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SHIKHAR Mains Day 23 Hindi Answer

Updated : 16th Dec 2021
SHIKHAR Mains Day 23 Hindi Answer

प्रश्न 1-   अर्द्ध -न्यायिक संस्थाओं से आप क्या समझते हैं? उपयुक्त उदाहरणों द्वारा इनका विश्लेषण कीजिये|

एप्रोच -

  1. अर्द्ध-न्यायिक निकाय का सामान्य परिचय देते हुए उत्तर आरंभ कीजिये;
  2. विषय-वस्तु के पहले भाग में हम अर्द्ध-न्यायिक निकाय के बारे में थोड़ा विस्तार देते हुए उसके उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिये;
  3. इसके पश्चात अर्द्ध-न्यायिक संस्थाओं की सीमाओं का उल्लेख करते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिये;
  4. अंत में निष्कर्ष लिखते हुए उत्तर का समापन कीजिये;

उत्तर-

                                         कोई भी प्राधिकरण तभी अर्द्ध-न्यायिक कहा जाता है जब उसके पास न्यायिक कार्य करने की कुछ विशेषताएँ हों, लेकिन सभी नहीं। जहाँ न्यायालय सभी विवादों में निर्णय देने की क्षमता रखता है, वहीं अर्द्ध-न्यायिक निकाय की शक्तियाँ अक्सर एक विशेष क्षेत्र तक ही सीमित रहती हैं। इनके द्वारा दिये गए दंड अपराध की प्रकृति एवं गहनता पर निर्भर होते हैं, जिसे न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। ये मूलत: प्रशासन से जुड़े विवादों को देखती हैं। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन (NCDRC) केवल उन विवादों को देखता है जिनमें उपभोक्ता को सेवा या उत्पाद प्रदाता द्वारा धोखा मिला हो।

भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकायों के उदाहरण

                                 भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग: इसका गठन भारत में प्रतिस्पर्द्धा कानून में वर्णित प्रावधानों को लागू करने के लिये किया गया। यदि कहीं प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करने का प्रयास होता है तो यह दंड भी दे सकता है। उदाहरणस्वरूप अधिक गंभीर मामलों में यह किसी कंपनी पर (जिसने प्रतिस्पर्द्धा कानून का उल्लंघन किया हो) पिछले 3 वर्षों के टर्नऑवर का 10 प्रतिशत ज़ुर्माना लगा सकता है।
केंद्रीय सूचना आयोग: यह केंद्र सरकार एवं केंद्रशासित प्रदेशों के अधीन कार्यरत कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के बारे में शिकायतों एवं अपीलों की सुनवाई करता है तथा उनका निराकरण करता है। उदाहरणस्वरूप जनसूचना अधिकारी द्वारा जानकारी देने से मना करना आदि जैसी शिकायत पर केंद्रीय सूचना आयोग कार्रवाई करता है। केंद्रीय सूचना आयोग की तरह राज्य सूचना आयोग भी अर्द्ध-न्यायिक है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण: यह पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित मामलों सहित पर्यावरण संरक्षण एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों का प्रभावी एवं तीव्र निपटारा करता है। इसी संदर्भ में अभी हाल ही में न्यायाधिकरण ने ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ द्वारा यमुना नदी के किनारे (दिल्ली) आयोजित कार्यक्रम के कारण उत्पन्न प्रदूषण पर ज़ुर्माना लगाया है।
दूरसंचार विवाद समाधान और अपील न्यायाधिकरण: यह दूरसंचार क्षेत्र में उत्पन्न हुए विवादों की सुनवाई एवं उनका निराकरण करता है। वर्तमान में यह रिलायंस जियो के प्री कॉलिंग को लेकर विभिन्न कंपनियों, जैसे- वोडाफोन, एयरटेल द्वारा लगाए गए आरोपों की सुनवाई कर रहा है।
उपरोक्त निकायों के अतिरिक्त उपभोक्ता न्यायालय, केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण आदि भी अर्द्ध-न्यायिक निकायों की श्रेणी में आते हैं।

अर्द्ध-न्यायिक निकायों की सीमाएँ-

  • प्रशासकीय अधिनिर्णयों की कार्रवाई प्रकाशित नहीं होना|
  • तथ्यों की समुचित जाँच नहीं होना|
  • निर्णय के विरुद्ध अपील का अधिकार|

                         हालाँकि अर्द्ध-न्यायिक निकाय की अपनी सीमाएँ हैं इसके बावजूद यह कई मायनों में काफी महत्त्वपूर्ण है। अर्द्ध-न्यायिक निकाय न्यायपालिका के कार्यभार को कम करने के साथ-साथ जटिल मुद्दों का विशेषीकृत समाधान निकालने में सक्षम है। यह कम खर्च में तीव्र न्याय दिलाने में सहायता करता है। इसके अंतर्गत परंपरागत न्यायिक प्रक्रिया से इतर खुली कार्रवाई एवं तर्क के आधार पर निर्णय होता है।

