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SHIKHAR MAINS 2022- DAY 36 Model Answer Hindi

Updated : 17th Sep 2022
SHIKHAR MAINS 2022- DAY 36 Model Answer Hindi

Q1. बुन्देलखण्ड क्षेत्र एक सूखा प्रभावित क्षेत्र है । इस क्षेत्र मे सूखे की समस्या के प्रमुख कारणो का उल्लेख करते हुए इसके निदान हेतु सरकार द्वारा किए गए प्रयासों का उल्लेख कीजिए ? 

Bundelkhand region is a drought affected area. While mentioning the main causes of the problem of drought in this region, mention the efforts made by the government for its solution? 

दृष्टिकोण: 

  • भूमिका में बुंदेलखंड की स्थ्ति का उल्लेख कीजिए । 
  • बुंदेलखंड में सूखे की समस्या के कारणों का उल्लेख कीजिये । 
  • सूखे को समाप्त करने के लिए सरकारी प्रयासों को स्पष्ट कीजिए । 
  • अंत में सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ उत्तर का समापन कीजिये । 

उत्तर:

बुन्देलखण्ड उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों से मिल कर बना है, जिसमें उत्तर प्रदेश के सात जनपद समाहित हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र हमेशा से जल की कमी और सूखे की समस्या के कारण चर्चा में बना रहता है। 19वीं व 20वीं सदी के दौरान कुल 12 सूखा वर्ष देखने को मिले हैं अर्थात हम कह सकते हैं कि 16-17 वर्ष में एक बार सूखा पड़ा है। सूखा वर्ष की आवृत्ति पहली बार वर्ष 1968 से 1992 के बीच बढ़ी, जब इन वर्षों में तीन बार सूखा पड़ा और वर्तामन में देखें तो विगत 6 वर्षों में (2004-05 के बाद) लगभग लगातार सूखे की स्थिति बनी हुई है।

  • भौगोलिक संरचनाः भौगोलिक रूप से नदियों के कटान, बंजर, पठार के इलाके और अनुपजाऊ पथरीली भमि यहाँ की कृषि को काफी दुष्कर बनाती है। सिंचाई के लिए पानी का अभाव और भीषण गर्मी होने के कारण पूरा क्षेत्र कृषि में अत्यंत पिछड़ा हुआ है। मुख्य रूप से दो नदियों केन बेतवा इस क्षेत्र से होकर गुजरती हैं, जो आगे चलकर यमुना में मिल जाती है।
  • भूमि क्षरण: भूमि क्षरण इस क्षेत्र की गंभीर समस्या है, जिसके कारण लाखों हेक्टेयर भूमि कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है। भूमि क्षरण का प्रमुख कारण तेज हवा, वर्षा और ढलुआ जमीन का होना है। इस क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं। किसानों का एक बड़ा हिस्सा सीमांत कृषकों का है। लगभग 25 प्रतिशत कृषक ऐसे हैं, जिनके पास 1 से 2 हेक्टेयर के बीच भूमि है। जमीन से ही किसान का पहचान है और उसी से ही उसकी जीविका तथा उसका अस्तित्व है परंतु यह जमीन निरंतर छोटी होती जा रही है अथवा इसका क्षरण होता जा रहा है या फिर वह परती के रूप में अनुत्पादित हाता की इस क्षेत्र में भूमि सुधार के कई कार्यक्रम चलाये गये, परंतु कोई भी कारगर सिद्ध नहीं हुआ।
  • जलवायु परिवर्तनः जलवायु परिवर्तन ने विगत 15 वर्षों में जो मौसम में असामान्य बदलाव किये हैं, उसने के लोगों की नाजुकता (Vulnerability) और जोखिम (Risk) को काफी बढ़ाया है। यहाँ विगत वर्षों में मानसून का का देर से आना, जल्दी वापस हो जाना, दोनों के बीच लंबा सूखा अंतराल, जल संग्रह क्षेत्रों में पानी सोपाना कु आँ का सूख जाना इत्यादि ने यहाँ कि कृषि को पूरी तरफ नष्ट कर दिया। यहाँ तक कि कुछ बर्षो में तो किसान फसल की बुवाई तक नहीं कर पाये। विगत 3 दशकों में तो यहाँ की स्थिति काफी दयनीय हो गई है। प्राकृतिक आपदाओं ने इस पूरे क्षेत्र की रूरेखा ही बदल दी है, जिसकी वजह से यहाँ की सामाजिक व आर्थिक स्थिति काफी हद तक बिगड़ चुकी है। इस क्षेत्र के अधिकांश जनपद सूखा से प्रभावित है, जिसका सीधा असर यहाँ की कृषि पर पड़ा है। वैसे तो यह क्षेत्र सूखा और सूखा जैसी स्थिति का सामना विगत कई वर्षों से करता आ रहा है परन्तु इस वर्ष यह अपनी भयावह स्थिति में है।
  • औसत वर्षा में कमी: सामान्यतः बुंदेलखंड में औसत वर्षा 800-1000 मि.मी. होती रही है, परंतु विगत पाँच वर्षों का औसत देखा जाये तो इसमें 40-50 प्रतिशत की कमी आई है अर्थात 450-550 मि.मी. वर्षा ही प्राप्त हुई है। मानसून का देर से आना, कम समय में ज्यादा वर्षा का होना और दो वर्षों के बीच में वर्षा का लंबा अंतराल इस क्षेत्र में सूखा की स्थितियाँ उत्पन्न करने में सहायक है।

