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SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 16 Answers Hindi

Updated : 22nd Dec 2021
SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 16 Answers Hindi
  1. Discuss the need for policy reforms in the agriculture sector in view of the present condition of Indian agriculture. (200 Words)
    वर्तमान मे भारतीय कृषि की स्थिति को देखते हुए कृषि क्षेत्र मे नीतिगत सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए ?

कृषि क्षेत्र मे देश की आधी श्रम शक्ति कार्यरत है । आज भी देश मे 93 % किसान लघु व सीमांत श्रेणी में आते है । अनेक फसलों के ममम्लो मे चीन ,ब्राज़ील, अमेरिका जैसे बड़े कृषि उत्पादकोंकी तुलना मे काफी कम है । सकाल घरेलू उत्पाद मे कृषि क्षेत्र का योगदान 1950-51 में 54%था जो 2015-16 में गिरकर 15.4% हो गया जबकि सेवा क्षेत्र 30% से बढ़कर 53%हो गया । 

भारत मे संस्थागत और तकनीकी सुधारों के बावजूद उत्पादकता मे अपेक्षकृत वृद्धि कम ही हुई है । जहां एक ओर शहरीकरण ,औद्योगीकरण तथा भूमि अधिग्रहण की के प्रक्रिया मे तेजी आयी है वही दूसरी ओर किसानो की आजीविक पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है । 

विश्व व्यापार संगठन के साथ समझौता , बढ़ता कृषि संकट तथा कृ उदारीकरण के कारण भारत मे कृषि क्षेत्र मे नीतिगत सुधारो की आवश्यकता बढ़ गई है । 

कृषि क्षेत्र मे नीतिगत सुधारों की आवश्यकता -

1. भारत मे कृषि क्षेत्र मे लगे लोगो तथा गैर कृषि क्षेत्र के  लोगो के बीच आय असमानता मे बृद्धि हुई है । 

2. कुछ नीतियों के कारण कृषि वस्तुओ के उत्पादन मे मांग और पूर्ति के बीच असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गई है जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य से गेहूं और चावल जैसे प्रमुख फसलों के उत्पादन मे वृद्धि हुई । 

3 .भारतीय कृषि की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता की दर विश्व की अपेक्षा काफी कम है वर्तमान मे भारत का वैश्विक कृषि निर्यात में 2.2 फीसदी हिस्सा है । 

4.भारत मे सीमांत किसानों तथा बटाईदारोंकी संख्या अधिक होने से कृषि अधिशेष का लाभ किसानों को कम प्राप्त होता है । 

5.भारत चावल, गेहूं, गन्ना, कपास, मूंगफली और फलों और सब्जियों का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इस दृष्टि से खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की अपर संभावनाएं है और कृषकों की आय को  2022 तक  दोगुनी किया जा सकता है । 

6. एक राष्ट्र एक बाज़ार की संकल्पना को साकार करने के लिए कृषि नीतिगत सुधार की आवश्यकता है । 

7.फसल कटाई पश्चात प्रबंधन मे कमी होने से काफी फसल बर्बाद हो जाती है । 

8. ज़्यादातर किसानो को अपने फसलों के लाभकारी मूल्य के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर निर्भर रहना पड़ता है । 

भारत मे कृषि उत्पादन और उत्पादको की स्थिति को बेहतर बनाने तथा किसानो की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीति गत सुधारो की आवश्यकता है । 


2. Discuss the importance of Public Distribution System in India and also explain the challenges involved and what reforms are required to overcome these challenges.

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के महत्व पर चर्चा करें और इसमें शामिल चुनौतियों की व्याख्या करें और इन चुनौतियों को दूर करने के लिए किन सुधारों की आवश्यकता है। (200 Words)

 

-Approach:

-सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पृष्ठभूमि से उत्तर की शुरुआत कीजिये| 

-पीडीएस को स्पष्ट कीजिये|

-पीडीएस तंत्र में निहित चुनौतियों की चर्चा कीजिये|

-इन चुनौतियों को दूर करने के उपायों पर चर्चा कीजिये|

उत्तर: 

    भारत में निम्न आयवर्ग के व्यक्तियों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कारवाई जाती है। भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीब एवं निम्न आय वर्ग को उचित मूल्य की दुकान से खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। किसानों से खाद्यान्न खरीद से लेकर अंतिम लाभार्थी तक पहुँचाने की प्रक्रिया सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहलाती है। 

PDS से जुड़ी समस्याएँ

उपयोगकर्ताओं को अकसर मात्रा के संबंध में सही हक नहीं मिल पाना|

राशन की दुकानें हर दिन नहीं खुलना तथा सीमित समय के लिए खुलना|

निर्धारित दरों से अधिक दाम वसूला जाना|

सदस्य के नाम जोड़ने व हटाने के लिए भ्रष्टाचार|

प्रदान किए जाने वाले राशन की गुणवत्ता खराब होना|

PDS से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के उपाय|

-सभी राशन दुकानों का गैर-निजीकरण कर तंत्र को प्रभावी बनाया जा सकता है। 

-राशन की दुकान चलाने का कार्य अन्य सार्वजनिक संस्थानों तथा सामुदायिक संस्थानों को सौंपा जा सकता है। 

-केंद्रीकृत ऑनलाइन वास्तविक समय इलेक्ट्रोनिक PDS (कोर पीडीएस) का उपयोग किया जा सकता है।   

जनता को शामिल करने के लिए ऑनलाइन सिस्टम का उपयोग किया जा सकता है। 

राशन की दुकान पर राशन के संग्रह और वितरण के बारे में सभी जानकारी वैबसाइट पर उपलब्ध करवाया जा सकता है। 

लोगों को राशन प्रवाह के लिए SMS अलर्ट जारी किया जाना चाहिए। 

आपूर्ति बिक्री के सभी रेकॉर्ड कम्प्यूटरीकृत किया जा सकता है। 

PDS योजना के अंतर्गत सभी राशन की दुकानें चलाने वाले लोग उपभोक्ताओं के प्रति जवाबदेह होंगे|

राज्य सरकार अपनी पसंद की दुकान से राशन खरीदने का विकल्प उपलब्ध करवा सकती है। 

                 इन सभी विशेषताओं को छत्तीसगढ़ द्वारा अपनाया गया जिससे पीडीएस तंत्र में काफी सुधार हुआ तथा लीकज में भी काफी कमी हुई है। इन विशेषताओं को सभी राज्यों में अपनाकर तंत्र को प्रभावी बनाया जा सकता है।

 

3. Discuss the problems and prospects of Horticulture sector in India. (200 Words)
भारत में बागवानी क्षेत्र की समस्याओं और संभावनाओं की चर्चा कीजिए।

एप्रोच -

 

-बागवानी कृषि की भारत में वर्तमान स्थिति का संक्षिप्त में विवरण दीजिये|

-भारत में बागवानी कृषि की संभावनाओं और चुनौतियों के बारे में लिखिए|

-पर्यावरण सुरक्षा में बागवानी कृषि के योगदान का विवरण दीजिये|

- अंत में निष्कर्ष के साथ उत्तर का समापन कीजिये|

 

उत्तर -

                                               भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बागवानी फसलों का बहुत महत्त्व है। 1950 से आज तक बागवानी फसलों का उत्पादन लगभग 10 गुना बढ़ चुका है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये बागवानी फसलें आय का मुख्य स्रोत बन चुकी हैं। बागवानी विकास के लिये सरकार ने अलग-अलग योजनाओं को मिलाकर “समेकित बागवानी विकास मिशन” के रूप में संगठित किया है।  

 

भारत में बागवानी से जुड़ी संभावनाएँ और चुनौतियाँ-

 

भारत में लगभग 25-30 प्रतिशत फल और सब्जियाँ कटाई-उपरांत ही बेकार हो जाती हैं, जिसके कारण उन्हें उचित बाज़ार मूल्य भी नहीं मिल पाता। इस नुकसान को रोकने के लिये उचित भंडारण सुविधाओं विशेषतः शीत भंडारण की व्यवस्था करना आवश्यक है।

भारत फलों और सब्जियों का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। कटाई के बाद नुकसान और खाद्य प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के चलते भारत को इनका आयात करना पड़ता है। प्रसंस्करण सुविधाओं के विस्तार से प्रसंस्करित फलों और सब्जियों के आयात को कम किया जा सकता है।

केवल बागवानी फसलों के प्रसंस्करण की यूनिटों की संख्या इनके उत्पादन की तुलना में बहुत कम है। इनकी संख्या बढ़ाने के लिये भी प्रयास किये जाने चाहिये। 

पहाड़ी इलाकों खासकर उत्तराखंड के सुदूर क्षेत्रों में बागवानी फसलों जैसे-काफल, माल्टा, संतरे, बुरांश आदि का उत्पादन होता है, लेकिन सड़क एवं बाज़ार से उचित संपर्क न होने के कारण किसानों को इनका सही मूल्य नहीं मिल पाता है। 

पोषणयुक्त बागवानी फसलों का विकास और इनके सेवन का प्रचार हमारे देश को पोषण सुरक्षा की तरफ ले जा सकता है। 

बागवानी खेती को अधिक लाभप्रद बनाने के लिये किसानों को परंपरागत खेती की बजाय सघन बागवानी को अपनाना चाहिये। इसके लिये वे वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विभिन्न फलों की बौनी किस्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे- आम की आम्रपाली, अर्का व अरुणा, नींबू की कागज़ी कला, सेब की रैड चीफ, रैड स्पर आदि। 

पर्यावरण सुरक्षा में बागवानी फसलों का योगदान-

बागवानी फसलों से वातावरण को साफ-सुथरा रखने में मदद मिलती है। इन फसलों के क्षेत्रफल को बढ़ाने से वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाई-ऑक्साइड जैसी गैसों का संतुलन बना रहता है।

सजावटी पौधे और फलदार वृक्ष शहर व गाँव के अलावा गैर-कृषि क्षेत्रों में भी लगाए जा सकते हैं। इनके रोपण से अन्य जीव-जंतुओं और पक्षियों को भी सहारा मिलता है और अंततः जैव-विविधता को बढ़ावा मिलता है।

देश के कई क्षेत्रों में जल और वायु द्वारा मृदा का क्षरण होता रहता है। इन क्षेत्रों में बागवानी फसलें उगाकर इन्हें मृदाक्षरण से बचाया जा सकता है।

फलदार व सजावटी पेड़ों की जड़ें दूर तक फैली रहती हैं, जो मिट्टी को जकड़े रखती हैं। अतः बागवानी फसलें मृदा संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 

अब कई सब्जियों के उत्पादन में जैविक कृषि का सहारा लिया जा रहा है। रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं के बिना उगाई गई फसलें मानव और पर्यावरण दोनों के स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं। 

अगले 5 वर्षों में किसानों की आय को दुगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में बागवानी कृषि एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे। समन्वित प्रयासों से भारत में बागवानी क्षेत्र में भारत का भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सकता है।