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Shikhar Mains Day 6 Model Answer - Hindi

Updated : 12th Jun 2023
Shikhar Mains Day 6 Model Answer - Hindi

Q1: "भारतीय संविधान तत्वों और मूल भावना में अद्वितीय है।" दिए गए कथन के आलोक में भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं पर चर्चा कीजिए?

"Indian Constitution is unique in elements and basic spirit." Discuss the main features of the Indian Constitution in the light of the given statement? (8 Marks)

 

दृष्टिकोण -

  • उत्तर की शुरुआत भूमिका के साथ भारतीय संविधान की विशिष्टता के बारे में 2-3 पंक्तियाँ लिखते हुए कीजिये|
  • इसके पश्चात संविधान की विभिन्न प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए|
  • अंत में सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ उत्तर का समापन कीजिये|

उत्तर -

भारतीय संविधान की अद्वितीयता इस बात पर निर्भर है कि  यह  दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है तथा इसमें लचीलेपन और कठोरता, असममित संघीय व्यवस्था आदि का विवेकपूर्ण प्रावधान किया गया है ।

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं

  • संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता का संश्लेषण- भारतीय संविधान के निर्माताओं ने ब्रिटिश की संसदीय संप्रभुता के सिद्धांत और अमेरिका के न्यायिक सर्वोच्चता सिद्धांत के बीच एक उचित संश्लेषण को प्राथमिकता दी है। सर्वोच्च न्यायालय, एक ओर न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति के माध्यम से संसदीय कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है तो दूसरी ओर, संसद अपनी संवैधानिक शक्ति के माध्यम से संविधान के बड़े हिस्से में संशोधन कर सकती है।
  • एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका - सर्वोच्च न्यायालय देश में एकीकृत न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर है। इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं। एक उच्च न्यायालय के तहत, अधीनस्थ न्यायालयों की पदानुक्रम व्यवस्था की गई है अर्थात जिला अदालतें और अन्य निचली अदालतें। अदालतों की यह एकल प्रणाली केंद्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य के कानूनों को भी लागू करती है। 
  • भारतीय संविधान दुनिया का सबसे अधिक विस्तृत ,व्यापक और लिखित दस्तावेज है। हालांकि भारतीय संविधान विश्व  के विभिन्न संविधानों में से प्रगतिशील तत्वों को लेकर बनाया गया है । डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने प्रशंसा की कि भारत का संविधान 'दुनिया के सभी ज्ञात संविधानों मे से लेकर' बनाया गया है। 
  • कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण - संविधान के कुछ प्रावधानों में विशेष बहुमत के द्वारा संशोधन किया जा सकता है,जैसे संविधान संशोधन , राष्ट्रपति के चुनाव से  संबन्धित प्रावधान, संघीय ढांचे से संबन्धित प्रावधान आदि तथा संसद में संविधान के कुछ प्रावधानों को साधारण विधायी प्रक्रिया के माध्यम संशोधन किया जा सकता है, जैसे- राज्यों के नामो  में परिवर्तन|
  • संघात्मकता के साथ एकात्मकता  - 'फेडरेशन' शब्द का प्रयोग संविधान में कहीं भी नहीं किया गया है। हालांकि अनुच्छेद 1- भारत को 'राज्यों के संघ' के रूप में घोषित करता है, जिसका तात्पर्य यह है कि-
    • एक, भारतीय संघ राज्यों के समझौते का परिणाम नहीं है
    • दूसरा, किसी भी राज्य को महासंघ से अलग होने का अधिकार नहीं है। इसी कारण भारतीय संघवाद को अर्ध-संघवाद के नाम से भी जाना जाता है।
  • सरकार का संसदीय स्वरूप - भारत में संसदीय सरकार की विशेषताएं हैं:
    • नाम मात्र और वास्तविक कार्यपालिका
    • बहुमत दल शासन,
    • विधायिका के प्रति कार्यपालिका की सामूहिक जिम्मेदारी,
    • विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता,
    • प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्री का नेतृत्व,
    • निचले सदन  (लोकसभा या विधानसभा) का विघटन।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य - प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द और अनुच्छेद 14, 15, 16, 25 भारतीय राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को प्रकट करते है।
  • एकल नागरिकता - संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है, चाहे वे किसी भी राज्य में जन्मे या निवास करते हों। 

                             इस प्रकार भारत का संविधान सबसे निचले स्तर या जमीनी स्तर पर लोकतंत्र, मौलिक अधिकारों और सत्ता के विकेंद्रीकरण के रूप में खड़ा है। इन शक्तियों और अधिकारों के कमजोर पड़ने की किसी भी संभावना को देखते हुए, संविधान के संरक्षक के रूप में काम करने, संविधान का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून या कार्यकारी अधिनियम को रद्द करने और इस प्रकार संविधान की सर्वोच्चता लागू करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।

