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SHIKHAR MAINS 2022- DAY 49 Model Answer Hindi

Updated : 3rd Oct 2022
SHIKHAR MAINS 2022- DAY 49 Model Answer Hindi

Q1. नैतिक कार्य संस्कृति के महत्त्व की चर्चा करते हुए, उन उपायों का सुझाव दीजिए जिनके माध्यम से इसे किसी संगठन में आत्मसात किया जा सकता है।

Discuss the significance of ethical work culture, also suggest ways by which it can be inculcated in an organization.

दृष्टिकोण:

·        नैतिक कार्य संस्कृति को संक्षेप में परिभाषित कीजिए और इसके महत्व का वर्णन कीजिए।

·        कार्यस्थल पर नैतिक कार्य संस्कृति को सुदृढ़ बनाने में सहायक प्रक्रियांओं और उपकरणों की चर्चा कीजिए।

·        उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

नैतिक कार्य संस्कृति ऐसी कार्य संस्कृति है जहां स्वामी, प्रबंधक और कर्मचारी नैतिक मूल्यों का समर्थन करते हैं, विधिसम्मत व्यावसायिक प्रथाओं का पालन करते हैं और सहकर्मियों, प्रबंधन, ग्राहकों एवं सेवा प्राप्तकर्ता के मध्य उचित व्यवहार को प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार की कार्य संस्कृति कर्मचारियों के अधिकार, उचित प्रक्रियाओं, वेतन और पदोन्नति में समानता को प्राथमिकता देती है। साथ ही, यह ग्राहकों और कर्मचारियों से किए जाने वाले व्यवहार में सहिष्णुता, करुणा, निष्ठा एवं ईमानदारी को बढ़ावा देती है। एक नैतिक कार्यस्थल के सामान्य तत्वों में सत्यनिष्ठा, कठिन परिश्रम, किसी की प्रतिबद्धता का सम्मान करना, दूसरों के प्रति सम्मान, कानून का पालन, जवाबदेही, भेदभाव न करना आदि समाहित होते हैं।

निम्नलिखित कारणों से नैतिक कार्य संस्कृति संगठन के लिए महत्वपूर्ण है:

·        अच्छी नैतिकता अच्छे व्यापार का पर्याय है, क्योंकि यह संगठन की प्रतिष्ठा और बाजार मूल्य निर्मित करती एवं उसे बनाए रखती है।

·        यह कर्मचारियों में उच्चतर कार्य-संतुष्टि, उच्च क्षमतावान कर्मचारियों का संगठन के प्रति आकर्षण सुनिश्चित करती है तथा उदार और ईमानदार संचार स्थापित करने में सहायक होती है।

·        यह कार्यस्थल में विश्वास, संगठनात्मक प्रतिबद्धता और व्यक्त किए गए उद्देश्यों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देती है।

·        कार्यस्थल पर नैतिक आचरण नैतिकता के आधार पर निर्णय लेने की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है।

·        यह व्यावसायिक निर्णयन के दौरान जवाबदेही और पारदर्शिता में वृद्धि करती है। कठिन समय में, एक सुदृढ़ नैतिक संस्कृति, सही उपायों के द्वारा ऐसे टकराव के प्रबंधन में कर्मचारी का मार्गदर्शन करती है।

·        यह विधि और नियम के अनुपालन को बढ़ाकर नियामक जोखिम को कम करती है।

·        अनैतिक कार्य संस्कृति, कॉर्पोरेट कम्पनियों के दिवालिया होने और उनमें धोखाधड़ी होने का कारण बन सकती है, उदाहरण के लिए- एनरॉन, लेहमैन ब्रदर्स, सत्यम आदि। 

नैतिक कार्य संस्कृति को आत्मसात करने की विधियाँ निम्नलिखित हैं:

·        स्पष्ट बुनियादी मूल्य: रणनीतियां और प्रथाएं स्पष्ट रूप से व्यक्त सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए, जिन्हें संगठन के भीतर व्यापक रूप से साझा किया जा सकता हो। इस प्रकार यह व्यापक नैतिक कार्य प्रणाली को सुदृढ़ करती है।

·        सुव्यवस्थित मिशन वक्तव्य: एक सरल, लघु, कार्रवाई योग्य और भावनात्मक रूप से सुसंगत मिशन वक्तव्य को कंपनी की प्रथाओं पर नैतिक सिद्धांतों के प्रभावों और संपूर्ण संगठन में गहराई से अंतः स्थापित इन सिद्धांतों को सरलतापूर्वक कर्मचारियों द्वारा अवलोकित करने में सक्षम बनाने के लिए निर्मित किया जाना चाहिए।

