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SHIKHAR MAINS 2022- DAY 42 Model Answer Hindi

Updated : 24th Sep 2022
SHIKHAR MAINS 2022- DAY 42 Model Answer Hindi

Q1. उत्तर प्रदेश में कमिश्नरी प्रणाली ने पुलिस को और सशक्त बनाया है।इस कथन के आलोक में कमिश्नरी प्रणाली को स्पष्ट करते हुए उत्तर प्रदेश में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए ?

Commissionerate system in Uttar Pradesh made the police more powerful, in light of the statement discuss the need of Commissionerate system in Uttar Pradesh?

दृष्टिकोण -

·        भूमिका शहरीकरण और अपराधों के बदलते स्वरूप को ध्यान मे रख कर लिखना है ।

·        कमिश्नरेट सिस्टम  से पुलिस का सशक्तिकरण को लिखिए ।

·        उत्तर प्रदेश में कमिश्नरेट सिस्टम शुरू करने की आवश्यकता को लिखते हए उचित निष्कर्ष लिखिए

उत्तर -

उत्तर प्रदेश मे शहरीकरण में वृद्धि होने के साथ साथ अपराध की  की घटनाओं में संख्यात्मक और गुणात्मक अंतर देखने को मिलती है । अर्थव्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन के साथ ही धरना प्रदर्शन ,भीड़ और दंगों का प्रबंधन तथा राज्य में कानून और  व्यवस्था को बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभर कर सामने आई है । हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के 4  महानगरों लखनऊ , नोएडा कानपुर और वाराणसी  में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू की है।

संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत , 'पुलिस' राज्य सूची का विषय है अर्थात राज्य कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इस विषय पर कानून बना सकते है और नियंत्रित कर सकते है ।

कमिश्नरेट सिस्टम  से पुलिस का सशक्तिकरण :

·        कमिश्नरेट सिस्टम में  पुलिस आयुक्त एक जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग करता है।ये शक्तियां आयुक्त के अधीन किसी भी अधिकारी को भी उपलब्ध हैं जो सहायक पुलिस आयुक्त के पद से नीचे का नहीं है।

·        कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों को सीआरपीसी अधिनियम की धारा 144 लागू करने, निवारक गिरफ्तारी  करने ,इस संबंध मे कार्यवाही शुरू करने की शक्ति प्राप्त हो गई है।

·        पुलिस को बाहरी कार्यवाही करने और किसी व्यक्ति को आयुक्तालय के अपने अधिकार क्षेत्र से अधिकतम दो वर्षों के लिए हटाने के लिए लिखित आदेश जारी करने का भी अधिकार है।

·        कुछ विशेष मामलों में राज्य सरकार, सीआरपीसी की धारा 20 (5) के तहत, पुलिस आयुक्त को एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट की कानूनी शक्तियां प्रदान कर सकती है।

·        इस आयुक्तालय प्रणाली के तहत पुलिस अधिकारियों को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), पुलिस अधिनियम, मोटर वाहन अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, राज्य सुरक्षा अधिनियम (जिलों से बाहर निकलना), कैदी अधिनियम की कुछ धाराओं में संशोधन करके अतिरिक्त अधिकार दिए जाएंगे।

 उत्तर प्रदेश में कमिश्नरेट सिस्टम शुरू करने की आवश्यकता -

·        छठी राष्ट्रीय पुलिस आयोग की रिपोर्ट, जिसे 1983 में जारी किया गया था, ने 5 लाख और उससे अधिक की आबादी वाले शहरों के साथ-साथ विशेष परिस्थितियों वाले स्थानों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली शुरू करने की सिफारिश की थी। वर्ष 2005 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पुलिस तंत्र में सुधार के लिये एक आयोग ने Draft Model Police Act में 10 लाख या उससे अधिक की आबादी वाले महानगरों के लिये पुलिस कमिश्नरी प्रणाली को आवश्यक बताया गया था।

·        न्यायिक आयोग ने कानून-व्यवस्था संभालने व विवेचना करने के लिए पुलिस की अलग-अलग शाखाएं होने की जरूरत बताई थी तथा  संगठित अपराध पर अंकुश के लिए विशेष एक्ट बनाने तथा उस पर अमल के लिए विशेष सेल बनाने का सुझाव भी दिया  था ।

·        शहरीकरण  के बढ़ते दायरे और इससे उत्पन्न नए किस्म के आपराधिक प्रवृत्ति ,अपराध को अंजाम देने के तरीके तथा संगठित अपराध को भी बढ़ाव मिलता है । शहरों में आतंकवादी गतिविधियों, मादक पदार्थों की तस्करी, अवैध मानव-व्यापार तथा  साइबर-क्राइम की घटनाओं मे वृद्धि होने की संभावना बनी रहती है ।

·        जिला स्तर पर पुलिस बल की व्यवस्था में, नियंत्रण की एक 'दोहरी प्रणाली' मौजूद होती है, जिसमें पुलिस प्रशासन की निगरानी के लिए पुलिस अधीक्षक (SP) को जिलाधिकारी (DM) के साथ समन्वय स्थापित करते हुए कार्य करना होता है। दंगा ,उपद्रव ,आगजनी और पुलिस पर हमला ,सार्वजनिक संपत्तियों को बर्बाद करना आदि विषम परिस्थितियों में निर्णय लेने तथा उसके क्रियान्वन में आसानी होती है क्योंकि इस व्यवस्था में द्वैध व्यवस्था नहीं होती है ।

