Q1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या है? साथ ही इससे जुड़ी चुनौतियों की भी चर्चा कीजिए।
What is Minimum Support Price (MSP)? Also discuss the challenges associated with it.
दृष्टिकोण:
· उत्तर की शुरुआत न्यूनतम समर्थन मूल्य का सामान्य परिचय देते हुए कीजिए।
· इसके बाद CACP के विषय में लिखते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिए।
· पुनः इसके फ़ायदे और चुनौतियों को लिखते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिए।
· अंत में उचित निष्कर्ष लिखते हुए उत्तर का समापन कीजिए।
उत्तर:
न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार की ओर से मूल्य समर्थन के रूप में किसानों को कृषि कीमतों में किसी भी तीव्र गिरावट के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक हस्तक्षेप है। न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटीशुदा खरीद मूल्य (offtake price) सुनिश्चित करता है जो किसानों के लिए भी लाभकारी है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुख्य उद्देश्य किसानों को संकटग्रस्त बिक्री से बचाना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्न की खरीद करना है। न्यूनतम समर्थन मूल्य का उद्देश्य किसानों को आश्वासित आय सुनिश्चित करके कृषि के लिए आधुनिक तकनीकों में निवेश को प्रोत्साहित करना है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा भारत सरकार द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर की जाती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग एक वैधानिक निकाय है, जो खरीफ और रबी मौसमी फसलों के लिए कीमतों की सिफारिश करने वाली विभिन्न रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य चावल, गेहूं, दाल आदि सहित 23 फसलों के लिए बुवाई के मौसम से पहले घोषित किया जाता है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग प्रत्येक वर्ष मूल्य नीति रिपोर्ट के रूप में सरकार को अलग-अलग वस्तुओं के पांच समूहों यथा खरीफ फसल, रबी फसल, गन्ना, कच्चा जूट और खोपरा के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
राज्य सरकारों की रिपोर्ट और दृष्टिकोणों पर विचार करने के बाद और देश में समग्र मांग तथा आपूर्ति की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार अंतिम निर्णय लेती है।
पिछले कुछ वर्षों में, न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को सरकारी सहायता का एक प्रमुख पहलू बन गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी फायदा हुआ है।
· इसने नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है।
· इसने सार्वजानिक वितरण प्रणाली (PDS) के कुशलतापूर्वक क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया है।
· इसने किसानों को निश्चित नकदी प्रवाह प्रदान किया है।
· इसने खाद्य फसलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने में मदद की है।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़ीं कई चिंताएं सामने आई हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित मुद्दे:
· न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण के लिए सरकार द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सूत्र और न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए किसानों की मांग में तालमेल नहीं।
· सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य फॉर्मूला A2+पारिवारिक श्रम (FL) के आधार पर घोषित करती है, जहाँ A2 = आगत लागत (बीज, उर्वरक, मशीनरी, श्रम, आदि) है।
· किसानों की मांग C2 का 1.5 गुना होती है, जो सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य + किराए पर लगाई गई लागत और स्वामित्व वाली जमीन पर ब्याज के बराबर है।
· इस संदर्भ में, राष्ट्रीय किसान आयोग, जिसे आमतौर पर एम. एस. स्वामीनाथन समिति के नाम से जाना जाता है,ने किसानों की मांगों के समान न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए एक सूत्र की सिफारिश की थी। स्वामीनाथन समिति के सूत्र का क्रियान्वयन एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
· न्यूनतम समर्थन मूल्य ने फसल के प्रारूप को विकृत कर दिया है, जिससे पानी की खपत वाली फसलों जैसे चावल का पारंपरिक फसलों जैसे दालों, बाजरा आदि पर श्रेष्ठता सुनिश्चित हो गई है।
· न्यूनतम समर्थन मूल्य में एक ओपन एंडेड खरीद तंत्र शामिल है। इसलिए, न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से खरीदे गए अधिकांश उत्पाद खुले बाजारों में आपूर्ति को कम करते हैं। नतीजतन, गैर-अनाज का उपभोग बढ़ रहा है जिससे पोषण से संबंधित मुद्दे सामने आ रहे हैं।
· न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत अधिक खरीद की जाती है, लेकिन आनुपातिक भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण उपज की बर्बादी होती है।
· भारतीय खाद्य निगम की भूमिका और पुनर्गठन पर शांता कुमार समिति की रिपोर्ट के अनुसार, किसी भी खरीद एजेंसी को सीधे गेहूं और धान बेचने से केवल 6% किसानों को ही लाभ होता है। विवादित होने के बावजूद, यह आंकड़ा विभिन्न क्षेत्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य तक पहुंच में व्याप्त भारी असमानता को इंगित करता है।
· अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, न्यूनतम समर्थन मूल्य विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत और विकसित दुनिया के बीच टकराव का कारण रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य को अंबर बॉक्स में सब्सिडी के रूप में शामिल किया गया है जो उत्पादन को विकृत करता है और इसे खत्म किया जाना चाहिए।
· न्यूनतम समर्थन मूल्य ने कृषि में निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी हतोत्साहित किया है। इसलिए, निजी प्रयास से जो लाभ हो सकते थे, वे पीछे छूट गए हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों के लिए सुरक्षा जाल के रूप में देखा गया था। हालाँकि, इसके नेक इरादों के बावजूद, इससे संबंधित चिंताएँ केवल बढ़ी हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागू करने में सुधार की शख्त जरूरत है। हालिया कृषि सुधारों ने उसी पर बहस को जन्म दिया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य सुधारों के लिए नीतियां तैयार करते समय किसानों की शिकायतों का समाधान किया जाना चाहिए।
Q2. सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आप क्या समझते हैं? भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए दूर करने के उपायों की चर्चा कीजिये।
What do you understand by Public Distribution System? Outlining the challenges of Public Distribution System in India, and discuss the measures to overcome them.
दृष्टिकोण:
· सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पृष्ठभूमि से उत्तर की शुरुआत कीजिये।
· पीडीएस को स्पष्ट कीजिये।
· पीडीएस तंत्र में निहित चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
· इन चुनौतियों को दूर करने के उपायों पर चर्चा कीजिये।
उत्तर:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली
· सार्वजनिक वितरण प्रणाली, आवश्यक वस्तुओं की उचित मूल्य की दुकानों(FPS) के माध्यम से सहायिकी युक्त मूल्यों पर विक्रय की योजना है। यह 100 % केंद्र प्रायोजित योजना है।इसके लिए भारतीय खाद्य निगम (FCI) MSP/PP के आधार पर खरीद करता है और केन्द्रीय निर्गमन मूल्य(CIP) पर राज्यों को बेचता है। राज्य सरकार FPS के माध्यम से निर्गमन मूल्य(IP) पर उपभोक्ताओं को बेचती है। उपभोक्ताओं की श्रेणी के आधार पर निर्गमन मूल्य अलग-अलग हो सकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उद्देश्य वहनीय कीमतों पर नागरिकों को खाद्य अनाजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। भारत में भुखमरी एवं कुपोषण को नियंत्रित करने में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है किन्तु वर्तमान में यह योजना विभिन्न कमियों से ग्रस्त है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कमियाँ/चुनौतियाँ -
· सार्वजनिक वितरण प्रणाली रिसाव की समस्या का सामना कर रही है। शांताकुमार समिति के अनुसार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 40 से 50 % तक रिसाव हो जाता है।
· सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लक्ष्यों में अस्पष्टता की उपस्थिति है। कुछ योग्य नागरिक इसका लाभ नहीं ले पा रहे है जबकि कुछ अयोग्य नागरिक इसका लाभ उठा रहे हैं।
· इसमें वितरण संबंधित चुनौतियाँ विद्यमान है जैसे कार्ड जारी करना मात्रा और गुणात्मक मुद्दे रिकार्ड के रख रखाव ,मौसम संबंधित आदि ।
· सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रायः विलंबित अनाज आपूर्ति होती है जो लाभार्थियों की खाद्य सुरक्षा को बाधित करता है, इसके अतिरक्त FPS का केवल कभी-कभी खुलना सरकार के उद्देश्यों की पूर्ति में बाधक है।
· जिन राज्यों में आधारिक संरचना बेहतर है वहां आपूर्ति सुचारू रूप से होती है लेकिन जहाँ आधारिक संरचना में कमजोर राज्यों में वितरण में क्षेत्रीय असमानता देखने को मिलती है।
· इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली FCI की प्रशासनिक अकुशलता जैसे अनाजों का उचित भंडारण न कर पाना, अनाजों का नष्ट होना आदि कमियों का सामना भी कर रही है।
· खाद्यान की क्षति - उचित प्रबंधन न होने ,गोदामों में रिसाव ,बाढ़ के संपर्क में आना ,निवारक उपाय न अपनाने आदि के कारण वर्ष 2011-12 से वर्ष 2016 -17 तक लगभग 61824 टन खाद्यान की क्षति हुई ।
· राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के लागू होने के कारण खाद्य सब्सिडी का बोझ बढ़ गया है ।
PDS से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के उपाय:
PDS से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए 20 अगस्त, 2014 को भारतीय खाद्य निगम की प्रचालनात्मक कार्य कुशलता और वित्तीय प्रबंधन में सुधार के लिए शांता कुमार की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था
खरीद पक्ष सुधार (Procurement Side Reforms) –
· इस दिशा में पर्याप्त कार्य अनुभव वाले राज्यों को किसानों से सीधे खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।जैसे- आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश
· MSP से भी कम कीमत पर खाद्यान्न की आपात बिक्री के लिए विवश किसानों (जैसे -पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, असम आदि) पर भी FCI को विशेष ध्यान देना चाहिए जहां बड़े पैमानों पर लघु भूखंडों की प्रधानता है।
· निजी क्षेत्र को PDS खाद्यान्नों/जिंसों की खरीद, भंडारण और वितरण के जिम्मेदारी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
· परक्राम्य गोदाम रसीद प्रणाली (Negotiable warehouse receipt system: NWRs) को प्राथमिकता के साथ अपनाया और त्वरित रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।नेगोशिएबल रिसीप्ट सिस्टम के अंतर्गत किसान अपनी उपज को पंजीकृत वेपर हाउसों में जमा कर सकते हैं तथा उस पर एमएसपी मूल्य के आधार पर लगाई गयी कीमत का 80% बैंकों से बातौर अग्रिम ले सकते हैं।
· भारत सरकार को अपनी खरीद बास्केट को व्यापक बनाना चाहिए ताकि उनमें पर्याप्त पोषक तत्वों का मिश्रण सम्मलित किया जा सके।
आपूर्ति पक्ष सुधार (Supply Side Reforms)-
· केंद्रीकृत ऑनलाइन वास्तविक समय इलेक्ट्रॉनिक PDS (कोर पीडीएस) का उपयोग किया जा सकता है।
· SMS द्वारा पंजीकृत उपभोक्ताओं को ट्रकों की अवस्थिति की निगरानी और उपलब्ध स्टॉक की जानकारी उपलब्ध होगी।
· राशन की दुकान पर राशन के संग्रह और वितरण के बारे में सभी जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध करवाया जा सकता है।
· उचित मूल्य दुकान (FPS) का परिचालन ग्राम पंचायतों, सहकारी समितियों, स्व-सहायता समूहों आदि के माध्यम से होना चाहिए।
· PDS संबंधी वस्तुओं को ले जाने वाले ट्रकों की GPS द्वारा निगरानी।
ग्राहक पक्ष सुधार (Consumer Side Reforms)-
· PDS के लाभार्थियों की पहचान व पात्रता के अनुसार आबंटन का वेब डेटाबेस बनाया जाना चाहिए।
· POS पर आधार प्रमाणीकरण द्वारा कम्प्यूटरीकृत प्रविष्टि की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
· PDS में नकद हस्तांतरण का प्रायोगिक परीक्षण, 1 मिलियन से अधिक जनसंख्या वाले बड़े शहरों से प्रारम्भ करने के पश्चात् खाद्यान्न अधिशेष वाले राज्यों में इसका विस्तार करना और फिर कमी वाले राज्यों को नकद या खाद्यान्न के भौतिक वितरण का विकल्प प्रदान करना चाहिए।
· शिकायत दर्ज करने के लिए टोल फ्री नम्बर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
PDS योजना के अंतर्गत सभी राशन की दुकानें चलाने वाले लोग उपभोक्ताओं के प्रति जवाबदेह होंगे।
राज्य सरकार अपनी पसंद की दुकान से राशन खरीदने का विकल्प उपलब्ध करवा सकती है।
इन सभी विशेषताओं को छत्तीसगढ़ द्वारा अपनाया गया जिससे पीडीएस तंत्र में काफी सुधार हुआ तथा रिसाव में भी काफी कमी हुई है। इन विशेषताओं को सभी राज्यों में अपनाकर तंत्र को प्रभावी बनाया जा सकता है।
2021 Simplified Education Pvt. Ltd. All Rights Reserved