Q1: प्राचीन भारत में "प्रयागराज "के सांस्कृतिक महत्व का वर्णन कीजिए? 8 Marks
Describe the cultural significance of 'Prayagraj' in ancient India.
दृष्टिकोण:
उत्तर:
प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्व रखता है। यहां प्रयागराज से जुड़े कुछ सांस्कृतिक पहलू और योगदान दिए गए हैं:
धार्मिक महत्व: प्रयागराज को "संगम शहर" के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह तीन पवित्र नदियों: गंगा, यमुना और सरस्वती (माना जाता है कि यह एक भूमिगत नदी है) के संगम पर स्थित है। संगम को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। यह शहर कुंभ मेले का आयोजन करता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में होता है और लाखों भक्तों को आकर्षित करता है।
ऐतिहासिक महत्व: प्रयागराज की एक समृद्ध ऐतिहासिक विरासत है। यह कुरु वंश और मौर्य साम्राज्य सहित प्राचीन साम्राज्यों से जुड़ा हुआ है। यह शहर सदियों से सांस्कृतिक, राजनीतिक और प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र रहा है।
त्रिवेणी संगम: प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां हिंदू पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन (समुद्र मंथन) के दौरान अमृत की बूंदें गिरी थीं। तीर्थयात्री अपने पापों को शुद्ध करने और आध्यात्मिक आशीर्वाद पाने के लिए त्रिवेणी संगम पर अनुष्ठानिक स्नान करते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और त्यौहार: प्रयागराज विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और त्यौहारों की मेजबानी करता है जो क्षेत्र की जीवंत विरासत को प्रदर्शित करते हैं। कुंभ मेले के अलावा, शहर मकर संक्रांति, नवरात्रि और दिवाली जैसे त्योहारों को भी बड़े उत्साह के साथ मनाता है। इन आयोजनों में सांस्कृतिक प्रदर्शन, संगीत समारोह और धार्मिक जुलूस शामिल हैं।
शैक्षिक और बौद्धिक केंद्र: प्रयागराज सदियों से शिक्षा और ज्ञान का केंद्र रहा है। इसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान और कई प्रसिद्ध स्कूल और कॉलेज हैं। शहर ने कई विद्वानों, कवियों, लेखकों और विचारकों को जन्म दिया है जिन्होंने भारत के बौद्धिक और सांस्कृतिक ढांचे में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
साहित्यिक और कलात्मक विरासत: प्रयागराज साहित्यिक और कलात्मक प्रतिभाओं का पोषण क्षेत्र रहा है। इसने महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन और सुमित्रानंदन पंत सहित प्रसिद्ध कवियों और लेखकों को जन्म दिया है। शहर ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रदर्शनों की मेजबानी करता है।
कुल मिलाकर, प्रयागराज का सांस्कृतिक महत्व इसकी धार्मिक विरासत, ऐतिहासिक महत्व, जीवंत त्योहारों, बौद्धिक योगदान और साहित्यिक विरासत में निहित है, जो इसे भारत में महान सांस्कृतिक महत्व का शहर बनाता है।
Mentioning the nature of architecture of Uttar Pradesh, give a brief introduction about its development.
दृष्टिकोण
भूमिका में उत्तर प्रदेश की स्थापत्य कला की प्रकृति को लिखिए
विभिन्न कालों में स्थापत्य कला के विकास को लिखिए
अंत में उचित निष्कर्ष दीजिए ।
उत्तर -
उत्तर प्रदेश भौगोलिक दृष्टि से विस्तृत होने के साथ साथ कला और संस्कृति की दृष्टि से भी समृद्ध रहा है ।उत्तर प्रदेश विभिन्न कालों में सभ्यता के विकास के साथ साथ कलाओं के स्वरूप में परिवर्तन होता गया । उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक परिधि के अंतर्गत अवध, ब्रज, भोजपुरी, बुंदेलखंड आदि जैसे क्षेत्र आते हैं।जहां लोक और शास्त्र गंगा जमुनी के परिधि मे दिखाई देती है । राज्य सरकार ने राज्य की पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं कलात्मक गतिविधि के संरक्षण, प्रदर्शन, प्रणालीकरण आदि के लिए वर्ष 1957 में सांस्कृतिक विभाग की स्थापना की थी।
उत्तर प्रदेश के स्थापत्य कला में लोक जीवन से जुड़ी हुई स्थापत्य के अवशेष मिलते है ।एक ओर मंदिरो , मस्जिदों , गिरजाघरो , बौद्ध विहार व स्तूपों आदि के निर्माण में स्थापत्य कलाओं के धार्मिक रूप दिखाई देते है तो दूसरी ओर स्तंभो , शिलालेखों आदि पर धर्मनिरपेक्षता के तत्व भी दिखाई देते है ।
कानपुर जिले के भितरगांव में देवगढ़ (झांसी) का पत्थर मंदिर और ईंट मंदिर अपने कलात्मक पैनलों के लिए प्रसिद्ध है।
प्राचीन कला और शिल्प के कुछ अन्य नमूने हैं विष्णु चित्र, मथुरा में बुद्ध की (खड़ी) मूर्ति और सारनाथ संग्रहालय में तथागत की बैठी हुई छवि।
कला के मथुरा और सारनाथ दोनों स्कूल गुप्त काल के दौरान अपने चरम पर पहुंच गए।
लालित्य और संतुलन इस काल की स्थापत्य कला की विशेषताएँ थीं
उत्तर प्रदेश ने इस अवधि के दौरान प्रतीकात्मक रूपों और सजावटी उद्देश्यों में अभूतपूर्व प्रगति देखी। राजघाट (वाराणसी), सहेत-महेत (गोंडा-बहराईच), भितरगांव (कानपुर) और अहिछत्र (बरेली) में भी न केवल पत्थर बल्कि टेराकोटा से बनी कलात्मक मूर्तियों के कुछ उत्कृष्ट नमूने पाए गए हैं।
मुगल काल के दौरान वास्तुकला की मिश्रित भारतीय और मुस्लिम शैली अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई। संगमरमर में स्वप्न के रूप में वर्णित ताजमहल इस शैली का जीता-जागता उदाहरण है।
इस अवधि के दौरान असंख्य किले और स्थान, मस्जिद और मकबरे और स्नानागार और तालाबों का निर्माण किया गया, जो अपनी बोल्ड, सुशोभित और भव्य शैली के लिए जाने जाते हैं।
अकबर द्वारा निर्मित स्थापत्य -आगरा का किला ,फतेहपुर सीकरी में निर्मित विभिन्न स्थापत्य आदि । अकबर के निर्माण में मुगल काल के पूर्व की शाही शैली तथा गुजरात, मालवा, और चंदेरी की आंचलिक शैलियों का संयोजन है।
अंग्रेजों द्वारा निर्मित विभिन्न स्थापत्य - चर्च स्थापत्य , इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, चारबाग रेलवे स्टेशन आदि ।
राज्य ने धार्मिक निर्माणों यानी मंदिरों, मस्जिदों आदि के निर्माण में रुचि दिखाना बंद कर दिया, लेकिन स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालयों आदि जैसे धर्मनिरपेक्ष भवनों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया गया। ये इमारतें पारंपरिक निर्माण गतिविधि में आमूलचूल परिवर्तन का प्रतीक हैं। प्रकृति में उपयोगितावादी होने और सभी वास्तुशिल्प ढोंगों से रहित होने के कारण, उन्होंने वास्तव में उत्तर प्रदेश में वास्तुकला के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की है।
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