 

Q2: भारतीय संविधान की आधारभूत संरचना (मूल ढाँचे) के सिद्धांत के क्रमिक विकास पर चर्चा कीजिये।

Discuss the evolution of the principle of basic structure of the Indian Constitution. (12 marks)

 

दृष्टिकोण

  • भूमिका में आधारभूत संरचना के सिद्धांत को स्पष्ट कीजिये।
  • मुख्य भाग में सिद्धांत के क्रमिक विकास को विस्तार से समझाइये।
  • अंतिम में वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।

 

उत्तर -

                 आधारभूत संरचना के सिद्धांत, भारतीय संविधान में संशोधन करने के सन्दर्भ में संसद की अधिकारिता से सम्बन्धित है| भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था के कुछ तत्व, की व्यवस्था एवं संवैधानिक स्थिति के सन्दर्भ में इतने महत्वपूर्ण हैं कि इनमें संशोधन नहीं किया जा सकता है| न्यायालय का मानना है कि संविधान एवं राजव्यवस्था के आधारभूत तत्वों के यदि संशोधन किया जाएगा तो यह व्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा| आधारभूत संरचना के सिद्धांत, भारतीय विधायिका एवं न्यायपालिका के संघर्ष के मध्य विकसित सिद्धांत है| आधारभूत संरचना का सिद्धांत लम्बे संवैधानिक विकास का परिणाम है| आधारभूत संरचना के सिद्धांत के विकास को अग्रलिखित विश्लेषण के माध्यम से समझा जा सकता है| ध्यातव्य है कि 1964 में सज्जन सिंह वाद की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मुधोलकर ने पहली बार आधारभूत लक्षण का उल्लेख किया था 

 

संसद के समविधायी अधिकार की अवधारणा

  • संविधान में जिन उपबन्धों में संसद द्वारा संशोधन संभव है उसका उल्लेख उस उपबन्ध में ही कर दिया गया है| जैसे "संसद द्वारा विधि के दायरे में" "संसद द्वारा निर्धारित शर्तों के अनुरूप" आदि 
  • सर्वोच्च न्यायालय उस अधिकार को समविधायी नहीं मानता जिसके विषय में निर्धारित उपबन्ध में संसद की शक्तियों का उल्लेख नहीं है|
  • ऐसे अधिकार को आत्यंतिक(outside/accidental/incidental) अधिकार(बाहर से प्राप्त किया गया अधिकार)माना गया है|

 

गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य 1967

  • इस मामले में SC की संविधानपीठ ने 6:5 के बहुमत से संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया का प्रयोग कर संशोधन करने पर रोक लगा दी और निम्नलिखित व्यवस्था दी।
  • मौलिक अधिकारों में किसी भी तरह से संशोधन संभव नहीं है।
  • उपरोक्त संशोधन के उपरान्त जिस अधिनियम का निर्माण होता है वह अनुच्छेद 13(2) के अंतर्गत उस विधि की परिभाषा में शामिल किया जाएगा जिससे यदि भाग 3 के किसी भी उपबन्ध का उल्लंघन होता है तो उक्त विधि को आंशिक रूप से या सम्पूर्ण रूप से रद्द कर दिया जाएगा| दूसरे शब्दों में संसोधन के उपरान्त बनने वाला अधिनियम अनुच्छेद 13(2) के अंतर्गत "विधि" माना जाएगा|
  • हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में भाग 3 को यह सोच कर शामिल नहीं किया है कि उसे संसद जब चाहे संशोधित कर दे, यदि ऐसा हुआ तो संविधान का शेष भाग निर्जीव दस्तावेज बन कर रह जाएगा| अतः भाग 3 में संशोधन का अधिकार एक नयी तथा निर्वाचित संविधान सभा को होगा न कि वर्तमान संसद को| निर्णय दिया गया कि भाग 3 में संविधान संशोधन,संसद का समविधायी(अंतर्भूत/अंतर्निहित/constituent) अधिकार नहीं है।

 

24वां संविधान संशोधन अधिनियम 1971

  • इस संशोधन के माध्यम से श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने गोलकनाथ मुकदमें में SC की सम्विधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले को पलट दिया।
  • इसमें यह व्यवस्था की गयी कि अनुच्छेद 368 का प्रयोग कर संविधान के किसी भी भाग में संसद को संशोधन का अधिकार होगा जिसमें भाग 3 भी शामिल है।
  • इसी संशोधन के द्वारा यह भी व्यवस्था की गयी कि भाग 3 में किये गए संशोधन के उपरान्त जिस अधिनियम का निर्माण होगा उसे अनुच्छेद 13(2) के अंतर्गत "विधि" नही माना जाएगा बल्कि इसे एक सामान्य विधान माना जाएगा| अतः इस प्रकार इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

 

