1. “चूंकि संविधान ने संसद को सीमित संशोधनकारी शक्ति दी है ,इसलिए उस शक्ति का उपयोग करते हुए संसद इसे चरम अथवा निरंकुश सीमा तक नही बढ़ा सकती”। उपर्युक्त कथन के संदर्भ में संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत के विकास की चर्चा कीजिए। (200 शब्द / 12 अंक)
एप्रोच -
उत्तर -
अनुच्छेद 368 के तहत संसद अपनी संवैधानिक शक्ति का उपयोग करते हुए संविधान में किसी भी प्रावधान को जोड़ अथवा निरस्त कर सकती है। संविधान में किसी प्रकार के संशोधन को ध्यान रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले (1973) में बुनियादी ढांचे की अवधारणा को प्रस्तुत किया। इसने भारतीय संसद की संशोधनकारी शक्तियों को सीमित कर दिया।
हालांकि भारतीय संविधान में मूल संरचना की अवधारणा का उल्लेख नहीं किया गया है और न ही न संसद की संशोधनकारी शक्तियों पर कोई प्रतिबंध लगाया गया था। यह शंकरी प्रसाद मामले से शुरू हुई संविधान संशोधन पर बहस अंततः केशवानन्द भारती मामले के साथ समाप्त हुई ,जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रश्न को नए ढंग से सुलझाने का प्रयास किया -:
इस प्रकार, यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुआ है और आज भी उसमे विस्तार हो रहा है;
इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की मूल संरचना के तहत धर्मनिरपेक्षता, समानता का अधिकार, जीवन का अधिकार, संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन जैसे 20 से अधिक विशेषताओ को इसके अंतर्गत शामिल किया ।
अत:, मूल संरचना संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर एक वास्तविक सीमा है। यह संवैधानिक संशोधनों को कुछ मानकों या मूल्यों के अनुरूप बनाने के लिए बाध्य करता है जो संविधान की सुचिता और भावना को बनाए रखते हैं।
2. वे कौन से मूलभूत सिद्धांत हैं जिन पर हमारा संविधान आधारित है? लिखित दस्तावेज के रूप में उन्हें संहिताबद्ध करना क्यों महत्वपूर्ण था? (200 शब्द / 12 अंक)
एप्रोच -
उत्तर -
प्रस्तावना को भारतीय संविधान के आत्मा के रूप में जाना जाता है। यह उन मूलभूत मूल्यों को दर्शाता है जिन पर भारतीय संविधान निर्मित है। संविधान की प्रस्तावना के शुरुआती शब्द ‘हम भारत के लोग’ को कुछ अधिकार देता है और जिनकी इच्छा से ही संविधान का उदय हुआ। प्रस्तावना भारत को एक संप्रभुता, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने की घोषणा करता है ।
निम्नलिखित कारणों से भारत जैसे नए स्वतंत्र देश में लिखित दस्तावेज के रूप में संविधान के संहिताकरण की आवश्यकता पड़ी:
3. क्या भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने एक संघीय संविधान निर्धारित किया था? चर्चा कीजिये| (125 शब्द / 8 अंक)
एप्रोच -
उत्तर -
भारत सरकार अधिनियम 1935 के द्वारा भारतीय प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान करने और भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान किया गया । भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत कुछ संघीय विशेषताएं परिलक्षित होती है;
भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत संघीय विशेषताएं:
1 अखिल भारतीय संघ: इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत प्रांतों और अन्य भारतीय राज्यों से मिलकर एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान किया। प्रस्तावित संघ में शामिल होने या न होने के लिए राज्य पूरी तरह से स्वतंत्र थे। हालांकि भारतीय राज्यों के शासकों ने इस प्रस्ताव का समर्थन नही किया और इस प्रकार, यह अधिनियम केवल संकल्पना बन कर रह गया ।
2. प्रांतीय स्वायत्तता: इस अधिनियम के द्वारा प्रांतीय और केंद्रीय विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों को विभाजित किया गया। परंतु प्रांतो को स्वायत्ता प्रदान नही की गई । वे परिभाषित क्षेत्र के भीतर प्रशासन की स्वायत्त इकाइयाँ थीं। मंत्री अपने विभागों को चलाने के मामले में बिल्कुल स्वतंत्र नहीं था और राज्यपालों के पास अधिभावी शक्तियों का एक समूह बना रहा।
3. संघीय विधायिका की स्थापना: केंद्र मे द्विसदनीय विधायिका का प्रावधान किया गया । इस अधिनियम के अंतर्गत संघीय विधानसभा की एक परिषद की स्थापना की परिकल्पना की गई । इसमे अल्पसंख्यकों, महिलाओं और दलित वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया ।
4. विधायी शक्ति का वितरण: इस अधिनियम के द्वारा केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों विभाजन किया गया - संघीय सूची, प्रांतीय सूची और समवर्ती सूची । वे विषय जो अखिल भारतीय हित से संबंधित थे और एक समान व्यवहार की मांग करते थे, उन्हें संघीय सूची में रखा गया था।
