वित्त आयोग एक ऐसी संवैधानिक संस्था है जिसे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संबंधों पर सुझाव देने के लिए राष्ट्रपति द्वारा गठित किया जाता है। 15वें वित्त आयोग (चेयर:एन. के. सिंह) द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 तथा 2021-26 की अवधि के लिए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी । 2021-26 की रिपोर्ट के मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं:
केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा
2021-26 के लिए केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा 41% सुझाया गया है जोकि 2020-21 के समान ही है। यह 14वें वित्त आयोग (2015-20) के सुझाव से कम है जिसने 42% से 1% कम है । इस 1% का समायोजन नए गठित जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों के लिए किया गया है जिन्हें केंद्र से धनराशि दी जाएगी।
अनुदान
2021-26 के दौरान केंद्रीय स्रोतों से निम्नलिखित अनुदान दिये जाने का प्रावधान किया गया । यह अनुदान 17 राज्यों को राजस्व घाटा समाप्त करने के लिए 2.9 लाख करोड़ रुपए देने, क्षेत्र विशेष( जैसे स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, कृषि सुधारों का कार्यान्वयन,आकांक्षी जिले आदि ।) , राज्य विशेष(जैसे सामाजिक जरूरतें, जलापूर्ति और सैनिटेशन, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मारकों का संरक्षण आदि ) ,स्थानीय निकायों के लिए अनुदान और आपदा प्रबंधन के लिए दिया जाएगा ।
राजकोषीय घाटा और ऋण स्तर:
केंद्र 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी का 4% करना राज्यों के लिए उसने राजकोषीय घाटा सीमा (जीएसडीपी का %) को (i) 2021-22 में 4% (ii) 2022-23 में 3.5%, और (iii) 2023-26 में 3% करने का सुझाव दिया।
आय और परिसंपत्ति आधारित कराधान को मजबूत किया जाना चाहिए। आय कर के लिए वेतन से प्राप्त आय पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिए टीडीएस/टीसीएस (स्रोत पर टैक्स कटौती और संग्रह) से संबंधित प्रावधानों के कवरेज को बढ़ाया जाना चाहिए।
जीएसटी में मौजूद इंटरमीडिएट इनपुट्स और फाइनल इनपुट्स के बीच इंवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को हल किया जाना चाहिए। 12% और 18% की दरों को मिलाकर दर संरचना को रैशनलाइज किया जाना चाहिए।
सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन के लिए व्यापक फ्रेमवर्क विकसित किया जाना चाहिए। एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद बनाई जानी चाहिए जिसके पास केंद्र और राज्यों के रिकॉर्ड्स का आकलन करने का अधिकार हो। परिषद का सिर्फ काम सिर्फ सलाह देना हो।
राज्यों को 2022 तक स्वास्थ्य पर अपने व्यय को बढ़ाकर 8% करना चाहिए। 2022 तक कुल स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा व्यय का हिस्सा दो तिहाई होना चाहिए।
मॉर्डनाइजेशन फंड फॉर डिफेंस एंड इंटरनल सिक्योरिटी (एमएफडीआईएस) नामक डेडिकेटेड नॉन-लैप्सेबल फंड बनाया जाना चाहिए जोकि रक्षा और आंतरिक सुरक्षा की बजटीय जरूरतों और पूंजीगत परिव्यय के आबंटन के बीच के अंतर को मुख्य रूप से दूर करे। पांच वर्षों (2021-26) के लिए इस फंड का अनुमानित कॉरपस 2.4 लाख करोड़ रुपए होगा।
15वें वित्त आयोग के अवधि के संबंध में उत्तर और दक्षिण राज्यों के बीच विवाद कारण -
15वें वित्त आयोग के गठन के बाद, कुछ राज्यों द्वारा इनको 'सहकारी संघवाद' की अवधारणा पर आघात मानते हुए उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के बीच जानबूझकर किए गए भेदभाव के रूप मे लिया जा रहा है ।
दक्षिण के राज्यों का मानना है कि वित्त आयोग के नए नियम और शर्तें उन राज्यों के लिये नुकसानदेह हैं, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर अच्छा काम किया है।2011 की जनगणना के आधार पर कोष के बँटवारे से उन राज्यों को फायदा होगा, जो अपने यहाँ बढ़ती आबादी को रोकने में असफल रहे हैं।
1971 में देश की जनसंख्या में दक्षिणी राज्यों की हिस्सेदारी 24% से अधिक थी, जो 2011 में घटकर 20% रह गई। दूसरी ओर, बिहार की जनसंख्या 1991 से 2011 के बीच लगभग 25% बढ़ गई।
दक्षिणी राज्यों का मानना है कि यदि 15 वें वित्त आयोग के नियम व शर्तों को ज्यों का त्यों अपनाया जाता है तो संघीय ढांचे पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा ।जो की भारतीय संविधान की मूल विशेषता है ।
इन राज्यों का कहना है कि केंद्र को सहकारिता के संघीय ढाँचे का सम्मान करना चाहिये। ये राज्य वित्त आयोग के इन नियमों और शर्तों को राज्यों के मूल वित्तीय ढाँचे को नुकसान पहुँचाने वाला मानते हैं।
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