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SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 13 Answer Hindi

Updated : 2nd Jan 2022
SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 13 Answer Hindi

Q1) What are the similarities and differences between Indian and American federalism? 
भारतीय और अमेरिकी संघवाद में क्या समानताएं और अंतर हैं?

 

उत्तर -

संघीय सरकार मे केंद्र और राज्यों के बीच  शक्तियों का विभाजन होता है । दोनों सरकरे संविधान द्वारा दिये गए अधिकारो और निर्देशों के अनुसार अपने -अपने अधिकार क्षेत्रों मे कार्यों का संचालन करती है । यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा आदि जैसे देशों में संघीय व्यवस्था दिखाई देती है । यहाँ शक्तियों का विभाजन , कठोर  और लिखित संविधान, संविधान की सर्वोच्चता  ज्यूडिशरी की स्वतंत्रता, आदि शामिल हैं । 

अमेरिका ने वर्ष 1789 में संघीय गणतंत्र राज्य (फेडरल रिपब्लिक नेशन) का दर्जा प्राप्त किया; जबकि भारत ने वर्ष 1950 में अपने संविधान को लागू करके समाजवादी (सोशीयलिस्ट), प्रभुत्व सम्पन्न (सॉवरेन), पंथनिरपेक्ष (सेक्यूलर) और लोकतंत्रात्मक गणराज्य (रिपब्लिक), जैसी अवधारणाओं की स्थापना की थी । 

भारतीय संघवाद और अमेरिकी संघवाद के बीच समानता -

  1. अमेरिका और भारत दोनों के संविधान, लिखित संविधान है, जो फेडरल राजनीतिक ढांचा प्रदान करते है, जहां दोनों सरकारें, अपने-अपने अधिकारों का प्रयोग करती हैं। 
  2. दोनों देशों के संविधान, संविधान के संशोधन (अमेंडमेंट) का प्रावधान (प्रोविज़न) रखते हैं, जिससे वह अपने देश की बदलती परिस्थितियों और बढ़ती राजनीतिक, आर्थिक (इकनॉमिक), सामाजिक जरूरतों और मांगों को पूरा कर सके
  3. अमेरिकी संविधान द्वारा अपने नागरिकों को कई मौलिक अधिकार, जैसे समानता का अधिकार, स्वतंत्रता, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, संपत्ति का अधिकार, और संवैधानिक उपचार का अधिकार आदि प्रदान किए गए । भारतीय संविधान मे भाग 3 के तहत  लोगों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
  4. केंद्रीय और राज्य सरकार दोनों को समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है और, जब कभी भी केंद्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों और राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच विवाद होता है तो केंद्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
  5. अमेरिका और भारतीय संविधान दोनों ही तीन संस्थानों, अर्थात् कार्यपालिका (एग्जीक्यूटिव), विधायिका (लेजिस्लेटर) और न्यायपालिका (ज्यूडिशरी) के बीच शक्तियों के विभाजन का प्रावधान करते हैं।
  6. अमेरिकी विधायिका के ऊपरी और निचले सदनों को सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव कहा जाता है, और दूसरी ओर, भारत में लोकसभा और राज्यसभा, संसद के निचले और ऊपरी सदन होते हैं।

भारतीय संघवाद और अमेरिकी संघवाद के बीच अंतर -

  1. अमेरिका का संविधान भारतीय संविधान से अधिक कठोर है ।इसलिए इसमे संशोधन करना आसान नही है ,जबकि भारतीय संविधान  अपेक्षाकृत लचीला है ।  अमेरिकी संविधान में केवल 27 बार संशोधन किया गया है। जबकि, वर्ष 1950 में लागू हुए भारतीय संविधान में अब तक 127 बार संशोधन किया जा चुका है। 
  2. अमेरिका में, राष्ट्रपति, राज्य के प्रमुख होता है और इसलिए उनकी सरकार को लोकप्रिय रूप से प्रेसिडेंशियल फॉर्म ऑफ़ गवर्नमेंट के नाम से जाना जाता है। दूसरी ओर, भारत में सरकार का पार्लियामेंट्री फॉर्म है, क्योंकि  प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल के साथ वास्तविक शक्ति का प्रयोग करते हैं, जिसमें राष्ट्रपति केवल एक नाममात्र प्रमुख होता है । 
  3. अमेरिका के राष्ट्रपति, चार साल की अवधि के लिए पद धारण करते हैं, जबकि भारत के प्रधान मंत्री पांच साल तक सत्ता में रह सकते हैं, जब तक कि उनकी राजनीतिक पार्टी, लोक सभा म बहुमत से जीतती हैं। 
  4. भारत का संविधान एकल नागरिकता को मान्यता देता है, जबकि दूसरी ओर अमेरिका का संविधान दोहरी नागरिकता प्रदान करता है, जिसके मुताबिक, एक अमेरिकी नागरिक के पास एक केंद्र की तथा दूसरी राज्यों की नागरिकता हो सकती है । 
  5. अमेरिका में एक न्यायाधीश तब तक पद धारण करते है, जब तक वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम है और दूसरी ओर भारतीय संविधान में कहा गया है कि एक जिला न्यायाधीश 58 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण कर सकते है और एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक और सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद धरण कर सकते है ।

अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि फेडरेलिज्म की कुछ विशेषताएं हैं जो भारत और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका, दोनों के लिए समान हैं, मगर दूसरी ओर, भारत और अमेरिका अपने संविधान के फेडरल आचरण से संबंधित कई पहलुओं में भिन्न हैं। हालांकि, अमेरिका और भारतीय फेडरेलिज्म दोनों ही रुकावटें होने के बावजूद भी कुल मिलाकर सफल रहे।



Q2) Legislative Councils in states are expensive and otherwise superfluous legislative appendages. Examine the utility of legislative councils in this context. Also, comment on the procedural aspect of setting up and abolishing them.  
राज्यों में विधान परिषदें खर्चीली  और अनावश्यक  विधायी उपांग हैं। इस संदर्भ में विधान परिषदों की उपयोगिता का परीक्षण कीजिए , साथ ही, उन्हें स्थापित करने और समाप्त करने के प्रक्रियात्मक पहलू पर टिप्पणी कीजिए ?

 

Approach

  • विधान परिषदों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख करते हुए परिचय दें।

  • विधान परिषदों के गठन की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

  • विधान परिषदों के होने के महत्व और सीमाओं दोनों का उल्लेख कीजिए।

  • प्रतिनिधि लोकतंत्र के लिए दूसरा सदन किस प्रकार महत्वपूर्ण है, इसका उल्लेख करते हुए निष्कर्ष निकालिए।

 

Answer -

 

विधान परिषद या विधान परिषद भारत के कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधायिकाओं में उच्च सदन है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 169 राज्य विधान परिषदों के निर्माण या उन्मूलन से संबंधित है।

 

राज्य विधान परिषद के स्थापित करने और समाप्त करने की प्रक्रिया

  • राज्य विधान परिषद के उन्मूलन और निर्माण की शक्ति अनुच्छेद 169 के अनुसार भारत की संसद में निहित है। राज्य विधान परिषद बनाने या समाप्त करने के लिए, राज्य विधान सभा को एक प्रस्ताव पारित करना होगा, जिसे बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए सदन का और वर्तमान और मतदान का 2/3 बहुमत (पूर्ण + विशेष बहुमत)।
  • जब एक विधान परिषद बनाई या समाप्त की जाती है, तो भारत का संविधान भी बदल जाता है। हालाँकि, फिर भी, इस प्रकार के कानून को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन विधेयक नहीं माना जाता है।
  • राज्य विधान परिषद बनाने और समाप्त करने के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की भी सहमति होनी चाहिए।

राज्य विधान परिषदों की प्रासंगिकता अर्थात राज्य विधान सभाएं:

निर्णय लेने में विधान परिषदें बहुत छोटी भूमिका निभा रही हैं। इसे इस प्रकार देखा जा सकता है:

  • गिने-चुने राज्यों में ही विधान परिषदें हैं। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं।
  • विधान परिषदों के पास पर्याप्त शक्तियाँ नहीं हैं।
  • उदाहरण के लिए: धन विधेयकों को पेश करने और पारित करने में उनकी नगण्य भूमिका होती है। वे इसमें केवल 14 दिनों की देरी कर सकते हैं।
  • साधारण विधेयक को पारित करने की अंतिम शक्ति भी सभा के पास होती है।
  • परिषद केवल बजट पर चर्चा कर सकती है लेकिन अनुदान की मांगों पर मतदान नहीं कर सकती (जो कि विधानसभा का विशेष विशेषाधिकार है)।
  • संविधान संशोधन विधेयक के अनुसमर्थन में परिषद का कोई प्रभावी अधिकार नहीं है।
  • अंत में, परिषद का अस्तित्व विधानसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। विधानसभा की सिफारिश पर संसद द्वारा परिषद को समाप्त किया जा सकता है।

इसलिए, यह कहा जा सकता है कि विधान सभा की तुलना में वे अधिक प्रासंगिक नहीं हैं।

हालांकि, वे नियंत्रण और संतुलन के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।

  • यह विधान सभा को बहुत अधिक विधान या कार्यकारी अधिकार का प्रयोग करने से रोकता है।
  • एक द्विसदनीय विधायिका महत्वपूर्ण कानूनों और बजटों पर उचित विचार-विमर्श का अवसर प्रदान करती है जिसके लिए सावधानीपूर्वक प्रारूपण और पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है।
  • यह विविध प्रतिनिधित्व के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है, जो यकीनन चुनावी राजनीति की उथल-पुथल के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
  • उनके पास ईमानदारी से काम करने, प्रासंगिक संशोधन लाए गए, विधानसभा के प्रति गैर-टकरावपूर्ण रवैया, कार्यवाही में शिष्टाचार और संयम और सार्वजनिक हित के मामलों में सरकार और जनता दोनों का ध्यान आकर्षित करने का ट्रैक रिकॉर्ड है।

 

प्रतिनिधि लोकतंत्र में दूसरे सदन का होना महत्वपूर्ण है। अधिक सफल लोकतंत्र के लिए द्विसदनीयता वयस्क मताधिकार से परे दिखती है। इसलिए, विधान परिषदें विचार-विमर्श के एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करती हैं।