Q1. Cooperative and competitive federalism are not mutually exclusive. Discuss. (125 words) 8 Marks.
सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद परस्पर अपवर्जी नही हैं। चर्चा कीजिये । (125 शब्द) 8 अंक।
एप्रोच
- उत्तर की शुरुआत सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद की परिभाषा से कीजिए।
- इसके पश्चात चर्चा कीजिए कि कैसे वे परस्पर अनन्य नहीं हैं।
उत्तर -
सहकारी संघवाद को संघीय और राज्य सरकारों के बीच एक लचीले संबंध के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें दोनों विभिन्न मुद्दों और कार्यक्रमों पर एक साथ काम करते हैं।
सहकारी संघवाद में केंद्र और राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहां वे बड़े जनहित में "सहयोग" करते हैं।
प्रतिस्पर्धी संघवाद एक अवधारणा है जहां केंद्र राज्यों के साथ प्रतिस्पर्धा करता है और इसके विपरीत, और राज्य एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं।जबकि सहकारी संघवाद राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है, प्रतिस्पर्धी संघवाद संसाधनों के लिए एक दूसरे के साथ राज्य-राज्य और राज्य-केंद्र प्रतिस्पर्धा की मांग करता है।
- लेकिन केवल प्रतिस्पर्धा ही सर्वोत्तम परिणाम नहीं दे सकती है। यह सहयोग के साथ प्रतिस्पर्धा है जो वास्तविक परिवर्तन को प्रेरित करती है । अत: सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद के बीच संतुलन होना चाहिए।
- प्रतिस्पर्धी संघवाद में भाग लेने के लिए कुछ राज्यों को केंद्र के समर्थन की आवश्यकता होती है। क्योंकि मजबूत राज्य एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करते है और इस दृष्टि को साकार करने के लिए, भारत के विकास के लिए काम करने के लिए "टीम इंडिया" दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
- विश्वास की कमी और विभाज्य पूलों का संकेद्रन केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित करता है। सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद इस मुद्दे को दूर कर सकता है।
इस संबंध में एक संस्थागत तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जहां राज्यों के साथ महत्वपूर्ण निर्णयों पर उचित रूप से चर्चा की जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी राज्य विकास के प्रतिमान में पीछे न रहे। सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद के उदाहरण - जीएसटी, नीति आयोग द्वारा विभिन्न रैंकिंग और सूचकांक जैसे - स्वच्छ भारत रैंकिंग, आकांक्षात्मक जिला कार्यक्रम, राज्यवार व्यापार करने में आसानी रैंकिंग।
हाल ही में नीति आयोग ने राज्यों में प्रतिस्पर्धी सहकारी संघवाद का आह्वान किया है। सहकारी संघवाद के बाद अब यह 'प्रतिस्पर्धी सहकारी संघवाद' है जो केंद्र और राज्यों के बीच और राज्यों के बीच संबंध को परिभाषित करता है।
Q2. Government of NCT of Delhi (Amendment) Act, 2021 is having multiple inherent criticisms. Discuss. (200 words) 12 Marks.
दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 को लेकर बहुत सी आलोचनाएँ हो रही हैं। चर्चा कीजिये । (200 शब्द) 12 अंक।
एप्रोच -
- उत्तर की शुरुआत दिल्ली सरकार संशोधन अधिनियम -2021 से कीजिए।
- इसके पश्चात इसके प्रावधानों की चर्चा कीजिए।
- अंत में इसकी आलोचना और आगे की राह के साथ उत्तर का समापन कीजिए।
उत्तर -
हाल ही मे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021 लाया गया जिससे निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के बीच शक्तियों के वितरण को लेकर विवाद को जन्म दिया। इस विधेयक को दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) की शक्तियों को बढ़ाने तथा निर्वाचित सरकार तथा विधान सभा को कमजोर करने के आधार पर आलोचना की जा रही है ।
- 69वें संविधान संशोधन के तहत दिल्ली को विधानसभा युक्त एक केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। इसे अन्य राज्यों की तरह पूर्ण राज्य का दर्जा नही प्राप्त है । संविधान के अनुच्छेद- 239(A) के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।इस अनुच्छेद के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को अन्य राज्यपालों की तुलना में अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। साथ ही अनुच्छेद-239 AA (3) यह प्रावधान करता है कि दिल्ली विधानसभा पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था छोड़कर राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 में प्रावधान -
- विधान सभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में संदर्भित शब्द "सरकार" का अर्थ उपराज्यपाल (एलजी) होगा।इसके माध्यम से उपराज्यपाल कि विवेकाधिकार का विस्तार किया गया ।
- 1991 के अधिनियम ने विधान सभा को विधान सभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने के लिए नियम बनाने की अनुमति दी गई थी परंतु इस विधेयक में संशोधन करके यह प्रावधान किया गया कि ऐसे नियम लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के अनुरूप होने चाहिए।
- इस विधेयक के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि मंत्रिपरिषद (या दिल्ली मंत्रिमंडल) द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय को लागू करने से पहले उपराज्यपाल की राय आवश्यक रूप से ली जायेगी।
- दिल्ली विधानसभा खुद को या अपनी समितियों को दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के मामलों पर सक्षम बनाने के लिए नियम नहीं बनाएगी।
- प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में पूछताछ इसके अलावा, बिल में प्रावधान है कि इसके लागू होने से पहले बनाए गए ऐसे सभी नियम शून्य हो जाएंगे।
