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SHIKHAR UPPSC Mains 2021 Day 1 Answer Hindi

Updated : 9th Jan 2022
SHIKHAR UPPSC Mains 2021 Day 1 Answer Hindi

Q1: हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करते हुए वर्तमान नगर नियोजन पर इनके प्रभावों को स्पष्ट कीजिये|

एप्रोच -
1- उत्तर की शुरुआत हडप्पा सभ्यता का सामान्य परिचय देते हुए कीजिये|
2- इसके पश्चात हड़प्पा युगीन नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएं एवं उनके प्रभाव को स्पष्ट कीजिये|
3- अंतिम में विकसित एवं नगरीकृत संभ्यता के संदर्भ में निष्कर्ष दीजिये|
उत्तर -
                      भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं। यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी| सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। हड़प्पा सभ्यता से सम्बन्धित पुरातात्विक स्थलों का सर्वाधिक संकेद्रण घग्घर/ हाकरा नदी घाटी में पाया गया है| मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, राखीगढ़ी, लोथल, धौलावीरा, सुरकोटडा तथा कालीबंगा आदि सैन्धव सभ्यता के प्रमुख नगरीय केंद्र थे| इन नगरों का नियोजन सैन्धव सभ्यता के विकसित नगरीय सभ्यता होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है| इसे भारत के प्रथम नगरीकरण के रूप में जाना जाता है|

हड़प्पा युगीन नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएं एवं वर्तमान नगरीकरण पर प्रभाव;

  • हड़प्पा सभ्यता की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर योजना थी| इस सभ्यता के अधिकाँश नगरों का नियोजन समरूप था, नगर प्रायः सड़कों के जाल से युक्त थे जोकि एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं|
  • प्रायः नगरों में पूर्व तथा पश्चिम की बसावट में अंतर दिखता है| जहाँ पश्चिमी भाग में दुर्ग अथवा गढ़ी संरचनाएं दिखती हैं वहीँ पूर्वी भाग सामान्य आवासीय क्षेत्र प्रतीत होता है| संभव है कि पश्चिमी भाग प्रशासनिक अथवा सार्वजानिक क्षेत्र रहा होगा| संभवतः पश्चिमी भाग में शासक वर्ग के लोग रहते थे| आज भी प्रशासनिक केंद्र तथा प्रशासकों के आवासीय स्थल प्रायः विशिष्ट क्षेत्रों में होते हैं|
  • हड़प्पा सभ्यता के नगरों की एक प्रमुख विशेषता इनकी जल निकास प्रणाली थी| प्रत्येक घर से आने वाली नाली सड़क किनारे बनी हुई नालियों में खुलती थी| सभी नालियां पत्थरों से ढकी रहती थीं| नालियों में कहीं कहीं मेनहोल भी बनाये जाते थे| नालियों का निर्माण पक्की इंटों से किया जाता था| यह वर्तमान नगरीय जल प्रबन्धन की विशेषता बनी हुई है|
  • यहाँ की सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं| जिससे नगर अनेक आयताकार खण्डों में विभक्त हो जाता था| आज भी नगरीकरण का यह एक लोकप्रिय प्रारूप है| नगरीकरण के इस प्रारूप का महत्त्व सौन्दर्य के साथ सुरक्षा तथा प्रशासन के साथ संवाद के दृष्टिकोण से है|
  • सड़कों के दोनों ओर मकान बने होते थे| इन मकानों के दफ्वाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर नहीं बल्कि घर के पिछवाड़े की ओर खुलते थे | इन भवनों का प्रारूप बहुत सीमा तक आधुनिक भवनों की तरह ही था|
    कालीबंगा में अलंकृत इंटों का प्रयोग किया गया था शेष नगरों के भवन प्रायः अलंकरण रहित हैं| सभी सैन्धव नगरों में प्रयुक्त ईंटों की माप में समरूपता थी| कुछ नगर विशिष्ट उद्योगों के केंद्र थे जैसे चान्हुदड़ो मनका निर्माण का केंद्र था| इसी तरह आज भी उद्योग विशिष्ट नगरीय प्रणाली को देखा जा सकता है|

                                 हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना की उपरोक्त विशेषताएं तत्कालीन विश्व में हड़प्पा सभ्यता को विशिष्ट स्थान प्रदान करती हैं| नगर योजना सैन्धव सभ्यता में योजनाकारों की उपस्थिति का संकेत देती है| सिन्धु सभ्यता का नगर नियोजन अनेक अर्थों में वर्तमान नगरीय नियोजन को प्रभावित करता है| जैसे स्मार्ट सिटी परियोजनाए हडप्पा कालीन नगरीय व्यवस्था के आदर्शों पर विकसित मिशन है /इन विशेषताओं के कारण सैन्धव सभ्यता को प्रथम नगरीकरण की संज्ञा दी जाती है|

 

Q2: कांस्य-युगीन सभ्यता के कला और स्थापत्य के विभिन्न पहलुओं का परीक्षण कीजिये|

एप्रोच -
- उत्तर की शुरुआत हड़प्पा सभ्यता के सभ्यता के सामान्य परिचय से कीजिये|
- इसके पश्चात मुख्य भाग में नगर नियोजन, मूर्तिकला एवं चित्रकला का सोदाहरण विश्लेषण कीजिये|
- अंत में इस सभ्यता के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए उत्तर का समापन कीजिये|
उत्तर -


                हड़प्पा अथवा सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है | यह 2600 से 1900 ई.पू. के मध्य अपनी परिपक्व अवस्था में थी| हड़प्पा सभ्यता मुख्यतः उत्तर पूर्वी अफगानिस्तान, पश्चिमोत्तर पाकिस्तान से लेकर भारत के उत्तरी क्षेत्र में विस्तृत थी| यह प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता की समकालीन सभ्यता थी| हड़प्पा सभ्यता से सम्बन्धित पुरातात्विक स्थलों का सर्वाधिक संकेद्रण घग्घर/ हाकरा नदी घाटी में पाया गया है| हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त पुरातात्विक स्रोतों से तत्कालीन कला एवं स्थापत्य के बारे में जानकारी मिलती है|


हड़प्पा युगीन वास्तु-कला

  • हड़प्पा सभ्यता की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर योजना थी| इस सभ्यता के अधिकाँश नगरों का नियोजन समरूप था| नगर प्रायः सड़कों के जाल से युक्त थे|
  • प्रायः नगरों में पूर्व तथा पश्चिम की बसावट में अंतर दिखता है| जहाँ पश्चिमी भाग में दुर्ग अथवा गढ़ी संरचनाएं दिखती हैं वहीँ पूर्वी भाग सामान्य आवासीय क्षेत्र प्रतीत होता है|संभव है कि पश्चिमी भाग प्रशासनिक अथवा सार्वजानिक क्षेत्र रहा होगा| संभवतः पश्चिमी -भाग में शासक वर्ग के लोग रहते थे| आज भी प्रशासनिक केंद्र तथा प्रशासकों के आवासीय स्थल प्रायः विशिष्ट क्षेत्रों में होते हैं|
  • हड़प्पा सभ्यता के नगरों की एक प्रमुख विशेषता इनकी जल निकास प्रणाली थी| प्रत्येक घर से आने वाली नाली सड़क किनारे बनी हुई नालियों में खुलती थी| सभी नालियां पत्थरों से ढकी रहती थीं| नालियों में कहीं कहीं मेनहोल भी बनाये जाते थे| नालियों का निर्माण पक्की इंटों से किया जाता था| यह वर्तमान नगरीय जल प्रबन्धन की विशेषता बनी हुई है
  • यहाँ की सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं| जिससे नगर अनेक आयताकार खण्डों में विभक्त हो जाता था| आज भी नगरीकरण का यह एक लोकप्रिय प्रारूप है| नगरीकरण के इस प्रारूप का महत्त्व सौन्दर्य के साथ सुरक्षा तथा प्रशासन के साथ संवाद के दृष्टिकोण से है| सड़कों के दोनों ओर मकान बने होते थे| इन मकानों के दफ्वाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर नहीं बल्कि घर के पिछवाड़े की ओर खुलते थे | इन भवनों का प्रारूप बहुत सीमा तक आधुनिक भवनों की तरह ही था| मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, राखीगढ़ी, लोथल, धौलावीरा, सुरकोटडा तथा कालीबंगा आदि सैन्धव सभ्यता के प्रमुख नगरीय केंद्र थे| इन नगरों का नियोजन सैन्धव सभ्यता के विकसित नगरीय सभ्यता होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है|

