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SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 9 Model Answer Hindi

Updated : 17th Aug 2022
SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 9 Model Answer Hindi

Q1. राज्यों में विधान परिषदें खर्चीली  और अनावश्यक  विधायी उपांग हैं। इस संदर्भ में विधान परिषदों की उपयोगिता का परीक्षण कीजिए , साथ ही, उन्हें स्थापित करने और समाप्त करने के प्रक्रियात्मक पहलू पर टिप्पणी कीजिए ?

Legislative Councils in states are expensive and otherwise superfluous legislative appendages. Examine the utility of legislative councils in this context. Also, comment on the procedural aspect of setting up and abolishing them.   

दृष्टिकोण

  • विधान परिषदों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख करते हुए परिचय दें।
  • विधान परिषदों के गठन की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
  • विधान परिषदों के होने के महत्व और सीमाओं दोनों का उल्लेख कीजिए।
  • प्रतिनिधि लोकतंत्र के लिए दूसरा सदन किस प्रकार महत्वपूर्ण है, इसका उल्लेख करते हुए निष्कर्ष निकालिए।

उत्तर -

        विधान परिषद भारत के कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधायिकाओं में उच्च सदन है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 169 राज्य विधान परिषदों के निर्माण या उन्मूलन से संबंधित है।

राज्य विधान परिषद के स्थापित करने और समाप्त करने की प्रक्रिया:

         राज्य विधान परिषद के उन्मूलन और निर्माण की शक्ति अनुच्छेद 169 के अनुसार भारत की संसद में निहित है। राज्य विधान परिषद बनाने या समाप्त करने के लिए, राज्य विधान सभा को एक प्रस्ताव पारित करना होगा, जिसे सदन में उपस्थित और मतदान का 2/3 (पूर्ण + विशेष बहुमत)बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए

जब एक विधान परिषद बनाई या समाप्त की जाती है, तो भारत का संविधान में भी संशोधन होता है। हालाँकि, इस प्रकार के कानून को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन विधेयक नहीं माना जाता है। राज्य विधान परिषद बनाने और समाप्त करने के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की भी सहमति होनी चाहिए।

राज्य विधान परिषदों की प्रासंगिकता:

निर्णय लेने में विधान परिषदें निम्नलिखित भूमिका निभा रही हैं:

  • गिने-चुने राज्यों में ही विधान परिषदें हैं। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं।
  • विधान परिषदों के पास पर्याप्त शक्तियाँ नहीं हैं। उदाहरण के लिए: धन विधेयकों को पेश करने और पारित करने में उनकी नगण्य भूमिका होती है। वे इसमें केवल 14 दिनों की देरी कर सकते हैं।
  • साधारण विधेयक को पारित करने की अंतिम शक्ति भी विधान सभा के पास होती है।
  • परिषद केवल बजट पर चर्चा कर सकती है लेकिन अनुदान की मांगों पर मतदान नहीं कर सकती (जो कि विधानसभा का विशेष विशेषाधिकार है)।
  • संविधान संशोधन विधेयक के अनुसमर्थन में परिषद का कोई प्रभावी अधिकार नहीं है।
  • अंत में, परिषद का अस्तित्व विधानसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। विधानसभा की सिफारिश पर संसद द्वारा परिषद को समाप्त किया जा सकता है।

इसलिए, यह कहा जा सकता है कि विधान सभा की तुलना में विधान परिषद अधिक प्रासंगिक नहीं हैं।

  • हालांकि, विधान परिषद नियंत्रण और संतुलन के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।
  • यह विधान सभा को बहुत अधिक विधान या कार्यकारी अधिकार का प्रयोग करने से रोकता है।
  • एक द्विसदनीय विधायिका महत्वपूर्ण कानूनों और बजटों पर उचित विचार-विमर्श का अवसर प्रदान करती है जिसके लिए सावधानीपूर्वक प्रारूपण और पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है।
  • यह विविध प्रतिनिधित्व के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है, जो यकीनन चुनावी राजनीति की उथल-पुथल के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
  • विधान परिषद के पास ईमानदारी से काम करने, लाए गए प्रासंगिक संशोधन, विधानसभा के प्रति गैर-टकरावपूर्ण रवैया, कार्यवाही में शिष्टाचार और संयम और सार्वजनिक हित के मामलों में सरकार और जनता दोनों का ध्यान आकर्षित करने का ट्रैक रिकॉर्ड होता है।

          प्रतिनिधि लोकतंत्र में दूसरे सदन का होना महत्वपूर्ण है। अधिक सफल लोकतंत्र के लिए द्विसदनीयता वयस्क मताधिकार से परे दिखती है। इसलिए, विधान परिषदें विचार-विमर्श के एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करती हैं।

 

 


 Q2. समाज के सामूहिक या सामुदायिक प्रयास को प्रोत्साहित करने और लोगों को समाज के अधिकारों के प्रति सचेत करने मे जनहित याचिका की भूमिका को स्पष्ट कीजिये ? 

Explain the role of Public Interest Litigation in encouraging the collective or community effort of the society and making people aware of the rights of the society.

