Q1: समवेशी विकास के बिना सामाजिक न्याय की कल्पना नही की जा सकती है? विश्लेषण कीजिये|
Answer -
विकासशील देशों में सामाजिक और आर्थिक विषमता विध्यमान है। भारत पिछले वर्ष 79 विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 60वें स्थान पर था, जबकि चीन 15वें और पाकिस्तान 52वें स्थान पर थे। समाज मे कमजोर तथा हाशिये के लोगो को मुख्य धारा मे लाये बिना समवेशी समाज का निर्माण नही किया जा सकता ।
समवेशी विकास की अवधारणा बहुआयामी व व्यापक है। समाज के सभी वर्ग, विविध क्षेत्रों, महिला, वृद्ध, व बच्चों मे बिना विभेद किए सभी को आर्थिक विकास का लाभ प्राप्त हो। इसके अंतर्गत तीव्र आर्थिक विकास, उत्पन्न लाभों का समुचित बटवारा तथा वित्तीय समावेशन जैसे तीन विशेष पहलू शामिल है ।
समावेशी विकास के माध्यम से सामाजिक न्याय;
- रोजगार सृजन तथा रोजगार महिला भागीदारीको बढ़वा देने मे भूमिका - वर्तमान मे श्रम बल मे 30.70 करोड़ पुरुष तथा 11.98 करोड़ महिलायें कार्य कर रही हैं।
- आर्थिक विषमता को कम कम करने में भूमिका - भारत मे 1 प्रतिशत जनसंख्या के पास भारत की कुल संपत्ति का लगभग 53% तथा शीर्ष 10% जनसंख्या के पास भारत की कुल संपत्ति का लगभग 76 प्रतिशत भाग है।
- क्षेत्रीय विषमता को कम करने मे समावेशी विकास की भूमिका - उत्तर भात के राज्यो की अपेक्षा दक्षिण के राज्यों का आर्थिक विकास डबल डिजिट में हैं।
- ग्रामीण व शहरी विषमता को कम करने मे समावेशी विकास की भूमिका - दोनों के बीच प्रति व्यक्ति आय, रहन सहन, विनिर्माण सेवा आदि मे काफी अंतर है। समावेशी विकास से ग्रामीण पलायन पर अंकुश लगाया जा सकता है ।
- सामाजिक विषमता को कम करने समावेशी विकास की भूमिका - समाज के कमजोर व वंचित वर्गो यथा : एससी/एसटी , महिला , वृद्ध आदि के जीवन स्तर में सुधार लाकर सामाजिक न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
- भारत में लिंगानुपात का कम होना, महिला साक्षरता का कम होना, मातृत्व मृत्यु दरों में अंतर कन्या भ्रूण हत्या आदि ऐसे संकेतक हैं जो महिलाओ की स्थिति को व्यक्त करते हैं।
आर्थिक विकास मे लोगो की सहभागिता को को बढ़ाए बिना तथा विकास का न्यायोचित वितरण बिना सामाजिक न्याय प्राप्त नहीं किया जा सकता है । हालांकि सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न सामाजिक -आर्थिक योजनायें सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की दिशा मे कार्य कर रही हैं।
Q2: भारत में समावेशी विकास को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये तथा इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है?
Answer-
भारत सरकार द्वारा समावेशी विकास की अवधारणा को बल प्रदान करते हुए 11वीं पंचवर्षीय योजना में समवेशी विकास की अवधारणा को प्रत्यक्ष रूप से अपनाया गया । आगे 12वी पंचवर्षीय योजना में 'तीव्र धारणीय और अधिक समवेशी विकास ' का लक्ष्य रखा गया।समवेशी विकास की अवधारणा बहुआयामी व व्यापक है । समाज के सभी वर्ग, विविध क्षेत्रों , महिला , वृद्ध , व बच्चों मे बिना विभेद किए सभी को आर्थिक विकास का लाभ प्राप्त हो। इसके अंतर्गत तीव्र आर्थिक विकास, उत्पन्न लाभों का समुचित बटवारा तथा वित्तीय समावेशन जैसे तीन विशेष पहलू शामिल है |
भारत में समावेशी विकास प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियां निम्नलिखित हैं:
गरीबी और बेरोजगारी की स्थिति;
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 22% जनसंख्या, निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रही है तथा साथ ही बेरोजगारी दर विगत 45 वर्षों की तुलना में अपने उच्चतम स्तर (NSSO डेटा के अनुसार) पर पहुंच गई है। इसके अतिरिक्त, अब तक सृजित किए गए रोजगारों की गुणवत्ता निम्न है, और ये मुख्यतः अनौपचारिक क्षेत्रों में ही सृजित हुए हैं-
- अपर्याप्त स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था: भारत में उच्च शिशु एवं मातृ मृत्यु दर, स्वास्थ्य क्षेत्र में आउट ऑफ पॉकेट व्यय; भूख और कुपोषण आदि समस्याएं विद्यमान हैं। इनके अतिरिक्त, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता भी असंतोषजनक
- उच्च स्तरीकृत समाज: भारतीय समाज ग्रामीण-शहरी विभाजन, अंतर्राज्यीय क्षेत्रीय विषमताओं तथा धर्म, लिंग अथवा जाति के कारण असमानताओं आदि अनेक मुद्दों पर विभाजित है।