·        कमिश्नरी प्रणाली में शीर्ष अधिकारी अपने निर्णयों और कार्यों के लिये सरकार के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अतः इस व्यवस्था से नौकरशाही में व्याप्त कमियों को दूर करने में मदद मिलती है।

 प्रशासन की सार्वजनिक संस्थाओं में जवाबदेही तय करने वाली उपायों को अमल में लाये बग़ैर उन्हें स्वायत्तता देने से कदाचार, ताकत के दुरूपयोग और नाइंसाफी के बढ़ने की आशंका रहती है।  पुलिस सरकार का सबसे मजबूत अंग है, अत: उसके  बर्ताव में इन बातों की आशंका ज्य़ादा है। प्रशासन के ढांचे में किये गये इस सुधार को मुख्य रूप से शहरीकरण को अंजाम देने में लगी शक्तियों के नज़रिये से देखा जाना चाहिए और उन बदलावों को लागू करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो शहरीकरण से उपजी चुनौतियों के समाधान के लिए ज़रुरी हैं।

 

 


 

 

Q2. उत्तर प्रदेश राज्य में पंचायती राज व्यवस्था के विकास पर चर्चा कीजिये। 

Discuss the evolution of Panchayati Raj Institution in the state of Uttar Pradesh.

दृष्टिकोणः

·        स्थानीय स्तर पर पंचायती राज संस्थान के महत्त्व का परिचय दीजिए ।

·        उत्तर प्रदेश राज्य में पंचायती राज का विकास । 

·        उचित निष्कर्ष के साथ उत्तर को समाप्त कीजिए ।

उत्तर:

73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली  को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया । जिसमे ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत , ब्लाक (तालुका) स्तर की  पंचायत समिति, तथा जिला स्तर की पंचायत समिति होती है । स्थानीय स्तर (ग्रामीण तथा शहरी )शासन को सुचारु रूप से संचालित करने तथा लोगो की शासन में  सहभागिता को बढ़ाने के लिए जिस व्यवस्था का गठन किया गया उसे पंचायती राज व्यवस्था के नाम से जाना जाता है ।

·        पंचायती राज प्रणाली हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली का आधारभूत तत्त्व है। उत्तर प्रदेश में, संशोधन अधिनियम पारित होने के पश्चात् पिछले 23 वर्षों में पंचायती राज प्रणाली का लगातार विकास हुआ है।

·        उत्तर प्रदेश में पंचायती राज संस्थानों के विकास का अध्ययन इस प्रकार किया जा सकता है:

·        उत्तर प्रदेश ने पंचायती राज को स्वतंत्रता के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1947 के के साथ ही अपना लिया था।

·        बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के बाद, पंचायतों की एक त्रिस्तरीय प्रणाली की स्थापना उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायतों और जिलापंचायतों अधिनियम, 1961 के अधिनियमन के माध्यम से की गई थी।

·        संविधान के प्रावधानों (73वें संशोधन) अधिनियम, 1992 के अनुरूप लाने के लिये, राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश पंचायत कानून(संशोधन) अधिनियम, 1994 के साथ उपरोक्त दोनों अधिनियमों को संशोधित किया।

·        उत्तर प्रदेश में पंचायती राज संस्थानों के तीन स्तरों का नामकरण, जिला स्तर पर जिला पंचायत, मध्यवर्ती (ब्लॉक) स्तर पर क्षेत्रपंचायत, ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत के रूप में किया गया है।

·        प्रशासनिक सुधार और विकेंद्रीकरण आयोग (बजाज आयोग) राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1994 में नियुक्त किया गया था, जिसने पंचायतों को कार्यों के हस्तांतरण के बारे में कई सिफारिशें दी थीं।

·        दसवें वित्त आयोग (टी.एफ.सी.) और राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी.) की सिफारिशों के साथ 1997-98 के बाद से, ग्राम पंचायत के वित्तीय संसाधनों को संवर्धित (बढ़ाना) किया गया है।

·        चौथे राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी.) के अनुसार, शुद्ध राजस्व का 15% स्थानीय सरकारों के साथ साझा किया जाता है, जिसमें से 40% 15:10:75 (जिला पंचायत: क्षेत्र पंचायत: ग्राम पंचायत) के अनुपात में पंचायतों को आवंटित किया जाता है। 1999 में आठ विभागों के ग्राम स्तर के पदाधिकारियों को पंचायतों में स्थायी रूप से स्थानांतरित करने के लिये कदम उठाए गए थे। परिणामस्वरूप, ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी, आदि जैसे कर्मियों को ग्राम पंचायत के नियंत्रण में लाया गया।

2015 में, राज्य सरकार ने पाँचवे राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी.) का गठन किया है, जिसे सरकार को रिपोर्ट सौंपना शेष है।

अप्रैल-मई 2021 में, पाँचवीं बार उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए, जो एक उल्लेखनीय सफलता थी। यह 3,050 जिला पंचायत वार्डो, 75,000 से अधिक क्षेत्र पंचायत वार्डों और 7 लाख से अधिक ग्राम पंचायत वार्डों सहित लगभग 8 लाख पदों के लिये केवल 13 लाख उम्मीदवारों के बीच एक विशाल चुनाव था।