DAY 1 Model Answer
Q1. प्राचीन भारत में स्तूप स्थापत्य कला अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस कथन के आलोक में स्तूप स्थापत्य के विकास का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
Stupa architecture holds its own special place in ancient India. In the light of this statement Briefly describe the development of stupa architecture.
दृष्टिकोण
- भूमिका में स्तूप स्थापत्य एवं उसके विकास के बारे में सूचनाएं दीजिये|
- मुख्य भाग में स्तूप स्थापत्य के विकास का वर्णन कीजिये|
- अंतिम में महान विरासत के रूप में महत्त्व स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिये|
उत्तर -
प्राचीन भारतीय स्थापत्य के अध्ययन के सन्दर्भ में स्तूप स्थापत्य का महत्वपूर्ण स्थान है| स्तूप बुद्ध के शारीरिक अवशेषों एवं प्रयोग में लायी गयी वस्तुओं पर निर्मित अर्धगोलाकार ढाँचे हैं,इन्हें बुद्ध के महापरिनिर्वाण का प्रतीक माना जाता है| अर्धगोलाकार ढाँचे के उपर बने बॉक्स को हर्मिका कहा जाता है इस पर छत्र लगा होता है| हर्मिका को पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि इसी में बुद्ध के अवशेष होते हैं| स्तूप के आधार तल को मेढ़ी कहते हैं इसी पर स्तूप बना होता है| स्तूप के प्रवेश द्वार को तोरण कहा जाता है जबकि स्तूप के चारों तरफ बनी चार दीवारी को वेदिका कहते हैं| इसके चारों ओर प्रदक्षिणापथ का निर्माण किया गया होता है| स्तूपों का चार प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है यथा शारीरिक स्तूप, ये बुद्ध के शारीरिक अवशेषों पर निर्मित किये गए हैं; पारीभौगिक स्तूप बुद्ध द्वारा उपयोग में लायी गयी वस्तुओं पर पर निर्मित हुए हैं जबकि उद्देशिक स्तूप जीवन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण स्थलों पर बनाए गए हैं एवं पूजार्थक/संकल्पित स्तूप, बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा पूजा के उद्देश्य से बनाए जाते हैं| भारत में स्तूप स्थापत्य का विकास क्रमिक रूप से हुआ है|
मौर्यकाल में स्तूप स्थापत्य
- बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके शारीरिक अवशेषों पर 8 स्तूपों का निर्माण किया गया था, हालांकि पुरातात्विक साक्ष्य नही मिलते है
- बौद्ध ग्रंथों से यह जानकारी मिलती है की अशोक ने 84 हजार स्तूपों का निर्माण करवाया था, हालांकि इसे किवदंती माना जाता है,
- फिर भी मौर्यकालीन कुछ स्तूपों के साक्ष्य बोधगया, सारनाथ, तक्षशिला, साँची गया आदि से मिले हैं
- अशोक कालीन स्तूपों में स्तूप स्थापत्य से सम्बन्धित सभी विशेषताएं दिखाई पड़ती हैं,
- मौर्य कालीन स्तूपों के तोरण एवं वेदिका में लकड़ी का प्रयोग किया गया था तथा स्तूपों के निर्माण में ईंटों का प्रयोग किया गया था|
- बड़ी संख्या में स्तूपों का निर्माण न केवल समकालीन समाज में बौद्ध धर्म कि लोकप्रियता बल्कि राजकीय संरक्षण का भी प्रमाण देते हैं|

मौर्योत्तर काल में स्तूप स्थापत्य
- मौर्योत्तर काल में ब्राह्मण धर्म के संरक्षक होने के बावजूद शुंग शासकों के संरक्षण में साँची, सारनाथ, भरहुत आदि स्थलों पर नए स्तूपों का निर्माण तथा कुछ अशोककालीन स्तूपों का पुनरोद्धार भी;