·        अच्छी नैतिकता की स्पष्ट अपेक्षाओं का संचार: संगठन के प्राथमिक मूल्यों और नैतिक नियमों की स्पष्ट रूपरेखा व्यक्त करने वाली एक नीति संहिता या आचार संहिता संप्रेषित की जानी चाहिए।

·        नैतिकता को केंद्र में रखना: संगठनों को ऐसे संदर्भ निर्माण का प्रयास करना चाहिए जो नैतिक सिद्धांतों पर बल दे, औपचारिक और अनौपचारिक प्रोत्साहनों एवं अवसरों के माध्यम से नैतिकता को पुरस्कृत करे, तथा दिन-प्रतिदिन के व्यवहार में नैतिकता को समावेशित करे।

·        सांस्कृतिक मानदंड और नेतृत्व की भूमिका: शीर्ष और मध्य स्तर पर विद्यमान नेतृत्व अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि नैतिक व्यवहार लगभग सदैव शीर्ष स्तर से प्रारम्भ होकर नीचे की ओर निस्पंदित होता है। शीर्ष अधिकारियों द्वारा उदाहरण प्रस्तुत करके नेतृत्व किया जाना चाहिए और कर्मचारियों द्वारा किए गए अच्छे कृत्यों को प्रकट करते हुए उन्हें प्रेरित करना चाहिए।

·        प्रशिक्षण और सलाह प्रदान करना: अधिकारियों और प्रबंधकों में नैतिक संस्कृति का निर्माण और उसे बनाए रखने और नैतिक दुविधाओं की स्थितियों का समाधान करने के आवश्यक कौशल सुनिश्चित करने के लिए एक औपचारिक नैतिकता प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए।

·        प्रतिषुष्टि तंत्र: संगठनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पास स्पष्ट प्रतिपुष्टि तंत्र विद्यमान हो जिसमें कर्मचारी कार्यस्थल पर अनैतिक व्यवहार की रिपोर्ट कर सकते हों।

नैतिक कार्य संस्कृति संगठनों के लिए केवल नैतिक आवश्यकता ही नहीं है, अपितु यह संगठनों को प्रतिस्पर्धी बढ़त भी प्रदान करती है और इसलिए इसे अपनाया और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

 


 

Q2. वस्तुनिष्ठता और समर्पण के मूल्य को परिभाषित करते हुए लोकसेवा में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।

Defining the value of objectivity and dedication, explain their importance in public service.

दृष्टिकोण

·        भूमिका में सत्यनिष्ठा के आयाम के रूप में वस्तुनिष्ठता एवं समर्पण मूल्यों का परिचय दीजिये।

·        प्रथम भाग में वस्तुनिष्ठता एवं समर्पण मूल्यों को परिभाषित कीजिये।

·        दूसरे भाग में वस्तुनिष्ठता एवं समर्पण मूल्यों का लोकसेवा में महत्त्व स्पष्ट कीजिये।

·        अंतिम में प्रभावी लोकसेवा के लिए दोनों गुणों की आवश्यकता स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।

उत्तर -

सत्यनिष्ठा चरित्र की पूर्णता को निर्दिष्ट करती है जिसके सभी अवयवों में आतंरिक सुसंगति होती है। सत्यनिष्ठा से संपन्न किसी व्यक्ति का आचरण सभी स्थितियों में उसके नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप होता है साथ ही उसके नैतिकता का आधार भी वस्तुनिष्ठ होता है। इस तरह सत्यनिष्ठा के अंतर्गत नैतिक और व्यावहारिक दोनों तरह की सुसंगति समाहित हैं। सत्यनिष्ठ लोकसेवक से भेदभाव रहित तथा गैर-तरफदारी, निष्पक्षता/वस्तुनिष्ठता, समर्पण और  कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना आदि आधारभूत मूल्यों की अपेक्षा की जाती है| इस तरह से सत्यनिष्ठ एवं समर्पण दोनों मूल्य सत्यनिष्ठा के आयाम हैं।

वस्तुनिष्ठता से आशय

·        वस्तुनिष्ठता, तथ्य आधारित व्यवहार को दर्शाती है जबकि आत्मनिष्ठता व्यक्ति के व्यक्तिगत मूल्य आधारित व्यवहार को दर्शाती है।

·        वस्तुनिष्ठता का आशय व्यक्ति या लोकसेवकों की उस क्षमता से है जिसके द्वारा व्यक्ति का निर्णय बिना किसी पक्षपात या बाहरी दबाव के उचित या समुचित आधार पर हो। अतः किसी भी लोकसेवक के विधिक एवं तार्किक होने हेतु उसके व्यवहार में वस्तुनिष्ठता का होना आवश्यक है।