आलोचना के कारण -
- प्रत्येक विधायिका में यह विशेषाधिकार निहित है कि वह अपने द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार अपनी कार्यवाही स्वयं करे।अपनी कार्यवाही के संचालन के लिए नियम बनाना इस प्रकार एक विधायिका के प्रत्येक सदन के विशेषाधिकार का एक हिस्सा है।
- दिल्ली विधानसभा एक स्वतंत्र विधायी सदन है और लोकसभा का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। संसद को अपनी कार्यवाही के संचालन के लिए नियम बनाने के लिए कानून बनाने और विधायिका के निहित अधिकार को छीनने की कोई शक्ति नहीं है।
- प्रत्येक लोकतांत्रिक व्यवस्था में विधायिका को कार्यपालिका द्वारा लिए गए निर्णयों की जांच करने का अधिकार अंतर्निहित होता है इसी के माध्यम से कार्यपालिका विधायिका के प्रति जबाबदेही होती है अर्थात कार्यकारी जवाबदेही सरकार की संसदीय प्रणाली का सार है, जो संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है। कही न कही अनुच्छेद 239 AA (6) का उल्लंघन करने के साथ साथ संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
- यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है जिसमे कहा गया था कि दिल्ली कि चुनी हुए सरकार अपने अधिकार क्षेत्र मे सभी निर्णय ले सकती है और एलजी कि सहमति के बिना उन्हे निष्पादित कर सकती है ।
- यह संशोधन अनिवार्य रूप से सरकार की स्वायत्तता और राज्य के लिए पूर्ण राज्य के सपने को दूर कर देंगे, जिसे प्रत्येक राजनीतिक दल ने विभिन्न समय पर मतदाताओं से वादा किया है|
Q3. Women Empowerment through Panchayati Raj institutions is not a myth but reality. Critically analyse. (200 words) 12 Marks.
पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से महिला सशक्तिकरण एक मिथक नहीं बल्कि वास्तविकता है। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये । (200 शब्द) 12 अंक।
एप्रोच -
- उत्तर की शुरुआत पंचायती राज संस्थाओं की सामान्य चर्चा करते हुए कीजिए।
- इसके पश्चात पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से महिला सशक्तिकरण- वास्तविकता के रूप में की चर्चा कीजिए।
- पुनः पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से महिला सशक्तिकरण- एक मिथक के रूप में, की चर्चा कीजिए।
उत्तर -
लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण कि दिशा में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम मील का पत्थर साबित हुआ है । विकेन्द्रीकरण की इस प्रक्रिया से समाज के सबझी वर्गों को नेतृत्व में हिस्सेदारी प्राप्त हुई । विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली से लोगो की भागीदारी को सुनिश्चित करने के साथ साथ महिला सशक्तिकरण और समावेशी विकास को बढ़ावा देने मे पंचायती राज व्यवस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य - महिलाओ द्वारा लिए गए निर्णयों की स्वतन्त्रता से है । अर्थात महिलाओं की शिक्षा और स्वतन्त्रता को समाहित करते हुए सामाजिक सेवाओं में समान अवसर प्राप्त करने के साथ साथ, राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के निर्धारण में भागीदारी सुनिश्चित करना । महिलाओ को यह महसूस हो सके की स्वतंत्र भारत की राजनीति में वैसे ही भागीदार है जैसे -पुरुष;
पंचायतों मे महिला आरक्षण का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 243 D के आधार पर महिला आरक्षण का प्रावधान किया गया । इस अनुच्छेद मे सुधार कर महिला आरक्षण को 33 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी करने का प्रावधान किया गया । -
पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से महिला सशक्तिकरण- वास्तविकता के रूप में
- पहली बार पंचायती राज के माध्यम से महिलाओ को प्रशासनिक अधिकार मिले । इससे उनमे आत्मविश्वास का संचार हुआ और राजनीतिक सक्रियता के साथ साथ स्थानीय क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास करने प्रारम्भ किए ।
- अनेक महिला प्रधानो ने महिला सरपंचों की सहायता से दहेज , शराब खोरी , अंधविश्वास , रूढ़िगत परम्पराओ का विरोध किया । जैसे बिहार जैसे प्रदेशों मे शराब बंदी मे महिलाओ ने ,महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
- पंचायती राज व्यवस्था मे 50 फीसदी के आरक्षण हो जाने से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओ में जहां राजनीतिक चेतना उत्पन्न हुई ,वहीं उनमें अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता भी बढ़ी ।
पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से महिला सशक्तिकरण- एक मिथक के रूप मे -
- भारत मे भले ही महिलाओ के लिए स्थानीय स्वशासन मे भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया । परंतु इसका वास्तविक लाभ इन्हे प्राप्त नही हो पाता। ज़्यादातर महिला सरपंचो की जगह उनके पति या भाई या सगे संबंधियों द्वारा निर्णय लिया जाता है । निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है ।
- कभी कभी निर्वाचित महिलाओ प्रतिनिधियों के साथ हिंसक घटनाओ के साथ साथ यौन उत्पीड़न और समूहिक बलात्कार की भी घटनये सामने आते रहे है ।
पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को वास्तविक रूप मे बदलने के लिए निम्न लिखित प्रयास किए जाने चाहिए -
- महिलाओ को शिक्षित करना।
- पंचायती राज प्रणाली के विषय मे प्रशिक्षण प्रदान करना।
- जागरूकता का प्रचार करना।
- सामाजिक और कानूनी सह्यता प्रदान करना।
- परिवार की भूमिका सिर्फ सहयोगत्म्क होनी चाहिए न की निर्णयात्मक।
Q4. Urban local government in India has not acheived it's full potential. Discuss. Also suggest measures for effective urban local governance. (125 Words) 8 Marks.
भारत में स्थानीय शहरी सरकार अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त नहीं कर पायी है पर चर्चा करते हुए प्रभावी शहरी स्थानीय शासन के लिए उपाय भी बताइए। (125 शब्द) 8 अंक।
एप्रोच -
- उत्तर की शुरुआत स्थानीय शहरी सरकार का सामान्य परिचय देते हुए कीजिये|
- इसके पश्चात शहरी स्थानीय निकायों की समस्याओं को बताते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिये|
- पुनः प्रभावी शहरी स्थानीय शासन के लिए उपायों की चर्चा करते हुए उत्तर का समापन कीजिये|
उत्तर -
भारतीय मूल संविधान मे नगरीय स्वशासन व्यवस्था का कोई प्रावधान नही किया गया था परंतु बाद मे स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिए 74 वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से स्थानीय शहरी शासन व्यवस्था का प्रावधान किया गया । आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए योजनये बनाने तथा क्रियान्वित करने , समाज के पिछड़े वर्गों के विकास के लिए कार्य करने तथा नगरीय सुविधाओ जैसे सड़क , प्रकाश , पेय जल , सिवेज एवं जनगणना इत्यादि की भी व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी नगरीय स्थानीय प्रशासन को दी गई गई है ।
नगरीय स्थानीय निकायों की समस्याएं
- निर्वाचित प्रतिनिधियों को पर्याप्त शक्ति का अभाव
- कर राजस्व, गैर-कर राजस्व, अनुदान, ऋण आदि माध्यमों से राजस्व प्राप्ति संभव परंतु राज्य के अत्यधिक नियंत्रण के कारण वित्त की समस्या एवं प्रशासनिक स्वायत्तता की समस्या
- अनियोजित तरीके से नगरीकरण
- अपेक्षाकृत निम्न मानकता प्राप्त कार्मिक व्यवस्था
- प्रशासन में विशेषज्ञों का अभाव
- जनभागीदारी में कमी
2017 में भारत के नगरीय व्यवस्था का वार्षिक सर्वेक्षण हुआ जिसका प्रतिवेदन मार्च 2018 में आया| इसके अनुसार 3 प्रमुख समस्याएं
-
- स्थानीय लोकतंत्र का अभाव
- नागरिक घोषणापत्र की अनुपस्थिति
- लोकपाल के पद का अभाव
प्रभावी शहरी स्थानीय शासन के लिए उपाय
- शहरी क्षेत्रों में भी ग्राम सभाओं की भूमिका को सुनिश्चित किया जाना चाहिए । जिससे सही मायने मे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित हो सके ।
- कुशल कर्मियों की नियुक्ति की जानी चाहिए जिससे प्रशासन का कार्य सुचारु रूप से संचालित किया जा सके । मेयर के पद हेतु प्रत्यक्ष निर्वाचन एवं वास्तविक शक्तियां प्रदान करना|
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुसार नगरीय निकायों को भी त्रिस्तरीय व्यवस्था में लाना क्षेत्र समिति, वार्ड समिति, नगर निगम या नगरपालिका
- लोकपाल की नियुक्ति
- पानी आपूर्ति या जलनिकासी प्रबंधन(सीवर मैनेजमेंट) और ठोस कचरा प्रबंधन नगरीय निकायों को दिया जाना चाहिए|
- महिलाओ की भागीदारी को सही तरीके से सुनिश्चित किया जाना चाहिये|
- इनके कार्यों को सामाजिक आडिट किया जाना चाहिए ,जिससे उनका उत्तरदायित्व सुनिश्चित हो सके|
- उचित प्रशिक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए|
इन उपर्युक्त क़दमों से नगरीय निकायों को सशक्त करना संभव होगा|