बुंदेलखंड मे सूखे से निपटने के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने बुन्देलखण्ड सहित प्रवेश के अन्य जिलों में पेयजल समस्या के समाधान के लिए महाराष्ट्र कीसुजलाम-सुफलामयोजना को लागू करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुजलाम-सुफलाम योजना को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में महोबा और हमीरपुर में शुरू करने का निर्देश दिया है।
  • गंगा और यमुना की अविरलता बनाये रखकर इनमें पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता के लिए इनके तटों पर जल संचयन के लिए विशाल तालाबों का निर्माण होगा।
  • यहाँ भूगर्भ जल की रिचार्जिंग पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। गंगा व यमुना पर जल आपूर्ति की निर्भरता कम करने के लिए सरकार आवश्यक कदम उठा रही है।
  • केद्र सरकार ने मानसून पर खेती की निर्भरता कम करने और हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को लागू किया है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना केंद्र और राज्य सरकार के समन्वय वाली योजना है। इसकी शुरुआत एक जुलाई, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। 
  • इस योजना के तहत अगले पाँच वर्षों के लिए 50 हजार करोड रुपये का बजट आवंटित किया गया है। इस योजना के अंतर्गत भारत सरकार ने राज्य सरकार के साथ मिलकर कुछ कृषि अनुदानों और सहायता की भी व्यवस्था की है।
  • सरकार सामुदायिक तालाब निर्माण के लिए 25 लाख रुपये का अनुदान किसानों को उपलब्ध करा रही है। 
  • फव्वारा सिंचाई के लिए सरकार कुल खर्च का 50 प्रतिशत हिस्सा सहायता के रूप में प्रदान कर रही है। छोटे, लघु और किसानों, महिला किसानों और अनुसूचित जनजाति के किसानों को सरकार आर्थिक और प्रशिक्षण की सहायता दे रही है। 
  • बागवानी और सब्जियों की खेती के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल किया जाये, इसको बढ़ावा देने के अनुदान की व्यवस्था की गई है । इस तरीके से उत्पादन और उत्पादकता दोनों में बढोरती देखी जा रही है।
  • इन सभी प्रयासों से बुन्देलखण्ड में सूखे की तीव्रता और बारम्बारता में कमी आने की संभावना है। इन सभी सरकारी प्रयासों को समन्वित और भागीदारी पूर्ण रूप से लागू किया जाये तो समस्या में तेजी से सुधार की संभावना है।

 


 

 

 

Q2. शास्त्रीय और लोक नृत्य मे अंतर स्पष्ट करते हुए उत्तर प्रदेश के लोक जीवन से जुड़ी हुई प्रमुख लोक नृत्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिये?   

Explaining the difference between classical and folk dance, give a brief introduction to the major folk dances associated with Uttar Pradesh.

 

दृष्टिकोण:

  • भूमिका में भारतीय संस्कृति की विशेषताओं के विषय में संक्षेप में लिखिए । 
  • शास्त्रीय और लोक नृत्य मे अंतर स्पष्ट  कीजिए । 
  • उत्तर प्रदेश के लोक जीवन से जुड़ी हुई प्रमुख लोक नृत्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।  

उत्तर:

भारत विभिन्न संस्कृतिक विरासत वाला देश है। भारत विभिन्न धर्मो के साथ-साथ विभिन्न कलाओं व रीति रिवाजों का संगम होने के वावजूद एक धर्म निरपेक्ष राज्य के रूप मे प्रतिष्ठित है। भारत न सिर्फ नदियों के संगम वाला देश है बल्कि सांस्कृतिक संगम का भी देश है । 

शास्त्रीय नृत्य:

  • शास्त्रीय नृत्य हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शास्त्रीय नृत्य में, एक नर्तकी अलग-अलग भावों (इशारो) के माध्यम से एक कहानी को पेश करती है। भारत के अधिकांश शास्त्रीय नृत्य हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक शास्त्रीय नृत्य एक विशेष क्षेत्र की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें वे संबंधित हैं। शास्त्रीय नृत्य "नाट्य शास्त्र" के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं और इसमे उसी के नियमों के अनुसार नृत्य किया जाता है। जैसे- कथक, भरतनाट्यम, कुचीपुड़ी आदि। 

लोक नृत्य:

