Q1: The integration of the North-East region in India after independence brought with it specific challenges. Analyze the statement.
स्वतंत्रता पश्चात भारत में पूर्वोतर क्षेत्र का एकीकरण अपने साथ विशिष्ट चुनौतियों को समाहित किये हुआ था| कथन का विश्लेषण कीजिये| (125 words / 8 marks)
-एप्रोच -
उत्तर-
19वीं सदी में राजनीतिक दृष्टिकोण से पूर्वोतर क्षेत्र में 3 प्रकार की व्यवस्था विद्यमान थी - असम को प्रान्त का दर्जा या बंगाल प्रांत के भाग के रूप में प्रशासन; असम के पर्वतीय क्षेत्रों पर केन्द्रीय सरकार का नियंत्रण; मणिपुर,त्रिपुरा इत्यादि रियासतों में अंग्रेजों के नियंत्रण के अधीन कुछ स्वायत्तता| स्वतंत्रता के समय मणिपुर तथा त्रिपुरा को छोड़कर संपूर्ण पूर्वोतर क्षेत्र असम में शामिल था| सांस्कृतिक एवं जनजातीय विविधता असम के मैदानी भागों को छोड़कर सभी पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापक तौर पर विद्यमान थी| पहाड़ी क्षेत्रों के जनजातीय लोगों की सांस्कृतिक एवं सामाजिक पहचान मैदानी भाग में रहने वाले असमिया तथा बंगाली भाषी लोगों से काफी अलग थी| साथ ही, पूर्वोतर क्षेत्र के संदर्भ में निम्नलिखित विशिष्ट चुनौतियाँ विद्यमान थी-
भौगोलिक तथा नृजातीय विविधता - भारत की मुख्य भूमि से पूर्वोत्तर क्षेत्र का अलगाव तथा नृजातीयता, भाषा, सामाजिक संगठन तथा आर्थिक विकास के स्तरों पर व्यापक विविधता|
पारंपरिक समाजों की बहुलता जिसने एकल राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण के कार्य को कठिन बनाया|
शेष भारत से सांस्कृतिक अलगाव - जनजातियों के विशिष्ट पहचान तथा यहां पाए जाने वाले नृजातीय समूह के उप राष्ट्रीय आकांक्षाओं ने शेष भारत से अलगाव को बढ़ावा दिया| लगभग हर जनजाति की भाषा एवं संस्कृति में विभिन्नता मौजूद थी| उदाहरणस्वरूप- पहाड़ी तथा मैदानी क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों के मध्य व्याप्त वैमनस्य की भावना|
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से कम जुडाव की वजह से पूर्वोत्तर के मूल निवासियों में राष्ट्रीयता और एकता की भावना का अभाव देखने को मिलता है|
अंग्रेजों द्वारा पृथक्करण और शोषण की नीति का अनुसरण | पूर्वोत्तर राज्य के जनजातीय लोगों का शेष भारत के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन से अलगाव था उसपर से जनजातीय लोगों का बाहरी दुनिया से संपर्क मुख्यतः अंग्रेज अधिकारियों एवं ईसाई मिशनरियों तक ही सीमित था जो सामान्यतः उनके दृष्टिकोण को भारत विरोधी बनाने की कोशिश करते रहते थे|
उग्रवादी समूहों द्वारा निभाई गई भूमिका जिन्होंने भारतीय संघ में क्षेत्रों का विलय का विरोध किया|
अन्य देशों का प्रभाव जैसे मिजो नेता बर्मा में शामिल होना चाहते थे|
पहचान का मुद्दा - व्यापक पैमाने पर प्रवासन के कारण स्थानीय निवासियों के मध्य पहचान खोने का संकट; जैसे - पूर्वी बंगाल से बड़ी संख्या में आने वाले प्रवासियों के कारण असम के स्थानीय लोगों के मन में संदेह|
आज़ादी पश्चात विविध कारणों से पर्वतीय तथा मैदानी लोगों के बीच तनाव का बढ़ना जैसे -प्रशासनिक उपेक्षा; अपेक्षित आर्थिक सहायता ना मिलना; संकट के दौरान राहत-कार्यों में विलंब इत्यादि
