Q1. नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? इसके साथ ही सार्वजनिक जीवन में नीतिशास्त्र का महत्त्व स्पष्ट कीजिये।
What do you understand by ethics? Along with this, explain the importance of ethics in public life.
दृष्टिकोण:
· भूमिका में नीतिशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
· मुख्य भाग में सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।
· अंतिम में आवश्यकता स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।
उत्तर:
नीतिशास्त्र का आशय मानवीय आचरण के आदर्शात्मक विज्ञान से है। आदर्शात्मक विज्ञान का सम्बन्ध मानवीय आचरण के उचित या अनुचित, शुभ या अशुभ से सम्बन्धित निर्णय को प्राप्त किये जाने से है। नीतिशास्त्र मानवीय आचरण का आकलन नैतिक मानकों के आधार पर करता है। अतः नीतिशास्त्र ऐसे मानकों या नियमों या परम्पराओं से भी सम्बन्धित है जिसके आधार पर मानवीय आचरण को उचित या अनुचित/शुभ या अशुभ होने की संज्ञा दी जा सकती है| नीतिशास्त्र ऐसे मानवीय आचरण के आकलन पर आधारित है जो कि व्यक्ति के ऐच्छिक क्रियाशीलता से सम्बन्धित हो अर्थात यदि व्यक्ति के पास चयन का विकल्प होता तो उस क्रियाशीलता को अन्य प्रकार से भी किया गया होता| इस प्रकार नीतिशास्त्र, नैतिक मानकों की सत्यता या मान्यता से भी सम्बन्धित होता है।
नीतिशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यक्तिगत स्तर से सम्बन्धित न होकर व्यक्ति के मानव प्राणी, संगठन का सदस्य एवं समाज के सदस्य के रूप में व्यक्ति से है मानवीय मूल्यों को विकसित करने हेतु परिवार, समाज एवं शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका का विशेष महत्त्व है जो कि समाजीकरण के विभिन्न महत्त्वपूर्ण कारक हैं। नीतिशास्त्र, व्यक्ति की निर्णय प्रक्रिया को अधिक तीव्रता प्रदान करती है| यदि व्यक्ति नैतिक होगा तो उसके मन में असमंजस नहीं होगा, नैतिक व्यक्ति के मन-विचार-कर्म में एकरूपता होती है।
नीतिशास्त्र का महत्त्व:
· नीतिशास्त्र लोकसेवकों के स्वनिर्णय की शक्तियों के दुरूपयोग की संभावनाओं को कम करता है।
· नीतिशास्त्र, व्यक्तियों/लोकसेवकों में उत्तरदायित्व की भावना को प्रोत्साहित करता है।
· स्व-जवाबदेहिता को विकसित करने की दिशा में नीतिशास्त्र का एक विशेष महत्त्व है।
· नीतिशास्त्र व्यक्तियों के परस्पर सम्बन्ध एवं व्यक्तियों और लोकसेवकों के पारस्परिक सम्बन्ध को अधिक सुचारू बनाने में सहायक सिद्ध होता है।
· नीतिशास्त्र, लोकसेवकों/व्यक्तियों के उच्चतम आचरण को विकसित करती है।
· नीतिशास्त्र, समाज कल्याण, जन हित, सामाजिक हित एक संरक्षण एवं विकास को प्रोत्साहित करती है।
· नीतिशास्त्र, लोकसेवक या व्यक्ति के व्यवहार के उस पक्ष या आयाम को नियंत्रित करता है जो कि औपचारिक विधि या नियम कानून के द्वारा संभव न हो।
· नीतिशास्त्र, लोकसेवकों में कार्यकुशलता एवं प्रभावशीलता को प्रोत्साहित करता है।
· नीतिशास्त्र, समाज के दृष्टिकोण में लोकसेवकों की विश्वसनीयता को अधिक सुदृढ़ता प्रदान करती है।
· नीतिशास्त्र, लोकसेवकों एवं राजनीतिज्ञों के मध्य के पारस्परिक सम्बन्ध को अधिक सुचारू बनाती है।
· नीतिशास्त्र के माध्यम से व्यक्ति के द्वारा यह निर्णय किया जाना संभव हो पाता है कि उसके लिए क्या उचित या अनुचित है अथवा क्या शुभ या अशुभ है।
· नीतिशास्त्र के माध्यम से लोकसेवकों के द्वारा लोकसंसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करने हेतु एक विशेष दायित्व उत्पन्न होता है।
· नीतिशास्त्र मानवीय सह सम्बन्ध में परस्पर विश्वास एवं भरोसा उत्पन्न करने में सहायक है अतः नीतिशास्त्र समाज का एकीकरण करने में सहायक सिद्ध होता है।
· नीतिशास्त्र व्यक्तियों के मध्य नेतृत्व की भावना को उत्पन्न करती है।
नीतिशास्त्र एक सर्वव्यापी प्रक्रिया होने के कारण इसका प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में एवं विभिन्न स्तरों पर देखने को मिलता है जैसे राजनीति, प्रशासनिक, संगठनात्मक, सामाजिक पर्यावरण, व्यवसाय, चिकित्सा, लोकसेवा, अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आदि। कोई मानवीय आचरण बिना नैतिक मूल्यों के उचित नहीं हो सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि नैतिकता सार्वजनिक जीवन के सुचारू रूप संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Q2. नैतिक दुविधा से क्या तात्पर्य है? इस संदर्भ में नैतिक मार्गदर्शन के आधार के रूप में विधि और अंतरात्मा की चर्चा कीजिए।
What is meant by Ethical dilemma? Discuss how Law and conscience are the basis of ethical guidance in this context.
