Q1: The empowerment of the Election Commission is indispensable for conducting clean and fair elections. In this context Discuss the reforms suggested by the Election Commission of India.
स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए निर्वाचन आयोग का सशक्तिकरण अपरिहार्य है| इस सन्दर्भ में निर्वाचन आयोग द्वारा सुझाए गए सुधारों की चर्चा कीजिये|
दृष्टिकोण
उत्तर -
लोकतंत्र के घटकों में विधि के शासन का लागू होना, निरंकुश सत्ता की अनुपस्थिति, और जन संप्रभुता की उपस्थिति आदि अनिवार्य तत्व हैं | लोक संप्रभुता को सुनिश्चित करने के लिए नियमित अंतराल पर चुनाव होने आवश्यक होते हैं| लोक संप्रभुता की वास्तविक अभिव्यक्ति के लिए स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव कराने आवश्यक होते हैं जिनके लिए चुनाव आयोग प्रत्येक पांच वर्ष पर चुनाव आयोजित करता है| ध्यातव्य है कि चुनाव प्रणाली में अपराधीकरण, कम मतदान प्रतिशत, सम्प्रदायवाद, काले धन का उपयोग आदि अनेक समस्याएं बनी हुई हैं जिनसे निपटने के लिए चुनाव आयोग का सशक्तिकरण अनिवार्य है| इस सन्दर्भ में स्वयं चुनाव आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं|
चुनाव आयोग के समस्त पदाधिकारी व कर्मचारी को समान संरक्षण प्राप्त होना चाहिए ताकि चुनाव मशीनरी अधिक स्वायत्तता के साथ अपने कर्तव्यों को निभा सके
पुनः निर्वाचन आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि निर्वाचन आयोग का पूरी तरह से एक पृथक सचिवालय हो जिस पर निर्वाचन आयोग का नियंत्रण हो (अभी अनुच्छेद 309 के अंतर्गत इन पर राष्ट्रपति का प्रशासनिक नियंत्रण होता है)
निर्वाचन आयोग ने एक अन्य महत्वपूर्ण सुझाव में यह कहा कि संविधान संशोधन कर अनुच्छेद 112 (3) के अंतर्गत निर्वाचन आयोग और उसके समस्त प्रशासनिक व्यय को बजट में भारित व्यय के अंतर्गत रखा जाए
निर्वाचन अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत घोषणापत्र या दिए गए वक्तव्य को झूठा पाए जाने पर निर्वाचन आयोग के पास ऐसे सदस्यों को दंडित करने का अधिकार (जेल भेजने का अधिकार)झूठा हलफनामा देने पर सम्बन्धित सदस्य को दंडित करने का अधिकार निर्वाचन आयोग को होना चाहिए ताकि स्वच्छ चुनाव आयोजित करने में सफलता प्राप्त हो सके
RPA 1951 की धारा 126 में संशोधन कर यह व्यवस्था की जाए कि न्यायालय निर्वाचन सम्बन्धी किसी विवाद में किसी अपराध का संज्ञान तभी ले जब निर्वाचन आयोग इसकी सिफारिश करे
भ्रष्टाचार या घूसखोरी की रिपोर्ट आने पर निर्वाचन आयोग को उस निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव रद्द करने का अधिकार हो और दोषी दल या व्यक्ति को दण्डित करने का अधिकार होना चाहिए
निर्वाचन आयोग को इस बात की स्वतंत्रता दी जाए कि वह निर्वाचन के लिए जरुरी प्रांगणों का अधिग्रहण कर सके साथ ही वह अपनी जरूरत के अनुसार राज्य के किसी भी स्टाफ को चुनाव में ड्यूटी पर लगा सके
RPA 1951 के अध्ययय 3 को संशोधित कर यह व्यवस्था की जाए कि यदि कोई सदस्य चुनाव जीत भी जाता है और उसके ऊपर यदि किसी प्रकार की देनदारी बकाया रहती है तो इसके आधार पर अयोग्य घोषित करने का अधिकार आयोग के पास हो
RPA 1951 की धारा 8 को संशोधित कर निर्वाचन आयोग को यह अधिकार दिया जाए कि यदि किसी राजनीतिक सदस्य के ऊपर आपराधिक कृत्य के आरोप लगे हैं भले ही उसमें दोष सिद्धि नहीं हुई है तब भी आयोग उसे चुनाव लड़ने से रोक सके|
राजनीति में धर्म या पंथ के घालमेल को रोकने के लिए RPA 1951 की धारा 123 में संशोधन किया जाए| दूसरे शब्दों में यदि चुनाव के दौरान कोई सदस्य या दल मतदाताओं को रिझाने के लिए किसी धर्म या पंथ की ओट लेता है तो इस सम्बन्ध में