सैन्धव-कालीन मूर्तिकला

  • हड़प्पाई शहरों से पत्थर, धातु तथा मिटटी की मूर्तियों के साक्ष्य मिलते हैं हालांकि समकालीन सभ्यताओं की तुलना में पत्थरों एवं धातुओं की मूर्तियों के साक्ष्य कम मिलते हैं|
  • पत्थर की मूर्तियों के अधिकाँश साक्ष्य मोहनजोदड़ो से मिलते हैं और कुछ मूर्तियाँ हड़प्पा से प्राप्त हुई हैं हालांकि पत्थर की मूर्तियाँ संख्यात्मक रूप से कम हैं| नृत्यरत युवक का धड़(हड़प्पा), मोहनजोदड़ो से दाढ़ी युक्त एक पुरुष की मूर्ति आदि कुछ प्रमुख मूर्तियाँ हैं|
  • धातु की मूर्तियों के निर्माण में द्रव मोम विधि (लॉस्ट वैक्स) का उपयोग किया जाता था| धातु की मूर्तियों में कांसे की नर्तकी (मोहनजोदड़ो) की मूर्ति सर्वाधिक रूप से प्रसिद्ध है|इसके अतिरिक्त धातु से निर्मित बैल व अन्य पशुओं की मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं
  • सौन्दर्य एवं संतुलित शारीरिक अनुपात इन मूर्तियों की महत्वपूर्ण विशेषता है| दुसरे शब्दों में ये मूर्तियाँ यथार्थवादी कला का प्रतिनिधित्व करती हैं| इसके साथ ही इन मूर्तियों की लागत अधिक रही होगी अतः ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ये मूर्तियाँ कला के क्षेत्र में समाज के उच्च वर्गों के दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करती हैं|
  • हड़प्पा के विभिन्न शहरों से मिटटी की मूर्तियाँ भी बहुतायत में प्राप्त हुई हैं| इनमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मूर्तियाँ अधिक हैं| पशुओं में कूबड़ वाले बैल की मूर्तियाँ सर्वाधिक संख्या प्राप्त हुई हैं| इसके अतिरिक्त विभिन्न पशु-पक्षियों, खिलौने व हास्यबोध से सम्बन्धित मूर्तियों के साक्ष्य मिलते हैं| इन मूर्तियों में पत्थर व धातु की मूर्तियों तरह कलात्मक सौन्दर्य नहीं है लेकिन समकालीन समाज के आम जनों के धार्मिक विश्वास एवं मनोरंजन के साधन को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं| मूर्तिकला की यह परम्परा किसी न किसी रूप में आज भी हमारे जीवन में विद्यमान है|

हड़प्पा युगीन चित्रकला

  • चित्रों को उकेरने में लाल रंग एवं काले रंग का अधिक उपयोग किया गया है हड़प्पाई चित्रों के अधिकांशतः प्रमाण बर्तनो से प्राप्त होते हैं| बर्तनों पर सर्वाधिक रूप से पेड़-पौधों का चित्रण किया गया जैसे पीपल, नीम आदि|
  • लोथल से प्राप्त चालाक लोमड़ी का चित्र, हड़प्पा से प्राप्त एक मछुआरे का चित्र आदि कुछ प्रमुख चित्र हैं| अर्थात चित्रों में प्रकृति के विभिन्न तत्वों को महत्त्व दिया गया है| बर्तनों पर चित्रों की परम्परा आगे भी जारी रही है|

                              उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट होता है कि हड़प्पा सभ्यता, कला एवं स्थापत्य के सन्दर्भ में पर्याप्त रूप से विकसित अवस्था में थी| हड़प्पा युगीन कला एवं स्थापत्य के विभिन्न पहलू वर्तमान कला एवं स्थापत्य को निवेश प्रदान करते हैं अर्थात वर्तमान के नगरीकरण में भी इन विशेषताओं को देखा जा सकता है अतः हड़प्पा युगीन सांस्कृतिक पहलू किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान है|

 

Q3: प्राचीन भारत में स्तूप स्थापत्य कला अपना विशिष्ट स्थान रखता है| इस कथन के आलोक में स्तूप स्थापत्य के विकास का संक्षेप में वर्णन कीजिये|

दृष्टिकोण


- उत्तर की शुरुआत स्तूप स्थापत्य एवं उसके विकास के बारे में सामान्य चर्चा करते हुए कीजिये|
- इसके पश्चात मुख्य भाग में स्तूप स्थापत्य के विकास का वर्णन करते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिये|
- अंत में विरासत के रूप स्तूप स्थापत्य की महत्ता को बताते हुए उत्तर का समापन कीजिये|


उत्तर -


                    स्तूप का शाब्दिक अर्थ है- 'किसी वस्तु का ढेर'। स्तूप का विकास ही संभवतः मिट्टी के ऐसे चबूतरे से हुआ, जिसका निर्माण मृतक की चिता के ऊपर अथवा मृतक की चुनी हुई अस्थियों के रखने के लिए किया जाता था। गौतम बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं, जन्म, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन तथा निर्वाण से सम्बन्धित स्थानों पर भी स्तूपों का निर्माण हुआ। स्तूप के 4 भेद हैं- शारीरिक स्तूप पारिभोगिक स्तूप उद्देशिका स्तूप और पूजार्थक स्तूप| प्राचीन भारतीय स्थापत्य के अध्ययन के सन्दर्भ में स्तूप स्थापत्य का महत्वपूर्ण स्थान है| स्तूप बुद्ध के शारीरिक अवशेषों एवं प्रयोग में लायी गयी वस्तुओं पर निर्मित अर्धगोलाकार ढाँचे हैं,इन्हें बुद्ध के महापरिनिर्वाण का प्रतीक माना जाता है| अर्धगोलाकार ढाँचे के उपर बने बॉक्स को हर्मिका कहा जाता है इस पर छत्र लगा होता है| हर्मिका को पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि इसी में बुद्ध के अवशेष होते हैं| स्तूप के आधार तल को मेढ़ी कहते हैं इसी पर स्तूप बना होता है| स्तूप के प्रवेश द्वार को तोरण कहा जाता है जबकि स्तूप के चारों तरफ बनी चार दीवारी को वेदिका कहते हैं| इसके चारों ओर प्रदक्षिणापथ का निर्माण किया गया होता है|

