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SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 30 Answer Hindi

Updated : 2nd Jan 2022
SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 30 Answer Hindi

Q1) Mentioning the characteristics of Indian civil services, explain the role of civil service services in the public system.
भारतीय नागरिक सेवाओ की विशेषताओ का उल्लेख करते हुए लोक तंत्र मे नागरिक सेवा सेवाओ की भूमिका को स्पष्ट कीजिए |

 

भारतीय शासन पढ़यती लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर आधारित होने के कारण लोकतंत्र का हर स्तंभ बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और सभी के कार्य लोकतन्त्र को बनाए रखने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । इस दिशा में लोक सेवकों की भूमिका काफी संवेदनशील होती है, क्योंकि वे जनता और सरकार के बीच की कड़ी के रूप में काम करते हैं।  सिविल सेवक किसी राजनैतिक व्यवस्था में रीढ़ की तरह होते हैं, जो सरकारी नीतियों और कानूनों के कार्यान्वयन, नीति-निर्माण, प्रशासनिक काम-काज और राजनेताओं के सलाहकार के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा वे अपने तमाम भूमिकाओं के ज़रिए विधायी कार्य, अर्द्ध न्यायिक कार्य, कर और वित्तीय लाभों का वितरण, रिकॉर्ड रखरखाव और जनसंपर्क स्थापित करने जैसे दूसरे महत्वपूर्ण काम भी करते हैं।

 

भारतीय नागरिक सेवा की विशेषताएं:

  1. अनेक पश्चिमी देशों से भिन्न भारत में नागरिक सेवा को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है| हालाँकि नागरिक सेवकों की नियुक्ति की कोई एक प्रक्रिया निर्धारित नहीं है और न ही नियुक्ति प्रक्रिया को संवैधानिक संरक्षण को प्राप्त है|
  2. संविधान में हालाँकि नागरिक सेवकों की नियुक्ति और कार्यप्रणाली को प्रसादपर्यंत के सिद्धांत पर आधारित किया है किन्तु साथ ही अनु.311 के माध्यम से उन्हें संवैधानिक संरक्षण भी दिया गया है|
  3. भारत की विविधताओं को देखते हुए प्रान्तों को भी प्रान्त स्तरीय नागरिक सेवकों की नियुक्ति का अधिकार है किन्तु साथ ही अखिल भारतीय सेवाओं(अनु.312) का उपबंध करके प्रशासनिक एकीकरण की भी व्यवस्था की गई है|
  4. भारत में व्यापक उत्तरदायित्व सिद्धांत को स्वीकार किया गया है| अर्थात जहाँ एक मंत्री संसद(लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी होता है वहीँ एक नागरिक सेवक मंत्री के प्रति जवाबदेह होता है| हालाँकि एक निष्पक्ष नागरिक सेवा न केवल तात्कालिक सरकार के प्रति उत्तरदायी है अपितु यह देश के संविधान के प्रति भी उत्तरदायी होती है और वे संविधान के प्रति वफ़ादारी की शपथ भी लेते हैं|
  5. एक नागरिक सेवक के लिए कुछ अर्हताएं निर्धारित की जाती हैं ताकि उसके अनुभव और ज्ञान का सेवा के अनुकूल परीक्षण किया जा सके|
  6. भारत में नागरिक सेवा प्रणाली को अमेरिका की स्पॉइल व्यवस्था के विपरीत निष्पक्ष और स्थायी बनाया गया है ताकि नागरिक सेवकों का राजनीतिकरण न हो सके|
  7. नागरिक सेवा की प्रकृति एकीकृत, निरंतर और विशिष्ट होती है जो "दीर्घकालिक सामाजिक लाभ" को आधार बनाकर अपने कार्यों का संचालन करते हैं|(जबकि राजनीतिक कार्यपालिका अल्पकालिक लाभ को आधार बनाकर कार्य करती है)
  8. भारतीय संविधान एक नागरिक सेवक से नैतिकता की अपेक्षा करता है|

नागरिक सेवा के लाभ:

