Q1 - प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये। साथ ही, इसके परिणामों की व्याख्या कीजिए।
एप्रोच-
-प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए उत्तर का प्रारंभ कीजिये|
-मुख्य भाग के पहले हिस्से में, प्लासी के युद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिये|
-अंतिम भाग में, प्लासी के युद्ध के घटनाक्रम को संक्षिप्तता से दर्शाते हुए इसके परिणामों का उल्लेख कीजिये|
उत्तर-
भारत में ब्रिटिश राजनीतिक सता का आरंभ 1757 के प्लासी युद्ध से माना जाता है जब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया था| कर्नाटक युद्धों में फ्रांसीसियों को हराने से उत्साहित अंग्रेजों ने अपने अनुभवों का बेहतर इस्तेमाल इस युद्ध में किया| बंगाल तब भारत का सबसे धनी तथा उपजाऊ प्रांत था| साथ ही, इससे कंपनी तथा उसके कर्मचारियों के लाभदायक हित भी जुड़े हुए थें| कंपनी 1717 में मुग़ल सम्राट के द्वारा मिले शाही फरमान का प्रयोग कर अवैध व्यापार कर रही थी जिससे बंगाल के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँच रहा था| इसी पृष्ठभूमि में सिराजुद्दौला ने 1756 में कासिमबाजार तथा कलकता को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा अंग्रेजों को फुल्टा नामक द्वीप पर शरण लेनी पड़ी| तत्पश्चात मद्रास से आये वाटसन तथा क्लाईव के नेतृत्व में नौसैनिक सहायता के द्वारा अंग्रेजों ने वापस सिराजुद्दौला को चुनौती दी तथा कलकता को वापस जीत लिया| हालाँकि दोनों पक्षों के मध्य जल्द ही प्लासी में 23 जून,1757 को एक और निर्णायक युद्ध हुआ|
प्लासी के युद्ध के कारण -
अंग्रेजों की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा;
1717 के फरमान(आदेश) के दुरूपयोग को लेकर विवाद- फर्रुख्सियार के द्वारा दिए गए दस्तक के अधिकार से बंगाल के राजस्व को हानि पहुँचना तथा इसका दुरूपयोग कर कंपनी के कर्मचारियों द्वारा निजी व्यापार पर भी कर न चुकाना जिससे नवाब का क्रोधित होना|
-सिराजुद्दौला की संप्रभुता को चुनौती - द्वितीय कर्नाटक युद्ध से उत्साहित होकर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला की सता को चुनौती दी जैसे- भारतीय वस्तुओं पर कलकता में कर लगाना, नवाब के मना करने के बावजूद कलकता की किलेबंदी करना, नवाब के विरोधियों को संरक्षण इत्यादि| इसे सिराज ने अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप लिया|
-सिराजुद्दौला की प्रतिक्रिया- सिराजुद्दौला ने जून,1756 में कासिमबाजार एवं कलकता पर नियंत्रण स्थापित किया तथा ब्रिटिश अधिकारियों को फुल्टा द्वीप में शरण लेनी पड़ी| सिराजुद्दौला ने कलकता की जिम्मेदारी मानिकचंद नामक अधिकारी को सौंपी जिसके द्वारा विश्वासघात किया गया|
काल-कोठरी(ब्लैक-होल) की घटना - हौलबेल ने इस घटना का जिक्र किया| हालाँकि ऐतिहासिक तौर पर यह प्रमाणित नहीं हो पाया है फिर भी इसने सिराजुद्दौला से प्रतिशोध के लिए अंग्रेजों को एकजुट किया|
कलकता पर अंग्रेजों का नियंत्रण- जनवरी 1757 में क्लाईव के नेतृत्व में कलकता पर अंग्रेजों का पुनः नियंत्रण स्थापित हुआ| सिराजुद्दौला ने तात्कालिक तौर पर अंग्रेजों की संप्रभुता को स्वीकार किया| हालाँकि मज़बूरी में नवाब ने अंग्रेजों की सारी मांगें मान ली थी पर अंग्रेज उसकी जगह अपने किसी विश्वासपात्र को गद्दी पर बैठाना चाहते थें|
क्लाईव के द्वारा षड़यंत्र - क्लाईव ने नवाब को हटाने की योजना बनाई| इस षड़यंत्र में मुख्य सेनापति मीरजाफर के साथ-साथ कई अन्य अधिकारी व बड़े व्यापारी भी शामिल थें| योजना के अनुसार ही प्लासी नामक स्थान पर दोनों की सेना में टकराव हुआ तथा कुछ ही घंटों में अंग्रेजों की जीत हो गई|
प्लासी के युद्ध के परिणाम
राजनीतिक परिणाम
आर्थिक परिणाम
