तथा यहां पाए जाने वाले नृजातीय समूह के उप राष्ट्रीय आकांक्षाओं ने शेष भारत से अलगाव को बढ़ावा दिया। लगभग हर जनजाति की भाषा एवं संस्कृति में विभिन्नता मौजूद थी। उदाहरणस्वरूप- पहाड़ी तथा मैदानी क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों के मध्य व्याप्त वैमनस्य की भावना।

·        भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से कम जुडाव की वजह से पूर्वोत्तर के मूल निवासियों में राष्ट्रीयता और एकता की भावना का अभाव देखने को मिलता है।

·        अंग्रेजों द्वारा पृथक्करण और शोषण की नीति का अनुसरण, पूर्वोत्तर राज्य के जनजातीय लोगों का शेष भारत के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन से अलगाव था उसपर से जनजातीय लोगों का बाहरी दुनिया से संपर्क मुख्यतः अंग्रेज अधिकारियों एवं ईसाई मिशनरियों तक ही सीमित था जो सामान्यतः उनके दृष्टिकोण को भारत विरोधी बनाने की कोशिश करते रहते थे।

·        उग्रवादी समूहों द्वारा निभाई गई भूमिका जिन्होंने भारतीय संघ में क्षेत्रों का विलय का विरोध किया।

·        अन्य देशों का प्रभाव जैसे मिजो नेता बर्मा में शामिल होना चाहते थे।

·        पहचान का मुद्दा - व्यापक पैमाने पर प्रवासन के कारण स्थानीय निवासियों के मध्य पहचान खोने का संकट; जैसे - पूर्वी बंगाल से बड़ी संख्या में आने वाले प्रवासियों के कारण असम के स्थानीय लोगों के मन में संदेह।

·        आज़ादी पश्चात विविध कारणों से पर्वतीय तथा मैदानी लोगों के बीच तनाव का बढ़ना जैसे -प्रशासनिक उपेक्षा; अपेक्षित आर्थिक सहायता ना मिलना; संकट के दौरान राहत-कार्यों में विलंब इत्यादि 

उपरोक्त वजहों के कारण पूर्वोत्तर भारत के एकीकरण की प्रक्रिया बाकी भारतीय क्षेत्रों के मुकाबले अधिक जटिल थी।

 उत्तर पूर्वी भारत का पुनर्गठन:

      ·        पूर्वोत्तर के एकीकरण की प्रक्रिया में सर्वप्रथम 1948 में उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों को नेफा नाम से अलग करके एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया जिसे 1987 में अलग अरुणाचल प्रदेश राज्य के रूप में मान्यता दी गई।

·        असम सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये की वजह से जनजातीय क्षेत्रों में असंतोष बड़ा तथा अलग राज्य के मुद्दे जोर पकड़ने लगे । इस संदर्भ में 1960 में पहाड़ी क्षेत्रों के जनजातीय लोगों द्वारा ऑल पार्टी हिल  लीडर कॉन्फ्रेंस बनाया गया तथा असमिया भाषा के मुद्दे पर व्यापक विरोध-प्रदर्शन, हड़ताल आदि करना चालू कर दिया गया। अंततः 1969 में संविधान संशोधन के माध्यम से असम के अंदर मेघालय राज्य का निर्माण हुआ।

·        1972 में पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के पुनर्गठन के रूप में मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया तथा मणिपुर एवं त्रिपुरा के केंद्र शासित प्रदेशों को भी पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। इस प्रकार, असम से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर तथा त्रिपुरा का पुनर्गठन हुआ एवं जटिलता सिर्फ नागालैंड एवं मिजोरम में ही बची।

·        मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट के नेतृत्व में पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी समूहों द्वारा हिंसक मार्ग अपनाया गया। परंतु सेना द्वारा इस समस्या को प्रभावशाली ढंग से सुलझाया गया एवं 1986 में मिजो नेशनल फ्रंट तथा भारत सरकार के मध्य शांति समझौते के फलस्वरूप 1987 में अलग मिजोरम राज्य का गठन हुआ ।

·        उसी प्रकार, नगालैंड के अलगाववादियों ने भी भारत संघ में एकीकरण की प्रक्रिया का विरोध किया परंतु भारत सरकार द्वारा अलगाववाद तथा पृथकतावाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया गया। लंबी चली वार्ताओं एवं सैनिक कार्यवाहियों के बाद 1963 में अलग नागालैंड राज्य अस्तित्व में आया।

            इस प्रकार आधुनिक रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र स्वरूप में आया जिसके एकीकरण में जनजातीय विविधता तथा भाषा का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण था। हालांकि, अभी भी जनजातीय क्षेत्रों से स्वायत्तता एवं आजादी की मांग यदा-कदा उठती रहती है परंतु उनका जमीनी आधार काफी कम हो चुका है।

 


 

Q.2 भारतीय तटरक्षक बल का संक्षिप्त परिचय देते हुए भारतीय समुद्रतटों की सुरक्षा में इसके महत्व की चर्चा कीजिये।  

Giving a brief introduction to the Indian Coast Guard, discuss its importance in the security of the India's coast.

