Q1: भारत में सहकारिता सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों की ध्वजवाहक हो सकती है। संवैधानिक प्रावधानों और संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये|
Cooperatives in India can be flag bearer of social and economic changes. Discuss the constitutional provisions and associated challenges. (12 Marks)
दृष्टिकोण:
संक्षेप में भारत के संदर्भ में सहकारिता के महत्व के साथ प्रारंभ करें।
कई क्षेत्रों के उदाहरण के साथ उल्लेख करें कि सहकारी समितियां सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के ध्वजवाहक कैसे हैं।
भारत में सहकारी समितियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
भारत में सहकारिता के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ।
इन चुनौतियों को समग्र रूप से कैसे संबोधित किया जा सकता है, इस दृष्टिकोण के साथ उपयुक्त रूप से निष्कर्ष निकालें।
उत्तर:
भारत में मूल रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है, जिसकी कुल जनसंख्या का 72% ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। ग्रामीण लोगों को दैनिक जीवन में बहुत सी सेवाओं की आवश्यकता होती है जो ग्राम सहकारी समितियों द्वारा पूरी की जाती हैं। ग्रामीण सहकारी समितियां कृषि क्षेत्र के लिए रणनीतिक इनपुट प्रदान करती हैं, उपभोक्ता समितियां रियायती दरों पर अपनी खपत आवश्यकताओं को पूरा करती हैं; विपणन समितियाँ किसान को लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में मदद करती हैं और सहकारी प्रसंस्करण इकाइयाँ कच्चे उत्पादों आदि के मूल्यवर्धन में मदद करती हैं।
भारत में सहकारिता का योगदान:
उर्वरक उत्पादन और वितरण में भारतीय किसान उर्वरक सहकारी (इफको) का बाजार में 35 प्रतिशत से अधिक का कब्जा है।
चीनी के उत्पादन में, बाजार की सहकारी हिस्सेदारी 58 प्रतिशत से अधिक है और कपास के विपणन और वितरण में लगभग 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। हाथ से बुनने वाले क्षेत्र में करघे में सहकारी क्षेत्र की हिस्सेदारी 55 प्रतिशत है।
सहकारी समितियां 50 प्रतिशत खाद्य तेलों का प्रसंस्करण, विपणन और वितरण करती हैं।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के नेतृत्व में और 15 राज्य सहकारी दुग्ध-विपणन संघों के माध्यम से संचालित डेयरी सहकारी समितियां अब दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन गई हैं।
इसके प्रमुख महत्व को ध्यान में रखते हुए, भारत में सहकारी समितियों से संबंधित निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:
अनुच्छेद 43B:
DPSP (भाग IV) सहकारी समितियों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011:
यह सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और सुरक्षा प्रदान करता है।
भाग IXA के ठीक बाद भारत में सहकारी कार्य के लिए भाग IXB जोड़ा गया।
संविधान के भाग III के तहत अनुच्छेद 19(1)(c) :
सहकारिता शब्द जोड़ा गया।
सहकारी समितियां बनाने का अधिकार, 'नागरिकों को सहकारी समितियां बनाने में सक्षम बनाना।
7वीं अनुसूची के तहत राज्य सूची में सहकारी समितियों का उल्लेख।
अनेक प्रावधानों की उपलब्धता के बावजूद, भारतीय संदर्भ में सहकारिता आंदोलन की विफलता के कई कारण हैं। य़े हैं:
फंड और संसाधनों की कमी: सहकारी समितियों के पास संसाधन की कमी होती है क्योंकि उनके स्वामित्व वाले फंड शायद ही कार्यशील पूंजी का एक बड़ा पोर्टफोलियो बनाते हैं।
मांग-आपूर्ति बेमेल: सहकारी समितियाँ कृषि ऋण की समस्या को "आपूर्ति" के दृष्टिकोण से देखती रही हैं। "मांग" पहलू की उपेक्षा की जाती है।
स्थानीय मूल का अभाव: भारत में सहकारी आंदोलन में इस अर्थ में सहजता का अभाव है कि यह स्वयं लोगों से नहीं निकला है। वे आमतौर पर अपने हिसाब से सहकारी समितियों को संगठित करने के लिए आगे नहीं आते हैं।
विविधीकरण का अभाव: प्राथमिक कृषि सहकारी समितियाँ केवल ऋण का वितरण कर रही हैं और अभी तक वास्तविक बहुउद्देशीय संस्थाओं के रूप में नहीं उभरी हैं।
समन्वय का अभाव: किसी भी संगठन की सफलता के लिए समन्वय सबसे महत्वपूर्ण है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमूल है जो समन्वय के कारण सबसे अच्छा काम करता है। पूरे देश में इसकी कमी है।
निहित स्वार्थ: सहकारी समितियों के हितों के साथ व्यक्तिगत हितों का टकराव अब यह सहकारी समितियों के प्रदर्शन को प्रभावित करता है।
क्षेत्रीय असमानताएँ: पूर्वोत्तर, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा जैसे सुदूर क्षेत्रों में सहकारी समितियाँ उतनी विकसित नहीं हैं जितनी कि महाराष्ट्र और गुजरात में। इस घर्षण के कारण सहकारिता का कार्य प्रभावित होता है।
राजनीतिक हस्तक्षेप: राजनेता चीनी सहकारी समितियों को अपनी निजी संपत्ति के रूप में उपयोग करते हैं और साथ ही वे इसका उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए भी करते हैं।
सहकारिता के नए मंत्रालय को बहु-राज्य सहकारी समितियों (एमएससीएस) को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार की देखरेख करनी है। सामूहिक कार्रवाई के मूल सिद्धांतों में से एक यह है कि लोगों को तीसरे पक्ष द्वारा प्रभावित या कब्जा किए बिना खेल के नियमों को तय करने देना है। सुझावों में से एक यह है कि भारत में संचालित सहकारी विपणन समितियों की सदस्यता प्रोफ़ाइल में सीमांत और छोटे किसानों का उच्च प्रतिनिधित्व होना चाहिए। समय की मांग है कि इस समस्या को दूर किया जाए और किसान सदस्यों को अधिक से अधिक सुविधाएं दी जाएं।
Q2: भारत मे पर्याप्त खाद्य उत्पादन के बावजूद कुपोषण की उपस्थिति एक विरोधभाषी चरित्र को दर्शाती है । इस कथन के संदर्भ मे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन के औचित्य पर प्रकाश डालिए?