उपरोक्त वजहों के कारण पूर्वोत्तर भारत के एकीकरण की प्रक्रिया बाकी भारतीय क्षेत्रों के मुकाबले अधिक जटिल थी|
उत्तर पूर्वी भारत का पुनर्गठन
पूर्वोत्तर के एकीकरण की प्रक्रिया में सर्वप्रथम 1948 में उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों को नेफा नाम से अलग करके एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया जिसे 1987 में अलग अरुणाचल प्रदेश राज्य के रूप में मान्यता दी गई|
असम सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये की वजह से जनजातीय क्षेत्रों में असंतोष बड़ा तथा अलग राज्य के मुद्दे जोर पकड़ने लगे | इस संदर्भ में 1960 में पहाड़ी क्षेत्रों के जनजातीय लोगों द्वारा ऑल पार्टी हील लीडर कॉन्फ्रेंस बनाया गया तथा असमिया भाषा के मुद्दे पर व्यापक विरोध-प्रदर्शन, हड़ताल आदि करना चालू कर दिया गया| अंततः 1969 में संविधान संशोधन के माध्यम से असम के अंदर मेघालय राज्य का निर्माण हुआ|
1972 में पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के पुनर्गठन के रूप में मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया तथा मणिपुर एवं त्रिपुरा के केंद्र शासित प्रदेशों को भी पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया| इस प्रकार, असम से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर तथा त्रिपुरा का पुनर्गठन हुआ एवं जटिलता सिर्फ नागालैंड एवं मिजोरम में ही बची|
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट के नेतृत्व में पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी समूहों द्वारा हिंसक मार्ग अपनाया गया| परंतु सेना द्वारा इस समस्या को प्रभावशाली ढंग से सुलझाया गया एवं 1986 में मिजो नेशनल फ्रंट तथा भारत सरकार के मध्य शांति समझौते के फलस्वरूप 1987 में अलग मिजोरम राज्य का गठन हुआ |
उसी प्रकार, नगालैंड के अलगाववादियों ने भी भारत संघ में एकीकरण की प्रक्रिया का विरोध किया परंतु भारत सरकार द्वारा अलगाववाद तथा पृथकतावाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया गया| लंबी चली वार्ताओं एवं सैनिक कार्यवाहियों के बाद 1963 में अलग नागालैंड राज्य अस्तित्व में आया|
इस प्रकार आधुनिक रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र स्वरूप में आया जिसके एकीकरण में जनजातीय विविधता तथा भाषा का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण था| हालांकि, अभी भी जनजातीय क्षेत्रों से स्वायत्तता एवं आजादी की मांग यदा-कदा उठती रहती है परंतु उनका जमीनी आधार काफी कम हो चुका है|
Q2: "Initially Napoleon cherished the ideals of French revolution but could not adhere to them till the end." Discuss.
"शुरुआत में नेपोलियन ने फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों को अभिलषित किया लेकिन अंत तक उनका पालन नहीं कर सका।" चर्चा कीजिये| (200 words / 12 marks)
एप्रोच -
उत्तर -