प्लासी के लड़ाई के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक वाणिज्यिक निकाय ना होकर सैन्य कंपनी के रूप में भी खुद को स्थापित कर लिया| अब इसके पास एक बहुत बड़ा भूभाग था जिसे एक प्रशिक्षित सेना के माध्यम से ही सुरक्षित रखा जा सकता था| इसके फलस्वरूप कंपनी सैन्य-सुदृढ़ीकरण की ओर बढ़ती चली गई तथा भारत के विभिन्न भागों में इसका राजनीतिक दखल एवं प्रभुत्व बढ़ता चला गया|
Q2- सहायक संधि की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए भारत में ब्रिटिश साम्राज्य विस्तार में इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण :
-भूमिका में सहायक संधि प्रणाली का परिचय दीजिए।
-उत्तर के प्रथम भाग में इस प्रणाली की विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
-इसके बाद महत्व पर चर्चा कीजिए।
-सारांश रूप में निष्कर्ष लिखते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर -
भारत मे ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल के समय लॉर्ड वेलेजली ने भारतीय राज्यों को अँग्रेजी राजनीतिक परिधि के अंतर्गत लाने के लिए सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग किया । इसकी सहायता से भारत मे अँग्रेजी सत्ता की श्रेष्ठता स्थापित करने मे सहायता मिली। इसके अंतर्गत भारत के कई राज्य आ गए जैसे - हैदराबाद , मैसूर , तंजौर, अवधा, पेशवा इत्यादि ।
सहायक संधि की विशेषताएँ -
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार में सहायक संधि का महत्व:
निष्कर्षतः अंग्रेजों द्वारा प्रारम्भ सहायक संधि की यह नीति अपने आप में पहली महत्वपूर्ण साम्राज्यवादी नीति थी। इसके प्रावधान इस प्रकार थे कि भारतीय शासकों को प्रतीत हुआ कि उनके हित में है परंतु ब्रिटिश साम्राज्य विस्तार के लिए इस नीति ने मार्ग प्रशस्त किया।
Q3-कांग्रेस में गरमपंथी राष्ट्रवाद का उदय विभिन्न कारणों का परिणाम था| स्पष्ट कीजिये|
दृष्टिकोण
-भूमिका में गरमपंथी राष्ट्रवाद को परिभाषित कीजिये
-मुख्य भाग में गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये
-अंतिम में राष्ट्रीय आन्दोलन में गरमपंथी राष्ट्रवाद के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिये|
उत्तर -
1885 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व उदारवादी नेताओं के द्वारा किया गया था | वर्ष 1905 ई. से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा चरण प्रारम्भ होता है, जिसे गरमपंथी राष्ट्रवाद की संज्ञा दी जाती है| गरमपंथी राष्ट्रवादी प्रार्थना के बदले संघर्ष के मार्ग का आह्वान करते थे | बाल गंगाधर तिलक, लाल लाजपत राय, विपिनचन्द्र पाल एवं अरविन्द घोष प्रमुख गरमपंथी नेता थे| गरम दल के नेताओं का मानना था कि सरकार पर दबाव डालकर ही अधिकारों को पाया जा सकता है| गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के पीछे अनेक कारण उत्तरदायी थे|
गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के उत्तरदायी कारण-
सरकार से निराशा
नरमदलीय नेतृत्व से निराशा
शिक्षा का प्रसार-
सुधारकों की भूमिका
अंतर्राष्ट्रीय कारक
गरमदलीय नेताओं की उपस्थिति एवं गतिविधियाँ
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरमपंथी राष्ट्रवाद के उदय के पीछे विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कारक उत्तरदायी थे| गरमपंथी राष्ट्रवाद ने राष्ट्रीय आन्दोलन के मध्यवर्गीय चरित्र को जनांदोलन में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी| इसके साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलन को बहिष्कार जैसे उग्र उपकरणों से सुसज्जित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी|
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