मौर्यकाल में स्तूप स्थापत्य

  • बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके शारीरिक अवशेषों पर 8 स्तूपों का निर्माण किया गया था, हालांकि पुरातात्विक साक्ष्य नही मिलते है| -बौद्ध ग्रंथों से यह जानकारी मिलती है की अशोक ने 84 हजार स्तूपों का निर्माण करवाया था, हालांकि इसे किवदंती माना जाता है,फिर भी मौर्यकालीन कुछ स्तूपों के साक्ष्य बोधगया, सारनाथ, तक्षशिला, साँची गया आदि से मिले हैं|
  • अशोक कालीन स्तूपों में स्तूप स्थापत्य से सम्बन्धित सभी विशेषताएं दिखाई पड़ती हैं|
  • मौर्य कालीन स्तूपों के तोरण एवं वेदिका में लकड़ी का प्रयोग किया गया था तथा स्तूपों के निर्माण में ईंटों का प्रयोग किया गया था|
  • बड़ी संख्या में स्तूपों का निर्माण न केवल समकालीन समाज में बौद्ध धर्म कि लोकप्रियता बल्कि राजकीय संरक्षण का भी प्रमाण देते हैं|

मौर्योत्तर काल में स्तूप स्थापत्य

  • मौर्योत्तर काल में ब्राह्मण धर्म के संरक्षक होने के बावजूद शुंग शासकों के संरक्षण में साँची, सारनाथ, भरहुत आदि स्थलों पर नए स्तूपों का निर्माण तथा कुछ अशोककालीन स्तूपों का पुनरोद्धार भी|
  • मौर्य कालीन स्तूप स्थापत्य के विपरीत शुंग कालीन स्तूपों के तोरण एवं रेलिंग में लकड़ी के स्थान पर पत्थरों का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा|
  • शुंग कालीन स्तूपों पर बुद्ध की जीवन की घटनाओं को प्रतीक (यहाँ बुद्ध की मूर्तियाँ नहीं बनीं ) के माध्यम से स्पष्ट किया गया था|
  • कुषाण शासकों द्वारा पेशावर, तक्षशिला तथा चारसद्दा आदि में विशाल स्तूपों का निर्माण किया गया| कुषाण कालीन स्तूपों में अलंकरण पर अत्यधिक बल दिया गया है|
  • शुंग कालीन स्तूपों से लग कुषाण कालीन स्तूपों पर प्रतीक के साथ-साथ बुद्ध एवं बोधिसत्व के मूर्तियों के साक्ष्य भी मिलने लगते हैं|
  • इसी तरह सातवाहन शासकों ने अमरावती, नागार्जुनीकोंडा में स्तूपों का निर्माण करवाया था|
  • सातवाहन युगीन स्तूपों के निर्माण में संगमरमर का भी प्रयोग इस काल की प्रमुख विशेषता है|

गुप्तकालीन स्तूप स्थापत्य

  • गुप्त शासकों के समय भी स्तूप निर्माण की परम्परा जारी रही| सारनाथ एवं राज्ग्रह में गुप्तकालीन स्तूपों के साक्ष्य मिलते हैं| हालांकि इस काल में तुलनात्मक रूप से स्तूपों की संख्या कम दिखाई देती है|
  • स्तूपों की निर्माण शैली में भी गिरावट के संकेत दिखने लगते हैं जैसे चबूतरों की उंचाई कम, पक्की ईटों का प्रयोग आदि| गुप्तों के पश्चात स्तूप स्थापत्य के विकास के साक्ष्य प्रायः नहीं मिलते हैं|
  • वस्तुतः ब्राहमण धर्म के उत्थान के कारण गुप्तकाल से मंदिर स्थापत्य पर बल दिया जाने लगा था अतः स्तूप स्थापत्य का पूर्ववत विकास नहीं हो पाया|

                            इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारत में स्तूप स्थापत्य का क्रमिक रूप से विकास हुआ| स्तूप स्थापत्य का चरमोत्कर्ष मौर्योत्तर काल में दिखाई देता है| प्राचीन भारतीय संस्कृति की विरासत होने के कारण भारतीय स्थापत्य के अध्ययन में स्तूपों का स्थान महत्वपूर्ण है|