1)Explaining the concept of Integral Human Philosophy of Pandit Deendayal Upadhyay, examine its relevance?
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिये ?
Answer -
पंडित दीनदयाल उपाध्याय बहुमुखी प्रतिभा के धनी दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ थे। इन्होने अंत्योदय और एकात्म मानव दर्शन की अवधारणा को प्रस्तुत किया । यह दर्शन सम्पूर्ण समाज ,संस्कृति और समजा के इकाई के रूप मे व्यक्ति के समेकित उन्नयन का दर्शन है । इस दर्शन के केंद्र में मानव है ।
पंडित दीन दायल उपाध्याय ने पूंजीवाद और समाजवादी विचारधारा का विरोध किया । इनके अनुसार ये दोनों विचारधाराएँ भौतिकवादी उद्देश्य पर आधारित है ।जबकि मानव के सर्वांगीण विकास के लिए भौतिक विकास के साथ -साथ आत्मिक विकास की भी आवश्यकता होती है । इसके साथ ही साथ ही, उन्होंने एक वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की थी।
एकात्म मानव वाद की की अवधारणा में व्यक्ति को समग्रता से देखने का दृष्टिकोण निहित है। व्यक्ति के पास केवल शरीर ही नहीं है बल्कि मन , बुद्धि और आत्मा भी है । यदि इनमे से किसी एक तत्व की उपेक्षा की जाए तो व्यक्ति का सुख अर्थहीन हो जाएगी । इसी प्रकार मानव, पशु या पादप वर्ग की सभी विभिन्न आत्माओं की एकात्मता को स्वीकार कर अन्तर्निहित विविधता को अस्वीकार किया ।
एकात्म मानववाद की वर्तमान प्रासंगिकता-
आज वैश्वीकरण ने एक ओर भौतिकता को बढ़ावा दिया वही दूसरी ओर सामाजिक गतिरोध की स्थित भी उत्पन्न कर दिया ।प्रवसन और विघटन (सामाजिक ,राजनीतिक आदि ) को बढ़ावा दिया । एकात्म मानववाद ने अति भौतिकता का विरोध किया ।
संसाधनो का समुचित वितरण न होने से अमीरों और गरीबो के बीच की खाई लगातार बढ़ रही है । अंत्योदय के माध्यम से संसाधनो के प्राप्त लाभों में कमजोर वर्गों की भागीदारी को सुनिश्चित करने का दृष्टिकोण निहित है ।
बढ़ते कुपोषण , गरीबी , बेरोजगारी आदि के कारण समावेशी विकास नही हो प रहा है । समावेशी विकास को बढ़ावा देने मे एकात्म मानववाद का दर्शन अधिक प्रभावी है ।
एकात्म मानववाद का दर्शन लोकतंत्र, सामाजिक समानता तथा मानवाधिकारों के विचारों का भी समर्थन करता है, चूंकि सभी धर्मों और जातियों का सम्मान तथा उनकी समानता धर्मराज्य की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है।
आज भी समाज विभिन्न वर्गों , जातियों, समुदायों में बंटा हुआ है । एकात्म मानव वाद मे वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की है जिससे एक वहतर समाज का निर्माण हो सकें ।
एकात्म मानववाद मानव के गरिमापूर्ण जीवन जीने के दृष्टिकोण पर आधारित दर्शन है। भारत जैसे कल्याणकारी राज्य को समावेशी विकास के लिए प्रेरित करता है ।
वर्तमान मेंसरकार के द्वारा मिशन अंत्योदय के माध्यम से विभिन्न मंत्रालयों के सामाजिक क्षेत्र से संबंधित स्कीमों का विलय करने का प्रयास किया गया ताकि समाज के जरूरतमंद व्यक्तियों को सर्वांगीण लाभ प्राप्त हो सके| सरकार के द्वारा सबका साथ, सबका विकास एवं सबका विश्वास दीनदयाल उपाध्याय के विचारधारा से प्रेरित है|
2) Explain the principle of duty of Immanuel Kant.
इमैन्यूल कांत के कर्तव्य सिद्धांत की व्याख्या कीजिये ?
Answer -
पाश्चात्य दर्शन मे चल रहे ज्ञान प्राप्ति के आधार बुद्धिवाद और अनुभववाद को कान्ट मे अपने दर्शन मे दोनों का समन्वय कर दिया । कांत की दृष्टि में नैतिकता स्वतः साध्य है। मनुष्य शुभ का चयन करने के लिए बाध्य है। कांत ने कहा कि सच्ची नैतिकता बाहय एवं आन्तरिक दोनों दबावों से मुक्त होती है।
इमैन्यूल कांत का कर्तव्य सिद्धांत-
इस सिद्धांत के द्वारा कर्तव्यों के अनुपालन को नैतिकता का केंद्र बिंदु माना गया है|
कांत के अनुसार, मनुष्यों के साथ सदैव उनको अपने आप में लक्ष्य मानकर व्यवहार करना चाहिए एवं कभी भी उनको केवल साधन नहीं मानना चाहिए|
कांत के द्वारा व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखने पर विशेष बल दिया गया है एवं प्रत्येक व्यक्ति के निहित मूल्य को स्वीकार किया गया है|
अतः व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति का प्रयोग अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु नहीं किया जाना चाहिए|
कांत के अनुसार निरपेक्ष आदेश को सर्वव्यापी नैतिक नियम माना गया जोकि सारे व्यक्तियों के लिए मान्य है| कांत के अनुसार निरपेक्ष आदेशों का पालन बिना किसी अपेक्षा या शर्तों के आधार पर किया जाना चाहिए| यह अपने आप में संकल्प की उचित दिशा है|
कांत के अनुसार उचित आचरण/क्रियाशीलता 2 शर्तों के अनुपालन पर आधारित है -
1. तर्कों के द्वारा उजागर नैतिक नियम के अनुरूप हो;
2. कर्ता के द्वारा ऐसा इसलिए किया जाए क्योंकि वह नैतिक नियम के प्रति शुद्ध सम्मान है;
कांत के द्वारा किसी उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु सापेक्ष आदेश का समर्थन नहीं किया गया|
किसी अन्य साध्य को प्राप्त करने हेतु जिन नियमों का प्रयोग किया जाता है उसकी प्रकृति सापेक्ष आदेश होती है जिसका समर्थन कांत के द्वारा नहीं किया गया है|
2021 Simplified Education Pvt. Ltd. All Rights Reserved