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SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 33 Answer Hindi

Updated : 3rd Jan 2022
SHIKHAR Mains UPPSC 2021 Day 33 Answer Hindi

Q1: Examine the rationale behind the lateral entry into the Indian Administrative Service.
भारतीय प्राशसनिक सेवा मे पार्श्व प्रवेश (लैटरल इंट्री) के औचित्य का परीक्षण कीजिए|

 

जून 2018 में, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) द्वारा जारी अधिसूचना में आर्थिक मामलों, राजस्व, वाणिज्य और राजमार्गों के विभागों में संयुक्त सचिव स्तर पर 10 वरिष्ठ स्तर के पदों  को इस प्रक्रिया के माध्यम से  चयनित किया था । 

इसके लिए प्रशासनिक सेवा से इतर विभिन्न संगठनो मे 15 वर्षो के कार्यात्मक अनुभव के आधार पर उनका चयन किया गया था । 

सिविल सेवाओं में पार्श्व प्रवेश का अर्थ पदानुक्रमिक संरचना के उच्च स्तर पर, नियमित प्रणाली को दरकिनार कर, योग्य उम्मीदवारों को नौकरशाही में सम्मिलित करना है।

 

पार्श्व प्रवेश (लैटरल एंट्री) की आवश्यकता

  • अफसरों की कमी:भारत के विभिन्न राज्यों मे प्रशासनिक अधिकारियों की कमी है ।इस कारण  सामाजिक विकास के साथ-साथ  आर्थिक विकास भी अत्यधिक निराशाजनक है। जैसे उत्तर प्रदेश , बिहार , मध्यप्रदेश आदि 
  • विशेषज्ञ तथा दक्षता का अभाव - पेशेवर नौकरशाह आपने नियमित स्थानान्तरण एवं प्रतिनियुक्तियों के कारण सामान्यज्ञ प्रकृति के बने रहते हैं। इसके साथ ही नौकरशाहों को उन्नत पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होने एवं ज्ञान में वृद्धि करने हेतु बहुत कम प्रोत्साहन  दिया जाता है। इस प्रकार भू-राजनीतिक एवं आर्थिक परिवेश में परिवर्तन का ध्यान में रखते हए कुछ पदों के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। 
  • राजकोष पर भार औपचारिक प्रक्रिया के माध्यम में की गई भती से आजीवन वेतन पेंशन और अन्य भत्तों इत्यादि के कारण राजकोष पर भार पड़ता है । । अधिकारियों को प्राप्त  संवैधानिक सुरक्षा  के कारण उनके  निष्कासन में व्यवधान उत्पन्न करती है। 
  • नवाचार को प्रोत्साहनः ऐसा माना जाता है कि निजी क्षेत्र से पेशेवरों को सिविल सेवाओं में लाने से नवीन विचारों का प्रवेश होगा तथा एक विशाल, शक्तिशाली और अनम्य संस्थान में नवाचारी समस्या समाधान विधियों के प्रयोग का आरम्भ होगा।
  • प्रतिस्पर्धा  की भावना का विकास : यह पेशेवर नौकरशाहों को बेहतर प्रदर्शन करने हेतु स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की ओर ले जाएगा। इसके अतिरिक्त यह 'प्रदर्शन नहीं तो पद नहीं' (perform or perish) के चेतावनी संकेत के रूप में भी कार्य करेगा।

 

भारतीय प्राशसन मे पार्श्व प्रवेश (लैटरल इंट्री)  से संबन्धित कुछ मुद्दे भी सामने आ रहे है  जैसे -

  • संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की उपेक्षा करना: UPSC एक संवैधानिक निकाय है और इसने विगत कुछ वर्षों में चयन प्रक्रिया की वैधता एवं विश्वसनीयता को बनाए रखा है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि पार्श्व प्रवेश असंवैधानिक है।
  • इससे प्रत्येक समस्या का समाधान नहीं हो सकता - ऐसा भी तर्क दिया जाता है कि एक व्यवस्थित समस्या से निपटने के लिए यह एक खंडित प्रयास है। नौकरशाही में व्यापक निरीक्षण के पश्चात सुधार करने की आवश्यकता है। 
  • प्रस्ताव पर्याप्त आकर्षक नहीं : अधिकांशतः भर्ती संबंधी शर्ते सर्वोत्तम प्रतिभा को आकर्षित करने हेतु अपेक्षित प्रतिफल प्रदान नहीं कर पाती हैं। यहां तक कि हालिया पार्श्व प्रवेश पहल भी केवल 3 वर्षों के लिए पारिश्रमिक (जो कि निजी क्षेत्र के समतुल्य नहीं है) के साथ पेशेवरों की भर्ती करेगी।
  • निजीकरण के लिए अवसर प्रदान करना : कुछ सिविल सेवकों का मानना है कि यह पहल निजीकरण को अत्यधिक बढ़ावा देगी और अंततः सरकार अपनी समाजवादी एवं कल्याणकारी विशेषताओं को खो देगी।
  • भर्ती में पारदर्शिता; सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नए सदस्य "विघटनवादी प्रवृत्तियों" से मुक्त रहें। सिविल सेवाओं में चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता को बनाए रखने हेतु इसे वर्तमान सरकार से पृथक किया जाना चाहिए।

हालांकि भारतीय प्रशासनिक सेवा मे कुछ कामिया विद्यमान है । यह कामिया भारत के विस्तृत स्वरूप और विविधता के संदर्भ मे देखा जाना चाहिए । कुछ एचडी तक सिविल सेवाओं में पार्श्व प्रवेश को उचित माना जा सकता है । परंतु  इससे समस्या का समाधान कहाँ तक हो रहा होगा यह भी देखने की जरूरत है । पहले से चली आ रही चयनित नौकरशाही व्यवस्था मे रचनात्मक सुधार की आवश्यकता है । जिससे और बेहतर व दक्ष प्रशासन हो सके । 

 

 

2) While Mentioning the characteristics of Indian civil services, explain the role of civil services in the public system.
भारतीय नागरिक सेवाओ की विशेषताओ का उल्लेख करते हुए लोक तंत्र मे नागरिक सेवा सेवाओ की भूमिका को स्पष्ट कीजिए|

 

भारतीय शासन पढ़यती लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर आधारित होने के कारण लोकतंत्र का हर स्तंभ बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और सभी के कार्य लोकतन्त्र को बनाए रखने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । इस दिशा में लोक सेवकों की भूमिका काफी संवेदनशील होती है, क्योंकि वे जनता और सरकार के बीच की कड़ी के रूप में काम करते हैं।  सिविल सेवक किसी राजनैतिक व्यवस्था में रीढ़ की तरह होते हैं, जो सरकारी नीतियों और कानूनों के कार्यान्वयन, नीति-निर्माण, प्रशासनिक काम-काज और राजनेताओं के सलाहकार के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा वे अपने तमाम भूमिकाओं के ज़रिए विधायी कार्य, अर्द्ध न्यायिक कार्य, कर और वित्तीय लाभों का वितरण, रिकॉर्ड रखरखाव और जनसंपर्क स्थापित करने जैसे दूसरे महत्वपूर्ण काम भी करते हैं।

 

भारतीय नागरिक सेवा की विशेषताएं:

