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SHIKHAR UPPSC Mains 2021 Day 2 Hindi Answer

Updated : 6th Jan 2022
SHIKHAR UPPSC Mains 2021 Day 2 Hindi Answer

Q1 - प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये। साथ ही, इसके परिणामों की व्याख्या कीजिए।

एप्रोच-

-प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए उत्तर का प्रारंभ कीजिये|

-मुख्य भाग के पहले हिस्से में, प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये|

-अंतिम भाग में, प्लासी के युद्ध के घटनाक्रम को संक्षिप्तता से दर्शाते हुए इसके परिणामों का उल्लेख कीजिये|

उत्तर-

        भारत में ब्रिटिश राजनीतिक सता का आरंभ 1757 के प्लासी युद्ध से माना जाता है जब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया था| कर्नाटक युद्धों में फ्रांसीसियों को हराने से उत्साहित अंग्रेजों ने अपने अनुभवों का बेहतर इस्तेमाल इस युद्ध में किया| बंगाल तब भारत का सबसे धनी तथा उपजाऊ प्रांत था| साथ ही, इससे कंपनी तथा उसके कर्मचारियों के लाभदायक हित भी जुड़े हुए थें| कंपनी 1717 में मुग़ल सम्राट के द्वारा मिले शाही फरमान का प्रयोग कर अवैध व्यापार कर रही थी जिससे बंगाल के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँच रहा था| इसी पृष्ठभूमि में सिराजुद्दौला ने 1756 में कासिमबाजार तथा कलकता को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा अंग्रेजों को फुल्टा नामक द्वीप पर शरण लेनी पड़ी| तत्पश्चात मद्रास से आये वाटसन तथा क्लाईव के नेतृत्व में नौसैनिक सहायता के द्वारा अंग्रेजों ने वापस सिराजुद्दौला को चुनौती दी तथा कलकता को वापस जीत लिया| हालाँकि दोनों पक्षों के मध्य जल्द ही प्लासी में 23 जून,1757 को एक और निर्णायक युद्ध हुआ|

प्लासी के युद्ध के कारण -

अंग्रेजों की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा;

1717 के फरमान(आदेश) के दुरूपयोग को लेकर विवाद- फर्रुख्सियार के द्वारा दिए गए दस्तक के अधिकार से बंगाल के राजस्व को हानि पहुँचना तथा इसका दुरूपयोग कर कंपनी के कर्मचारियों द्वारा निजी व्यापार पर भी कर न चुकाना जिससे नवाब का क्रोधित होना|

-सिराजुद्दौला की संप्रभुता को चुनौती - द्वितीय कर्नाटक युद्ध से उत्साहित होकर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला की सता को चुनौती दी जैसे- भारतीय वस्तुओं पर कलकता में कर लगाना, नवाब के मना करने के बावजूद कलकता की किलेबंदी करना, नवाब के विरोधियों को संरक्षण इत्यादि| इसे सिराज ने अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप लिया|

-सिराजुद्दौला की प्रतिक्रिया- सिराजुद्दौला ने जून,1756 में कासिमबाजार एवं कलकता पर नियंत्रण स्थापित किया तथा ब्रिटिश अधिकारियों को फुल्टा द्वीप में शरण लेनी पड़ी| सिराजुद्दौला ने कलकता की जिम्मेदारी मानिकचंद नामक अधिकारी को सौंपी जिसके द्वारा विश्वासघात किया गया|

काल-कोठरी(ब्लैक-होल) की घटना - हौलबेल ने इस घटना का जिक्र किया| हालाँकि ऐतिहासिक तौर पर यह प्रमाणित नहीं हो पाया है फिर भी इसने सिराजुद्दौला से प्रतिशोध के लिए अंग्रेजों को एकजुट किया|

कलकता पर अंग्रेजों का नियंत्रण- जनवरी 1757 में क्लाईव के नेतृत्व में कलकता पर अंग्रेजों का पुनः नियंत्रण स्थापित हुआ| सिराजुद्दौला ने तात्कालिक तौर पर अंग्रेजों की संप्रभुता को स्वीकार किया| हालाँकि मज़बूरी में नवाब ने अंग्रेजों की सारी मांगें मान ली थी पर अंग्रेज उसकी जगह अपने किसी विश्वासपात्र को गद्दी पर बैठाना चाहते थें|

