Q1. अभिवृत्ति से आप क्या समझते है? यह संज्ञात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक तत्वो का समुच्चय है? स्पष्ट कीजिये।
What do you understand by attitude? It is a set of cognitive, affective and functional elements? Explain.
दृष्टिकोण:
· भूमिका में अभिवृत्ति की व्याख्या करें।
· मुख्य भाग में संज्ञात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक तत्वों के बारे में लिखकर निष्कर्ष निकालें।
उत्तर:
अभिवृत्ति से तात्पर्य यह है कि जब किसी विषयवस्तु पर व्यक्ति का विचार या मत भावना से शामिल होते हुए व्यवहार मे परिवर्तित होता है, तो अभिवृत्ति की संज्ञा दी जाती है । किसी व्यक्ति के सामाजिक वातावरण जैसे किसी वस्तु, घटना,मुद्दे आदि के संदर्भ मे व्यक्ति का सकारात्मक या नकारात्मक व्यवहार अभिवृत्ति कहलाती है ।
फ्रीमेन के शब्दों में – ‘‘अभिवृत्ति किन्हीं परिस्थितियों व्यक्तियों या वस्तुओं के प्रति संगत ढंग से प्रतिक्रिया करने की स्वाभाविक तत्परता है, जिसे सीख लिया गया है तथा जो व्यक्ति विशेष के द्वारा प्रतिक्रिया करने का विशिष्ट ढंग बन गया है।’’ यह सकारात्मक या नकारात्मक या तटस्थ हो सकती है ।
अभिवृत्ति 3 तत्वो का समुच्चय है -
· विचारात्मक या संज्ञात्मक - इसका संबंध विश्वास या विचार/मत से होता है । यह अभिवृत्ति का ज्ञानात्मक पक्ष को संदर्भित करता है, जिसमे व्यक्ति किसी घटना , वस्तु या व्यक्ति को लेकर एक सामान्य धारणा का विकास करता है । इस पक्ष का परिवर्तन अपेक्षाकृत आसान होता है ।
· भावात्मक - इसका संबंध भावना या अनुभूति से होता है। किसी व्यक्ति मे मन मे किसी वस्तु या घटना या व्यक्ति के संदर्भ मे कोई न कोई भाव उत्पन्न होते है । अर्थात बाह्य के अभ्यंतरिकरण से किसी व्यक्ति के मन मे उत्पन्न भाव को दर्शाता है ।
· क्रियाशीलता - इसका संबंध व्यवहार से है । जब व्यक्ति ज्ञान एवं भावना से जुड़ जाता है तो उसकी प्रतिक्रिया भी होती है । जैसे - जब हम किसी व्यक्ति को पसंद या नापसंद करते है है तो हमारे व्यवहार मे उस तत्व कि झलक दिखाई देने लगती है ।
एक सामाजिक वातावरण में व्यक्ति का तालमेल वस्तु के साथ, व्यक्ति के साथ, घटना के साथ, परिस्थिति के साथ, मुद्दों के साथ एवं अन्य के साथ होता है एवं इस प्रत्येक को लेकर व्यक्ति का एक मत/विचार होता है ।
जब इस मत/विचार में भावनात्मक एवं व्यवहारिक पक्ष शामिल हो जाते हैं तो यह अभिवृत्ति को दर्शाती है ।
जैसे हमे बचपन से ही सत्य बोलने को प्रेरित किया जाता है । जो अभिवृत्ति का क्रियात्मक पक्ष है । जब हम सत्य बोलेने कि धारणा पर विश्वास करते है और हमारे अंदर सत्य बोलने की भावना का विकास होता है । यह अभिवृत्ति का भावनात्मक पक्ष को दर्शाता है । जब हम अपने व्यवहार मे सत्य बोलने के नैतिक सिद्धांत का पालन करते हुए सत्य बोलते है । तो वह अभिवृत्ति का क्रियात्मक पक्ष होता है ।
Q2. मूल्यों के विकास मे परिवार, समाज और शैक्षिक संस्थानो की भूमिका को स्पष्ट कीजिए?