- आर्थिक चुनौतियां: आर्थिक चुनौतियों में कृषिगत भू-जोतों का विखंडन, संस्थागत ऋण तक पहुँच का अभाव, वित्तीय सेवा संबंधी निम्न जागरुकता, निम्न विकास दर (विशेषकर कृषि में, जो एकमात्र सबसे बड़ा नियोक्ता क्षेत्र है) आदि शामिल हैं।
- पर्यावरणीय मुद्देः भूमि, वायु और जल का निम्नीकरण उपर्युक्त सभी मुद्दों में वृद्धि करता है तथा भविष्य में समाज के सुभेद्य वर्गों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा सकते हैं:
- पिछड़े राज्यों को प्राथमिकता: अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़े राज्यों को भौतिक एवं मानव पूंजी, प्रौद्योगिकी, संस्थानों के निर्माण और बेहतर अभिशासन आदि में निवेश करते हुए अधिक सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए।
- अर्थव्यवस्था का औपचारिकीकरण: सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजित किए जाने की आवश्यकता है। वर्तमान में 90% से अधिक रोजगार असंगठित क्षेत्र से संबंधित हैं।
- शासन में सुधार: संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करने हेतु इसे जवाबदेह, कुशल और सहभागी बनाने के लिए शासन में सुधार किए जाने की आवश्यकता है।
- सामाजिक अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, बीमा कवरेज में वृद्धि, कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने और रोजगार सृजन और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने वाले परिवेश तथा स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करने की दिशा में प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
- सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSMEs) को बढ़ावा देना: चूंकि MSMEs एक श्रम गहन क्षेत्र है, इसलिए इसे राज्य के समर्थन के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु विद्युत् कटौती, GST के कारण अनुपालन लागत में वृद्धि, विपणन कौशल का अभाव आदि विद्यमान चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिए।
- कृषि क्षेत्र: इस क्षेत्र को प्रौद्योगिकी के उपयोग तथा राज्य के समर्थन के माध्यम से उत्पादक बनाया जाना चाहिए।
भारत ने समावेशी विकास के कई संकेतकों पर महत्वपूर्ण प्रगति की है। वर्ष 2006 से वर्ष 2016 के मध्य सरकारी प्रयासों के माध्यम से लगभग 271 मिलियन लोग निर्धनता के दुष्चक्र से बाहर निकल पाए हैं। हालाँकि बुजुर्गों, विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों, ट्रांसजेंडरों सहित समाज के प्रत्येक वर्ग को विकास की प्रक्रिया में एक सक्रिय भागीदार बनाए जाने की आवश्यकता है। इससे भारत की विकास क्षमता को बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
Q3: गरीबी क्या है? गरीबी रेखा के निर्धारण से संबन्धित विभिन्न समितियों का उल्लेख कीजिये ?
एप्रोच -
- भूमिका में निर्धनता तथा निर्धनता रेखा को परिभाषित कीजिये|
- मुख्य भाग में गरीबी रेखा के संदर्भ में विभिन्न समितियों की सिफारिशों को क्रमबद्धता के साथ बताएं|
- अंतिम में सुझावात्मक निष्कर्ष लिखिए|
उत्तर -
गरीबी या निर्धनता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अक्षम होता है| अर्थात निर्धनता का तात्पर्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के न्यूनतम संसाधनों को न जुटा पाने से है| निर्धनता की अवधारणा आर्थिक विकास, प्रति व्यक्ति आय, क्रयशक्ति एवं जनसंख्या से सम्बन्धित है| निर्धनता के 2 प्रकार होते हैं| प्रथम, निरपेक्ष निर्धनता एवं द्वितीय, सापेक्ष निर्धनता| राष्ट्रीय विकास के स्तर का आकलन, विकासात्मक योजनाओं के निर्माण तथा उनके निष्पादन के आकलन और योग्य लाभार्थियों की पहचान आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निर्धनता का मापन किया जाता है| निरपेक्ष निर्धनता के मापन के संदर्भ में निर्धनता रेखा की अवधारणा प्रस्तुत की जाती है|
निर्धनता रेखा उस आय स्तर को कहते हैं जिससे कम आय होने पर व्यक्ति अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं होता है| निर्धनता रेखा अलग-अलग राष्ट्रों में अलग-अलग होती है| भारत में निर्धनता रेखा का आकलन मासिक उपभोग व्यय के संदर्भ में NSSO के आंकड़ों के आधार पर नीति आयोग द्वारा किया जाता है| यह निर्धारण विशेषज्ञ समिति द्वारा सुझाए गए मानदंडों के आधार पर किया जाता है| भारत में गरीबी रेखा के निर्धारक मानदंडों की संस्तुति के लिए योजना आयोग/ नीति आयोग द्वारा अब तक विभिन्न विशेषज्ञ समितियां गठित की जा चुकी हैं|