 दृष्टिकोण:

  • भारतीय तटरक्षक बल की स्थापना व इसके अधिदेश की चर्चा करते हुए संक्षिप्त भूमिका लिखिए ।
  • भारतीय तटरक्षक बल के कार्यों की संक्षिप्त चर्चा कीजिये ।
  • भारतीय समुद्र की सुरक्षा के संदर्भ भारतीय तटरक्षक बल के महत्व की बिन्दुवार चर्चा कीजिये ।

 उत्तर:

       भारतीय तटरक्षक बल एक सशस्त्र बल है जो भारत के समुद्री हितों की रक्षा करता है और समुद्री कानून को लागू करता है। इसका क्षेत्राधिकार भारत के क्षेत्रीय जल से लेकर अनन्य आर्थिक क्षेत्र तक होता है । भारतीय तटरक्षक बल की स्थापना शांतिकाल में भारतीय समुद्र की सुरक्षा करने के उद्देश्य से 18 अगस्‍त 1978 को एक स्‍वतंत्र सशस्‍त्र बल के रूप में संसद द्वारा तटरक्षक अधिनियम,1978 के अंतर्गत की गई। यह रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।

भारतीय तटरक्षक बल के कार्य :

  •  सन्निहित क्षेत्र और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone-EEZ) सहित भारत के क्षेत्रीय जल पर इसका अधिकार क्षेत्र है।
  • तस्करी को रोकना: ICG के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक समुद्री मार्गों से तस्करी को रोकना है।
  • यह भारत के समुद्री क्षेत्रों में समुद्री पर्यावरण संरक्षण के लिये ज़िम्मेदार है और भारतीय जल क्षेत्र में तेल रिसाव की प्रतिक्रिया हेतु प्राधिकरण के साथ समन्वय कर रहा है।
  • यह एक मज़बूत तटीय सुरक्षा तंत्र स्थापित करने के लिये केंद्र और राज्य एजेंसियों के साथ निकट समन्वय में कार्य कर रहा है।
  • समुद्री सुरक्षा: यह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री अपराधों का मुकाबला करने और अपने अधिकार वाले क्षेत्र के साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने हेतु  तटवर्ती देशों के साथ भी सहयोग करता है।
  • नागरिकों को सहायता: इसने अपने विभिन्न कार्यों के दौरान अब तक लगभग 13,000 नागरिकों को बचाया है। हाल ही में महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा में बाढ़, चक्रवात एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी नागरिकों को सहायता प्रदान की।
  • सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) तथा नेबरहुड फर्स्टकी नीति के तहत ICG ने महासागरों में व्यावसायिक संबंधों का विकास किया है और महासागर शांति स्थापना के लिये हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ संबंध स्थापित किये हैं।
  • आपदा प्रबंधन में भूमिका: ICG ने बड़ी पारिस्थितिक आपदाओं के दौरान सफलतापूर्वक सुरक्षा प्रदान की है और इस क्षेत्र में 'प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता' (First Responder) के रूप में उभरा है।

भारतीय समुद्र की सुरक्षा के संदर्भ में भारतीय तटरक्षक बल का महत्व : 

  • भारत की 7500 किमी. लंबी तटरेखा भारत को एक बड़ा अनन्य आर्थिक क्षेत्र प्रदान करता है, ऐसे में राष्ट्र के आर्थिक हितों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारतीय तटरक्षक बल काफी महत्वपूर्ण है ।
  • तस्करी व समुद्री लुटेरों से निपटने में भी भारतीय तरक्षक बल का महत्व काफी अधिक है ।
  • भारत की बड़ी समुद्री सीमा भारत को आतंकवाद के खतरे के प्रति भी सुभेध बनाती है ऐसे में आतंकवाद से सुरक्षा के संदर्भ में भी भारतीय तटरक्षक बल का महत्व है ।
  • अपतटीय सुरक्षा समन्वय के संदर्भ में भी भारतीय तरक्षक बल की भूमिका महत्वपूर्ण है ।

  इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय समुद्र की सुरक्षा के संदर्भ में भारतीय तटरक्षक बल भारतीय नौ-सेना के एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप कार्य करता है ।