प्रश्न 2 - नीति आयोग की संरचना को स्पष्ट कीजिये | साथ ही नीति आयोग बनाम योजना आयोग के बीच अंतरों पर चर्चा कीजिए |

एप्रोच -

  1. उत्तर की शुरुआत नीति आयोग की संरचना को बताते हुए कीजिये |
  2. इसके पश्चात योजना आयोग बनाम नीति आयोग की चर्चा करते हुए उत्तर को विस्यरित कीजिये |
  3. अंत में सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ उत्तर का समापन कीजिये |

उत्तर -

नीति आयोग 

                            योजना आयोग यद्यपि कि प्रारंभ में नीतिगत सन्दर्भों में एक थिंक टैंक की भूमिका निभा रहा था, परन्तु कालांतर में इसमें विभिन्न प्रकार की कमियां देखी गयी, जिसे संशोधित करते हुए 1 जनवरी 2015 को नीति आयोग का गठन किया गया | यद्यपि कि 16 फरवरी को इसमें कुछ संशोधन भी किये गये |

नीति आयोग की संरचना -

भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे |
शासी परिषद (Governing Council) का गठन किया गया जिसमे विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री तथा केंन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल सदस्य होंगे |
एक क्षेत्रीय परिषद का गठन किया जाय - जो ऐसे मुद्दों को जिसमे एक से अधिक प्रदेशों का क्षेत्र या उनके मुद्दे जुड़े हों, के सन्दर्भ में आवश्यक हस्तक्षेप करे |
क्षेत्रीय परिषद में उन क्षेत्रों के मुख्यमंत्री, सम्बंधित केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल तथा नीति आयोग द्वारा नामित सदस्य होंगे |
इस आयोग में विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित विशेष ज्ञान रखने वाले विशेषज्ञों को प्रधानमंत्री द्वारा विशेष नामित, आमंत्रित सदस्य की तरह सदस्यता दी जायेगी |
इस आयोग में निम्न प्रकार का संगठनात्मक ढांचा है- प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त उपाध्यक्ष - राजीव कुमार (वर्तमान में)
मुख्य कार्यकारी अधिकारी -सीईओ -अमिताभ कांत (वर्तमान में), पांच पूर्णकालिक सदस्य - वी के सारस्वत (DRDO), रमेश चन्द्र(कृषि), वी के पॉल (पब्लिक हेल्थ) आदि |
दो अल्पकालिक सदस्य, चार पदेन मंत्री - अमित शाह, राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण, नरेन्द्र सिंह तोमर 
विशेष आमंत्रित सदस्य - राव इन्द्रजीत सिंह, पियूष गोयल, नितिन गडकरी, थावर सिंह गहलोत |

योजना आयोग बनाम नीति आयोग 

--नीति आयोग निम्न प्रकार से योजना आयोग से बेहतर सिद्ध हो रहा है -
जहाँ योजना आयोग का दृष्टिकोण शीर्ष से धरातल की तरफ था वहीँ नीति आयोग धरातल से शीर्ष की तरफ (बॉटम अप) दृष्टिकोण का अनुपालन करता है |
तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सलाहकार की भूमिका निभाता है, जिससे नियोजन को बेहतर बनाया जा सके |
जहाँ योजना आयोग शासकीय भूमिका में धन आवंटन भी करता था (जो कालांतर में भ्रस्टाचार का मूल हो गया था) |
वहीँ नीति आयोग सलाहकार की भूमिका, जो तकनीकी नवाचार एवं डेटा प्रबंधन पर आधारित है, द्वारा नियोजन में सहायक होता है |
नीति आयोग भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों में तकनीकी नवाचार के नए मानक स्थापित करते हुए बिग डेटा, ब्लॉकचेन तकनीकी आदि का उपयोग कर रही है |
जहाँ योजना आयोग में मुख्यमंत्रियों एवं उपराज्यपालों के निर्णय में उचित भागीदारी नहीं थी, वहीँ नीति आयोग में ये सदस्य हैं और सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित कर रहा है |
यद्यपि नीति आयोग के सदस्यों में राजनीतिज्ञों और विशेषज्ञों का  अनुपात आलोचना का विषय रहा है किन्तु विगत पांच वर्षों में नीति आयोग ने सुशासन, समावेश, वितीय प्रबंधन, आदि द्वारा अपनी सार्थकता सिद्ध की है |
                                     नीति आयोग को योजना और गैर योजना के रूप में नहीं, बल्कि राजस्व और पूंजीगत व्यय की स्वतंत्रता के रूप में होनी चाहिए | इस पूंजीगत व्यय की वृद्धि से अर्थव्यवस्था में सभी स्तरों पर बुनियादी ढाँचे का घाटा दूर हो सकता है |