इन विशेषज्ञ समितियों और इनके द्वारा की गयी संस्तुतियों का क्रमबद्ध विवरण निम्नलिखित है-
- गरीबी रेखा तय करने की शुरुआत योजना आयोग ने 1962 में एक कार्यकारी समूह बनाकर की थी।इसने प्रचलित मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति 20 रुपये मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा माना था।
- वाई के अलघ समिति- इस समिति का गठन योजना आयोग 1979 में किया गया था| अलघ समिति ने न्यूनतम पोषण आवश्यकता के आधार पर निर्धनता रेखा के निर्धारण की सिफारिश की थी| समिति ने ICMR द्वारा सुझाए गए नगरीय & ग्रामीण पोषण स्तरों को आधार बना कर नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग अलग पोषण मानक सुझाए| अलघ समिति की सिफारिशों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी तथा नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी से कम उपभोग करने वाले को BPL माना था| कैलोरी उपभोग के आधार पर निर्धारित गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 49 रूपये और नगरीय क्षेत्रों के लिए 56.64 रूपये मासिक थी ।
- लकडावाला समिति - 1989 में योजना आयोग द्वारा डी टी लकडावाला की अध्यक्षता में पुनः एक कार्यदल का गठन किया गया| लकड़ावाला समिति ने भी वाई के अलघ समिति के अनुरूप न्यूनतम पोषण आवश्यकता को गरीबी रेखा के निर्धारण का मानदंड माना| इस कार्यदल ने प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग निर्धनता रेखा निर्धारित की| लकडावाला समिति ने मूल्य निर्धारण के लिए मूल्य सूचकांकों को आधार बनाया| कैलोरी मानकों को समान रखा गया ।किन्तु , मूल्यों में परिवर्तन किया गया| अब गरीबी रेखा नगरीय क्षेत्रों के लिए 281 तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 205 रूपये निर्धारित की गयी थी|
- तेंदुलकर समिति - योजना आयोग द्वारा गरीबी रेखा के पुनर्निर्धारण के संदर्भ में सुझाव देने के लिए वर्ष 2005 में प्रो.सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में एक नई समिति का गठन किया| तेंदुलकर समिति ने न्यूनतम पोषण आवश्यकता के मानक को अस्वीकार कर आवश्यक वस्तुओं पर व्यय के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया| तेंदुलकर समिति द्वारा गरीबी बास्केट की अवधारणा प्रस्तुत की गयी| समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम व्यय 27 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन को गरीबी रेखा माना, जबकि नगरीय क्षेत्रों के लिए यह 33 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन था|
- रंगराजन समिति - तेंदुलकर समीति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा विभिन्न कारणों से विवादित रही| अतः गरीबी आकलन पद्धतियों की समीक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति का गठन किया गया|| समिति ने चयनित आवश्यक वस्तुओं पर किये गए न्यूनतम व्यय को ही आधार माना किन्तु तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाए गए मूल्यों को बढ़ा कर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 32 रूपये और नगरीय क्षेत्रों के लिए 47 रूपये कर दिया| इसी के आधार पर वर्ष 2011-12 में भारत में 30% जनसंख्या को गरीब माना गया|
अन्य समितियों की तरह ही रंगराजन फार्मूला भी विवादित रहा| अतः वास्तविक गरीबी रेखा के आकलन के वर्ष 2015 में अरविन्द पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय टास्कफ़ोर्स का गठन किया गया|किन्तु यह दल गरीबी रेखा के निर्धारण के संदर्भ में अनिर्णीत रहा| तथापि टास्कफ़ोर्स ने नई निर्धनता रेखा के निर्धारण तक नीति आयोग/सरकार द्वारा तेंदुलकर समिति द्वारा प्रदत्त निर्धनता रेखा मानदंडों को अपनाने की सलाह दी है|
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि चूँकि गरीबी रेखा निर्धारण मामले के व्यापक राजनीतिक एवं राजकोषीय निहितार्थ हैं| अतः गरीबी रेखा निर्धारण का मामला भारत में लगातार विवादित रहा है|साथ ही गरीबी रेखा के संदर्भ में सर्वसम्मति का अभाव है| अतः वास्तविक गरीबी रेखा की पहचान के लिए भारत सरकार को विश्व के अन्य देशों में अपनाई जा रही विधियों का अध्ययन एवं शोध पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहिए|