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SHIKHAR Mains 2023, Day 12 Model Answer Hindi

Updated : 20th Jun 2023
SHIKHAR Mains 2023, Day 12 Model Answer Hindi

Q1. आर्थिक विकास एवं समावेशी विकास में अंतर स्पष्ट करते हुए समावेशी विकास के विभिन्न घटकों का उल्लेख कीजिये|

Explaining the difference between economic development and inclusive development, discuss the various components of inclusive development. 8 Marks

 

दृष्टिकोण  -

·       प्रश्न के प्रथम भाग में आर्थिक विकास व समावेशी विकास को परिभाषित करते हुए  अवधारणा को स्पस्थ कीजिये।      

·       द्वितीय भाग में इनके बीच अंतर स्थापित कीजिये। 

·       निष्कर्ष में दोनों के संबंध की चर्चा कर सकते हैं। 

उत्तर

                      किसी देश के द्वारा अपनी वास्तविक आय को बढ़ाने के लिए सभी उत्पादक साधनों का कुशलतम प्रयोग आर्थिक विकास कहलाता है। यह एक लगातार या निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें साधनों की पूर्ति एवं वस्तु संबंधी मांग समय-समय पर बदलती रहती है। आर्थिक विकास में सामान्य जनता के जीवन-स्तर में सुधार होता है तथा सरकार द्वारा कल्याणकारी कार्यों में वृद्धि की जाती है। आर्थिक विकास से वास्तविक राष्ट्रीय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। 

          समावेशी विकास: समान अवसरों के साथ विकास करना ही समावेशी विकास है। दूसरे शब्दों में ऐसा विकास जो न केवल नए आर्थिक अवसरों को पैदा करे, बल्कि समाज के सभी वर्गो के लिए सृजित अवसरों की समान पहुंच को भी सुनिश्चित करे, उस विकास को हम समावेशी विकास कह सकते हैं। यह समाज के सभी सदस्यों की इसमें भागीदारी और योगदान को सुनिश्चित करता है। विकास की इस प्रक्रिया का आधार समानता है। जिसमें लोगों की परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा जाता है।

आर्थिक विकास एवं समावेशी विकास में अंतर:

1.     आर्थिक विकास मुख्य रूप में आर्थिक वृद्धि द्वारा जनता के विकास की आकांक्षा की जाती है। जबकि समावेशी विकास, आर्थिक वृद्धि हेतु अवसरों के सृजन को भी प्रोत्साहित करता है। 

2.     समावेशी विकास समाज के सभी वर्गों को लक्षित करता है। जबकि आर्थिक विकास विशेष रूप से लक्षित नहीं करता है। 

3.     आर्थिक विकास का आधार आर्थिक संवृद्धि है जबकि समावेशी विकास का आधार समानता है। 

4.     आर्थिक विकास में लोगों की परिस्थितियों का ध्यान नहीं रखा जाता है जबकि समावेशी विकास में लोगों की परिस्थितियों का ध्यान रखा जाता है। 

5.     आर्थिक विकास समावेशी विकास को सुनिश्चित नहीं करता है।

6.     आर्थिक विकास यदि आय असमानता को उत्पन्न करता है तो समावेशी विकास दुर्लभ हो जाता है। 

7.     किसी देश के दीर्घकालिक विकास के लिए समावेशी विकास आवश्यक होता है। 

 

 

भारत जैसे विकासशील देश में दोनों की अपेक्षा की जाती है। आर्थिक विकास को समावेशी विकास के रूप में स्थापित करके जनता के कल्याण के साथ साथ देश का दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।

 

 

 

Q2: भारत के संदर्भ में, बेरोजगारी के कारणों की चर्चा करते हुए इसे कम करने हेतु किये जा सकने वाले उपायों का उल्लेख कीजिये।   12 marks

In the context of India, while discussing the causes of unemployment, mention the measures that can be taken to reduce it.

 

दृष्टिकोण:

·       बेरोजगारी को परिभाषित करते हुए, बेरोजगारी के प्रकारों के बारे में संक्षिप्तता से बताते हुए उत्तर का प्रारम्भ कीजिये|

·       पहले भाग में, भारत में बेरोजगारी के कारणों के बारे में चर्चा कीजिये|

·       दूसरे भाग में, बेरोजगारी दूर करने की महता बताते हुए, भारत में बेरोजगारी कम करने हेतु किये जा सकने वाले उपायों को बताईये|

·       निष्कर्षतः, सरकारी प्रयासों का संक्षिप्तता से जिक्र कीजिये|

 

उत्तर:

 

बेरोजगारी वह अवस्था है जिसमे व्यक्ति वर्तमान मजदूरी पर कार्य करने को तैयार है, परन्तु कार्य के अभाव में वह बिना कार्य के रह जाता है| बेरोजगारी की गणना करते समय केवल उन्ही व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जो कार्य करने योग्य हैं ,कार्य करने के इच्छुक हैं तथा वर्तमान मजदूरी पर कार्य करने को तैयार हैं| विभिन्न कारकों के अनुसार बेरोजगारी को ऐच्छिक, अनैच्छिक, संरचनात्मक, प्रच्छन्न, मौसमी, चक्रीय आदि प्रकारों में बाँटा जाता है|

 

भारत में बेरोजगारी तथा उसके कारण-

 

राष्ट्रीय पतिदर्श सर्वेक्षण संगठन तथा रोजगार कार्यालयों के हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेरोजगारी बढ़ी है| हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी रोजगार से वंचित है तथा इस वजह से गरीबी के दुष्चक्र में फंसा हुआ है| इस संदर्भ में, भारत में बेरोजगारी के निम्न कारण गिनाए जा सकते हैं -



·       भारत में गरीबी का सबसे बड़ा कारण भारत की विशाल जनसँख्या है| अधिक जनदबाव के कारण सभी लोगों को रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाता है|

·       हमारी जनसँख्या का बड़ा हिस्सा आज भी कृषि पर निर्भर है| कृषि जीवन निर्वाह का साधन तो है परन्तु इसपर निर्भर जनसँख्या के बड़े हिस्से के कारण यह प्रच्छन्न बेरोजगारी को जन्म देता है|

·       सीमित भूमि तथा भूमी के विखंडन के कारण उत्पन प्रछन्न बेरोजगारी|

·       कृषि के पिछड़े तरीके की वजह से उत्पादन के सापेक्ष श्रमबल की उपलब्धता ज्यादा है जिससे कृषि से बेहतर आय का सृजन नहीं हो पाता है

·       आधुनिक तकनीक के प्रभाव के चलते कुटीर उद्योगों में गिरावट आई है जिससे उसपर निर्भर जनसँख्या बेरोजगारी के दुष्चक्र में फंसती जा रही है

·       दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली से हम उद्योगों हेतु कुशल तथा प्रशिक्षित श्रमबल तैयार नहीं कर पा रहे हैं| भारत के शिक्षित युवा वर्ग में बढती बेरोजगारी हेतु यह प्रमुख उतरदायी कारक है| भारत में अधिकांश स्नातक कोई भी आधुनिक रोजगार प्राप्त करने हेतु आवश्यक व्यावहारिक योग्यता नहीं रखते हैं|

·       अपर्याप्त रोजगार योजनाओं की वजह से भी शिक्षित वर्ग रोजगार प्राप्ति से वंचित हो जाता है|

·       विनिर्माण क्षेत्र में अपर्याप्त विकास और कम निवेश द्वितीयक क्षेत्र की रोजगार क्षमता को सीमित करता है।

·       आवश्यक शिक्षा/कौशल की कमी के कारण अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ा विशाल कार्यबल;

·       छोटे/कुटीर उद्योगों या छोटे व्यवसायों के लिए अपर्याप्त राज्य समर्थन, कानूनी जटिलताएं और कम अवसंरचनात्मक एवं वितीय प्रोत्साहन|

·       लैंगिक भेदभाव तथा प्रतिगामी सामाजिक मानदंड जो महिलाओं को रोजगार लेने/जारी रखने से रोकते हैं।

·       सरकारी योजनाओं/प्रयासों/नीतियों के उचित कार्यान्वयन का अभाव|

 

भारत में बेरोजगारी कम करने हेतु किये जा सकने वाले उपाय-

 

बेरोजगारी की वजह से गरीबी तथा सामजिक असमानता में बढ़ोतरी होती है| अवैध तथा असामाजिक गतिविधियों में बेरोजगार जनसंख्या के लिप्त होने की संभावना बढ़ जाती है जिससे कानून एवं व्यवस्था पर गंभीर खतरे उत्पन हो सकते हैं| साथ ही, संभावित श्रमबल के अनुत्पादक होने की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| अतः, सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तिकरण एवं संधारणीय विकास हेतु बेरोजगारी कम करना अतिआवश्यक है| इस संदर्भ में, भारत में बेरोजगारी दूर करने हेतु निम्नलिखित प्रयास किये जा सकते हैं-



·       श्रम गहन क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान;

·       संरचनात्मक बेरोजगारी की समस्या से निपटने हेतु शिक्षा प्रणाली में सुधार ;

·       जनसंख्या नियंत्रण ;

·       दूरदराज के क्षेत्रों तक सामाजिक सेवाओं का विस्तार ताकि पिछड़े क्षेत्रों में भी विकास प्रक्रिया शुरू हो सके;

·       स्वरोजगार प्रोत्साहन ;

·       लघु तथा कुटीर उद्योगों को बढ़ावा ;

·       ग्रामीण विकास तथा रोजगार सृजन योजनाओं का सही क्रियान्वयन ;

·       विनिर्माण क्षेत्र में निवेश प्रोत्साहन के उपाय ;

·       खाद्य-प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों पर ज्यादा जोर ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान हो ;

 

सरकार द्वारा इस संदर्भ में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में अनेको नीतियाँ लायी गयी हैं| मनरेगा, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों के द्वारा बेरोजगारी के मूल कारणों को पहचानकर उसे दूर करने हेतु प्रयास किये जा रहे हैं|