5.एक संघीय अदालत की स्थापना: इस अधिनियम के तहत एक संघीय अदालत की स्थापना की भी परिकल्पना की गई थी ताकि किसी भी विवाद के मामले में अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या की जा सके। इस अधिनियम द्वारा स्थापित संघीय न्यायालय में तीन प्रकार के क्षेत्राधिकार शामिल थे अर्थात मूल, अपीलीय और सलाहकार। संघ और उसकी इकाइयों के बीच किसी भी प्रकार के विवाद में न्यायालय का अनन्य मूल क्षेत्राधिकार था।
भारत सरकार अधिनियम 1935 एक वास्तविक संघीय व्यवस्था नहीं:
1935 के अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रवादियों को खुश करने तथा ब्रिटिश शासन को बनाए रखना था हालांकि इस अधिनियम में अलग निर्वाचक मंडल जैसे प्रतिगामी प्रावधान भी शामिल थे। एक संघीय संविधान का मसौदा तैयार करने के प्रावधान के बावजूद, यह सीमित अर्थो मे संघीय अधिनियम के रूप मे था ।
4. "भारतीय संविधान तत्वों और मूल भावना में अद्वितीय है"। , दिए गए कथन के आलोक में भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं पर चर्चा कीजिए । (125 शब्द / 8 अंक)
एप्रोच -
उत्तर -
भारतीय संविधान की अद्वितीयता इस बात पर निर्भर है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है तथा इसमें लचीलेपन और कठोरता, असममित संघीय व्यवस्था आदि का विवेकपूर्ण प्रावधान किया गया है ।
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं ;
1 .संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता का संश्लेषण - भारतीय संविधान के निर्माताओं ने ब्रिटिश की संसदीय संप्रभुता के सिद्धांत और अमेरिका के न्यायिक सर्वोच्चता सिद्धांत के बीच एक उचित संश्लेषण को प्राथमिकता दी है। सर्वोच्च न्यायालय, एक ओर, न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति के माध्यम से संसदीय कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है तो दूसरी ओर, संसद अपनी संवैधानिक शक्ति के माध्यम से संविधान के बड़े हिस्से में संशोधन कर सकती है।
2. एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका - सर्वोच्च न्यायालय देश में एकीकृत न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर है। इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं। एक उच्च न्यायालय के तहत, अधीनस्थ न्यायालयों की पदानुक्रम व्यवस्था की गई है । अर्थात जिला अदालतें और अन्य निचली अदालतें। अदालतों की यह एकल प्रणाली केंद्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य के कानूनों को भी लागू करती है।
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे अधिक विस्तृत ,व्यापक और लिखित दस्तावेज है।
हालांकि भारतीय संविधान विश्व के विभिन्न संविधानों मे से प्रगतिशील तत्वो को लेकर बनाया गया है । डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने प्रशंसा की कि भारत का संविधान 'दुनिया के सभी ज्ञात संविधानों मे से लेकर ' बनाया गया है।
3. कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण - संविधान के कुछ प्रावधानों में विशेष बहुमत के द्वारा संशोधन किया जा सकता है,जैसे संविधान संशोधन , राष्ट्रपति के चुनाव से संबन्धित प्रावधान, संघीय ढांचे से संबन्धित प्रावधान आदि । तथा संसद मे संविधान के कुछ प्रावधानों को साधारण विधायी प्रक्रिया के माध्यम संशोधन किया जा सकता है।जैसे राज्यों के नामो मे परिवर्तन ।
4. संघात्मकता के साथ एकतमकता - 'फेडरेशन' शब्द का प्रयोग संविधान में कहीं भी नहीं किया गया है। हालांकि अनुच्छेद 1, भारत को 'राज्यों के संघ' के रूप में घोषित करता है, जिसका तात्पर्य यह है कि:
एक, भारतीय संघ राज्यों के समझौते का परिणाम नहीं है;
दूसरा, किसी भी राज्य को महासंघ से अलग होने का अधिकार नहीं है। इसी कारण भारतीय संघवाद को अर्ध-संघवाद के नाम से भी जाना जाता है।
5. सरकार का संसदीय स्वरूप - भारत में संसदीय सरकार की विशेषताएं हैं:
a) नाममात्र और वास्तविक कार्यपालिका
b) बहुमत दल शासन,
c) विधायिका के प्रति कार्यपालिका की सामूहिक जिम्मेदारी,
d) विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता,
e) प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्री का नेतृत्व,
f) निचले सदन (लोकसभा या विधानसभा) का विघटन।
6. धर्मनिरपेक्ष राज्य - प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द और अनुच्छेद 14, 15, 16, 25 भारतीय राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को प्रकट करते हैं।
7. एकल नागरिकता - संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत भारत मे एकल नागरिकता का प्रावधान है, चाहे वे किसी भी राज्य मे जन्म लिए हो या निवास करते हों।
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