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 

  • इस मुकदमें में SC ने आधारभूत लक्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया था| 1973 में केशवानंद भारती वाद के प्रमुख लेखक न्यायमूर्ति हंसराज खन्ना ने जस्टिस मुधोलकर की बात को दुहराते हुए बहुमत के फैसले को आधार बना कर आधारभूत लक्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया
  • इस फैसले में SC ने 24 वें संविधान सशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को उचित बताया था अर्थात अनुच्छेद 368 में वर्णित प्रक्रिया का प्रयोग कर संसद संविधान के किसी भाग में संशोधन कर सकती है और यह उसका समविधायी अधिकार है।
  • इस प्रकार इस मुकदमें में SC ने 1967 में गोलकनाथ वाद में  दिए गए अपने ही फैसले को पलट दिया।
  • किन्तु श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा 24 वें संविधान संशोधन अधिनियम को संसद द्वारा पारित कराये जाने की अधिकारिता को तो उचित ठहराया किन्तु उसकी सीमा तय कर दी।
  • SC ने कहा कि संविधान के कुछ ऐसे आधार भूत लक्षण हैं जो अनुच्छेद 368 का प्रयोग कर या किसी भी अन्य प्रकार से संशोधित नहीं किये जा सकते|

 

25वां संविधान संशोधन अधिनियम 1975

  • इस में यह व्यवस्था की गयी कि यदि सरकार भाग 4 में वर्णित किसी भी नीति निदेशक तत्व को कानून बना कर लागू करती है, और यदि इस प्रक्रिया में भाग 3 में वर्णित किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो भी भाग 4 ही प्रभावी होगा।
  • इसके लिए इस संशोधन में अनुच्छेद 31(C) के रूप में एक नया उपबन्ध जोड़ा गया।

 

मिनर्वामिल्स वाद 1980

  • हालांकि मिनर्वामिल्स वाद 1980 में SC ने उक्त संसोधन के प्रभाव क्षेत्र को सीमित करते हुए केवल 39(B) और 39(C) तक ही प्रभावी रखा| अर्थात यदि 39(B) और 39(C)  में वर्णित उपबन्ध  को लागू करने के लिए विधानमंडल कोई कानून बनाता है और यदि इस प्रक्रिया में कोई मौलिक  अधिकार प्रभावित होता है या किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो भी 39(B) और 39(C) ही प्रभावी होंगे, किन्तु भाग 4 के शेष उपबन्ध लागू करते समय यदि भाग 3 के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो मौलिक अधिकार ही प्रभावी होगा 

 

आधारभूत लक्षण सिद्धांत का विस्तार

 

हालांकि 1973 में केशवानंद भारती वाद के प्रमुख लेखक न्यायमूर्ति हंसराज खन्ना ने आधारभूत लक्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया| किन्तु उस समय यह नहीं बताया गया कि इसमें संविधान के कौन-कौन लक्षण शामिल होंगे, किन्तु आगे के अपने अलग अलग फैसले में SC ने बारी बारी से इसे बताया जैसे-

  • मिनर्वामिल्स वाद 1980 में SC ने न्यायिक समीक्षा को आधारभूत लक्षण बताया।
  • मारूराम वाद 1980 एवं वामनराव वाद 1981 में SC ने पुनः इसी बात को दुहराया।
  • किहोटो होलो हान बनाम जचील्हू तथा अन्य वाद 1991 एवं एल चंदर कुमार वाद 1997 में SC ने पुनः एक बार न्यायिक समीक्षा को आधारभूत लक्षण बताया।
  • द्वितीय जज वाद 1993, तृतीय जज वाद 1998 एवं एडवोकेट्स ओन रिकार्ड्स वाद 2017 में SC ने न्यायापालिका को कार्यपालिका से अलग रखने को आधारभूत लक्षण बताया।
  • इस प्रकार एस आर बोम्मई वाद 1993 में SC ने जनतंत्र को आधारभूत लक्षण बताया।

 

                    इस प्रकार देखते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने ने अपने अलग अलग फैसलों में विभिन्न तत्वों को आधारभूत लक्षण घोषित किया है| वर्तमान में न्यायपालिका के द्वारा पंथनिरपेक्षता, विधि का शासन, विधि की उचित प्रक्रिया , गणतांत्रिक व्यवस्था, संघीय ढांचा, लोक संप्रभुता, निर्वाचन प्रणाली, देश की एकता और अखंडता तथा संप्रभुता, साम्प्रदायिक सौहार्द तथा सामाजिक न्याय, संसदीय प्रणाली और जनतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से नीति निर्धारण आदि को आधारभूत लक्षण घोषित कर यह व्यवस्था दी है कि इनमें कोई भी संशोधन संभव नहीं है| इसे संविधान विशेषज्ञ, संविधान का अक्षुण्ण अंग या सिल्वर लाइनिंग कह कर संबोधित करते हैं|