  • लोक नृत्य लोक परंपरा से चले त्योहारो , रीति -रिवाजों आदि पर आधारित होते है । इनमे शास्त्रीय नृत्य जैसे नियमों का बंधन नही होता है । जैसे- मौसम का आगमन, बच्चे के जन्म, विवाह या अन्य बहुत सारे त्योहारों को मनाने के लिए लोक नृत्यों का प्रदर्शन किया जाता है। 
  • यह अपेक्षाकृत सरल होता है। भारतीय लोक नृत्य ऊर्जा से भरपूर हैं। कुछ लोक नृत्य में पुरुष व महिला अलग-अलग नृत्य करते हैं, जबकि कुछ में एक साथ। अधिकतर नृत्य में कलाकार स्वयं ही गाते हैं बस कुछ लोग वाद्य यंत्र के साथ उनका सहयोग करते हैं। प्रत्येक प्रकार के लोक नृत्य की एक विशेष वेश-भूषा और लय है। ज़्यादातर लोक नृत्यों में आभूषणों और विशिष्ट आकृतियों के साथ रंग-बिरंगे परिधान होते हैं। 

उत्तर प्रदेश के प्रत्येक अंचल में लोकगीतों में भिन्नता के साथ ही लोकनृत्य में भी भिन्नता मिलती है।  

प्रमुख लोकनृत्य:

  • ख्याल नृत्य - पुत्र जन्मोत्सव पर बुन्देलखण्ड में ख्याल नृत्य किया जाता है। इसके अन्तर्गत रंगीन कागजों तथा बाँसों की सहायता से मंदिर बनाकर फिर उसे सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है।
  • रासनृत्य - यह नृत्य ब्रज क्षेत्र में रासलीला के दौरान किया जाता है। रासक दण्ड नृत्य भी इस क्षेत्र का एक रोचक नृत्य है।
  • झूला नृत्य - यह भी ब्रज क्षेत्र का नृत्य है, जिसका आयोजन श्रावण मास में किया जाता है। इस नृत्य को मंदिरों में भी किया जाता है। 
  • धोबिया नृत्य - विवाह व सन्तानोत्पति पर पूर्वांचल में यह धोबी समुदाय द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। इसमें नृत्य के माध्यम से धोबी व गधे के सम्बन्धों की जानकारी प्राप्त होती है।
  • चरकुला नृत्य - ब्रज क्षेत्र में होली पर 108 दीपकों का चरकुला (पिंजरा) सिर पर रखकर महिलाओं द्वारा यह नृत्य किया जाता है।
  • जोगिनी नृत्य - इस नृत्य को अवध क्षेत्र में विशेषकर रामनवमी के त्यौहार पर किया जाता है। इसके अन्तर्गत साधु या कोई अन्य पुरुष महिला का रूप धारण करके नृत्य करते हैं।
  • शौरा या सैरा नृत्य - यह नृत्य बुन्देल खण्डवासी कृषक अपनी फसलों को काटते समय हर्ष प्रकट करने के उद्देश्य से करते हैं।
  • पासी नृत्य - पूर्वांचल व अवध के पासी समाज के लोगों द्वारा यह नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में सात अलग-अलग मुद्राओं की एक गति तथा एक ही लय में युद्ध की भाँति नृत्य की जाती है।
  • धुरिया नृत्य - बुन्देलखण्ड के प्रजापति (कुम्हार) लोग इस नृत्य को स्त्री वेश धारण करके करते हैं।
  • कानरा नृत्य - बुन्देलखण्ड के धोबी समाज की स्त्री-पुरुषों द्वारा कानरा में विवाहोत्सव पर नृत्य किया जाता है।
  • कार्तिक नृत्य-यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र में कार्तिक माह में नर्तकों द्वारा श्रीकृष्ण तथा गोपी बनकर किया जाने वाला नृत्य हैं।
  • बरेंडी नृत्य-ब्रज की लट्ठमार होली की तरह बुन्देलखण्ड क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर कई दिनों तक ढोल-नगाड़े की तान पर आकर्षक वेशभूषा के साथ मोरपंखधारी लठैत एक दूसरे पर ताबड़तोड़ वार करते हुए बरेंडी नृत्य व खेल का प्रदर्शन करते हैं।
  • चौलर नृत्य - मिर्जापुर-सोनभद्र आदि जिलों में यह नृत्य अच्छी वर्षा व अच्छी फसल के लिए किया जाता है।
  • ढेढिया नृत्य - इस लोकनृत्य का प्रचलन प्रदेश के द्वाबा क्षेत्र में है, जो कि राम के लंका विजय के बाद वापस आने पर स्वागत स्वरूप किया जाता है। इसमें छिद्रयुक्त मिट्टटी के बर्तन में दीपक जलाकर उसे सिरपर रखकर किया जाता है।
  • नटुवा या नकटौरा नृत्य-पूर्वांचल में लड़कों के विवाह वाले घरों में वारात जाने के बाद उन घर की महिलाओं द्वारा पुरुषों का वेश धारण कर रातभर हास-परिहास युक्त नाटक व नृत्य किया जाता है।