न्यायालय सीधे किसी याचिका की सुनवाई न करे बल्कि यह निवाचन याचिक के माध्यम से ही कोर्ट के सामने लाया जाए ताकि निर्वाचन आयोग भी अपना पक्ष रख सके|
इसी तरह निर्वाचन आयोग के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी ने यह सुझाव दिया था कि निर्वाचन आयोग को भी HC व SC की भांति अपने फैसले न मानने वालों के विरूद्ध अवमानना की कार्यवाही का अधिकार मिलना चाहिए| जाहिर है इसके लिए अनुच्छेद 324 (1) में संशोधन करना होगा| किन्तु यहाँ एक दूसरी समस्या आएगी क्योंकि अवमानना की कार्यवाही न्यायिक समीक्षा से सम्बद्ध है जबकि निर्वाचन आयोग एक अर्ध न्यायिक निकाय है तथा स्वायत्त है, इसे न्यायालय के बराबर शक्ति नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत में समानांतर न्यायिक प्रणाली नहीं है| फिर भी निर्वाचन आयोग का शास्क्तिकरण अपरिहार्य ताकि स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव के माध्यम से भारत में लोकतंत्र का निरंतर विकास सुनिश्चित किया जा सके|
Q2: Mention the provisions of National Commission for Other Backward Classes.
राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग संबंधी प्रावधानों का उल्लेख कीजिए ?
Answer -
पहली बार इस तरह का आयोग सांविधिक संस्था के रूप में 1993 में आया था| (इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ वाद में SC के निर्देश पर इसका गठन किया गया था)
भारतीय संविधान मे 102वां संविधान संशोधन अधिनियम 2018 के अनुच्छेद 338(B) - सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के शिकायतों एवं समस्याओं के समाधान के लिए माध्यम से राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।
अनुच्छेद 342(A)- भारत के राष्ट्रपति के द्वारा राज्यपाल की सलाह पर सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को पहचाना जाना तथा उन्हें सूचीबद्ध किया जाना निश्चित किया गया ।
आयोग की संरचना(5 सदस्यीय)- 1 अध्यक्ष, 1 उपाध्यक्ष तथा 3 अन्य सदस्य होंगे तथा इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाएगी । इनके सदस्यों को भी सामान्यतः वही जिम्मेदारियां/कार्य दी जाएगी जो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्यों को दिया गया ।
शक्तियाँ व कार्य -
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास में भाग लेता है तथा सलाह देता है और संघ एवं किसी भी राज्य के अंतर्गत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करता है।
यह आयोग सुरक्षापायों के कार्यान्वयन पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। इसके अलावा आयोग जब भी उचित समझे अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत कर सकता है। राष्ट्रपति द्वारा संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष यह रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।
इस तरह की कोई भी रिपोर्ट या उसका कोई हिस्सा, जो किसी भी राज्य सरकार से संबंधित हो, की एक प्रति राज्य सरकार को भेजी जाएगी।
NCBC सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के संरक्षण, कल्याण एवं विकास तथा उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का भी निर्वहन करता है, जिन्हें संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के अधीन राष्ट्रपति द्वारा विशेष रूप से उल्लिखित किया गया हो।
किसी भी मामले पर सुनवाई के दौरान इसे दीवानी न्यायालय के समान शक्तियाँ प्राप्त होती हैं|
निष्कर्षतः, यदि यह आयोग वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर एक विशेषज्ञ संस्था के रूप में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग हेतु प्रयास करेगा तभी संवैधानिक दर्जा देने की सार्थकता सिद्ध होगी|
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