Q1: असहयोग आंदोलन के कारणों की संक्षिप्त चर्चा कीजिये । साथ ही इसकी प्रकृति पर टिप्पणी कीजिये ।
Briefly discuss the causes of non-cooperation movement. Also comment on its nature. (8 Marks)
दृष्टिकोण :
उत्तर-
1919 से 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने एक नए दौर अर्थात जन राजनीति और जनता को लामबंद करने के दौर में प्रवेश किया। ब्रिटिश शासन का विरोध असहयोग आंदोलन के रूप में हुआ जिसमें अहिंसात्मक संघर्ष कि नीति राष्ट्रीय स्तर पर अपनाई गयी।
असहयोग आंदोलन के कारण-
असहयोग आंदोलन की प्रकृति-
इस आंदोलन के प्रभाव को देखते हुए गांधी जी ने कहा था यदि इन कार्यकर्मों के अनुसार आंदोलन चलाया गया तो एक वर्ष तक स्वराज का लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन को नयी दिशा दी साथ ही हिन्दू मुस्लिम एकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Q2: प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये। साथ ही, इसके परिणामों की व्याख्या कीजिए।
Mention the causes of the Battle of Plassey. Also, explain its consequences. (12 Marks)
दृष्टिकोण -
उत्तर-
भारत में ब्रिटिश राजनीतिक सता का आरंभ 1757 के प्लासी युद्ध से माना जाता है जब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया था| कर्नाटक युद्धों में फ्रांसीसियों को हराने से उत्साहित अंग्रेजों ने अपने अनुभवों का बेहतर इस्तेमाल इस युद्ध में किया| बंगाल तब भारत का सबसे धनी तथा उपजाऊ प्रांत था| साथ ही, इससे कंपनी तथा उसके कर्मचारियों के लाभदायक हित भी जुड़े हुए थें| कंपनी 1717 में मुग़ल सम्राट के द्वारा मिले शाही फरमान का प्रयोग कर अवैध व्यापार कर रही थी जिससे बंगाल के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँच रहा था| इसी पृष्ठभूमि में सिराजुद्दौला ने 1756 में कासिमबाजार तथा कलकता को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा अंग्रेजों को फुल्टा नामक द्वीप पर शरण लेनी पड़ी| तत्पश्चात मद्रास से आये वाटसन तथा क्लाईव के नेतृत्व में नौसैनिक सहायता के द्वारा अंग्रेजों ने वापस सिराजुद्दौला को चुनौती दी तथा कलकता को वापस जीत लिया| हालाँकि दोनों पक्षों के मध्य जल्द ही प्लासी में 23 जून,1757 को एक और निर्णायक युद्ध हुआ।
प्लासी के युद्ध के कारण:
· अंग्रेजों की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा; 1717 के फरमान(आदेश) के दुरूपयोग को लेकर विवाद- फर्रुख्सियार के द्वारा दिए गए दस्तक के अधिकार से बंगाल के राजस्व को हानि पहुँचना तथा इसका दुरूपयोग कर कंपनी के कर्मचारियों द्वारा निजी व्यापार पर भी कर न चुकाना जिससे नवाब का क्रोधित होना।
· सिराजुद्दौला की संप्रभुता को चुनौती - द्वितीय कर्नाटक युद्ध से उत्साहित होकर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला की सता को चुनौती दी जैसे- भारतीय वस्तुओं पर कलकता में कर लगाना, नवाब के मना करने के बावजूद कलकता की किलेबंदी करना, नवाब के विरोधियों को संरक्षण इत्यादि| इसे सिराज ने अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप लिया।
· सिराजुद्दौला की प्रतिक्रिया- सिराजुद्दौला ने जून,1756 में कासिमबाजार एवं कलकता पर नियंत्रण स्थापित किया तथा ब्रिटिश अधिकारियों को फुल्टा द्वीप में शरण लेनी पड़ी| सिराजुद्दौला ने कलकता की जिम्मेदारी मानिकचंद नामक अधिकारी को सौंपी जिसके द्वारा विश्वासघात किया गया।
· काल-कोठरी(ब्लैक-होल) की घटना - हौलबेल ने इस घटना का जिक्र किया| हालाँकि ऐतिहासिक तौर पर यह प्रमाणित नहीं हो पाया है फिर भी इसने सिराजुद्दौला से प्रतिशोध के लिए अंग्रेजों को एकजुट किया।
· कलकता पर अंग्रेजों का नियंत्रण- जनवरी 1757 में क्लाईव के नेतृत्व में कलकता पर अंग्रेजों का पुनः नियंत्रण स्थापित हुआ| सिराजुद्दौला ने तात्कालिक तौर पर अंग्रेजों की संप्रभुता को स्वीकार किया| हालाँकि मज़बूरी में नवाब ने अंग्रेजों की सारी मांगें मान ली थी पर अंग्रेज उसकी जगह अपने किसी विश्वासपात्र को गद्दी पर बैठाना चाहते थें।
· क्लाईव के द्वारा षड़यंत्र - क्लाईव ने नवाब को हटाने की योजना बनाई| इस षड़यंत्र में मुख्य सेनापति मीरजाफर के साथ-साथ कई अन्य अधिकारी व बड़े व्यापारी भी शामिल थें| योजना के अनुसार ही प्लासी नामक स्थान पर दोनों की सेना में टकराव हुआ तथा कुछ ही घंटों में अंग्रेजों की जीत हो गई।
प्लासी के युद्ध के परिणाम
राजनीतिक परिणाम
आर्थिक परिणाम:
प्लासी के लड़ाई के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक वाणिज्यिक निकाय ना होकर सैन्य कंपनी के रूप में भी खुद को स्थापित कर लिया| अब इसके पास एक बहुत बड़ा भूभाग था जिसे एक प्रशिक्षित सेना के माध्यम से ही सुरक्षित रखा जा सकता था| इसके फलस्वरूप कंपनी सैन्य-सुदृढ़ीकरण की ओर बढ़ती चली गई तथा भारत के विभिन्न भागों में इसका राजनीतिक दखल एवं प्रभुत्व बढ़ता चला गया।
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