1) While Explaining the importance of biodiversity, explain the difference between sanctuary, national park and biosphere reserve.
जैव-विविधता के महत्त्व को बताते हुए, अभ्यारण्य, राष्ट्रीय पार्क एवं जैव मंडल रिजर्व के मध्य अंतर को स्पष्ट कीजिये|
दृष्टिकोण
उत्तर -
जैव-विविधता, जीवों के बीच पायी जाने वाली विभिन्नता है जो कि किसी प्रजाति विशेष के अंतर्गत, विभिन्न प्रजातियों के बीच और उनकी पारितंत्रों की विविधता को भी समाहित करती है| जैव-विविधता तीन प्रकार की होती है यथा; आनुवांशिक विविधता, प्रजातीय विविधता तथा पारितंत्र विविधता| प्रजातियों में पायी जाने वाली आनुवांशिक (जीन आधारित) विभिन्नता को आनुवांशिक विविधता के नाम से जाना जाता है। यह आनुवांशिक विविधता जीवों के विभिन्न आवासों में विभिन्न प्रकार के अनुकूलन का परिणाम होती है| प्रजातियों में पायी जाने वाली विभिन्नता को प्रजातीय विविधता के नाम से जाना जाता है| पारितंत्र विविधता पृथ्वी पर पायी जाने वाली पारितंत्रों में उस विभिन्नता को कहते हैं जिसमें प्रजातियों का निवास होता है| पारितंत्र विविधता विविध जैव-भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- झील, मरुस्थल, ज्वारनद्मुख आदि में प्रतिबिम्बित होती है| किसी भी विशेष समुदाय अथवा पारितंत्र के उचित रूप से कार्य के लिये प्रजातीय विविधता का होना अनिवार्य होता है|
जैव विविधता का महत्व
अभ्यारण्य
राष्ट्रीय पार्क
जीव मंडल रिजर्व
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि अभ्यारण्य, राष्ट्रीय पार्क और जैव मंडल रिजर्व के मध्य अनेक अंतर होते हैं| तथापि इन सभी प्रयासों का उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण होता है| जलवायु परिवर्तन की स्थिति में जैव-विवधता के ह्रास की दर बढती जा रही है| अतः इस तरह के संरक्षण उपायों की आवश्यकता है| भारत सरकार ने अनेकों अभ्यारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और जैव मंडल निचयों की स्थापना कर इस संदर्भ में अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट की है|
2) What is Environment Impact Assessment? Identifying the different processes involved in the exercise, highlight the purpose of carrying out this assessment. Further, mention in brief the status of EIA in India.
पर्यावरण प्रभाव आकलन क्या है? अभ्यास में शामिल विभिन्न प्रक्रियाओं की पहचान करते हुए, इस आकलन को करने के उद्देश्य पर प्रकाश डालें। इसके अलावा, भारत में ईआईए की स्थिति का संक्षेप में उल्लेख करें।
दृष्टिकोण:
पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
ईआईए में शामिल विभिन्न प्रक्रियाओं को सामने लाते हुए ईआईए के उद्देश्य पर चर्चा करें।
भारत में ईआईए की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित, पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसका उपयोग किसी भी विकास परियोजना जैसे कि परमाणु ऊर्जा, नदी घाटी परियोजनाओं, बंदरगाहों, पेट्रोलियम रिफाइनरियों, रासायनिक उर्वरकों, खनन आदि के पर्यावरणीय परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है।
ईआईए का उद्देश्य
किसी परियोजना के कार्यान्वयन के लिए निर्णय लेने से पहले उसके पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करें।
हानिकारक प्रभाव को कम करें और लाभकारी प्रभावों को अधिकतम करें।
ईआईए करने में शामिल विभिन्न प्रक्रियाएं
स्क्रीनिंग: ईआईए का पहला चरण, जो यह निर्धारित करने में मदद करता है कि प्रस्तावित परियोजना को ईआईए की आवश्यकता है या नहीं।
स्कोपिंग: सीमा और समय सीमा को परिभाषित करने के साथ-साथ प्रमुख मुद्दों और प्रभावों की विशेषज्ञ पहचान जिनकी और जांच की जानी चाहिए।
प्रभाव विश्लेषण (Impact Analysis): संभावित सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान करना और भविष्यवाणी करना जैसे वायु गुणवत्ता, ध्वनि स्तर, वन्यजीवों और स्थानीय समुदायों पर प्रभाव आदि।
न्यूनीकरण : कार्रवाई की सिफारिश ताकि प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सके और उनसे बचा जा सके।
निर्णय लेने वाली संस्था को रिपोर्ट करना, जन सुनवाई, ईआईए की समीक्षा और निर्णय लेना।
निगरानी के बाद: परियोजना के चालू होने के बाद, यह कदम सुनिश्चित करता है कि परियोजनाओं का प्रभाव अनिवार्य कानूनी मानकों से अधिक न हो।
भारत में ईआईए की स्थिति
1980 के दशक तक, लगभग सभी परियोजनाओं को भारत में बहुत कम या बिल्कुल भी पर्यावरण संबंधी चिंताओं के साथ लागू किया गया था। हालांकि, 1994 में, मंत्रालय ने आधिकारिक "पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना" 1994 जारी की, जिसमें केंद्र या राज्य स्तर से परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी लेने का मानदंड तय किया गया था।
2006 में ईआईए 1994 के ईआईए की जगह लेने के लिए जारी किया गया था। ईआईए, 2006 के बाद से, विभिन्न विकास परियोजनाओं को उनकी सीमा क्षमता और संभावित प्रदूषण क्षमता के आधार पर श्रेणी ए और बी में पुन: वर्गीकृत किया गया है, जिसके लिए पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता होती है।
2006 की अधिसूचना की अनुसूची में सूचीबद्ध सभी नई परियोजनाओं के संबंध में कुछ विशेष परिस्थितियों को परिभाषित करने और पर्यावरण मंजूरी के लिए मानदंडों में ढील देने के संबंध में भी पर्यावरण मंजूरी आवश्यक है। इसका उपयोग पर्यावरण पर तीव्र औद्योगीकरण के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और उन प्रवृत्तियों को उलटने के लिए एक प्रमुख उपकरण के रूप में किया जाता है जो लंबे समय में जलवायु परिवर्तन का कारण बन सकती हैं।
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