नेपोलियन का उदय फ्रांसीसी क्रांति के केन्द्रीय तत्व जिनमें मुक्ति ,स्वतंत्रता व समानता मुख्य थे उन्हें लेकर हुआ| इसलिए इसे कुछ इतिहासकारों के द्वारा क्रांति पुत्र कहकर भी संबोधित किया गया है| नेपोलियन ने पुरातन राजतंत्रीय व विशेषाधिकार युक्त व्यवस्था के स्थान पर कानून के शासन को तत्कालीन राजनीति की मुख्य धारा में शामिल किया|| क्रान्ति विरोधियों की उपस्थिति से क्रान्ति के समक्ष खतरा था, सैनिक अभियानों की सफलता, किसी महत्वपूर्ण प्रतिद्वंदी की अनुपस्थिति के साथ ही साथ नेतृत्व के गुण, सैनिक प्रतिभा, निर्णय लेने की क्षमता, साहस जैसे कारकों ने नेपोलियन को सत्ता के शिखर पर पहुंचाया | 1799 में फ्रांसीसी संविधान में परिवर्तन, तीन पार्षदों को कार्यपालिका की जिम्मेदारी, प्रथम पार्षद को अधिक अधिकार तथा नेपोलियन प्रथम पार्षद बना| 1802 में संविधान संशोधन कर आजीवन अपने पद पर बने रहने की व्यवस्था की| 1804 में एक जनमत संग्रह कराया और नेपोलियन को फ्रांसीसी गणतंत्र का सम्राट कहा जाने लगा|
क्रान्ति के विचारों की प्रतिध्वनि
क्रान्ति का विस्तार
एक छोटी ही अवधि में यूरोप के बड़े भूभाग पर नियंत्रण की स्थापना की गयी जैसे इटली,जर्मनी,पोलैंड आदि| विजित क्षेत्रों में पुरानी व्यवस्था समाप्त कर आधुनिक राजनीति से सम्बंधित विभिन्न तत्वों की स्थापना की गयी
जर्मनी, इटली जो कि कई भागों में विभक्त थे उन्हें एक शक्ति के अधीन लाया| आधुनिक कानूनों के आधार पर शासन की नींव रखी| राजतंत्रात्मक व्यवस्था तथा विशेषाधिकारों पर प्रहार किया| इस पूरी प्रक्रिया में इन राष्ट्रों के मध्य वर्ग तथा आम लोगों का भी समर्थन मिला
दक्षिण पूर्वी यूरोप में भी नेपोलियन के अभियानों के कारण एक राजनीतिक हलचल प्रारम्भ हुई| इस प्रकार नेपोलियन ने न केवल यूरोपीय राजनीतिक नक़्शे को परिवर्तित किया बल्कि समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व जैसे विचारों को भी यूरोप में चर्चा का विषय बनाया|
प्रशासन के क्षेत्र में
क्रांति काल की प्रमुख विशेषताएं थी - निर्वाचन,योग्यता के आधार पर चुनाव आदि जिसे नेपोलियन ने स्वीकार किया और निर्वाचन प्रणाली की प्रारंभ की गयी|
फ्रांस में प्रशासन के क्षेत्र में क्रान्तिकालीन परिवर्तनों को बनाए रखने(जैसे संविधान का शासन, प्रशासनिक विभाजन) के साथ ही सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर परिवार के सदस्यों तथा कृपापात्र लोगों की नियुक्ति की
कानून केक्षेत्र में
नेपोलियन के द्वारा ही वर्त्तमान आधुनिक समाज के कानूनी आधार निर्मित किये गए जो विभिन्न रूपों में आज भी यूरोप में और उसके बाहर भी लागू हैं|
नेपोलियन ने सिविल कोड(नागरिक संहिता), पीनल कोड(दंड संहिता) व्यावसायिक संहिता आदि विभिन्न कानूनों का संकलन कराया| इस प्रक्रिया में नेपोलियन की व्यक्तिगत रूचि थी
इन कानूनों के कारण न केवल फ्रांस का विधिक एकीकरण हुआ बल्कि यूरोप में भी इन कानूनों को लागू किया|
यह नेपोलियन का एक स्थायी कार्य था जिसका प्रभाव आज भी फ्रांस पर देख सकते हैं|इससे कानून के शासन की अवधारणा को मजबूती मिली|
धर्म के क्षेत्र में
इसके साथ ही 1801 में पोप के साथ समझौता किया| इस समझौते के माध्यम से नेपोलियन ने धार्मिक तनावों को कम करने की कोशिश की
पोप ने क्रान्तिकाल के दौरान धर्म के क्षेत्र में हुए परिवर्तनों को स्वीकार किया
कैथोलिक धर्म को नेपोलियन ने बहुमत का धर्म माना
इससे धर्म के निरंकुशता और नियंत्रण का दौर ख़त्म हुआ और राज्य की अवधारणा को मजबूती प्रदान की गयी |
