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SHIKHAR MAINS 2022- DAY 32 Model Answer Hindi

Updated : 13th Sep 2022
SHIKHAR MAINS 2022- DAY 32 Model Answer Hindi

Q1. असहयोग आंदोलन के कारणों की संक्षिप्त चर्चा कीजिये । साथ ही इसकी प्रकृति पर टिप्पणी कीजिये ।

Briefly discuss the causes of non-cooperation movement. Also comment on its nature.

दृष्टिकोण :

·        असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि बताते हुए भूमिका लिखिए ।

·        आंदोलन के कारणों की विस्तृत चर्चा कीजिये।

·        असहयोग आंदोलन की विशेषताओं की चर्चा कर इसकी प्रकृति स्पष्ट कीजिये।

·        इसके भविष्यगामी प्रभावों की चर्चा कर निष्कर्ष लिख सकते है। 

उत्तर-

         1919 से 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने एक नए दौर अर्थात जन राजनीति और जनता को लामबंद करने के दौर में प्रवेश किया। ब्रिटिश शासन का विरोध असहयोग आंदोलन के रूप में हुआ जिसमें अहिंसात्मक संघर्ष कि नीति राष्ट्रीय स्तर पर अपनाई गयी। 

असहयोग आंदोलन के कारण-

·        प्रथम विश्व युद्ध: युद्ध में भारत को जबर्दस्ती शामिल कर दिया गया। साथ ही युद्ध के बाद की आर्थिक स्थिति से आंदोलन को प्रेरणा मिली। प्रथम विश्व युद्ध के बाद खाद्यान्नों की भारी कमी, मुद्रास्फीति में वृद्धि, कम औद्योगिक उत्पादन, करों के बोझ से कस्बों और नगरों में रहने वाले मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग के लोग प्रभावित थे। ऐसी परिस्थितियों ने लोगों के मन में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को मजबूत किया।

·        रौलट एक्ट विरोधी आंदोलन ने पूरी भारतीय जनता को एकसमान रूप से प्रभावित किया था, जिससे हिन्दुओं और मुसलमानों ने बीच निकटता बढ़ी तथा ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का संचार किया।

·        पंजाब में मार्शल ला तथा जलियाँवाला बाग हत्याकांड जैसी घटनाओं ने ब्रिटिश शासन के क्रूर और असभ्य चरित्र को उद्घाटित कर दिया।

·        ब्रिटिश संसद द्वारा जनरल डायर के कृत्यों को उचित ठहराना तथा हंटर कमीशन की सिफ़ारिशों ने सबकी आँखें खोल दी।

·        1919 में उत्तरदायी शासन की आशा लगाए राष्ट्रवादियों को मोण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों से घोर निराशा हुई। इन सुधारों का वास्तविक उद्देश्य द्वैध शासन प्रणाली को लागू करना था न की जनता को राहत पहुंचाना

·        खिलाफत का मुद्दा: तुर्की में खलीफा को पुनर्स्थापित करने के लिए भारत में मुसलमानों ने खिलाफत आंदोलन प्रारम्भ किया। अलग अलग समस्याओं से उभरने के बावजूद दोनों आंदोलनों ने एक समान कार्य योजना को अपनाया।

असहयोग आंदोलन की प्रकृति-

·        दिसम्बर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आंदोलन से संबन्धित प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें अब संवैधानिक और वैधानिक तरीके से स्वशासन की प्राप्ति के स्थान पर अहिंसक और उचित तरीकों से स्वराज की प्राप्ति को लक्ष्य बनाया गया।

·        कांग्रेस में कुछ संगठनात्मक परिवर्तन किए गए। 15 सदस्यीय कार्यसमिति का गठन किया गया। अखिल भारतीय, प्रांतीय समितियों का भी गठन किया गया।

·        सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार किया गया।

·        न्यायालयों का बहिष्कार तथा पंचायती अदालतों के माध्यम से न्याय का कार्य।

·        विधान परिषदों का बहिष्कार: नवम्बर 1920 में विधान परिषदों के चुनाव सम्पन्न हुए और सभी कांग्रेस के उम्मीदवारों ने चुनावों का बहिष्कार किया। अधिकांश मतदाताओं ने भी इन चुनाओं में भाग नहीं लिया।

·        विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा इसके स्थान पर खादी के उपयोग को बढ़ावा देना। चरखा कातने को प्रोत्साहन दिया गया।

·        सरकारी उपाधियों तथा अवैतनिक पदों का परित्याग। 

             इस आंदोलन के प्रभाव को देखते हुए गांधी जी ने कहा था यदि इन कार्यकर्मों के अनुसार आंदोलन चलाया गया तो एक वर्ष तक स्वराज का लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन को नयी दिशा दी साथ ही हिन्दू मुस्लिम एकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 


 

 

Q2.   प्रथम विश्व युद्ध के कारणों  की व्याख्या कीजिये। इस युद्ध के पश्चात शांति स्थापित करने के लिए उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिए। 

Explain the causes of the First World War. Discuss the steps taken to establish peace after the war.