  1. सरकार द्वारा निर्मित कानून एवं नीतियों तथा योजनाओं को लागू करने में|
  2. एक ओर जहाँ मंत्रिपरिषद को सहयोग करता है वहीँ दूसरी ओर मंत्रिपरिषद के द्वारा लिए गए निर्णयों को व्यवहारिकता प्रदान करता है|भारत में नागरिक सेवा सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास का आधार स्तम्भ है अर्थात प्रशासनिक क्रियाविधियों में आए परिवर्तन से ही सामाजिक परिवर्तन प्रेरित होता है|
  3. नागरिक सेवाएँ कल्याणकारी सेवाओं को मूर्त रूप प्रदान करती हैं|
  4. ये शासन की समता, क्षमता और विभेदीकरण को तर्कसंगत बनाते हुए सरकार को विकास फंद(trap) से सुरक्षित करती हैं साथ ही विकास को उत्प्रेरित करने में सहयोग करती हैं|
  5. राष्ट्रवाद की भावना के विकास करने मे भूमिका 
  6. शासन को एक रूपता प्रदान करने मे भूमिका । 

नागरिक सेवा के समक्ष चुनौतियाँ:

भारत में नागरिक सेवकों में व्यवसायिकता का अभाव पाया जाता है जिससे उनका प्रदर्शन और क्षमता निम्नस्तरीय बनी रहती है|

अप्रभावी प्रोत्साहन प्रणाली: यह कर्मठ, मेधावी और ईमानदार सिविल सेवकों को हतोत्साहित करती है|

कठोर और नियमबद्धता नागरिक सेवकों को व्यक्तिगत निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करती है जिससे वे अपनी कुशलता के अनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाते|

 व्हिसल ब्लोइंग करने वाले अधिकारीयों एवं कर्मचारियों तथा नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा का अभाव है जो प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेहिता को बाधित करती है|

राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण नागरिक सेवकों का मनमाना स्थानांतरण एवं निलंबन एक अलग चुनौती को जन्म देता है|

  

भारत में विद्यमान पेट्रिमोनियालिज्म(ऐसा मानना कि हर चीज राजनीति से जुडी है अर्थात सभी शक्तियों का स्त्रोत एक राजनेता बन जाता है) एक ऐसी चुनौती को प्रस्तुत करती है जिसमें नागरिक सेवक स्वतः ही एक मंत्री के अधीन हो जाता है|

भारत के सिविल सेवकों के अंतर्गत अभिवृतिमूलक समस्या है जिससे देश में लालफीताशाही जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न होती है|

 

Q2) Discuss need for Corporate Governance, and functions and challenges.
कॉर्पोरेट गवर्नेंस की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए इसके कार्यों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये ?

 

कोई भी संगठन चाहे वह लोक संगठन हो या फिर निजी उसका कामकाज नैतिकता के आधार पर संचालित होना चाहिये तथा उसके द्वारा अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन भली-भाँति किया जाना चाहिये। किसी भी कंपनी के कॉर्पोरेट शासन में मुख्य रूप से छह घटक (ग्राहक, कर्मचारी, निवेशक, वैंडर, सरकार तथा समाज) शामिल होते हैं जिन्हें ‘स्टेक होल्डर्स’ कहा जाता है। ।

कोई भी ऐसा संगठन जो सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में कार्य करता है तथा अपने कर्मचारियों, ग्राहकों, आम नागरिकों (समाज) तथा शेयरधारकों के प्रति अपनी जबावदेही को समझता है और संगठन के विकास के साथ-साथ इन सभी का भी ध्यान रखता है तो कहा जा सकता है कि ऐसे संगठन का कामकाज नैतिकता के आधार पर संचालित किया जा रहा है। 

 ऐसा गवर्नंस जिसके माध्यम से संस्थाओं का संचालन, विभिन्न हितधारकों के अधिकारों के हितों की रक्षा, दायित्वों का निर्धारण एवं कार्पोरेट के शेयर धारकों की संपत्ति में वृद्दि के उद्देश्य से संचालित किया जाता है। 