- मौर्य कालीन स्तूप स्थापत्य के विपरीत शुंग कालीन स्तूपों के तोरण एवं रेलिंग में लकड़ी के स्थान पर पत्थरों का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा
- शुंग कालीन स्तूपों पर बुद्ध की जीवन की घटनाओं को प्रतीक (यहाँ बुद्ध की मूर्तियाँ नहीं बनीं ) के माध्यम से स्पष्ट किया गया था,
- कुषाण शासकों द्वारा पेशावर, तक्षशिला तथा चारसद्दा आदि में विशाल स्तूपों का निर्माण किया गया
- कुषाण कालीन स्तूपों में अलंकरण पर अत्यधिक बल दिया गया है
- शुंग कालीन स्तूपों से लग कुषाण कालीन स्तूपों पर प्रतीक के साथ-साथ बुद्ध एवं बोधिसत्व के मूर्तियों के साक्ष्य भी मिलने लगते हैं|
- इसी तरह सातवाहन शासकों ने अमरावती, नागार्जुनीकोंडा में स्तूपों का निर्माण करवाया था
- सातवाहन युगीन स्तूपों के निर्माण में संगमरमर का भी प्रयोग इस काल की प्रमुख विशेषता है;
- सातवाहन युगीन स्तूप स्थापत्य पर हीनयान एवं महायान दोनों का प्रभाव दिखाई देता है
गुप्तकालीन स्तूप स्थापत्य
- गुप्त शासकों के समय भी स्तूप निर्माण की परम्परा जारी रही| सारनाथ एवं राज्ग्रह में गुप्तकालीन स्तूपों के साक्ष्य मिलते हैं| हालांकि इस काल में तुलनात्मक रूप से स्तूपों की संख्या कम दिखाई देती है|
- स्तूपों की निर्माण शैली में भी गिरावट के संकेत दिखने लगते हैं जैसे चबूतरों की उंचाई कम, पक्की ईटों का प्रयोग आदि| गुप्तों के पश्चात स्तूप स्थापत्य के विकास के साक्ष्य प्रायः नहीं मिलते हैं|
- वस्तुतः ब्राहमण धर्म के उत्थान के कारण गुप्तकाल से मंदिर स्थापत्य पर बल दिया जाने लगा था अतः स्तूप स्थापत्य का पूर्ववत विकास नहीं हो पाया|
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारत में स्तूप स्थापत्य का क्रमिक रूप से विकास हुआ| स्तूप स्थापत्य का चरमोत्कर्ष मौर्योत्तर काल में दिखाई देता है| प्राचीन भारतीय संस्कृति की विरासत होने के कारण भारतीय स्थापत्य के अध्ययन में स्तूपों का स्थान महत्वपूर्ण है|
Q2: क्रांतिकारी गतिविधियाँ कभी स्थिर नहीं रहीं बल्कि कुछ चरणों के दौरान चरम पर रहीं। इस संदर्भ में, क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि के कारण सहित इन चरणों पर प्रकाश डालिए। (12 Marks)
Revolutionary activities were never constant but peaked during certain phases. In this context, throw light on these phases along with the reasons for the rise in revolutionary activities. (12 Marks)
दृष्टिकोण:
- भूमिका में, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत की संक्षेप में पृष्ठभूमि दीजिये|
- साथ ही, क्रांतिकारी गतिविधियों के विभिन्न चरणों के साथ-साथ इसके उदय के कारणों की सूची बनाते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिये|
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उत्तर को समाप्त कीजिये|
उत्तर:
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रारंभ महाराष्ट्र से माना जाता है। जहां 1896-97 में चापेकर बंधुओ द्वारा पूना में प्रथम क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की गई। इन्ही के द्वारा रैण्ड और एमहर्स्ट नामक दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की गयी। क्रांतिकारियो के द्वारा हिंसात्मक गतिविधियों जैसे बम और पिस्तौल ,विदेशी अधिकारियों की हत्या, शस्त्रागारों पर आक्रमण और डकैती आदि के माध्यम से राजनीतिक परिवर्तन तथा स्वतंत्रता के लक्ष्य प्राप्त करना था ।