शिक्षा के क्षेत्र में
क्रान्तिकाल की तरह नेपोलियन ने भी शिक्षा को चर्च के प्रभाव से मुक्त रखा
प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के विकास के लिए नीति बनायी
शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए नार्मन स्कूल की स्थापना की
आर्थिक क्षेत्र में
नेपोलियन ने आर्थिक विकास के लिए कुछ कार्य किये जैसे सडकों, नहरों इत्यादि आधारभूत ढाँचे के विकास को महत्त्व दिया गया
बैंक ऑफ़ फ्रांस की स्थापना की गयी, स्वदेशी वस्त्रों के प्रोत्साहन के लिए प्रदर्शनी का आयोजन किया जाने लगा|
क्रान्ति के विचारों का उल्लंघन
नेपोलियन ने साम्राज्य विस्तार के माध्यम से क्रान्ति के विचारों का प्रसार किया किन्तु इसकी कुछ सीमाएं भी थीं जैसे इन राष्ट्रों में सत्ता के शीर्ष पर अपने परिवार के लोगों को बैठाया तथा यदा कदा इन राष्ट्रों के साथ उपनिवेशों के जैसा व्यवहार करने लगा| इससे भाई-भतीजावाद को प्रश्रय मिला
क्रांति काल में प्रारंभ निर्वाचन व योग्यता के आधार पर चुनाव की प्रक्रिया को स्वयं नेपोलियन के द्वारा ही थोड़े समय के बाद नकार दिया गया तथा शहरों तथा स्वायत्तशासी इकाइयों में निर्वाचन के स्थान पर मनोनयन को महत्त्व दिया और महत्वपूर्ण पदों पर अपने रिश्तेदारों को बिठाने की राजतंत्रीय व्यवहार्य प्रारंभ हो गए|
नेपोलियन ने निर्वाचन के स्थान पर मनोनयन को महत्त्व दिया तथा स्वयं भी आजीवन अपने पद पर बना रहा| ये परिवर्तन कहीं न कहीं क्रान्ति के मूल्यों के विपरीत थे
क्रान्ति के मूल्यों से प्रभावित हो कर नेपोलियन ने विधि के शासन की स्थापना के लिए विभिन्न कानूनों को संहिताबद्ध करवाया हालांकि इन कानूनों की सीमाएं भी थीं जैसे संपत्ति में केवल पुत्रों को अधिकार दिया जाना तथा व्यावसायिक विवादों की स्थिति में पूंजीपतियों के पक्ष में निर्णय का प्रावधान करना आदि विशेषाधिकार को दर्शाता है जो क्रांति के सिद्धांतों का स्पष्ट तौर पर उल्लंघन था|
शिक्षा में सुधार के अंतर्गत शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर नेपोलियन का महिमामंडन, सैनिक शिक्षा पर बल, उच्च शिक्षा एवं प्रेस पर कठोर सरकारी नियंत्रण स्थापित करना इन शैक्षणिक प्रयासों की सीमाएं थीं|
ज्ञातव्य है कि फ्रांस की क्रांति में राजा की आर्थिक विफलता को मुख्य मुद्दा बनाया गया था परन्तु नेपोलियन के द्वारा भी उसके कोई ठोस उपाय नहीं ढूंढें गए| तत्कालीन परिस्थितियों पर ध्यान न देते हुए नेपोलियन ने औद्योगीकरण पर बल नहीं दिया| इससे ब्रिटेन की बनी औद्योगिक वस्तुओं पर फ्रांस निर्भरता बनी रही| इसके साथ ही महाद्वीपीय व्यवस्था के कारण पूँजीवाद की गति को रोकने की कोशिश की| यह स्वतंत्रता के मूल्य के विपरीत प्रयास था|
इस प्रकार नेपोलियन का उदय क्रांति से उत्पन्न सिद्धांतों को ही लेकर हुआ | परन्तु आगे चलकर उसी के द्वारा इन सिद्धांतों विपरीत कार्य किये गए और नेपोलियन स्वयं एक निरंकुश सम्राट की तरह बन गया| नेपोलियन ने कमोबेश राजतंत्रात्मक व्यवस्था के समान राजनीतिक प्रणाली की स्थापना करने का प्रयास किया| किन्तु क्रान्ति के मूल्यों के साथ समझौता करना ही नेपोलियन के पतन का निहित कारण बना |
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