· कॉर्पोरेट गवर्नेंस का आधार सिद्धांत- सुशासन (उत्तरदायित्व, पारदर्शिता, स्वायत्ता)

भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का विकास: सेबी की स्थापना, 1988 ,एसोचेम, फिक्की आदि की अनुशंषा पर SEBI ACT, 1992 निर्मित , कंपनियों को विनियमित करने हेतु उपबंध किये गए , नारायण मूर्ति समिति का गठन (2003) , वर्ष 2009 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस स्वैच्छिक दिशानिर्देश (कम्पनी अधि.1956) , कम्पनी अधिनियम, 2013- कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व(CSR) का निर्धारण , उदय कोटक समिति का गठन (2017),  इनसॉल्वेनसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2018 ,नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019। 

भारत में कार्पोरेट गवर्नेंस की आवश्यकता:

  1.  भारत में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का अभाव कार्पोरेट जगत में भी पाया जाता है
  2. कॉर्पोरेट की दक्षता वृद्धि के उपयुक्त प्रावधानों का नहीं होना 
  3. निजी क्षेत्र का सीमित विकास 
  4. मानदंडों का प्रकटीकरण हेतु उपयुक्त नियम नहीं 
  5. खातों की गलत जानकारी देना
  6. अवैध कंपनियों (शेल कंपनियों) की बड़ी संख्या

कॉर्पोरेट गवर्नेंस के कार्य:

  1.  कॉर्पोरेट का प्रबंधन 
  2. निर्धारित लक्ष्यों को आधार बनाकर प्रक्रिया एवं मशीनरी का निर्धारण
  3. जवाबदेहिता(सक्रिय शेयरधारक एवं निष्क्रिय शेयरधारक)
  4. हितधारकों की रक्षा
  5. कार्पोरेट की संरचनाओं को विकसित, सुरक्षित एवं निरंतर बनाये रखना 
  6. विश्वसनीयता का विकास

कॉर्पोरेट गवर्नेंस का महत्व:

  1. जोखिम शमन की क्षमता बढ़ जाती है
  2. शेयरों की कीमत को बढ़ता है
  3. शेयरधारकों की विश्वसनीयता में वृद्धि होती है
  4. आर्थिक मंदी के दौरान कार्पोरेट गवर्नेंस कार्पोरेट को स्थायित्व प्रदान करता है
  5. बेहतर संगठनात्मक दक्षता को बढ़ता है
  6. विलय और अधिग्रहण की प्रक्रियाओं को सरल कर देता है
  7. विदेशी निवेश को आमंत्रित करने में सहयोग उत्पन्न होता है

कॉर्पोरेट गवर्नेंस की चुनौतियाँ:

  1. कार्पोरेट जगत में धोखाधडी विद्यमान है, बैलेंस शीट का सही नहीं होना 
  2. निवेशकों में विश्वास का अभाव
  3. आर्थिक भगौड़ों की संख्या में वृद्धि
  4. भारतीय लोगों के अन्दर भ्रष्टाचार के प्रति व्यापक सहनशीलता विद्यमान है
  5. मानवीय मूल्यों के प्रति कार्पोरेट जगत स्वैच्छिक रूप में उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं करता जैसे- पर्यावरण के प्रति सक्रियता का भाव
  6. भारत में कार्पोरेट वस्तु उत्पादन में नैतिकता के विपरीत कदम उठाता है जैसे- वस्तुओं में मिलावट इसका उदाहरण है

 

हाँलाकि कॉर्पोरेट शासन प्रणाली अर्थव्यवस्था के लिये तथा शेयर धारकों के हित को सुरक्षित रखने में प्रभावशाली साबित हुई है, फिर भी हमें अभी और कुशल निगरानी, पारदर्शी आंतरिक लेखा परीक्षा प्रणाली, कुशल बोर्ड और प्रबंधन की आवश्यकता है जो एक प्रभावी कॉर्पोरेट प्रशासन को नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं। साथ ही उभरती नई कंपनियों के रणनीतिक प्रबंधन को बढ़ावा देने तथा बाज़ार को स्थिरता प्रदान करने में मददगार साबित हों।