In spite of adequate food production in India, the presence of malnutrition shows a contradictory character. Throw light on the rationale of Prime Minister's National Nutrition Mission in the context of this statement?
दृष्टिकोण -
भूमिका में भारतीय खाद्य उत्पादन और कुपोषण की स्थित का उल्लेख कीजिये ।
राष्ट्रीय पोषण मिशन के बारे में लिखिए ।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन का औचित्य को लिखते हुए उचित निष्कर्ष लिखिए ।
उत्तर -
भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020 में, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 296.65 मिलियन टन दर्ज किया गया था, जो कि वित्त वर्ष 19 में 285.21 मिलियन टन की तुलना में 11.44 मिलियन टन अधिक था।फिर भी वर्ष 2017 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 51 प्रतिशत महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं। भारत में कुपोषण एक अत्यंत जटिल मुद्दा है, आँकड़ों के अनुसार भारत की तकरीबन एक तिहाई जनसंख्या कुपोषण का सामना कर रही है, वहीं लगभग 40 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त मात्रा में भोजन भी प्राप्त नहीं हो पाता।
सामाजिक बुनियादी सुविधाओ तक लोगो की पहुँच तथा उत्पादित खाद्यानों तक सीमित पहुँच के कारण कुपोषण की समस्या बनी हुई है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन;
इस योजना की सहायता से भारत सरकार देश के बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को पोषण युक्त भोजन प्रदान करने का प्रस्ताव किया है।जिससे भारत के बच्चों एवं महिलाओं को कुपोषण का शिकार होने से बचाया जा सके।
इसमे केंद्र ,राज्य व आईबीआरडी /एम बी डी के सहयोग से आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से संचालित किया जाएगा ।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन का औचित्य;
देश से कुपोषण जैसी महामारी को समाप्त करना ही इस योजना का मुख्य उद्देंश्य हैं।
तीन वर्ष के बच्चों को ऑंगनवाडी के तहत संतुलित भोजन की प्राप्ति होगी ।
गर्भवती महिलाओं को संतुलित भोजन प्रदान कर कुपोषण से बचाव होगा तथा साथ ही मां से होने वाले बच्चें क भी स्वस्थ होंगे।
इसके तहत लगभग 10 करोड बच्चों व महिलाओं को लाभ होगा।
कम वजन के बच्चों की संख्या को पहले चरण में 2 प्रतिशत कम करने के लक्ष्य की प्राप्ति होगी ।
भारत में खून की कमी होने (एनीमिया) का शिकार होने वाले बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। इस मिशन की मदद से खून की कमी वाली समस्या से भी निपटा जाएगा। मिशन के माध्यम से एनीमिया से पीड़ित बच्चों एवं महिलाओं की संख्या में 3 प्रतिशत की कमी लायी जाएगी।
2022 तक स्टंटिग रेट को 4% से 25% तक लाने की लक्ष्य की प्राप्ति होगी ।
इस मिशन को लागू करने के लिए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा, जो आंगनवाड़ी में काम करने वालों की मदद करेगी। सरकार इस योजना को स्मार्ट फोन से भी लिंक करेगी, जिससे कर्मचारियों को इस योजना का सञ्चालन में और भी आसानी हो सके। इससे न सिर्फ कुपोषण की समस्या का समाधान सुनिश्चित होगा बल्कि लैंगिक विभेद को समाप्त कर समवेशी विकास , सामाजिक न्याय और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने मे मदद मिलेगी ।
2021 Simplified Education Pvt. Ltd. All Rights Reserved