क्रांतिकारी गतिविधियों का पहला चरण .(1905-1917) नरमपंथियों के उदारवादी संघर्ष की रणनीति से मोहभंग और बंगाल विभाजन आंदोलन का परिणाम था जबकि क्रांतिकारी आंदोलन का दूसरा चरण (1920 का दशक) 1920 के दशक के दौरान असहयोग आंदोलन के वापसी के बाद उपजे मोहभंग से शुरू हुआ ।
प्रथम चरण (1905-1917) में क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के निम्नलिखित कारण थे:
- औपनिवेशिक चरित्र की पहचान- सरकार द्वारा राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने के लिए 1907 और 1908 में कई दमनात्मक कानून पास किए गए तथा प्रेस पर प्रतिबंध ,सभाओं और जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया गया । साथ ही, वर्ष 1890 की आर्थिक कठिनाइयों और अकालों ने ब्रिटिश शासन की शोषक प्रकृति को उजागर किया।
- आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास में वृद्धि- स्वदेशी आंदोलन के दौरान आत्मशक्ति की अवधारणा को बल मिला।बिपिन चंद्र पाल, तिलक और अरबिंदो जैसे युवा और ओजस्वी भारतीय राष्ट्रवादी भारतीय लोगों की क्षमता पर भरोसा करते थे।
- शिक्षा का विकास- शिक्षा के विकास ने जनता में जागरूकता पैदा की और मुखर युवाओं के एक वर्ग को जन्म दिया। शिक्षा के विकास ने शिक्षित भारतीयों के बीच बेरोजगारी और अल्प रोजगार के मुद्दों पर भी प्रकाश डाला और गरीबी तथा शोषण की ओर ध्यान आकर्षित किया।
- नरमपंथियों रणनीतियों के प्रति असंतोष- राजनीतिक आंदोलन के युवा नरमपंथियों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण के प्रखर आलोचक थे। उनके प्रतिरोध का दृष्टिकोण शांतिपूर्ण संवैधानिक आंदोलन था जिसे लोकप्रिय रूप से प्रार्थना, याचिका और विरोध के रूप में जाना जाता था।
- उग्रपंथी नेताओं का दमन -स्वदेशी आंदोलन के दौरान सरकार द्वारा विभिन्न उग्रपंथी नेताओं को गिरफ्तार किया गया । जैसे 1908 में तिलक को गिरफ्तार गर जेल मे भेज दिया गया, अलीपुर षड्यंत्र केश के बाद अरविन्द घोष ने सन्यास ले लिया ,लाला लाजपत राय विदेश चले गए ।
द्वितीय चरण (1920 के दशक) में क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के निम्नलिखित कारण थे:
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के हाथों घोर दमन का सामना करना पड़ा।
- 1920 की शुरुआत में मोंटफोर्ड सुधार से पहले कई क्रांतिकारियों को रिहा कर दिया गया था, जिसने क्रांतिकारी गतिविधियों को शुरू करने के लिए अति-आवश्यक ऊर्जा प्रदान की।
- असहयोग आंदोलन के दौरान गांधी के नेतृत्व में कई क्रांतिकारियों ने अपनी गतिविधियों को स्थगित कर दिया और आंदोलन में शामिल हो गए। लेकिन असहयोग आंदोलन के अचानक विघटन ने क्रांतिकारी का मोहभंग कर दिया।
- इसके अलावा, क्रांतिकारी स्वराजवादियों के संवैधानिक और संसदीय तरीकों के प्रति आकृष्ट नहीं थे।
निष्कर्ष:
क्रांतिकारियों द्वारा की गई वीरतापूर्ण गतिविधियों तथा उनकी विचारधारा ने जनता के बीच आत्म-बलिदान की भावना को जन्म दिया। भगत सिंह, सूर्य सेन, प्रीतिलता वाडेदार आदि जैसे कई क्रांतिकारी नेताओं की बढ़ती लोकप्रियता ने राष्ट्र को आत्म-बलिदान के लिए प्रेरित किया और आम आदमी की सामूहिक भागीदारी के लिए आधार तैयार किया।