Explain the role of family, society and educational institutions in the development of values.
दृष्टिकोण:
· वर्तमान स्थिति और मूल्यों के समाजीकरण के आधार पर उपयुक्त परिचय लिखिए।
· मानवीय मूल्यों के विकास में परिवार, समाज और शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका की व्याख्या करें।
· भारतीय संविधान का उदाहरण दीजिए और मूल्यों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत की पाठशालाओं में नैतिकता के विकास के लिए न केवल धर्म आधारित शिक्षा बल्कि मूल्य आधारित शिक्षा भी प्रदान की जाती थी। वैश्वीकरण का प्रभाव आधुनिक शिक्षा प्रणाली में दिखाई दे रहा है। वैश्वीकरण के इस युग में मूल्य आधारित शिक्षा की भागीदारी लगातार घट रही है। सांप्रदायिकता, जातिवाद, हिंसा, असहिष्णुता और चोरी-डकैती आदि की बढ़ती प्रवृत्ति समाज में मूल्यों के उल्लंघन के उदाहरण हैं।
मूल्य किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के आधारभूत तत्व है । मूल्यों का विकास हमारे समाज , परिवार मित्र विद्यालय आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । जो हमारे सही और गलत के निर्णय को आधार प्रदान करते है। मूल्य समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा विकसित होते है । अर्थात यह प्रक्रिया जन्म के समय से शुरू होकर जीवन पर्यंत चलती रहती है ।
मानवीय मूल्यों का विकास मे परिवार , समाज और शैक्षिक संस्थानो की भूमिका:
· परिवार किसी व्यक्ति के जीवन की प्रथम पाठशाला है । यही एक पीढ़ी के संस्कार और संस्कृति, दूसरे पीढ़ी तक हस्तांतरित होते है ।
· यदि परिवार लोकतान्त्रिक मूल्यों , सहिष्णुता , धर्मनिरपेक्षता जैस मूल्यों पर पर विश्वास करता है , तो व्यक्ति या बालक के अंदर उसी प्रकार के मूल्यों का विकास होता है ।
· परिवार से सीखे गए मूल्यों का परीक्षण समाज की पाठशाला मे ही होता है ।
· जिस प्रकार का समाज होता है उसी प्रकार के मूल्यों के विकास की पूरी संभवना होती है । जब कोई बालक जैसे- जैसे समाज के संपर्क मे आता है वैसे -वैसे उसके मूल्यों का विकास और परिवर्तन होता रहता है ।
· सोशल मीडिया ,विभिन्न सामाजिक समूह ,विभिन्न प्रकार के परम्पराए आदि के कारण समाज की नैतिक मानदंडो उसकी प्रकृति आदि पर प्रभाव पड़ता है । ,
· विभिन्न प्रकार के धार्मिक समूहो , जातियों व सांस्कृतिक विविधता वाले समाज मे सहिष्णुता , धैर्य , समरसता , लोकतान्त्रिक विचार आदि को विकसित करना आसान होता है ।
· मानवीय मूल्यों के विकास में शिक्षा नीति व शैक्षणिक संस्थानो का विशेष महत्त्व है ।
· वर्तमान समय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 मे शैक्षणिक प्रणाली मे नैतिक मूल्यों की विकसित करने पर विशेष बल दिया गया है ।
· शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों के अंदर तार्किक भावन का विकास , वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ साथ सहानुभूति , करुणा, ईमानदारी ,लोकतान्त्रिक मूल्य , स्वतन्त्रता सत्यनिष्ठा जैसे मूल्यों का विकास करना होता है ।
· शैक्षणिक संस्थानो के माध्यम से संवैधानिक तथा सामाजिक मूल्यों का विकास की संभावना होती है । इससे समावेशी और बहुलतावादी समाज का बेहतर निर्माण किया जा सकता है ।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव का विरोध करता है। संविधान के लागू होने के इतने वर्षों के बाद भी, हमारे स्कूलों में जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव के उदाहरण आसानी से मिल जाते हैं। सकारात्मक राजनीतिक और सामाजिक लोगों के विकास से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है।
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