दृष्टिकोण -

       जनहित याचिका का उल्लेख करके उत्तर का परिचय दें।

       जनहित याचिका की भूमिका के बारे में बताएं।

       जनहित याचिका में मामलों की स्वीकृति का क्षेत्र बताएं।

       सकारात्मक आशा के साथ उत्तर समाप्त करें।

उत्तर -

       जनहित याचिका 1960 के दशक मे संयुक्त राज्य अमेरिका मे प्रारम्भ की गई थी । इसे भारत मे 1980 के दशक मे दशक में न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर और पी एन भगवती के प्रयासों से शुरू किया गया । जनहित याचिका के माध्यम से समाज का कोई भी व्यक्ति जनहित संबंधी मुद्दों पर न्यायपालिका में याचिका दायर कर सकता है और समाज या समुदाय के हित में न्यायपालिका को न्यायिक कार्य करने का निवेदन कर सकता है। 

     जनहित याचिका को सामाजिक क्रिया याचिका (Social action petition), सामाजिक हित याचिका (Social interest petition), तथा वर्गीय क्रिया याचिका (Class action petition) के रूप में भी जाना जाता है।        

जनहित याचिका के अंतर्गत विधि का शासन स्थापित करने, मौलिक अधिकारों की रक्षा करने एवं सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों को न्याय देने का दृष्टिकोण निहित है ।

 जनहित याचिका की भूमिका -

  • यह विधिक सहायता आंदोलन का (अनुच्छेद 39A) का यह एक रणनीतिक हिस्सा है ।
  • यह समाज के सामूहिक या सामुदायिक प्रयास को प्रोत्साहित करता है और लोगों को समाज के अधिकारों के प्रति सचेत करता है ।
  • जनहित याचिका का सिद्धांत अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 से संबंधित है ।
  • इसके माध्यम से न्यायपालिका को सकारात्मक दृष्टिकोण के तहत भूमिका का निर्वहन करना होता है।
  • पीआईएल गरीब और उपेक्षित जनता तक कानूनी सहायता पहुंचाने का एक मानवीय तरीका है। जिसमें जन आघात का निवारण करने, सार्वजनिक कर्तव्य का प्रवर्तन करने, सामूहिक अधिकारों एवं हितों के रक्षण के लिए न्यायालय में याचिका दाखिल किया जाता है।

जनहित याचिका के अंतर्गत सामान्यत: जनहित याचिका के रूप में स्वीकार की जाती है -

  • बंधुआ मजदूर या उपेक्षित बच्चे।
  • श्रमिकों का शोषण या श्रम कानूनों का उल्लंघन या न्यनतम मजदूरी का न मिलना । 
  • महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ याचिका (विशेषकर वधु-उत्पीड़न, दहेज-दहन, बलात्कार, हत्या, अपहरण इत्यादि जैसे मामलों में) ।
  • जेलों से दाखिल उत्पीड़न की शिकायत, समय से पहले मुक्ति के लिए तथा 14 वर्ष पूरा करने के पश्चात मुक्ति के लिए आवेदन, जेल में मृत्यु, स्थानांतरण, व्यक्तिगत मुचलके (Personal bonds) पर मुक्ति या रिहाई, मूल अधिकार के रूपों में त्वरित मुकदमा।
  • पुलिस द्वारा मामला दाखिल नहीं किए जाने संबंधी याचिका, पुलिस उत्पीड़न तथा पुलिस हिरासत में मृत्यु संबंधी मामला आदि ।
  • ग्रामीणों के सह-ग्रामीणों (Co-villagers) द्वारा उत्पीड़न, अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के पुलिस द्वारा उत्पीड़न की शिकायत संबंधी याचिकाएँ।
  • पर्यावरण एवं पारिस्थितिक संबंधी याचिकाएँ, औषधि, खाद्य पदार्थ में मिलावट संबंधी याचिकाएं, विरासत एवं संस्कृति, प्राचीन कलाकृति वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण तथा सार्वजनिक महत्व के अन्य मामलो से संबन्धित याचिकाएँ।
  • दंगा पीड़ितों की याचिकाएं और पारिवारिक पेंशन संबंधी याचिकाएं। 

सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा जनहित याचिका के दुरुपयोग को रोकने के लिए विशेष मार्गदर्शिका दायर की गयी , जिसके अनुसार –

·       उचित एवं वास्तविक जनहित याचिका को प्रोत्साहित करना और अन्यों को प्रभावशाली तरीके से हतोत्साहित करना।

·       न्यायपालिका द्वारा याचिकाकर्ताओं की पहचान और उसकी साख सुनिश्चित तथा स्थापित की जाए।

·       न्यायपालिका के द्वारा याचिका की तथ्यात्मक सत्यता स्थापित की जाए और यदि यह समाज हित में महत्वपूर्ण है तो अविलंबनीय सुनवाई हो , इस पर विचार किया जाए।

·       यदि परोक्ष या किसी अन्य वाह्य संकुचित उद्देश्य से जनहित याचिका लायी गयी है तो उदाहरण स्थापित करने योग्य, दंड याचिकाकर्ता को दिया जाए का प्रावधान किया गया है ।

        एक जनहित याचिका विशेष रूप से उन लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण न्यायिक उपकरण है जो खुद अदालतों से संपर्क करने में असमर्थ हैं। वे याचिका के सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले रूपों में से एक हैं, खासकर पर्यावरणीय मामलों में। अदालतों ने जनहित याचिकाओं के संबंध में नियमों को सरल बनाने की कोशिश की है ताकि जनहित में और व्यक्तियों के गरीब, विकलांग या वंचित वर्गों की ओर से जनहित याचिकाएं दायर करने को हतोत्साहित न किया जा सके।