दृष्टिकोण-

  • भूमिका में प्रथम विश्व युद्ध का परिचय दीजिए।
  • उत्तर के दूसरे भाग में इसके प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
  • उत्तर के तीसरे भाग में युद्ध के बाद शांति के प्रयासों को लिखिए।
  • उत्तर के अंतिम भाग में  निष्कर्ष लिखते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।   

उत्तर :-

          प्रथम विश्व युद्ध का प्रारम्भ 1914 में हुआ जो 1918 तक चला। इस युद्ध में एक तरफ मित्र राष्ट्र जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, रूस और अमेरिका शामिल थे तो  दूसरी तरफ जर्मनी, आस्ट्रिया, हंगरीबुल्गारिया और तुर्की  शामिल थे । जिसमें मित्र राष्ट्र विजयी हुए।

प्रथम विश्व युद्ध के कारण-

  • उपनिवेशों में प्रतिस्पर्द्धा: एकीकरण के पश्चात जर्मनी व इटली एक महान शक्ति के रूप में उभरे एवं इन्हे उपनिवेशों की आवश्यकता पड़ी। नए गुटों के निर्माण से रूसी साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता में तीव्रता आई।
  • प्रतिष्ठा का प्रश्न:  जर्मनी ने फ्रांस से अल्सास-लॉरेन का क्षेत्र लेकर क्षेत्रीय अखंडता को प्रभावित किया। फ्रांस अपने आप को कमजोर साबित नहीं होने देना चाहता था। इसके अतिरिक्त रूस और आस्ट्रिया के बीच प्रतिष्ठा को लेकर मतभेद जारी रहे।
  • गुटबंदी: आस्ट्रिया, जर्मनी और इटली ने आपस में मिलकर एक गुप्त संधि की। इसके माध्यम से वे फ्रांस को अलग-थलग रखना चाहते थे। इसके जवाब में एक प्रतिगुट का निर्माण हुआ जिसका नेतृत्व इंग्लैंड, फ्रांस व रूस ने किया।
  • सैन्यवाद:  प्रत्यक्ष रूप से सैन्यवाद विभिन्न यूरोपीय गुटों से जुड़ा था। इन गुप्त संधियों ने एक दूसरे के प्रति शंका व अविश्वास में और वृद्धि की। फ्रांस की क्रांति, जर्मनी-इटली के एकीकरण के पश्चात सैन्य प्रसार की आवश्यकता हुई।
  • अखबारों की भूमिका: लेखों के माध्यम से विभिन्न देशों के बारे में दुष्प्रचार को प्रसारित कर दिया। इसके पूर्व विभिन्न क्रांतियों में भी इन समाचार पत्रों की भूमिका अतिव्यापक थी जिसके कारण लोगों ने इनके द्वारा प्रसारित संदेशों पर विश्वास किया।
  • तात्कालिक कारण : बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में आस्ट्रिया के राजकुमार फर्डीनेन्ड की हत्या ने प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी।

 

युद्ध पश्चात शांति के प्रयास: 

इस युद्ध में जर्मनी, आस्ट्रिया, हंगरी एवं तुर्की आदि गुटों की पराजय हुई। विजयी देशों ने युद्धोत्तर काल की व्यवस्था स्थापित करने के लिए 1919 में पेरिस में शांति-सम्मेलन का आयोजन किया। इसके अंतर्गत कई प्रकार की संधियां की गयी :-

  • वर्साय की संधि: - यह संधि जर्मनी के साथ की गयी। इसके तहत प्रादेशिक, सैन्य व आर्थिक व्यवस्था में व्यापक बदलाव किया गया। इसका उद्देश्य मित्र देशों द्वारा अपने हितों को साधना था। इसी के तहत अल्सास लॉरेन क्षेत्र को जर्मनी से छीनकर पुनः फ्रांस को दे दिया गया। सैनिक क्षमता को भी सीमित किया गया। अधिकतम सैनिकों पर सीमा आरोपित कर दी गयी। नौसैनिक जहाज जब्त कर लिए गए। आर्थिक रूप से जर्मनी को युद्ध क्षति की भरपाई का जिम्मेदार ठहराया गया। यह संधि अनेक भेदभावों से युक्त थी जिसका परिणाम दूसरे विश्व युद्ध के रूप में हुआ।
  • अन्य संधियां: -आस्ट्रिया के साथ मित्र राष्ट्रों ने सेंट जर्मेन की संधि की जिसका उद्देश्य साम्राज्य को विखंडित करना था। इसके पश्चात हंगरी, पोलैंड आदि देशों को स्वतन्त्रता प्राप्त हो गयी। इसके अतिरिक्त हंगरी के साथ त्रियानो, बुल्गारिया के साथ निउली की संधि और तुर्की के साथ सेवर्स की संधि की गई।
  • लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना: युद्ध के पश्चात अंतराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की आवश्यकता को महसूस करते हुए एक संगठन के रूप में इसे स्थापित किया गया।

इस प्रकार कुछ राष्ट्रों के साम्राज्यवादी हितों, सैन्यवाद, गुटबंदी आदि कारणों से एक यूरोपीय युद्ध प्रथम विश्व युद्ध में बदल गया। जिसका परिणाम अत्यंत ही व्यापक रहा जिसने आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक क्षेत्रों पर प्रभाव डाले। इस युद्ध के पश्चात शांति के प्रयास हुए परंतु पूर्णतः सफल नहीं हो सके जिसका परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में देखने को मिला।