क्लाईव के द्वारा षड़यंत्र - क्लाईव ने नवाब को हटाने की योजना बनाई| इस षड़यंत्र में मुख्य सेनापति मीरजाफर के साथ-साथ कई अन्य अधिकारी व बड़े व्यापारी भी शामिल थें| योजना के अनुसार ही प्लासी नामक स्थान पर दोनों की सेना में टकराव हुआ तथा कुछ ही घंटों में अंग्रेजों की जीत हो गई|

 

प्लासी के युद्ध के परिणाम 

राजनीतिक परिणाम

  • पूर्व(बंगाल, उड़ीसा) में राजनीतिक शक्ति के रूप में अंग्रेजों का उदय|
  • बंगाल के नवाब की राजनीतिक स्थिति का कमजोर होना जिससे बंगाल के राजनीतिक प्रशासन पर अंग्रेजों का प्रभाव जैसे - नवाब के अधिकारियों की नियुक्ति में हस्तक्षेप आदि|
  • अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा बढ़ी तथा इसका असर अन्य भारतीय क्षेत्रों में राजनीतिक दखल के रूप में देखने को मिला|

आर्थिक परिणाम

  • अंग्रेजों को एक बड़ी राशि मुआवजे के रूप में|
  • 24 परगना की जमींदारी तथा उपहार के रूप में भी एक अच्छी-खासी रकम अंग्रेजों ने ली| बंगाल के समृद्ध संसाधनों तक पहुँच का लाभ अंग्रेजों ने तृतीय कर्नाटक युद्ध तथा उत्तर भारत में अभी अपने क्षेत्र विस्तार में किया|
  • कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार पर भी मुक्त व्यापार की सुविधा दी गई|
  • अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ्रांसीसी तथा डच कंपनियों को कमजोर बनाकर बंगाल के व्यापार तथा वाणिज्य पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया|

                         प्लासी के लड़ाई के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक वाणिज्यिक निकाय ना होकर सैन्य कंपनी के रूप में भी खुद को स्थापित कर लिया| अब इसके पास एक बहुत बड़ा भूभाग था जिसे एक प्रशिक्षित सेना के माध्यम से ही सुरक्षित रखा जा सकता था| इसके फलस्वरूप कंपनी सैन्य-सुदृढ़ीकरण की ओर बढ़ती चली गई तथा भारत के विभिन्न भागों में इसका राजनीतिक दखल एवं प्रभुत्व बढ़ता चला गया|

 

Q2- सहायक संधि की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए भारत में ब्रिटिश साम्राज्य विस्तार में इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।

 

दृष्टिकोण :

-भूमिका में सहायक संधि प्रणाली का परिचय दीजिए।

-उत्तर के प्रथम भाग में इस प्रणाली की विशेषताओं की चर्चा कीजिए।

-इसके बाद महत्व पर चर्चा कीजिए।

-सारांश रूप में निष्कर्ष लिखते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर -

             भारत मे ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल के समय लॉर्ड वेलेजली ने भारतीय राज्यों को अँग्रेजी राजनीतिक परिधि के अंतर्गत लाने के लिए सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग किया । इसकी सहायता से भारत मे अँग्रेजी सत्ता की श्रेष्ठता स्थापित करने मे सहायता मिली। इसके अंतर्गत भारत के कई राज्य आ गए जैसे - हैदराबाद , मैसूर , तंजौर, अवधा, पेशवा इत्यादि । 

सहायक संधि की विशेषताएँ - 

  • सहायक संधि अपनाने वाले राज्यों को अपनी राजधानी में ब्रिटिश रेजीडेंट रखना होता था।
  • भारतीय राजाओं के विदेशी संबंध कम्पनी के अधीन होंगे. वे कोई युद्ध नहीं करेंगें तथा अन्य राज्यों से बातचीत भी कंपनी के द्वारा ही होगी।
  • बड़े राज्यों को अपने यहां एक ऐसी सेना रखनी होती थी जिसकी कमान कंपनी के हाथों में होती थी. इसका उद्देश्य सार्वजनिक शान्ति बनाए रखना था। इसके लिए उन्हें पूर्ण प्रभुसत्तायुक्त प्रदेश कंपनी को देना था तथा छोटे राज्यों को कंपनी को नकद धन देना था।
  • राज्य कंपनी की अनुमति के बिना किसी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं रख सकते थे।
  • कंपनी राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नही करेगी तथा कंपनी राज्यों की प्रत्येक प्रकार के शत्रुओं से रक्षा करेगी। 

 भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार में सहायक संधि का महत्व:

  • कंपनी ने उन प्रदेशों में सम्पूर्ण प्रभुसत्ता हासिल कर ली जिन्हे राज्य द्वारा ब्रिटिश सेना के रख-रखाव के बदले में प्रदान किया जाता था।
  • फ्रांसीसी कार्यवाही को संतुलित करने की शक्ति प्राप्त हो गयी। उस समय जो नेपोलियन का भय व्याप्त था उससे मुक़ाबला करने के लिए ब्रिटिश अब तैयार हो गए।
  • भारतीय राज्यों के राज्यक्षेत्र में ही अपने सैन्य दस्तों को तैनात कर अंग्रेजों ने अपने रणनीतिक एवं महत्वपूर्ण स्थलों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिए।
  • भारत के तत्कालीन महत्वपूर्ण प्रान्तों हैदराबाद, मैसूर, तंजौर तथा अवध आदि से हस्ताक्षर करा कर भारत के एक बड़े भू भाग पर अंग्रेजों ने सांकेतिक रूप से कब्जा कर लिया था।
  • इसने भारतीय राज्यों की निःशस्त्र कर दिया और अंग्रेजों के खिलाफ कोई भी महासंघ बनाने की संभावना से भारतीय राजाओं को वंचित कर दिया।
  • अंग्रेजों का सैन्य खर्च कम हुआ। जिससे सैनिकों की संख्या में वृद्धि हुई। अंततः जिसका प्रयोग भारतियों के खिलाफ ही हुआ।
  • एक संधि के माध्यम से लगभग सभी महत्वपूर्ण भारतीय राज्य कंपनी के संरक्षण में आ गए| 

                           निष्कर्षतः अंग्रेजों द्वारा प्रारम्भ सहायक संधि की यह नीति अपने आप में पहली महत्वपूर्ण साम्राज्यवादी नीति थी। इसके प्रावधान इस प्रकार थे कि भारतीय शासकों को प्रतीत हुआ कि उनके हित में है परंतु ब्रिटिश साम्राज्य विस्तार के लिए इस नीति ने मार्ग प्रशस्त किया।

 

Q3-कांग्रेस में गरमपंथी राष्ट्रवाद का उदय विभिन्न कारणों का परिणाम था| स्पष्ट कीजिये|

दृष्टिकोण

-भूमिका में गरमपंथी राष्ट्रवाद को परिभाषित कीजिये

-मुख्य भाग में गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये

-अंतिम में राष्ट्रीय आन्दोलन में गरमपंथी राष्ट्रवाद के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिये|

उत्तर -

                                           1885 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व उदारवादी नेताओं के द्वारा किया गया था | वर्ष 1905 ई. से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा चरण प्रारम्भ होता है, जिसे गरमपंथी राष्ट्रवाद की संज्ञा दी जाती है| गरमपंथी राष्ट्रवादी प्रार्थना के बदले संघर्ष के मार्ग का आह्वान करते थे | बाल गंगाधर तिलक, लाल लाजपत राय, विपिनचन्द्र पाल एवं अरविन्द घोष प्रमुख गरमपंथी नेता थे| गरम दल के नेताओं का मानना था कि सरकार पर दबाव डालकर ही अधिकारों को पाया जा सकता है| गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के पीछे अनेक कारण उत्तरदायी थे|

गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के उत्तरदायी कारण-

सरकार से निराशा

  • विभिन्न कारणों से सरकारी नीतियों के विरुद्ध राष्ट्रवादियों में असंतोष दिखाई पड़ते हैं जैसे-नरमदलीय नेताओं की संवैधानिक राजनीति को सरकार के द्वारा महत्त्व न दिया जाना|
  • इतना ही नहीं सरकार कई मुद्दों को लेकर प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण भी अपना रही थी जैसे- 1904 में प्रेस को नियंत्रित करने के लिए कानून, कलकत्ता विश्वविद्यालय एवं कलकत्ता नगर निगम पर सरकारी नियंत्रण में वृद्धि आदि|
  • इसके अतिरिक्त 1890 के दशक में एक अकाल के दौरान लाखो की संख्या में लोगों का मारा जाना, सरकार ने राहत कार्यों की उपेक्षा की तथा महाराष्ट्र में प्लेग के दौरान सरकारी कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के भी साक्ष्य मिलते हैं

नरमदलीय नेतृत्व से निराशा

  • नरमदलीय कार्यशैली से असंतोष कांग्रेस एवं अखिल भारतीय स्तर पर गरमदलीय नेताओं के उदय का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण था|
  • इस कार्यशैली के कारण सरकार पर प्रभावी तरीके से दबाव नहीं बनाया जा सका|
  • सरकार के प्रति उदारवादी नेताओं की आस्था से भी राष्ट्रवादियों में असंतोष था|
  • इतना ही नहीं युवाओं तथा आम लोगों को आंदोलित न कर पाने के कारण भी इनके प्रति निराशा का भाव बढ़ता गया|

शिक्षा का प्रसार-

  • 19 वीं सदी के अंत तक सरकारी एवं व्यक्तिगत प्रयासों से शिक्षा का अपेक्षाकृत व्यापक प्रसार हुआ।
  • इसके साथ ही शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में भी वृद्धि हुई|
  • चूँकि इन युवाओं पर आधुनिक विचारों का प्रभाव था तथा बेरोजगारी के कारण असंतोष भी था अतः इनका झुकाव उग्रराष्ट्रवाद की ओर बढ़ता गया|

सुधारकों की भूमिका

  • 19वीं सदी के उत्तरार्ध में दयानंद सरस्वती तथा विवेकानंद जैसे सुधारकों के लेखों, विचारों एवं गतिविधियों ने स्वदेशी संस्कृति के प्रति गौरव का एहसास कराया।
  • आत्म विश्वास एवं ऊर्जा का संचार भी किया युवाओं पर इनका विशेष प्रभाव देखा गया।

अंतर्राष्ट्रीय कारक

  • 1890 के पश्चात जापान का तेजी से आधुनिक राष्ट्र के रूप में उदय हुआ और 1905 में जापान ने रूस को पराजित किया|
  • इस घटना ने राष्ट्रवादियों को प्रेरित एवं उत्साहित किया कि जापान जैसा छोटा राष्ट्र आत्मनिर्भर हो सकता है तथा बड़ी शक्तियों को चुनौती दे सकता है तो भारत हम भी एक जुट हो कर ऐसा कर सकते हैं
  • इसी प्रकार 1896 में इथियोपिया के द्वारा इटली को पराजित किये जाने की घटना ने राष्ट्रवादियों को उत्साहित किया

गरमदलीय नेताओं की उपस्थिति एवं गतिविधियाँ

  • कांग्रेस की स्थापना के समय से ही गरमदलीय नेताओं की उपस्थिति तथा देश के अलग अलग हिस्सों में उनके द्वारा अपनाए जाने वाले उग्र तरीकों को देख सकते हैं,जैसे- 1890 के दशक में तिलक ने महाराष्ट्र में कर न देने का आन्दोलन चलाया|
  • इसी प्रकार पंजाब में लाजपत राय तथा बंगाल में अरविन्द घोष व विपिनचंद्र पाल सक्रिय थे|
  • इन नेताओं की कार्यशैली के कारण युवाओं का इनके प्रति झुकाव बढ़ता गया इसी के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में गरमदलीय युग की शुरुआत हुई|

                    इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के पीछे विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कारक उत्तरदायी थे| गरमपंथी राष्ट्रवाद ने राष्ट्रीय आन्दोलन के मध्यवर्गीय चरित्र को जनांदोलन में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी| इसके साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलन को बहिष्कार जैसे उग्र उपकरणों से सुसज्जित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी|