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Shikhar Mains Day 2 Answer - Hindi

Updated : 6th Jun 2023
Shikhar Mains Day 2 Answer - Hindi

Q1: असहयोग आंदोलन के कारणों की संक्षिप्त चर्चा कीजिये । साथ ही इसकी प्रकृति पर टिप्पणी कीजिये ।

Briefly discuss the causes of non-cooperation movement. Also comment on its nature. (8 Marks)

दृष्टिकोण :

  • असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि बताते हुए भूमिका लिखिए ।
  • आंदोलन के कारणों की विस्तृत चर्चा कीजिये।
  • असहयोग आंदोलन की विशेषताओं की चर्चा कर इसकी प्रकृति स्पष्ट कीजिये।
  • इसके भविष्यगामी प्रभावों की चर्चा कर निष्कर्ष लिख सकते है। 

उत्तर-

         1919 से 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने एक नए दौर अर्थात जन राजनीति और जनता को लामबंद करने के दौर में प्रवेश किया। ब्रिटिश शासन का विरोध असहयोग आंदोलन के रूप में हुआ जिसमें अहिंसात्मक संघर्ष कि नीति राष्ट्रीय स्तर पर अपनाई गयी। 

असहयोग आंदोलन के कारण-

  • प्रथम विश्व युद्ध: युद्ध में भारत को जबर्दस्ती शामिल कर दिया गया। साथ ही युद्ध के बाद की आर्थिक स्थिति से आंदोलन को प्रेरणा मिली। प्रथम विश्व युद्ध के बाद खाद्यान्नों की भारी कमी, मुद्रास्फीति में वृद्धि, कम औद्योगिक उत्पादन, करों के बोझ से कस्बों और नगरों में रहने वाले मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग के लोग प्रभावित थे। ऐसी परिस्थितियों ने लोगों के मन में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को मजबूत किया।
  • रौलट एक्ट विरोधी आंदोलन ने पूरी भारतीय जनता को एकसमान रूप से प्रभावित किया था, जिससे हिन्दुओं और मुसलमानों ने बीच निकटता बढ़ी तथा ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का संचार किया।
  • पंजाब में मार्शल ला तथा जलियाँवाला बाग हत्याकांड जैसी घटनाओं ने ब्रिटिश शासन के क्रूर और असभ्य चरित्र को उद्घाटित कर दिया।
  • ब्रिटिश संसद द्वारा जनरल डायर के कृत्यों को उचित ठहराना तथा हंटर कमीशन की सिफ़ारिशों ने सबकी आँखें खोल दी।
  • 1919 में उत्तरदायी शासन की आशा लगाए राष्ट्रवादियों को मोण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों से घोर निराशा हुई। इन सुधारों का वास्तविक उद्देश्य द्वैध शासन प्रणाली को लागू करना था न की जनता को राहत पहुंचाना
  • खिलाफत का मुद्दा: तुर्की में खलीफा को पुंर्स्थापित करने के लिए भारत में मुसलमानों ने खिलाफत आंदोलन प्रारम्भ किया। अलग अलग समस्याओं से उभरने के बावजूद दोनों आंदोलनों ने एक समान कार्य योजना को अपनाया।

असहयोग आंदोलन की प्रकृति-

  • दिसम्बर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आंदोलन से संबन्धित प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें अब संवैधानिक और वैधानिक तरीके से स्वशासन की प्राप्ति के स्थान पर अहिंसक और उचित तरीकों से स्वराज की प्राप्ति को लक्ष्य बनाया गया।
  • कांग्रेस में कुछ संगठनात्मक परिवर्तन किए गए। 15 सदस्यीय कार्यसमिति का गठन किया गया। अखिल भारतीय, प्रांतीय समितियों का भी गठन किया गया।
  • सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार किया गया।
  • न्यायालयों का बहिष्कार तथा पंचायती अदालतों के माध्यम से न्याय का कार्य।
  • विधान परिषदों का बहिष्कार: नवम्बर 1920 में विधान परिषदों के चुनाव सम्पन्न हुए और सभी कांग्रेस के उम्मीदवारों ने चुनावों का बहिष्कार किया। अधिकांश मतदाताओं ने भी इन चुनाओं में भाग नहीं लिया।
  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा इसके स्थान पर खादी के उपयोग को बढ़ावा देना। चरखा कातने को प्रोत्साहन दिया गया।
  • सरकारी उपाधियों तथा अवैतनिक पदों का परित्याग। 

             इस आंदोलन के प्रभाव को देखते हुए गांधी जी ने कहा था यदि इन कार्यकर्मों के अनुसार आंदोलन चलाया गया तो एक वर्ष तक स्वराज का लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन को नयी दिशा दी साथ ही हिन्दू मुस्लिम एकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

Q2: प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये। साथ ही, इसके परिणामों की व्याख्या कीजिए।

Mention the causes of the Battle of Plassey. Also, explain its consequences. (12 Marks)

दृष्टिकोण -

  • ·    प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए उत्तर का प्रारंभ कीजिये।
  • ·    मुख्य भाग के पहले हिस्से में, प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये।
  • ·    अंतिम भाग में, प्लासी के युद्ध के घटनाक्रम को संक्षिप्तता से दर्शाते हुए इसके परिणामों का उल्लेख कीजिये|।

