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SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 22 Answer Hindi

Updated : 24th Dec 2021
SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 22 Answer Hindi

Q1: What are the factors responsible for location of Iron and steel indutries in India?

       भारत में लौह और इस्पात उद्योगों की अवस्थिति के लिए कौन से कारक उत्तरदायी हैं?

 

तीव्र औद्योगिक विकास के लिए लौह एवं इस्पात उद्योगो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारतीय उद्योग के लगभग सभी क्षेत्रक अपनी अवसंरचना के लिए लौह एवं इस्पात उद्योग पर निर्भर हैं।भारतीय इस्पात क्षेत्र में वृद्धि लौह अयस्क और लागत प्रभावी श्रम जैसे कच्चे माल की घरेलू उपलब्धता से प्रेरित है। नतीजतन, भारत के विनिर्माण उत्पादन में इस्पात क्षेत्र का प्रमुख योगदान रहा है।

भारत में लौह और इस्पात उद्योग के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक-

कच्चे माल की उपलब्धता -: इस उद्योग द्वारा उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल में लौह-अयस्क, कोकिंग कोयला, चूना पत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज और अग्निसहमृत्तिका (fire clay) सम्मिलित हैं।जैसे -भारत 2021 तक दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है।छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ भागों में लौह और इस्पात उद्योगों का संकेंद्रण।

परिवहन व विद्युत आपूर्ति   जैसे बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता -

प्रमुख लौह एवं इस्पात संयंत्र रेलवे लाइनों और पत्तनों से जुड़े क्षेत्रों में स्थित हैं। जैसे TISCO संयंत्र मुंबई-कोलकाता रेलवे लाइन के अति निकट है यहां से इस्पात के निर्यात के लिए निकटतम) पत्तन कोलकाता है।

आयातित अयस्क पर निर्भरता के कारण  कुछ लौह एवं इस्पात संयंत्र  तटीय क्षेत्रों पर  स्थित है जिससे माल ढुलाई की लागत मे कमी आ जाती है ।  जैसे  विशाखापत्तनम, रत्नागिरी, मैंगलोर जैसेलौह एवं इस्पात संयंत्र ।  शक्ति की उपलब्धता -शक्ति के बिना मशीनरी के कार्यों का सम्पादन करना संभव नही है ।ज़्यादातर लौह एवं इस्पात उद्योगों की स्थापना जलविद्युत क्षमता वाले क्षेत्रों मे किया गया ।जैसे , सुवर्णरेखा नदी के निकट TISCO, बराकर नदी के निकट ||SCO आदि । 

बाजार तक पहुंच: बाजार विनिर्मित उत्पादों हेतु स्थान उपलब्ध कराते हैं। इसके अतिरिक्त, इस उद्योग का अंतिम उत्पाद भारी होता है और यदि बाजार में सुलभ नहीं हैं तो परिवहन की लागत समग्र लागत में वृद्धि करती है।

श्रम की उपलब्धता - किसी भी उद्योगों के संचालन के लिए कुशल /अर्धकुशल मानवीय श्रम की आवश्यकता होती है । भारत मे श्रम शक्ति अधिक गतिशील है । तथा जनसंख्या अधिक होने से श्रम की अधिकता है । 

औद्योगिक नीति: भारत का उद्देश्य संतुलित क्षेत्रीय विकास है। भिलाई और राउरकेला में लौहएवं इस्पात उद्योग की स्थापना का उद्देश्य पिछड़े क्षेत्रों का विकास करना था।

वर्तमान मे सरकार ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई कदन उठाए है । जैसे राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 , स्वचालित मार्ग से इस्पात क्षेत्र मे 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति । 

 

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2000 और जून 2021 के बीच, भारतीय धातुकर्म उद्योगों ने 16.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI प्रवाह आकर्षित किया।

सरकार की राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 का लक्ष्य 2030-31 तक प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत को बढ़ाकर 160 किलोग्राम करना है। सरकार ने नीति को भी बढ़ावा दिया है जो अधिमान्य खरीद के तहत कवर किए गए अधिसूचित इस्पात उत्पादों में न्यूनतम 15% का मूल्यवर्धन प्रदान करती है।





Q2: What is the difference between Tropical and Temperate cyclones? Explain with the help of diagrams.

       उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में क्या अंतर है? रेखाचित्रों की सहायता से स्पष्ट कीजिए।

 

चक्रवात:

चक्रवात निम्न दाब के ऐसे केंद्र होते हैं , जिनके चारों तरफ संकेन्द्रीय समदाब रेखाएं विस्तृत होती हैं|केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है, परिणामस्वरूप परिधि से केंद्र की ओर पवनें प्रवाहित होने लगती हैं|

 उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में अंतर -




    उष्णकटिबंधीय चक्रवात 

ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। ध्यातव्य है कि भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्राय: अभाव रहता है।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी वायुमंडलीय तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है, तत्पश्चात् इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है।

व्यापारिक पूर्वी पवन की पेटी का अधिक प्रभाव होने के कारण सामान्यत: इनकी गति की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर रहती है।

 

ये चक्रवात सदैव गतिशील नहीं होते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक स्थायी हो जाते हैं तथा तीव्र वर्षा करते हैं।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के मध्य/केंद्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है, जिसे ‘चक्रवात की आँख’कहते हैं, 

ITCZ के प्रभाव से निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं


शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात वे चक्रवातीय वायु प्रणालियाँ , जो उष्ण कटिबंध से दूर, मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं|

 

यह एशिया के उत्तर-पूर्वी तटीय भागों में  उत्पन्न होकर उत्तर-पूर्व दिशा में भ्रमण करते हुए एल्युशियन व उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तटीय भागों पर प्रभाव डालते हैं

 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की गति की सामान्य दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होती है, जिसमें दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर  गति की प्रवृति होती है।

मध्य तथा उच्च अक्षांशों में जिस क्षेत्र से ये गुजरती हैं,वहां मौसम संबंधी अवस्थाओं में तीव्र गति से बदलाव आते हैं|

शीतोष्ण कटिबंधीय  चक्रवातों के केंद्र मे चक्रवात की आँख  का अभाव रहता है।

ये अक्षांश वायु के अभिसरण क्षेत्र हाँ, जहाँ आम तौर पर विपरीत गुणों वाली वयुराशियाँ मिलकर ध्रुवीय वाताग्र का निर्माण करती हैं, आदि| 




Q3: Explain the concept of continental drift theory and plate tectonics.

       महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी की अवधारणा की व्याख्या कीजिए

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी की अवधारणा भू आकृति में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या पर आधारित है ।  पृथ्वी की सतह अस्थाई एवं परिवर्तनशील है। पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों के लिये अंतर्जात एवं बहिर्जात भूसंचलन को जिम्मेदार माना जाता है।

महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत-1912 में प्रस्तुत इस सिद्धांत के माध्यम से वेगनर नभूगर्भिक इतिहास में हुए जलवायु परिवर्तन की व्याख्या करना चाहते थे ।इस सिद्धान्त के माध्यम से बताया कि सभी महाद्वीप एक ही भूखंड के भाग थे जो एक विस्तृत महासागर से घिरे हुए थे । बड़े महाद्वीप को पेंजिया था महासागर को पेंथालसा नाम दिया ।  

महाद्वीपीय प्रवाह के लिए उत्तरदायी बल -भूमध्य रेखा की ओर प्रवाह के लिए अपकेन्द्रीय बल पश्चिम की ओर प्रवाह के लिए ज्वारीय बल 

महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में साक्ष्य

महासागरीय तटों की भू आकारिकी में समानता (जिग सॉ फिट) -

दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका को जोड़ना

        महासागरों के पार की चट्टानों की आयु एवं संरचना में समानता

ब्राज़ील-पश्चिमी अफ्रीका के पर्वतीय क्षेत्र,उत्तरी अमेरिका का पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र और पश्चिमी यूरोप का,अप्लेशियन पर्वत और स्केंडीनेवियन पर्वत

जीवाश्मों का वितरण- मेसोसौरस नामक सरीसृप प्रजाति के जीवाश्म के प्रमाण दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका में पाए गए |

Glasopatris नामक वनस्पति के जीवाश्म-प्रायद्वीपीय  भारत और अन्टार्कटिका  दोनों स्थानों पर प्रमाण मिले हैं

लैमुर नामक जीव जिसके जीवाश्म भारत,मैडागास्कर और अफ्रीका में प्रमाण पायें गए|

हिमानी के निक्षेप के प्रमाण-वर्तमान के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों जैसे- प्रायद्वीपीय भारत,अफ्रीका ,और ऑस्ट्रेलिया में कभी हिमानी की उपस्थिति थीअफ्रीका,भारत,ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में पाए गए प्रमाण |

कोयले के निक्षेप- अफ्रीका,ब्राज़ील और पश्चिम यूरोप में कोयले का निक्षेप , भारतीय प्रायद्वीप तथा अन्य महाद्वीपों में पाए जाने वाले कोयले के निक्षेप|

प्लेसर निक्षेप- ब्राज़ील में पाए गए स्वर्ण निक्षेप एवं घाना के स्वर्ण निक्षेप के प्रमाण 

 

 

 प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत 

 प्लेट शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1965 में टूजो विल्सन के द्वारा किया गया|

मैकेंजी,पार्कर और मॉर्गन के द्वारा के एक अवधारणा प्रस्तुत किया गया जो आगे चलकर प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के रूप में प्रचलित हुआ|

इस सिद्धान्त मे सागरीय नित्तल सिद्धांत को विस्तार और व्यापकता प्रदान करने का कार्य किया गया|इसके अनुसार  पृथ्वी का क्रस्ट विभिन्न छोटे-छोटे प्लेट में विभाजित हैं जो गतिमान हैं|

प्लेटों के अभिसरण क्षेत्र में अधिक घनत्व वाली प्लेट, कम घनत्व वाली प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाती है; इसके फलस्वरूप गर्तों का निर्माण होता है|

पृथ्वी की स्थलमण्डल 7 प्रमुख प्लेटों तथा कुछ गौड़ प्लेटों पर निर्भर है ।  जैसे प्रशांत प्लेट ,उत्तरी अमेरिका प्लेट ,दक्षिण अमेरिका प्लेट ,यूरेशियन  प्लेट ,अफ्रीका प्लेट,अंटार्कटिक प्लेट । 

प्लेटों का संचलन प्लेटों के घनत्व में अंतर ,गुरुत्वाकर्षण बल तथा संवनीय तरंगों के माध्यम से होता है । 

प्लेट संचरण के फलस्वरूप तीन प्रकार की सीमाए बनाती है -

अपसारी सीमा: जब दो प्लेट एक-दूसरे से विपरीत दिशा में विस्थापित होता है तथा नई क्रस्ट का निर्माण होता है तो उन्हें अपसारी प्लेट या रचनात्मक सीमा कहते हैं|जैसे मध्य अटलांटिक कटक 

अभिसारी सीमा: जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे क्षेपित होती है तो इस क्षेपण से क्रस्ट का विनाश हो जाता है इस प्रकार की सीमा को अभिसारी सीमा या विनाशकारी सीमा कहते हैं|

संरक्षी या रूपांतर सीमा: जहाँ न तो क्रस्ट का न तो निर्माण होता है न ही विनाश होता है तथा प्लेटें एक-दूसरे के सापेक्ष दिशा में गति करती हैं उन्हें रूपांतरित सीमा कहते हैं|