  • अनेक पश्चिमी देशों से भिन्न भारत में नागरिक सेवा को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है| हालाँकि नागरिक सेवकों की नियुक्ति की कोई एक प्रक्रिया निर्धारित नहीं है और न ही नियुक्ति प्रक्रिया को संवैधानिक संरक्षण को प्राप्त है|
  • संविधान में हालाँकि नागरिक सेवकों की नियुक्ति और कार्यप्रणाली को प्रसादपर्यंत के सिद्धांत पर आधारित किया है किन्तु साथ ही अनु.311 के माध्यम से उन्हें संवैधानिक संरक्षण भी दिया गया है|
  •  भारत की विविधताओं को देखते हुए प्रान्तों को भी प्रान्त स्तरीय नागरिक सेवकों की नियुक्ति का अधिकार है किन्तु साथ ही अखिल भारतीय सेवाओं(अनु.312) का उपबंध करके प्रशासनिक एकीकरण की भी व्यवस्था की गई है|
  • भारत में व्यापक उत्तरदायित्व सिद्धांत को स्वीकार किया गया है| अर्थात जहाँ एक मंत्री संसद(लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी होता है वहीँ एक नागरिक सेवक मंत्री के प्रति जवाबदेह होता है| हालाँकि एक निष्पक्ष नागरिक सेवा न केवल तात्कालिक सरकार के प्रति उत्तरदायी है अपितु यह देश के संविधान के प्रति भी उत्तरदायी होती है और वे संविधान के प्रति वफ़ादारी की शपथ भी लेते हैं|
  • एक नागरिक सेवक के लिए कुछ अर्हताएं निर्धारित की जाती हैं ताकि उसके अनुभव और ज्ञान का सेवा के अनुकूल परीक्षण किया जा सके|
  • भारत में नागरिक सेवा प्रणाली को अमेरिका की स्पॉइल व्यवस्था के विपरीत निष्पक्ष और स्थायी बनाया गया है ताकि नागरिक सेवकों का राजनीतिकरण न हो सके|
  • नागरिक सेवा की प्रकृति एकीकृत, निरंतर और विशिष्ट होती है जो "दीर्घकालिक सामाजिक लाभ" को आधार बनाकर अपने कार्यों का संचालन करते हैं|(जबकि राजनीतिक कार्यपालिका अल्पकालिक लाभ को आधार बनाकर कार्य करती है)
  • भारतीय संविधान एक नागरिक सेवक से नैतिकता की अपेक्षा करता है|

नागरिक सेवा के लाभ:

  • सरकार द्वारा निर्मित कानून एवं नीतियों तथा योजनाओं को लागू करने में|
  • क ओर जहाँ मंत्रिपरिषद को सहयोग करता है वहीँ दूसरी ओर मंत्रिपरिषद के द्वारा लिए गए निर्णयों को व्यवहारिकता प्रदान करता है|भारत में नागरिक सेवा सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास का आधार स्तम्भ है अर्थात प्रशासनिक क्रियाविधियों में आए परिवर्तन से ही सामाजिक परिवर्तन प्रेरित होता है|
  • नागरिक सेवाएँ कल्याणकारी सेवाओं को मूर्त रूप प्रदान करती हैं|
  • ये शासन की समता, क्षमता और विभेदीकरण को तर्कसंगत बनाते हुए सरकार को विकास फंद(trap) से सुरक्षित करती हैं साथ ही विकास को उत्प्रेरित करने में सहयोग करती हैं|

नागरिक सेवा के समक्ष चुनौतियाँ:

  • भारत में नागरिक सेवकों में व्यवसायिकता का अभाव पाया जाता है जिससे उनका प्रदर्शन और क्षमता निम्नस्तरीय बनी रहती है|
  • अप्रभावी प्रोत्साहन प्रणाली: यह कर्मठ, मेधावी और ईमानदार सिविल सेवकों को हतोत्साहित करती है|
  • कठोर और नियमबद्धता नागरिक सेवकों को व्यक्तिगत निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करती है जिससे वे अपनी कुशलता के अनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाते|
  • व्हिसल ब्लोइंग करने वाले अधिकारीयों एवं कर्मचारियों तथा नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा का अभाव है जो प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेहिता को बाधित करती है|
  • राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण नागरिक सेवकों का मनमाना स्थानांतरण एवं निलंबन एक अलग चुनौती को जन्म देता है

भारत में विद्यमान पेट्रिमोनियालिज्म(ऐसा मानना कि हर चीज राजनीति से जुडी है अर्थात सभी शक्तियों का स्त्रोत एक राजनेता बन जाता है) एक ऐसी चुनौती को प्रस्तुत करती है जिसमें नागरिक सेवक स्वतः ही एक मंत्री के अधीन हो जाता है|

 

भारत के सिविल सेवकों के अंतर्गत अभिवृतिमूलक समस्या है जिससे देश में लालफीताशाही जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न होती है|