उत्तर-

        भारत में ब्रिटिश राजनीतिक सता का आरंभ 1757 के प्लासी युद्ध से माना जाता है जब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया था| कर्नाटक युद्धों में फ्रांसीसियों को हराने से उत्साहित अंग्रेजों ने अपने अनुभवों का बेहतर इस्तेमाल इस युद्ध में किया| बंगाल तब भारत का सबसे धनी तथा उपजाऊ प्रांत था| साथ ही, इससे कंपनी तथा उसके कर्मचारियों के लाभदायक हित भी जुड़े हुए थें| कंपनी 1717 में मुग़ल सम्राट के द्वारा मिले शाही फरमान का प्रयोग कर अवैध व्यापार कर रही थी जिससे बंगाल के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँच रहा था| इसी पृष्ठभूमि में सिराजुद्दौला ने 1756 में कासिमबाजार तथा कलकता को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा अंग्रेजों को फुल्टा नामक द्वीप पर शरण लेनी पड़ी| तत्पश्चात मद्रास से आये वाटसन तथा क्लाईव के नेतृत्व में नौसैनिक सहायता के द्वारा अंग्रेजों ने वापस सिराजुद्दौला को चुनौती दी तथा कलकता को वापस जीत लिया| हालाँकि दोनों पक्षों के मध्य जल्द ही प्लासी में 23 जून,1757 को एक और निर्णायक युद्ध हुआ।

प्लासी के युद्ध के कारण:

·       अंग्रेजों की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा; 1717 के फरमान(आदेश) के दुरूपयोग को लेकर विवाद- फर्रुख्सियार के द्वारा दिए गए दस्तक के अधिकार से बंगाल के राजस्व को हानि पहुँचना तथा इसका दुरूपयोग कर कंपनी के कर्मचारियों द्वारा निजी व्यापार पर भी कर न चुकाना जिससे नवाब का क्रोधित होना।

·       सिराजुद्दौला की संप्रभुता को चुनौती - द्वितीय कर्नाटक युद्ध से उत्साहित होकर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला की सता को चुनौती दी जैसे- भारतीय वस्तुओं पर कलकता में कर लगाना, नवाब के मना करने के बावजूद कलकता की किलेबंदी करना, नवाब के विरोधियों को संरक्षण इत्यादि| इसे सिराज ने अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप लिया।

·       सिराजुद्दौला की प्रतिक्रिया- सिराजुद्दौला ने जून,1756 में कासिमबाजार एवं कलकता पर नियंत्रण स्थापित किया तथा ब्रिटिश अधिकारियों को फुल्टा द्वीप में शरण लेनी पड़ी| सिराजुद्दौला ने कलकता की जिम्मेदारी मानिकचंद नामक अधिकारी को सौंपी जिसके द्वारा विश्वासघात किया गया।

·       काल-कोठरी(ब्लैक-होल) की घटना - हौलबेल ने इस घटना का जिक्र किया| हालाँकि ऐतिहासिक तौर पर यह प्रमाणित नहीं हो पाया है फिर भी इसने सिराजुद्दौला से प्रतिशोध के लिए अंग्रेजों को एकजुट किया।

·       कलकता पर अंग्रेजों का नियंत्रण- जनवरी 1757 में क्लाईव के नेतृत्व में कलकता पर अंग्रेजों का पुनः नियंत्रण स्थापित हुआ| सिराजुद्दौला ने तात्कालिक तौर पर अंग्रेजों की संप्रभुता को स्वीकार किया| हालाँकि मज़बूरी में नवाब ने अंग्रेजों की सारी मांगें मान ली थी पर अंग्रेज उसकी जगह अपने किसी विश्वासपात्र को गद्दी पर बैठाना चाहते थें।

·       क्लाईव के द्वारा षड़यंत्र - क्लाईव ने नवाब को हटाने की योजना बनाई| इस षड़यंत्र में मुख्य सेनापति मीरजाफर के साथ-साथ कई अन्य अधिकारी व बड़े व्यापारी भी शामिल थें| योजना के अनुसार ही प्लासी नामक स्थान पर दोनों की सेना में टकराव हुआ तथा कुछ ही घंटों में अंग्रेजों की जीत हो गई।

 

प्लासी के युद्ध के परिणाम  

राजनीतिक परिणाम

  • ·    पूर्व(बंगाल, उड़ीसा) में राजनीतिक शक्ति के रूप में अंग्रेजों का उदय|
  • ·    बंगाल के नवाब की राजनीतिक स्थिति का कमजोर होना जिससे बंगाल के राजनीतिक प्रशासन पर अंग्रेजों का प्रभाव जैसे - नवाब के अधिकारियों की नियुक्ति में हस्तक्षेप आदि|
  • ·    अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा बढ़ी तथा इसका असर अन्य भारतीय क्षेत्रों में राजनीतिक दखल के रूप में देखने को मिला|

आर्थिक परिणाम:

  • ·    अंग्रेजों को एक बड़ी राशि मुआवजे के रूप में।
  • ·    24 परगना की जमींदारी तथा उपहार के रूप में भी एक अच्छी-खासी रकम अंग्रेजों ने ली| बंगाल के समृद्ध संसाधनों तक पहुँच का लाभ अंग्रेजों ने तृतीय कर्नाटक युद्ध तथा उत्तर भारत में अभी अपने क्षेत्र विस्तार में किया।
  • ·    कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार पर भी मुक्त व्यापार की सुविधा दी गई।
  • ·    अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रांसीसी तथा डच कंपनियों को कमजोर बनाकर बंगाल के व्यापार तथा वाणिज्य पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया।

प्लासी के लड़ाई के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक वाणिज्यिक निकाय ना होकर सैन्य कंपनी के रूप में भी खुद को स्थापित कर लिया| अब इसके पास एक बहुत बड़ा भूभाग था जिसे एक प्रशिक्षित सेना के माध्यम से ही सुरक्षित रखा जा सकता था| इसके फलस्वरूप कंपनी सैन्य-सुदृढ़ीकरण की ओर बढ़ती चली गई तथा भारत के विभिन्न भागों में इसका राजनीतिक दखल एवं प्रभुत्व बढ़ता चला गया।