दृष्टिकोण:
· उत्तर की शुरुआत नैतिक दुविधा के बारे में संक्षिप्त में बताते हुए कीजिये ।
· उत्तर के दूसरे भाग में नैतिक दुबिधा के समाधान में मार्गदर्शक आधारों की चर्चा कीजिये ।
· अंत में एक निष्कर्षात्मक शैली में उत्तर का समापन कीजिये ।
उत्तर :
नैतिक दुविधा से तात्पर्य उचित एवं अनुचित के बीच के चयन से संबंधित न होकर बल्कि प्रतिस्पर्धात्मक उचित के बीच का चयन से है । जिसमे कोई भी विकल्प पूर्ण रूप से सही या गलत नही होता , बल्कि उनके सही या गलत होने में डिग्री का अंतर होता है ।कुछ विकल्प कम सही और कुछ ज्यादा सही होते हैं।
सिविल सेवक के सेवा कार्य में नैतिक दुबिधा निम्नलिखित बिन्दुओ से समझी जा सकती है :-
सिविल सेवक के सेवा कार्य में नैतिक दुबिधा निम्नलिखित बिन्दुओ से समझी जा सकती है :-
उपरोक्त मानकों के कारण लोक सेवक को नैतिक दुबिधा का सामना करना पड़ता है । नैतिक दुबिधा के समाधान हेतु लोक सेवकों द्वारा विधि और अंतरात्मा को नैतिक मार्गदर्शन के स्त्रोत के रूप में अपनाया जाता है । जिसमे विधि बाहरी मार्गदर्शक के रूप में तथा अंतरात्मा आंतरिक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है । इसको निम्नलिखित बिन्दुओ से समझा जा सकता है-
· विधि का आशय , नियम , मान्यताओ , परम्पराओं आदि से है जो की संगठन या समाज प्रत्येक के लिए बाध्यकारी होता है ।
· विधि लिखित और अलिखित दोनों हो सकता है ।
· विधि स्वतः अपने आप में नैतिक मूल्यो का सहिंताकरण है जोकि सामाजिक व्यवस्था को नियंत्रित करती है और सामाजिक व्यवस्था समाज में विद्यमान नैतिक व्यवस्था पर निर्भर होती है ।
· विधि नैतिकता को नियमित करती है और नैतिकता स्वतः विधि के द्वारा नियमित होती है ।
· कोई विधि सामाजिक स्वीकृति को तभी प्राप्त करती है जब वह सामाजिक नैतिक मूल्यो के अनुरूप हो । वैधानिकता और नैतिकता एक दूसरे पर परस्पर रूप से निर्भर हैं ।
· एक अच्छा नागरिक बनने हेतु विधि का अनुपालन किया जाना आवश्यक है। जबकि एक अच्छा मानव प्राणी बनने के लिए नैतिकता का अनुपालन किया जाना आवश्यक है ।
· एक अच्छा नागरिक सदैव अच्छा मानव हो या एक अच्छा मानव सदैव अच्छा नागरिक हो यह अनिवार्य नही है लेकिन इसकी संभावना अधिक है ।
· प्रत्येक विधि नैतिक मूल्यो का संहिताकरण है।
· अतः अच्छे नागरिक द्वारा विधि का पालन किया जाना स्वतः नैतिक मूल्यो के अनुपालन को भी दर्शाती है ।
· विधि कोई सुझाव या अनुशंसा नही बल्कि बाध्यकारी होती है ।
· जब विधि के द्वारा नैतिक दुबिधा के समाधान हेतु मार्गदर्शन संभव न हो तो व्यक्ति अंतरात्मा की ओर देखता है जो नैतिक मार्गदर्शन का आंतरिक स्त्रोत है ।
· अंतरात्मा कोई भावना या अनुभूति न होकर तार्किक चिंतन और विवेकशीलता पर आधारित है। अंतरात्मा मानव प्राणी का आधार है । अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह अंतरात्मा का अनुपालन करे ।
अतः लोक सेवको के द्वारा नैतिक दुबिधा के समाधान में विधि के साथ साथ अंतरात्मा का मार्गदर्शन अतिआवश्यक होता है । अंतरात्मा के मार्गदर्शन के लिए, अंतरात्मा को शिक्षित किया जाना और अधिक महत्वपूर्ण होता है क्योकि प्रशासन व प्रबंधन का आशय चीज़ों को उचित तरीके से किए जाने से है | अंतरात्मा का आधार विवेकशीलता है । महात्मा गांधी के अनुसार अंतरात्मा के न्यायालय से अपील का कोई अन्य उच्चतर न्यायालय नही है।
2021 Simplified Education Pvt. Ltd. All Rights Reserved