·        सत्यनिष्ठा, अनुभवमूलक(Empirical) सबूतों पर आधारित होती है न कि आदर्शात्मक या मानवीय मानकों पर।

·        वस्तुनिष्ठता, अवलोकन एवं प्रयोगात्मक पहलुओं पर केन्द्रित होती है। 

समर्पण (Dedication) से आशय

·        यह प्रतिबद्धता के उच्चतम स्तर को दर्शाती है अतः इसके अंतर्गत लोकसेवकों से यह अपेक्षा की जाती है कि अपना सम्पूर्ण समय, ध्यान, ऊर्जा एवं स्वतः अपने आप को लोकसेवा के प्रति केन्द्रित कर दे।

·        औपचारिक विधि के द्वारा प्रतिबद्धता को प्राप्त किया जा सकता है परन्तु समर्पण औपचारिक समझौते से आगे होता है। अर्थात लोकसेवकों के नैतिक मूल्यों के सुनिश्चित किये बिना समर्पण को नहीं प्राप्त किया जा सकता है।

·        समर्पण लोकसेवकों में सेवा की भावना पर केन्द्रित होता है| समर्पण लोकसेवकों में जनसेवा की भावना को प्रेरित करता है।

·        समर्पण यह मांग करता है कि विभिन्न कठिनाइयों एवं बाधाओं के बावजूद भी लोकसेवक के द्वारा जनसेवा हेतु निरंतर प्रयास को जारी रखा जाए।

·        लोकसेवकों के लिए स्वतः उसका कार्य, उसकी प्रेरणा का स्रोत होता है।

·        समर्पण, व्यक्ति की अभिप्रेरणा के रूप में कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व को आधारित मानती है।

·        समर्पण के सन्दर्भ में व्यक्ति की अभिप्रेरणा का स्रोत उन कारकों को माना जाता है जो कार्य के विषयवस्तु से सम्बन्धित हों जैसे कार्य कितना चुनौतीपूर्ण है आदि

·        समर्पण पूर्णतयः किसी व्यक्ति में संभव नहीं होता है परन्तु इस दिशा में निरंतर प्रयास जारी होना चाहिए।

लोकसेवा में वस्तुनिष्ठता और समर्पण का महत्त्व

लोकसेवा में समर्पण का महत्त्व 

·        सत्यनिष्ठा इस बात की मांग करती है कि लोकसेवकों के लिए लोक हित सर्वोपरि है एवं इस दिशा में लोकसेवकों के लिए समर्पण का होना आवश्यक है|

·        समर्पण लोकसेवकों को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह बिना किसी भटकाव के लोकसेवा के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रयासरत होता है| अतः लोकसेवक संपूर्णतः अपने कार्य के प्रति केन्द्रित होता है|

·        समर्पण यह अपेक्षा करता है कि सभी बाधाओं एवं चुनौतियों के बावजूद भी लोकसेवक के द्वारा लोकसेवाओं कि परिपूर्ति हेतु निरंतर प्रयास किया जाय।

वस्तुनिष्ठता का महत्त्व

·        भेदभावरहितता को प्राप्त करने हेतु लोकसेवकों में वस्तुनिष्ठता का होना अनिवार्य है।

·        बिना वस्तुनिष्ठता के लोकसेवकों की सत्यनिष्ठा को प्राप्त किया जाना संभव नहीं है।

·        वस्तुनिष्ठता, लोकसेवकों के व्यवहार से यह अपेक्षा करती है कि वह विषय वस्तु विशिष्ट हो एवं स्वतंत्र मस्तिष्क हो।

·        वस्तुनिष्ठता का सम्बन्ध प्राप्त निर्णय की प्रकृति से न होकर निर्णय प्रक्रिया की प्रकृति से है।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि लोकसेवकों की कार्यप्रकृति कि शक्तियों के अभ्यास को दर्शाती है अतः लोकसेवक के व्यवहार में वस्तुनिष्ठता पर बल दिए जाने के माध्यम से लोकसेवकों के स्वनिर्णय की शक्तियों के अभ्यास को अधिक औचित्यपूर्ण बनाया जा सकता है।अतः लोकसेवकों की शक्तियों के दुरुपयोग की रोकथाम की दिशा में वस्तुनिष्ठता का एक विशेष महत्त्व है। इसी प्रकार |वस्तुनिष्ठता और समर्पण के मध्य पृथक्करण नहीं किया जा सकता है क्योंकि समर्पण हेतु वस्तुनिष्ठता का होना अति आवश्यक है। अतः दोनों गुण पारस्परिक रूप से अंतर्संबंधित हैं और लोकसेवा के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण हैं।